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प्रश्नों के उत्तर देना

ANSWERING QUESTIONS
(Hindi)

द्वारा डॉ. आर. एल. हायमर्स, जूनि.
पास्टर ऐमेरीटस
by Dr. R. L. Hymers, Jr.,
Pastor Emeritus

लॉस ऐंजीलिस के बैपटिस्ट टैबरनेकल में दिया गया शिक्षण
रविवार की दोपहर, ४ अक्टोबर,२०२०
A lesson given at the Baptist Tabernacle of Los Angeles
Lord’s Day Afternoon, October 4, 2020

शिक्षण आरंभ करने के पूर्व एक धार्मिक भजन गाया:
‘‘ओ‚ फॉर ए थाउजैंड टंग्स’’ (रचयिता चार्ल्स वैस्ली, १७०७-१७८८)


अगर आपसे कोई प्रश्न पूछता है तो क्या आपको उस पर नाराज होना चाहिए? बिल्कुल नहीं। शिष्य पतरस का कथन था‚

‘‘पर मसीह को प्रभु जान कर अपने अपने मन में पवित्र समझो और जो कोई तुम से तुम्हारी आशा के विषय में कुछ पूछे‚ तो उसे उत्तर देने के लिये सर्वदा तैयार रहो‚ पर नम्रता और भय के साथ।’’ (१ पतरस ३:१५)

सामान्य प्रश्न

१. मैं बाइबल को नहीं मानता

शिष्य पौलुस ने यूनानियों के सामने बाइबल के वचन सुनाए‚ यूनानी जो बाइबल को नहीं मानते थे। जिनके सामने पौलुस ने गवाही दी‚ उन्हें बाइबल की बातें मनवाने की कोशिश नहीं की। अपनी गवाही देते समय हमारा ध्यान अपने साथ घटी बात बताने पर होता है‚ न कि सुरक्षात्मक बात करने पर।

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बाइबल का मुख्य संदेश है कि कैसे एक व्यक्ति को अनंत जीवन मिल सकता है। अगर वह कहे कि वह अनंत जीवन को नहीं मानता तो आप कह सकते हैं‚ ‘‘इस विषय पर बाइबल जो कहती है उसके बारे में आप क्या सोचते हैं? इस विषय पर बाइबल जो शिक्षा देती है उससे आप क्या समझते हैं?’’

९८ प्रतिशत बार ऐसा जवाब आएगा कि लोग कहेंगे‚ ‘‘दस आज्ञाएं मानकर और मसीह के उदाहरण के पालन करने से।’’ तब आप कह सकते हैं कि‚ ‘‘इसी का तो मुझे डर था। आपने बाइबल को अस्वीकार कर दिया बिना इसके मुख्य संदेश को समझे क्योंकि आपका जवाब न केवल गलत है परंतु यह बाइबल की शिक्षा के ठीक विपरीत है। तो क्या यह अब एक अधिक बुद्धिमत्तापूर्ण जवाब नहीं होगा‚ और इसे मुझे आपके साथ बांटने दीजिए? तब आप भी एक विवेकी निर्णय ले सकते हैं कि इसे मानना चाहिए अथवा नहीं।’’

अब मैं आपके सामने यीशु के विषय में कहे गए १० भविष्यकथनों को पढूंगा।

(१) उपहास उड़ाया जाएगा,

‘‘और लोगों ने मेरे खाने के लिये इन्द्रायन दिया‚ और मेरी प्यास बुझाने के लिये मुझे सिरका पिलाया’’ (भजन ६९:२१)

(२) दूसरों के लिए कष्ट उठाएंगे

‘‘निश्चय उसने हमारे रोगों को सह लिया और हमारे ही दु:खों को उठा लिया; तौभी हम ने उसे परमेश्वर का मारा—कूटा और दुर्दशा में पड़ा हुआ समझा। परन्तु वह हमारे ही अपराधो के कारण घायल किया गया‚ वह हमारे अधर्म के कामों के हेतु कुचला गया....और यहोवा ने हम सभों के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया’’ (यशायाह ५३:४— ६)

(३) आश्चर्यकर्म करेंगे

‘‘तब अन्धों की आंखे खोली जाएंगी और बहिरों के कान भी खोले जाएंगे’’ (यशायाह ३५:५ — ७१३ बी सी)

(४) एक मित्र द्वारा धोखा खाएंगे

‘‘मेरा परम मित्र जिस पर मैं भरोसा रखता था‚ जो मेरी रोटी खाता था‚ उसने भी मेरे विरुद्ध लात उठाई है’’ (भजन ४१:९)

(५) तीस चांदी के सिक्कों के एवज में बेचा जाएगा

‘‘तब मैं ने उन से कहा....तब उन्होंने मेरी मजदूरी में चान्दी के तीस टुकड़े तौल दिए’’ (जर्कयाह ११:१२ — ४८७ बी सी)

(६) थूका और कोड़े मारे जाएंगे

‘‘मैं ने मारने वालों को अपनी पीठ की....अपमानित होने और थूकने से मैं ने मुंह न छिपाया’’ (यशायाह ५०:६ — ७१२ बी सी)

(७) कीलों से क्रूस पर लटकाए जाएंगे

‘‘वह मेरे हाथ और मेरे पैर छेदते हैं’’ (भजन २२:१६)

(८) परमेश्वर द्वारा छोड़ दिए जाएंगे

‘‘हे मेरे परमेश्वर‚ हे मेरे परमेश्वर‚ तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?’’ (भजन २२:१)

(९) उनका पुर्नरूत्थान होगा

‘‘क्योंकि तू मेरे प्राण को अधोलोक में न छोड़ेगा, न अपने पवित्र भक्त को सड़ने देगा’’ (भजन १६:१०)

(१०) अन्यजाति उनके पास आकर मन फिराएंगे

‘‘मेरे दास को देखो....वह अन्यजातियों के लिये न्याय प्रगट करेगा’’ (यशायाह ४२:१ — ७१२ बी सी)

ये केवल १० भविष्यवाणियां है जो यीशु के लिए की गयी थी। परंतु बाइबल में दो हजार से अधिक भविष्यवाणियां है जो पूर्ण भी हो चुकी हैं।

कई वर्षो पूर्व नेशनल इनक्वायर मैगजीन ने ६१ भविष्यवाणियों की सूची तैयार की थी‚ जो आधुनिक ‘‘भविष्यवक्ताओं’’ ने की थी। वे ६१ भविष्यवाणियों को उस वर्ष के अंतिम छ: महिनों में पूर्ण होना था। कितनी सही निकली होंगी? आप माने या न मानें‚ ६१ में से एक भी सही नहीं निकली! उन्होंने कहा था कि पोप पॉल रिटायर हो जांएगे और रोमन कैथोलिक चर्च एक लेमेन कमेटी के द्वारा नियंत्रित किया जाएगा। जार्ज फोरमेन‚ मुहम्मद अली के संग अफ्रीका में मुक्केबाजी प्रतियोगिता में अपने भारी भरकम ताज को बनाए रखेंगे और टेड कैनेडी राष्ट्रपति के लिए प्रचार करेंगे! आधुनिक भविष्यवाणियों में और बाइबल की भविष्यवाणियों में केवल यह अंतर रहा कि आधुनिक ‘‘भविष्यवाणियां’’ अचूक रूप से गलत थीं और बाइबल के भविष्यवक्ता हमेशा ही सही होते थे!

२. क्या विकासवाद सृष्टि को झूठा नहीं ठहराता?

डॉ. ए. डब्ल्यू. टोजर ने कहा था‚ ‘‘हम जो बाइबल पर विश्वास रखते हैं‚ जानते हैं कि संपूर्ण जगत सृजा गया है।’’ जगत शाश्वत नहीं है क्योंकि इसका एक आरंभ है। यह किन्हीं खुशनुमा घटनाओं का क्रम भी नहीं है जहां अनेक मिलते जुलते भाग संयोग से जुड़ते गए‚ जम गए और जगत की चहल-पहल शुरू हो गयी। इसे मानने के लिए सहज विश्वास, भोलेपन की जरूरत होती है, जो बहुत कम लोगों के अंदर पाया जाता है।’’

एक युवा से पूछा गया‚ ‘‘किस प्रमाण के कारण आप विकासवाद को सही मानने के लिए राजी हुए?’’ उसका जवाब था‚ ‘‘जानवरों और मनुष्यों के बीच की समानता। मेरे लिए यही बात विकासवाद को प्रमाणित करती है।’’

जेम्स वॉटसन और फ्रांसिस क्रिक ने प्रमुख जीवन तत्व अर्थात डीएनए की खोज वर्ष १९५० में की थी — एक खोज जिसने उन्हें नोबेल पुरूस्कार दिलाया। मानव शरीर लगभग ट्रिलियन डीएनए अणुओं से मिलकर बना है। यह अत्यंत आश्चर्यजनक जटिल तंत्र है।

क्रिक‚ नास्तिक और विकासवादी थे‚ उन्होंने डीएनए की संभावना के बारे में जानने का प्रयास किया‚ पृथ्वी के ४.६ बिलियंस वर्षो में जिसे विकासवादी पृथ्वी की उम्र कहते हैं‚ उसमें डीएनए की संभावना अचानक से पैदा होती है। पृथ्वी के इतिहास में एक कोशिका के डीएनए अणु होने की कितनी संभावना थी? क्या आप इसके निष्कर्ष को जानते हैं? जीरो। यह तो ४.६ बिलियंस वर्षो में भी कभी संभवत: हो नहीं सकता था।

तो क्या क्रिक यह कहना चाह रहे थे कि परमेश्वर ने यह किया था? नहीं, उन्होंने नहीं किया।

क्या यह अजीब नहीं लगता कि इनमें से किसी भी वैज्ञानिक ने‚ जिनको ये प्रमाण मिले‚ उन्होंने स्वीकार किया कि यह सिद्धांत गलत था? उनमें से किसी ने नहीं कहा कि, ‘‘डॉरविन के समय से हम कुछ गलत शिक्षा दे रहे हैं। हमने आपको पढ़ाया कि जीवन आदिकालीन मिटटी में से उत्पन्न हुआ जैसे अमीनो एसिड ने आपस में मिलकर एक कोशिका बना दी हो। इसके परिणामस्वरूप बिलियंस वर्षो के बाद हम मनुष्य दिखाई दे रहे हैं। हमने विचार किया कि इसी तरह ही हुआ होगा। किंतु हमारा सिद्धांत गलत प्रमाणित हुआ। हम माफी चाहते हैं कि हमने आपको गलत सिखाया।’’

क्या आपको पता है कि फ्रांसिस क्रिक ने क्या किया? वह एक और बिल्कुल असंभव सिद्धांत को ले आया। उसके नये सिद्धांत में शामिल था कि किन्हीं दूर ग्रहों पर और उन्नत अस्तित्वों ने अपने शुक्राणुओं को अंतरिक्षयान से भेजा ताकि दूसरे ग्रहों पर जीवन पैदा करें। और इस तरह हमारी उत्पत्ति हुई। यह थोड़ा स्टार वार्स से मिलता जुलता लगता है!

जीवन कभी निर्जीव चीजों से नहीं पैदा हो सकता है। इसलिए बाइबल कहती है, ‘‘आदि में में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की’’ (उत्पत्ति १)।

तीन प्रमाण जिन्होंने मुझे परमेश्वर के अस्तित्व पर विश्वास करने में सहायता की:

(१) कारण और प्रभाव का सिद्धांत।

     क्योंकि मैं जगत में कारण और प्रभाव को देखता हूं जो तर्कपूर्ण रूप से मुझे उस अप्रकट कारण की ओर संकेत देता है जिस पर मैं विश्वास करता हूं वह परमेश्वर हैं।

(२) आकार का प्रमाण।

     अगर आप मार्स पर जाएं और एक बहुत अच्छी बनाई हुई घड़ी को देखें तो आप तर्कपूर्ण निष्कर्ष निकाल लेंगे कि इसे किसी घड़ी निर्माता ने बनाया है। इसलिए बड़े सुरूचिपूर्ण तरीके से बनाया गया संसार भी यह इशारा करता है कि इसको बनाने वाला कोई है‚ मैं उस निर्माता को परमेश्वर कहता हूं।

(३) व्यक्तित्व का प्रमाण

     हम मोना लिसा की प्रसिद्ध पेंटिग को देखते हैं। हम व्यक्तित्व के प्रमाण को देखते हैं। पेंटिग अव्यक्तिगत अभिप्राय से नहीं बनी हो सकती है। यह तीसरा प्रमाण महत्वपूर्ण है क्योंकि एक अभिप्राय या ताकत हमें जिम्मेदार नहीं ठहरा सकता परंतु एक व्यक्ति हमें हमारे पापों के लिए जिम्मेदार ठहराएगा।

३. मेरा परमेश्वर उसके समान नहीं है।

जॉन वेस्ली के जीवन की बात करें जिन्होंने मैथोडिस्ट चर्च आरंभ किया था, वह उद्धार पाने के लिए केवलयीशु मसीह पर विश्वास करने का बहुत ही स्पष्ट चित्रण करते हैं। वह पांच वर्षो तक ऑक्सफोर्ड सेमनरी गए और फिर चर्च ऑफ इंग्लैंड के पादरी बन गए। जहां उन्होंने दस वर्षो तक सेवाएं दी। उसके अंत की बात है, लगभग १७३५ में, वह इंग्लैंड से मिशनरी के रूप में जार्जिया आ गए।

पूरे जीवन भर‚ एक पादरी के रूप में वह असफल ही रहे‚ यद्यपि‚ हम उनकी गिनती पवित्र लोगों में ही करते हैं। वह सुबह चार बजे उठते थे और दो घंटे प्रार्थना किया करते थे। वह एक घंटे बाइबल पढ़ते थे, इसके पहले कि वह संदेश सुनाने के लिए कैदखाने‚ जेल‚ हॉस्पिटल और अन्य जगहों पर जाते। वह पूरे दिन भर से लेकर देर रात तक लोगों को सिखाते‚ उनके लिए प्रार्थना करते और उनकी मदद किया करते थे। वर्षो तक वह ऐसा करते रहे। दरअसल मैथोडिस्ट नाम आया ही उस ईश्वर भक्ति और साधुता के जीवन के कारण है जैसा जीवन वेस्ली और उनके मित्रों ने जीया।

जब वह अमेरिका से लौट रहे थे तब समुद्र में एक बड़ा तूफान आया। जिस छोटे जहाज पर वह सवार थे‚ डूबने वाला था। बड़ी लहरों ने जहाज की छत को तोड़ दिया था और आंधी जहाज के हिस्से तोड़े जा रही थी। बेहद भयभीत‚ वेस्ली ने समझ लिया यह अंतिम समय है। जब वह मरेंगे‚ उसके बाद क्या होगा‚ ऐसा कोई आश्वासन भरोसा उनके पास नहीं था। अच्छा इंसान होने के सारे प्रयासों के बावजूद‚ मौत आज उनके सामने एक बड़ा‚ अंधकार युक्त‚ डरावना प्रश्नचिंह लेकर खड़ी थी।

जहाज के दूसरी ओर लोगों का एक झुंड आत्मिक गीत गा रहा था। उनने उनसे पूछा‚ ‘‘तुम कैसे इस समय गीत गा सकते हो‚ जबकि आज की रात तुम मरने वाले हो।’’ वेस्ली को जवाब मिला‚ ‘‘अगर जहाज डूबता है तो हम प्रभु के संग हमेशा के लिए रहने के लिए चले जाएंगे।’’

वेस्ली सिर हिलाते हुए सोचते हुए चले गए‚ ‘‘कैसे इन लोगों को मौत के बाद के जीवन के लिए पता है? मैंने जीवन में जो अच्छा किया‚ उससे बढ़कर इन्होंने और क्या अधिक अच्छा किया होगा?’’ फिर आगे जोड़ा, ‘‘मैं तो अन्यजातियों को मन फिराने का प्रचार करने आया था। ओह, पर मुझे कौन बदलेगा?’’

परमेश्वर के अनुग्रह से जहाज वापस इंग्लैंड पहुंचा। वेस्ली वापस लंदन पहुंचे और एल्डर्सगेट स्ट्रीट और चेपल में अपने कार्य को आरंभ किया। फिर उनने एक व्यक्ति को सुना जो मार्टिन लूथर का दो सदी पहले लिखा संदेश पढ़ रहा था। शीर्षक था ‘‘लूथर्स प्रिफेस टू दि बुक ऑफ रोमंस।’’ इस संदेश में वर्णन था कि असल विश्वास क्या होता है? उद्धार पाने के लिए केवल यीशु पर विश्वास करना — न कि अपने किए अच्छे कार्यो पर यह सच्चा विश्वास है।

अचानक वेस्ली को अहसास हो गया कि वह जीवन भर गलत रास्ते पर चलते रहे। उस रात डायरी में उनने ये शब्द लिखे: ‘‘पौने नौ बजे के पहले जब मैं मसीह पर विश्वास करने से‚ परमेश्वर हृदय में बदलाव लाते हैं, यह समझा रहा था मैंने अपने हृदय में अजीब सा जोश महसूस किया। मैने महसूस किया कि मैंने मसीह पर‚ केवल मसीह पर उद्धार पाने के लिए विश्वास किया और मुझमें एक भरोसा भर दिया गया कि मुझसे मेरे सारे पापों को ले लिया गया है और मुझे पाप व मृत्यु की व्यवस्था से छुड़ा लिया गया है।’’

यह असल बात थी। पापों से छुड़ाने वाला विश्वास। अपने पापों से पश्चाताप करते हुए, वेस्ली ने उद्धार पाने के लिए केवल यीशु मसीह पर विश्वास किया। अब आप कहेंगे कि क्या जॉन वेस्ली ने उस रात के पहले यीशु मसीह पर विश्वास नहीं किया था? बेशक किया था। बाइबल विद्धान होने के कारण‚ उनने मसीह के विषय में अंग्रेजी‚ लैटिन‚ यूनानी और इब्रानी भाषा में अध्ययन किया था। उन्होंने इन सभी भाषाओं में मसीह पर विश्वास किया था। परंतु उद्धार के लिए जॉन वेस्ली पर भरोसा रखा हुआ था।

इसके पश्चात‚ अठारहवीं सदी के महान प्रचारक कहलाए‚ वेस्ली। परंतु यह सब तब संभव हुआ‚ जब उद्धार पाने के लिए उनने केवल यीशु मसीह पर अपने विश्वास को रखा और उन्हें प्रभु मानकर अपने हृदय में ग्रहण किया। (डॉ डी. जेम्स कैनेडी‚ इवेंजलिज्म एक्सप्लोजन‚ फोर्थ एडिशन‚ टिंडल हाउस पब्लिशर्स‚ १९९६‚ पेज १८३-१८४)

ज्ञानमीमांसा दर्शनशास्त्र की एक शाखा है जो इस प्रश्न के बारे में बताती है कि हम जानते कैसे है? दो तरीके हैं जिनसे लोग उत्तर देते हैं कि वे परमेश्वर के विषय में क्या सोचते हैं।

१. तर्कवाद। तर्कवाद ने मनुष्य को कुछ अजीब‚ विचित्र धार्मिक रास्तों पर भेज दिया।

२. प्रकाशन। अब देखें कि मसीही चर्च का हमेशा विश्वास रहा है कि परमेश्वर ने बाइबल के माध्यम से स्वयं को प्रकाशित किया और अपने पुत्र यीशु मसीह में श्रेष्ठ रूप से स्वयं को प्रकट किया। तो‚ अब प्रश्न यह नहीं है कि हममें से कोई क्या सोचता है? प्रश्न यह है‚ ‘‘कि परमेश्वर ने बाइबल में क्या कहा और अपने पुत्र‚ यीशु मसीह के द्वारा क्या कहा?’’

४. क्या अन्यजातियां उद्धारविहीन हैं?

कहो कि, ‘‘हम यहां क्या कर रहे हैं और किसी धर्मविज्ञानी बहस में डूबने से ज्यादा जरूरत दूसरों को बचाने की है।’’

आप कह सकते हैं‚ ‘‘बॉब‚ आपने बड़ा अच्छा प्रश्न उठाया। परंतु मेरा मानना है कि सच में हम अफ्रीका में अन्यजातियों को परमेश्वर‚ अनंत दयावान के हाथों में छोड़ सकते हैं। आज मैं यह चाहता हूं कि आप अपने अनंत जीवन के बारे में सोचे। उसके बाद हम सोचेंगे कि परमेश्वर ने उनके लिए क्या कहा जिन्होंने कभी सुसमाचार नहीं सुना......समस्या जो इस प्रश्न के आसपास घूमती है कि‚ ‘क्या परमेश्वर सारी अन्यजातियों को जिन्होंने मसीह के बारे में नहीं सुना‚ इसलिए उन पर विश्वास नहीं किया‚ इस कारण नर्क में भेजेंगे?’

बाइबल कहती है कि जो पहले से ही दंड की आज्ञा पाए हुए हैं‚ मसीह उनका न्याय करने नहीं आए। मनुष्य केवल एक बात से दंड पाएगा — और वह अपने पापों के कारण।’’

५. मैं मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास नहीं रखता।

(१) प्लेटो। प्राचीन दर्शनशास्त्री प्लेटो ने सिखाया कि कैसे एक बीज को पहले नष्ट होने, मरने की प्रक्रिया से होकर जाना पड़ता है तब आगे जाकर एक पेड़ बनता है जो सुस्वादू फल लेकर आता है। प्लेटो ने निष्कर्ष निकाला कि इसके पहले कि मनुष्य दूसरे जीवन‚ दूसरे जगत में उदय हो इसके पहले मानव शरीर का मरना आवश्यक है।
     प्लेटो मसीह और शिष्य पौलुस से चार सदी पहले हुए और तौभी वह शिक्षा देते हैं मृत्यु के बाद जीवन के होने की‚ जिसका संकेत पौलुस व मसीह ने आगे दिया। हम १ कुरूंथियों १५:३५—३६ और यूहन्ना १२:२४ में पढ़ते हैं ।

(२) इम्मानुएल कांट ने देखा कि सारे मनुष्य सही गलत को लेकर‚ एक नैतिक भाव को लेकर चिंतित रहते हैं। उनका कथन था‚ ‘‘सही चीज क्यों करना जब न्याय की जीत नहीं होती है?’’ दूसरे शब्दों में‚ उनने तर्क दिया कि कर्त्तव्य बोध के अर्थपूर्ण होने के लिए‚ न्याय होना चाहिए‚ परंतु जब न्याय ही नहीं मिलता है तो उचित चीज क्यों की जाए? उनका तर्क था चूंकि इस जीवन में न्याय नहीं मिलता तो ऐसा कोई दूसरा स्थान होना चाहिए‚ जहां न्याय की जीत हो। ऐसा कहा जाए कि‚ दार्शनिक कांट ने तर्क दिया कि न्याय मृत्यु के बाद के जीवन में होगा। यह बात ऐसी ही है जैसा बाइबल में इब्रानियों ९:२७ में लिखा हुआ है
     इस तरह इम्मानुएल कांट के अनुसार व्यवहारिक आचार नीति को मृत्यु बाद के जीवन में न्याय मिलेगा और न्यायाधीश बाइबल के परमेश्वर के बहुत समान होंगे।

(३) आइंस्टीन के थर्मोडायनेमिक्स के प्रथम सिद्धांत के अनुसार‚ यह ज्ञात है कि उर्जा और पदार्थ बनाए या नष्ट नहीं किए जा सकते हैं। अगर जगत में मनुष्य का अस्तित्व खत्म होता है‚ तौभी जगत में वह किसी अन्य रूप में उपस्थित होगा। बाइबल १ कुरूंथियों १५: ४९— ५१ में बताती है कि मसीही विश्वासी का शरीर जगत में कैसे बना रहेगा। इस प्रकार कह सकते हैं कि आइंस्टीन नास्तिक नहीं था।

(४) मरते हुए लोगों के अंतिम शब्द।
     नास्तिक गिबन‚ अपनी मृत्यु शैया पर चिल्लाया‚ ‘‘सब कुछ अंधेरा है।’’ एक दूसरा नास्तिक एडम्स जब मर रहा था तब चीखते हुए पाया गया‚ ‘‘इस कमरे में बुरी आत्माएं हैं और वे मुझे खींचना चाहती हैं।’’
     इसके विपरीत मसीही गीतकार टॉपलेडी चिल्लाए‚ ‘‘सर्वत्र प्रकाश‚ प्रकाश‚ प्रकाश है!’’ एवरेट ने अपने मरने के २५ मिनिट पूर्व कहा‚ ‘‘महिमा‚ महिमा‚ महिमा।’’ हजारों लोगों को यह देखने का अनुग्रह मिला कि जिस जीवन में वे प्रवेश कर रहे थे‚ उसमें महिमा और गुणगान को देखें।

(६) पुर्नजीवित हुए लोगों के संस्मरण

यह जानना महत्वपूर्ण होगा कि कुछ वैज्ञानिकों ने वैज्ञानिक जगत में हलचल पैदा कर दी है कि उनकी खोज के निष्कर्ष ने उन्हें यह विश्वास करवाया है कि कब्र के बाद भी जीवन है। मैंने कुछ प्रसिद्ध वैज्ञानिकों को सुना है जो स्वर्ग या नर्क की भविष्यवाणियां करते हैं। उनके अनुभवों में कुछ प्रश्न हैं जिनके उत्तर दिए जाने हैं। परंतु फिर भी वे रोचक गवाहियां प्रस्तुत करते हैं।

ऐलिजाबेथ कुबलर-रॉस प्रकट रूप में मसीही नहीं थीं‚ परंतु यह उनका कथन था‚ ‘‘यह प्रमाण अब निर्णायक है। मृत्यु के बाद जीवन है।’’ डॉ कुबलर-रॉस ने मृत्यु के निकट अनुभवों के लिए कहा था कि वे वैज्ञानिक ढंग से प्रमाणित हो चुके हैं। ‘‘हम बस उनके बारे में बात करते हुए डरते हैं‚’’ ऐसा उनका कहना था।

डॉ. रेमंड मूडी ने कहा था‚ ‘‘मृत्यु के क्षण एक गूंज या घंटी की आवाज होती है।’’ इन सब ने यह बतलाया कि वे अपने शरीरों से निकलकर ऊपर उठते हुए, कमरे में नीचे डॉक्टरों को देख रहे थे। यहां सिर्फ कुछ व्यक्तियों का ही अनुभव नहीं बताया जा रहा है‚ परंतु संसार भर के पांच सौ से अधिक लोगों का यह अनुभव रहा है। इनमें से हरेक ने यह बतलाया कि उन्होंने ऐसे व्यक्ति को देखा जिसे वे धार्मिक अस्तित्व कहते हैं। विशेषकर यह बात नास्तिकों ने भी कही।

डॉ. कुबलर-रॉस ने हजारों मेडिकल डॉक्टर्स को संबोधित किया‚ जिन्होंने उन्हें यह कहते हुए सुना‚ ‘‘मैं ऐसा कहा करती थी कि, ‘मैं मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास करती हूं ।’ पर अब मैं जानती हूं।’’

एक हजार मेडिकल प्रोफेशनल्स और स्कॉलर्स ने डॉक्टर के इस भाषण की समाप्ति पर उन्हें खड़े होकर सम्मान दिया।

७. पुर्नजन्म के बारे में क्या विचार है?

पुर्नजन्म हिंदु और बौद्ध आस्था में मानते हैं‚ किंतु मसीहत में इसे नहीं माना जाता है! मेरा उत्तर रहता है कि‚ ‘‘बाइबल बताती है‚ ‘और जैसे मनुष्यों के लिये एक बार मरना और उसके बाद न्याय का होना नियुक्त है।’’’ (इब्रानियों ९:२७)

ये सारे विचार यीशु मसीह की हमारे बदले प्रायश्चित मृत्यु एवं उनकी शुद्ध धार्मिकता की उपेक्षा करते हैं। क्रूस पर उनका मरना, हमेशा के लिए दिया गया बलिदान है, जो हमारे सारे पापों को हमसे दूर कर देता है। इसलिए जब हम यीशु पर आस्था रखते हैं तब उनका क्रूस पर बहाया लहू हमें हमारे सारे पापों से शुद्ध कर देता है!

८. नर्क वास्तविक नहीं है

कभी—कभी हमें ऐसा कहना बहुत अच्छा लगता है, ‘‘अरे आपको पता है यह मनोवैज्ञानिक सत्य है कि हम सबसे ज्यादा उन चीजों का इंकार करते हैं जिनसे हमें अधिक डर लगता है।’’ मुझे लगता है कि नर्क है ऐसा मानने से आप इसलिए इंकार करते हैं कि क्योंकि गहरे कहीं आपके अंर्तमन में यह भय बसा हुआ है कि अगर कोई ऐसा स्थान हुआ तो आप उसमें जा सकते हैं। अक्सर इसका जवाब है‚ ‘‘मेरे अनुमान से आप सही कह रहे हैं।’’

परंतु आप को अपने परिचित के पास अवश्य जाना चाहिए और बताना चाहिए कि‚ ‘‘मैं नहीं चाहता कि आप नर्क में विश्वास करें। आप तसल्ली रखें कि आप नर्क में नहीं जा रहे हैं। यही तो मसीह का शुभ संदेश कहता है। मैं नर्क के अस्तित्व को मानता हूं परंतु मैं यह भी विश्वास करता हूं कि मैं वहां नहीं जा रहा हूं क्योंकि परमेश्वर की प्रतिज्ञा मेरे साथ है। ऐसा कहना यह कहने से लाख गुना बेहतर है कि‚ ‘मैं जानता हूं कि मैं नर्क नहीं जा रहा हूं क्योंकि ऐसा कोई स्थान है ही नहीं।’’’

९. हमारे लिए हमारा नर्क इस पृथ्वी पर ही है।

आपको पता है‚ आपकी बात थोड़ी सही भी है। मैं नशाखोरों को जानता हूं जो इस दुनिया में जीते जी नर्क भुगत रहे हैं। मैंने शराबियों को देखा है जिन्हें शराब ने गुलाम बना रखा है।

पास्टर मार्क बकले नशे की इस लत के बारे में बताते हैं और कैसे उन्हें मेंटल हास्पिटल में भर्ती होना पड़ा। पास्टर बकले इस धरती के नर्क से छूटे हैं‚ यीशु पर विश्वास करके। यीशु ने रेव्ह. मार्क बकले को नशे की लत से बचाया — जो इस पृथ्वी पर नर्क जैसा है। आप उनकी पुस्तक जिसमें उनके यीशु की ओर मुड़ने का अदभुत वर्णन है‚ मंगा सकते हैं — कैसे जीवन को बदल देने वाला उद्धार का जीवन उनको यीशु मसीह के कारण मिला। अमेजॉन.काम पर जाइए और मार्क की पुस्तक को आर्डर कर दीजिए। इसका शीर्षक है‚ फ्रॉम डार्कनेस टू लाईट: माय जर्नी लेखक मार्क बकले। अगर आप कुछ ही पन्ने पढ़ते हैं तो आप पूरी पुस्तक खत्म किए बगैर नहीं छोड़ेगे। मैंने स्वयं इसे दो बार पढ़ी है।

हम सब्त नहीं मनाते‚ परंतु हम पास्टर के साथ सहमत है‚ जब उनके कथन इसप्रकार हैं,

‘‘जब हम परमेश्वर पर भरोसा करके शांत हो जाते हैं‚ वह हमें ऐसी अंर्तदृष्‍टि और समझ देते हैं जो लंबे समय के लिए अधिक फलदायी होती है...मैं आत्मिक कर्मकांड की सलाह नहीं दे रहा हूं। मैं आपको प्रेरित कर रहा हूं कि आप शांत रहने का अलग समय निकाले ताकि आप स्वस्थ हो सकें’’ (फ्रॉम डार्कनेस टू लाईट: माय जर्नी‚ लेखक मार्क बकले)

आइए‚ अपने स्थानों पर खड़े होकर यह आत्मिक गीत गाते हैं!

गर होती मेरी हजारों जीभें मैं गाता
   मेरे त्राणकर्ता की सराहना‚
मेरे यहोवा और राजा की महिमा‚
   उनके अनुग्रह के आनंद के गीत गाता।

मेरे उदार स्वामी और मेरे परमेश्वर‚
   मुझे प्रशंसा करने देते हैं‚
कि मैं पूरी धरती पर फैला दूं आपका नाम‚
   आपके नाम का आदर।

यीशु! वह नाम जो हमारे डरों को शांत करता है‚
   जो हमारे दुखों को कम करने की प्रतिज्ञा करता है;
पापी को सुन पड़ता है यह नाम जैसे मीठा संगीत‚
   यही जीवन‚ यही स्वास्थ्य‚ और शांति है।

जो पापों के बल को हराते हैं यीशु ‚
   पाप के कैदी को करते हैं आजाद;
उनका लहू मलिनता पापों की धो डालता है;
   उनका लहू मुझ पापी के लिए उपलब्ध है।
(‘‘ओ फॉर ए थाउजैंड टंग्स,’’ रचयिता चार्ल्स वीजली, १७०७—१७८८)


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(संदेश का अंत)
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