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जब कभी आप डॉ हायमर्स को लिखें तो अवश्य बतायें कि आप किस देश में रहते हैं। अन्यथा वह आप को उत्तर नहीं दे पायेंगे। डॉ हायमर्स का ईमेल है rlhymersjr@sbcglobal.net. .




जीत हासिल करने वाले कैसे बनें!

HOW TO BE AN OVERCOMER!
(Hindi)

द्वारा डॉ. आर. एल. हायमर्स‚ जूनि.
पास्टर ऐमेरीटस
जीवन को बदल देने वाले संदेश से साभार
२४ वर्ष तक मेरे पास्टर रहे, तिमोथी लिन‚ पी«.एचडी. का संदेश
by Dr. R. L. Hymers, Jr.,
Pastor Emeritus
Adapted from a life-changing sermon
by Timothy Lin, Ph.D., my pastor for 24 years.

लॉस ऐंजीलिस बैपटिस्ट टैबरनेकल में दिया गया संदेश
रविवार की दोपहर‚ जुलाई २६‚ २०२०
A sermon preached at the Baptist Tabernacle of Los Angeles
Lord’s Day Afternoon, July 26, 2020

संदेश के पहले यह गीत गाया गया:
   ‘‘क्या मैं जो योद्धा क्रूस का?’’ (आयजक वॉट’स की रचना‚ १६७४—१७४८)

‘‘हे उत्तर वायु जाग‚ और हे दक्खिनी वायु चली आ! मेरी बारी पर बह‚ जिस से उसका सुगन्ध फैले’’ ’’ (श्रेष्ठगीत ४:१६)


यह संदेश मेरे जीवन काल में सुने गए अब तक के महत्वपूर्ण संदेशों में से एक है। अगर आप मेरी आत्मकथा पढ़ेंगे तो पाएंगे कि क्यों इस संदेश ने मेरे जीवन की दिशा बदल दी। डॉ. राबर्ट एल. समर का कहना था‚ ‘‘मैं पसंद करता हूं और सराहना करता हूं एक ऐसे व्यक्ति की जो सच के लिए खड़ा हुआ है — भले ही सारी परिस्थितियां उसके विरूद्ध है’’ (द ऑनर वॉज ऑल माइनः जायंट ऑफ दि फेथ हूज पॉथ क्रास्ड माइन‚ बिब्लीकल इवेंजलीकल प्रेस, २०१५‚ पेज १०३—१०५)। इंडोनेशिया के हमारे एक मिशनरी हैं जिनका कहना है‚ ‘‘डॉ. हायमर्स एक नायक हैं जिन्होंने बहुत खतरनाक युद्धों को जीता है।’’ यहां जो संदेश आपके साथ साझा कर रहा हूं यह संदेश डॉ. तिमोथी लिन का है जिसने मुझे जीत हासिल करने के लिए प्रोत्साहित किया। मैं आशा करता हूं कि यह संदेश आपके जीवन को भी बदल कर रख देगा।

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डॉ. तिमोथी लिन ने कहा था‚ ‘‘मनुष्य संयोगवश उत्पन्न नहीं हो गया परंतु वह एक खास उददेश्य के साथ रचा गया है ताकि परमेश्वर यहोवा की सृष्टि पर अपना अधिकार रखे.....युसुफ का संपूर्ण जीवन एक मसीही विश्वासी को तैयार किए जाने की आवश्यकता बताता है ताकि भविष्य में (मसीह के आने वाले राज्य में) अधिकार के साथ राज्य करे।’’

युसुफ मिस्र पर सर्वोच्च पद पर आसीन हुआ। लेकिन उसके पहले परमेश्वर यहोवा उसे एक लंबे कठिन मार्ग से लेकर गये ताकि उसे जीत हासिल करने वाला इंसान बना सके और (उसके) जीवन के अंतिम क्षण तक परमेश्वर के वचन को थामे रखने वाला बने। जो महान कार्य युसुफ ने किए। वे न केवल मिस्र के लिए थे‚ परंतु इजरायल का भी भला किया और आने वाले युगों तक परमेश्वर यहोवा के सच्चे विश्वासियों को भी लाभ पहुंचाया। अगर युसुफ राज्य नहीं करता तो मिस्र में भी भूखे मरने की स्थिति आ जाती‚ इजराएल राष्ट्र पूर्णतया नष्ट हो जाता और उत्पत्ति की पुस्तक में परमेश्वर ने मनुष्य के उद्धार की जो योजना प्रकट की थी वह कभी पूर्ण नहीं हो पाती।

जो कदम परमेश्वर ने युसुफ के जीवन को बनाने के लिए उठाए उसे श्रेष्ठगीत ४:१६ की रोशनी में देखा जा सकता है।

‘‘हे उत्तर वायु जाग‚ और हे दक्खिनी वायु चली आ! मेरी बारी पर बह जिस से उसका सुगन्ध फैले’’ (श्रेष्ठगीत ४:१६)

अगर युसुफ के जीवन का अध्ययन करें तो पाएंगे कि किस प्रकार परमेश्वर ने उसके जीवन पर उत्तर वायु और दक्खिनी वायु बारी — बारी से चलायी और तब तक चलाते रहे जब तक कि उसके व्यक्तित्व के सुगंधित गुण निकल कर बाहर दिखाई न देने लगे। परमेश्वर ने उसे दुखों से होकर गुजारा‚ उसके शरीर से खूब परिश्रम करवाया‚ उसको खूब शर्म और अपमान सहन करने दिया‚ उसे अन्याय और नाशुक्रगुजारी से उपजी हताशा से होकर गुजरने दिया ताकि उसके विचार सुसंस्कृत बनें‚ उसके मनोभाव स्थिर हो जाएं‚ उसकी इच्छाशक्ति मजबूत हो जाए। उसके विश्वास एवं चरित्र का और अधिक विकास हो और प्रभु यहोवा पर उसका भरोसा बढ़ने लगे। युसुफ के जीवन में उत्तर और दक्खिनी वायु का प्रभाव बिल्कुल साफ देखा जा सकता है।

दक्खिनी वायु — माता पिता के प्रेम का आनंद लेना

कृपया उत्पत्ति अध्याय ३७:१—४ खोल लीजिए।

‘‘याकूब तो कनान देश में रहता था‚ जहां उसका पिता परदेशी हो कर रहा था। और याकूब के वंश का वृत्तान्त यह है: कि यूसुफ सत्रह वर्ष का हो कर भाइयों के संग भेड़—बकरियों को चराता था; और वह लड़का अपने पिता की पत्नी बिल्हा और जिल्पा के पुत्रों के संग रहा करता था: और उनकी बुराईयों का समाचार अपने पिता के पास पहुंचाया करता था: और इस्राएल अपने सब पुत्रों से बढ़के यूसुफ से प्रीति रखता था‚ क्योंकि वह उसके बुढ़ापे का पुत्र था: और उसने उसके लिये रंग बिरंगा अंगरखा बनवाया। सो जब उसके भाईयों ने देखा कि हमारा पिता हम सब भाइयों से अधिक उसी से प्रीति रखता है‚ तब वे उससे बैर करने लगे और उसके साथ ठीक तौर से बात भी नहीं करते थे’’ (उत्पत्ति ३७:१—४)

डॉ. लिन कहा करते थे‚ ‘‘माता पिता के प्रेम का बच्चे के भविष्य के गुणों पर बहुत असर पड़ता है........’’

‘‘युसुफ प्रेम और दुष्टता के बीच फर्क समझता था........प्रेम और सच्चाई दोनों एक दूसरे पर निर्भर सदगुण हैं। परंतु प्रेम और दुष्टता कभी मिले हुए नहीं हो सकते हैं। ये दोनों अलग श्रेणियां हैं। बुराई को उजागर करने से पीछे हटना प्रेम नहीं है‚ बल्कि कायरपन है......जब तक बुराई उजागर करने के पीछे व्यक्ति का उददेश्य स्वार्थरहित है‚ तब तक बुराई उजागर करना एक उत्तम कार्य है और ऐसे कार्य को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए......युसुफ द्वारा देखे गये दोनों स्वप्नों ने उसके भाइयों के अहम को चोट पहुंचाई और उनके भीतर ईर्ष्या को और हवा दी। तौभी युसुफ अभी भी अपने भाइयों से प्रेम ही रखता रहा। और अपने पिता का एक आज्ञाकारी बेटा बना रहा।’’

अपनी बात कहूं तो मुझे खुद अपने पिता का प्रेम नहीं मिल पाया लेकिन मेरी मां के प्रेम और समर्थन ने मुझे पिता के प्रति कड़वाहट से नहीं भरने दिया। मेरी मां कोई बहुत सिद्ध महिला नहीं थी‚ ‘‘पंरतु जब मैं छोटा था मैंने उन्हें दयालू‚ मधुर और चुस्त महिला के रूप में देखा। उन्होंने मुझे किताबों से प्रेम करना सिखाया‚ कार चलाना सिखाया और बेहद जरूरी बात सिखाई कि भले ही अकेले पड़ जाओ लेकिन जो बात सही है‚ उसके लिए आवाज उठाओ’’ (मेरी आत्मकथा का १६ पेज)। तो इस तरह मेरी मां हमेशा मेरी समर्थक और वकील बनती थी। मां के अंतिम शब्द मेरे लिए ये थे‚ ‘‘मैं तुमसे प्यार करती हूं‚ राबर्ट’’ (पेज १८१) । जब मेरी मां ने ८० वर्ष की उम्र में जाकर यीशु को ग्रहण किया और उद्धार पाया तो वह मेरे जीवन की सबसे मूल्यवान बात ठहरी।

उत्तर वायु — गुलामी के लिए बेच दिया —
उत्पत्ति ३७:१८—३६

कृपया उत्पत्ति ३७:२३—२८ खोल लीजिए और जब मैं इसे पढ़ता हूं अपने स्थानों पर खड़े हो जाइए।

‘‘सो ऐसा हुआ कि जब यूसुफ अपने भाइयों के पास पहुंचा तब उन्हों ने उसका रंगबिरंगा अंगरखा‚ जिसे वह पहिने हुए था‚ उतार लिया। और यूसुफ को उठा कर गड़हे में डाल दिया: वह गड़हा तो सूखा था और उस में कुछ जल न था। तब वे रोटी खाने को बैठ गए: और आंखे उठा कर क्या देखा‚ कि इश्माएलियों का एक दल ऊंटो पर सुगन्धद्रव्य‚ बलसान और गन्धरस लादे हुए गिलाद से मिस्र को चला जा रहा है। तब यहूदा ने अपने भाइयों से कहा‚ अपने भाई को घात करने और उसका खून छिपाने से क्या लाभ होगा? आओ‚ हम उसे इश्माएलियों के हाथ बेच डालें‚ और अपना हाथ उस पर न उठाएं‚ क्योंकि वह हमारा भाई और हमारी हड्डी और मांस है‚ सो उसके भाइयों ने उसकी बात मान ली। तब मिद्यानी व्यापारी उधर से होकर उनके पास पहुंचे: सो यूसुफ के भाइयों ने उसको उस गड़हे में से खींच के बाहर निकाला‚ और इश्माएलियों के हाथ चांदी के बीस टुकड़ों में बेच दिया: और वे यूसुफ को मिस्र में ले गए’’ (उत्पत्ति ३७:२३—२८)

अब आप बैठ सकते हैं।

डॉ. लिन कहते थे‚ ‘‘ईमानदारी‚ आज्ञाकारिता‚ धैर्य‚ विश्वसनीयता‚ कर्मठता‚ परवाह करने का स्वभाव और विद्धता कभी भी आसान जीवन जीने से हासिल नहीं होती है। किंतु बहुत तकलीफें झेलकर‚ बाधाओं वाला जीवन जीने से ये गुण विकसित होते हैं। युसुफ अगर घर पर ही रहा होता तो शायद (विजयी) होने के लिए कभी प्रशिक्षित नहीं किया जा सकता था। उसे २० चांदी के सिक्कों में बेच दिया गया था जिसके कारण सब परेशानी में पड़ गए थे। किंतु युसुफ ने अपने भाइयों को दोष नहीं दिया या उन्हें शाप नहीं दिया‚ बल्कि उसे तो आश्चर्य था कि कैसे परमेश्वर पिता ने इन परिस्थितियों के द्वारा उसके देखें गए दो स्वप्नों को पूर्ण किया।’’

दक्षिणी हवा — विश्वास जीता सम्मान कमाया —
उत्पत्ति ३९:१—६

कृपया उत्पत्ति ३९:१—६ खोल लीजिए जब मैं इसे पढ़ता हूं।

‘‘जब यूसुफ मिस्र में पहुंचाया गया‚ तब पोतीपर नाम एक मिस्री‚ जो फिरौन का हाकिम‚ और जल्लादों का प्रधान था‚ उसने उसको इश्माएलियों के हाथ‚ से जो उसे वहां ले गए थे‚ मोल लिया। और यूसुफ अपने मिस्री स्वामी के घर में रहता था‚ और यहोवा उसके संग था; सो वह भाग्यवान पुरूष हो गया।और यूसुफ के स्वामी ने देखा‚ कि यहोवा उसके संग रहता है‚ और जो काम वह करता है उसको यहोवा उसके हाथ से सफल कर देता है। तब उसकी अनुग्रह की दृष्टि उस पर हुई और वह उसकी सेवा टहल करने के लिये नियुक्त किया गया: फिर उसने उसको अपने घर का अधिकारी बना के अपना सब कुछ उसके हाथ में सौप दिया। और जब से उसने उसको अपने घर का और अपनी सारी सम्पत्ति का अधिकारी बनाया‚ तब से यहोवा यूसुफ के कारण उस मिस्री के घर पर आशीष देने लगा; और क्या घर में‚ क्या मैदान में‚ उसका जो कुछ था‚ सब पर यहोवा की आशीष होने लगी। सो उसने अपना सब कुछ यूसुफ के हाथ में यहां तक छोड़ दिया: कि अपने खाने की रोटी को छोड़‚ वह अपनी सम्पत्ति का हाल कुछ न जानता था। और यूसुफ सुन्दर और रूपवान् था’’ (उत्पत्ति ३९:१—६)।

आइए‚ इसका अवलोकन करते हैं।

युसुफ फिरौन सम्राट के पोतीपर नामक सुरक्षा अधिकारी को बेचा गया था। अपने साथ बुरा घटा‚ ऐसी शिकायत के बजाय युसुफ कार्य करने में लग गया और जो जिम्मेदारियां उसे सौंपीं जाती‚ उसे पूरा करता। उसने अपने मालिक पोतीपर का विश्वास जीता और एक सफल आदमी के रूप में पहचाना जाने लगा। परंतु युसुफ को अभी और प्रशिक्षण की जरूरत थी। इसलिए यहोवा परमेश्वर ने उसे और शर्मिंदगी का सामना होने दिया।

उत्तरी हवा — परीक्षा का सामना करना और अन्याय सहना —
उत्पत्ति ३९:७—२०

जब मैं उत्पत्ति ३९:१—१८ को पढ़ता हूं कृपया खड़े हो जाइए । डॉ. लिन ने कहा था‚ ‘‘जब जीवन में उत्तरी हवा चलती है तब कई युवा कहते हैं अरे यह जीवन कितना दुख भरा है .........किंतु अक्सर यह दुख यहोवा परमेश्वर के अनुग्रह को आगे चलकर प्रकट करता है। यिर्मयाह कहते थे‚ ‘पुरूष के लिए जवानी में जुआ उठाना भला है’ (विलापगीत ३:२७) बिना संघर्ष के आराम का जीवन युवा को बिगाड़ देता है। अगर जवानी में मेहनत की गयी हो तो आगे मुकाम पर पहुंचने के रास्ते खुल जाते हैं।’’

‘‘जब यूसुफ मिस्र में पहुंचाया गया‚ तब पोतीपर नाम एक मिस्री‚ जो फिरौन का हाकिम और जल्लादों का प्रधान था‚ उसने उसको इश्माएलियों के हाथ‚ से जो उसे वहां ले गए थे‚ मोल लिया। और यूसुफ अपने मिस्री स्वामी के घर में रहता था और यहोवा उसके संग था; सो वह भाग्यवान पुरूष हो गया। और यूसुफ के स्वामी ने देखा‚ कि यहोवा उसके संग रहता है और जो काम वह करता है उसको यहोवा उसके हाथ से सफल कर देता है। तब उसकी अनुग्रह की दृष्टि उस पर हुई और वह उसकी सेवा टहल करने के लिये नियुक्त किया गया: फिर उसने उसको अपने घर का अधिकारी बना के अपना सब कुछ उसके हाथ में सौप दिया। और जब से उसने उसको अपने घर का और अपनी सारी सम्पत्ति का अधिकारी बनाया‚ तब से यहोवा यूसुफ के कारण उस मिस्री के घर पर आशीष देने लगा; और क्या घर में‚ क्या मैदान में‚ उसका जो कुछ था‚ सब पर यहोवा की आशीष होने लगी। सो उसने अपना सब कुछ यूसुफ के हाथ में यहां तक छोड़ दिया: कि अपने खाने की रोटी को छोड़‚ वह अपनी सम्पत्ति का हाल कुछ न जानता था। और यूसुफ सुन्दर और रूपवान् था। इन बातों के पश्चात ऐसा हुआ कि उसके स्वामी की पत्नी ने यूसुफ की ओर आंख लगाई और कहा‚ मेरे साथ सो। पर उसने अस्वीकार करते हुए अपने स्वामी की पत्नी से कहा‚ सुन‚ जो कुछ इस घर में है मेरे हाथ में है; उसे मेरा स्वामी कुछ नहीं जानता‚ और उसने अपना सब कुछ मेरे हाथ में सौप दिया है। इस घर में मुझ से बड़ा कोई नहीं; और उसने तुझे छोड़‚ जो उसकी पत्नी है; मुझ से कुछ नहीं रख छोड़ा; सो भला‚ मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्वर का अपराधी क्योंकर बनूं? और ऐसा हुआ कि वह प्रति दिन यूसुफ से बातें करती रही‚ पर उसने उसकी न मानी‚ कि उसके पास लेटे वा उसके संग रहे। एक दिन क्या हुआ कि यूसुफ अपना काम काज करने के लिये घर में गया‚ और घर के सेवकों में से कोई भी घर के अन्दर न था। तब उस स्त्री ने उसका वस्त्र पकड़कर कहा‚ मेरे साथ सो‚ पर वह अपना वस्त्र उसके हाथ में छोड़कर भागा और बाहर निकल गया। यह देखकर‚ कि वह अपना वस्त्र मेरे हाथ में छोड़कर बाहर भाग गया‚ उस स्त्री ने अपने घर के सेवकों को बुलाकर कहा‚ देखो‚ वह एक इब्री मनुष्य को हमारा तिरस्कार करने के लिये हमारे पास ले आया है। वह तो मेरे साथ सोने के मतलब से मेरे पास अन्दर आया था और मैं ऊंचे स्वर से चिल्ला उठी। और मेरी बड़ी चिल्लाहट सुनकर वह अपना वस्त्र मेरे पास छोड़कर भागा‚ और बाहर निकल गया। और वह उसका वस्त्र उसके स्वामी के घर आने तक अपने पास रखे रही।तब उसने उससे इस प्रकार की बातें कहीं कि वह इब्री दास जिस को तू हमारे पास ले आया है‚ सो मुझ से हंसी करने के लिये मेरे पास आया था। और जब मैं ऊंचे स्वर से चिल्ला उठी‚ तब वह अपना वस्त्र मेरे पास छोड़कर बाहर भाग गया’’ (उत्पत्ति ३९:१—१८)

अब आप बैठ सकते हैं।

एक दिन जब युसुफ पोतीपर के घर पर कार्य कर रहा होता है। उसकी पत्नी युसुफ को पकड़कर अपने साथ लेटने के लिए बाध्य करती है। किंतु युसुफ अपने को उसकी पकड़ से छुड़ाकर भागता है लेकिन उसका वस्त्र उस स्त्री के हाथों में रह जाता है।

दूसरे किसी युवा के लिए ऐसी परीक्षा को रोक पाना मुश्किल होता किंतु युसुफ ने इस पर जीत हासिल ली। वह इस परीक्षा से तुरंत अलग हो गया और इस पर विजय पायी। कुछ परीक्षाओं को उनका सामना करके जीता जा सकता है किंतु सेक्स और लालसा वाली परीक्षाओं को केवल उनसे दूर रहकर ही जीता जा सकता है (२ तिमोथी २:२२ में लिखा हुआ है‚ ‘‘जवानी की अभिलाषाओं से भाग’’) युसुफ की जीत — उसकी विश्वसनीयता — परमेश्वर के प्रति और अपने मालिक पोतीपर के प्रति स्वामीभक्ति में छिपी हुई थी जो उसके ऊपर बहुत भरोसा करता था। युसुफ स्वयं के प्रति ईमानदार था इसलिए इस कलंक से बचे रहना चाहता था। उस दुष्ट स्त्री की इच्छा पूरी करने के स्थान पर उसने परमेश्वर को सम्मान स्थान देते हुए जेल जाने को चुना। पोतीपर के कारण‚ उसने स्वयं का बचाव भी नहीं किया ताकि उसके मालिक को अपनी पत्नी के कारण शर्म न झेलना पड़े। इसलिए वह खामोश रहा। जब पोतीपर घर लौटा‚ उसने उसकी पत्नी का आरोप स्वीकार कर लिया और इस तरह युसुफ को जेल हो गयी।

दक्षिणी हवा — पदोन्नति और मित्रता —
उत्पत्ति ३९:२१—४०:२२

उत्पत्ति ३९:१९—२२ को पढ़ेंगे। आइए‚ खड़े हो जाइए‚ जब मैं इस पाठ को पढ़ता हूं।

‘‘अपनी पत्नी की ये बातें सुनकर कि तेरे दास ने मुझ से ऐसा ऐसा काम किया‚ यूसुफ के स्वामी का कोप भड़का। और यूसुफ के स्वामी ने उसको पकड़कर बन्दीगृह में‚ जहां राजा के कैदी बन्द थे‚ डलवा दिया: सो वह उस बन्दीगृह में रहने लगा। पर यहोवा यूसुफ के संग संग रहा‚ और उस पर करूणा की‚ और बन्दीगृह के दरोगा के अनुग्रह की दृष्टि उस पर हुई। सो बन्दीगृह के दरोगा ने उन सब बन्धुओं को‚ जो कारागार में थे‚ यूसुफ के हाथ में सौंप दिया; और जो जो काम वे वहां करते थे‚ वह उसी की आज्ञा से होता था’’ (उत्पत्ति ३९:१९—२२)

कृपया बैठ जाइए।

भले ही अब युसुफ के लिए रहने का भौतिक वातावरण अच्छे से बुरे में बदल चुका था किंतु यहोवा परमेश्वर के प्रति उसका आत्मिक भरोसा नही बदला था और परमेश्वर की उपस्थिति उसके साथ बनी रही जो जेल में भी उसके लिए वरदान सिद्ध हुई।

युसुफ जेल में भी मित्रतापूर्ण माहौल बनाने में सफल हुआ। फिरौन सम्राट का प्रधान पिलानेहारा और प्रधान रसोईया भी जेल में थे। वे अपने स्वप्नों के कारण बहुत परेशान रहते थे। कोई भी उन्हें उनके स्वप्नों का अर्थ नहीं बतला पाता था। लेकिन युसुफ को परमेश्वर की ओर से गुण मिले हुए थे। उसने पिलानेहारा और रसोइए को स्वप्न का अर्थ बताया। तीन दिन पश्चात दोनों अर्थ सही साबित हो गए। पिलानेहारे को फिर से नौकरी पर रख लिया गया और रसोइए को फांसी हो गयी। देखिए‚ जेल में भी किस तरह युसुफ के लिए दक्षिणी हवा बह रही थी।

उत्तरी हवा — नाशुक्रगुजारी को सहन करना और देरी होना —
उत्पत्ति ४०:२३

आइए‚ उत्पत्ति ४०:२३ को पढ़ेंगे।

‘‘फिर भी पिलानेहारों के प्रधान ने यूसुफ को स्मरण ना रखा; परन्तु उसे भूल गया’’ (उत्पत्ति ४०:२३)

युसुफ का दो वर्ष और अधिक जेल में रहना उसके लिए अवश्य ही बड़ी कठोर उत्तरी हवा साबित हुई। ‘‘फिर भी पिलानेहारों के प्रधान ने यूसुफ को स्मरण ना रखा; परन्तु उसे भूल गया’’ (उत्पत्ति ४०:२३)। यह उस पिलानेहार व्यक्ति की नाशुक्रगुजारी वाला चरित्र दिख पड़ता है। ऐसे हालात में तो किसी भी व्यक्ति का संसार के इस बदल जाने वाले रूप को लेकर घृणा हो जाए‚ किंतु युसुफ के मन में ऐसा भाव कभी नहीं आया। परमेश्वर उसके हालात को बदलेंगे‚ उसने ऐसा विश्वास रखना सीखा था। परमेश्वर ने जेल में उसके रहने के वक्त को लंबा करने के द्वारा उसे परमेश्वर के कार्य के लिए इंतजार करना सिखाया। परमेश्वर की विश्वसनीयता में उसका विश्वास और गहरा हो जाए‚ यह सिखाया। परमेश्वर की ओर से जो देरी की जा रही थी वह युसुफ जैसे विजयी ठहरने वाले इंसान पर दुगुने अनुग्रह बरसने का प्रमाण था। आगे बाइबल में हम पढ़ते हैं दाउद क्या लिखता है‚ ‘‘यहोवा की बाट जोहता रह: हियाव बान्ध और तेरा हृदय दृढ़ रहे: हां, यहोवा ही की बाट जोहता रह’’ (भजन २७:१४)।

दक्षिणी हवा — राजा के जैसे राज्य करना —
उत्पत्ति ४७:१२—३१

आइए‚ खड़े हो जाएं, जब मैं उत्पत्ति ४७:१२—१७ को पढ़ता हूं।

‘‘और यूसुफ अपने पिता का और अपने भाइयों का और पिता के सारे घराने का‚ एक — एक के बालबच्चों के घराने की गिनती के अनुसार‚ भोजन दिला दिलाकर उनका पालन पोषण करने लगा। और उस सारे देश में खाने को कुछ न रहा; क्योंकि अकाल बहुत भारी था और अकाल के कारण मिस्र और कनान दोनों देश नाश हो गए। और जितना रूपया मिस्र और कनान देश में था‚ सब को यूसुफ ने उस अन्न की सन्ती जो उनके निवासी मोल लेते थे इकट्ठा करके फिरौन के भवन में पहुंचा दिया। जब मिस्र और कनान देश का रूपया चुक गया‚ तब सब मिस्री यूसुफ के पास आ आकर कहने लगे‚ हम को भोजनवस्तु दे‚ क्या हम रूपये के न रहने से तेरे रहते हुए मर जाएं? यूसुफ ने कहा‚ यदि रूपये न हों तो अपने पशु दे दो और मैं उनकी सन्ती तुम्हें खाने को दूंगा। तब वे अपने पशु यूसुफ के पास ले आए; और यूसुफ उन को घोड़ों‚ भेड़—बकरियों‚ गाय—बैलों और गदहों की सन्ती खाने को देने लगा: उस वर्ष में वह सब जाति के पशुओं की सन्ती भोजन देकर उनका पालन पोषण करता रहा’’ (उत्पत्ति ४७:१२—१७)।

कृपया बैठ जाइए।

डॉ. लिन कहते थे‚ ‘‘कोई भी अनुशासन सिखाने वाली प्रक्रिया इंसान को पसंद नहीं आती है यह हमेशा दुखदायी और अप्रिय लगती है। परंतु यह उन लोगों में धार्मिकता के फल उत्पन्न करती है जो इस दंड को पाकर और अधिक सिखाए जाते हैं।’’ आइए‚ अब इब्रानियों १२:११ को पढ़ते हैं‚

‘‘और वर्तमान में हर प्रकार की ताड़ना आनन्द की नहीं‚ पर शोक ही की बात दिखाई पड़ती है‚ तौभी जो उस को सहते सहते पक्के हो गए हैं‚ पीछे उन्हें चैन के साथ धर्म का (प्रतिफल) मिलता है’’ (इब्रानियों १२:११)।

आइए‚ इसे थोड़ा खोजते हैं।

जब दो लंबे वर्ष व्यतीत हुए‚ यहोवा ने फिरौन को एक स्वप्न दिखाया जिसके कारण पिलानेहार प्रधान को युसुफ का स्मरण हो आया कि युसुफ ने उसके स्वप्न का भी अर्थ बताया था। पिलानेहार ने फिरौन से कहा युसुफ से आपके स्वप्न का अर्थ पूछा जाए! उस स्वप्न का अर्थ युसुफ ने बताया कि सात वर्ष भरपूरी के रहेंगे और सात वर्ष अकाल पड़ेगा। फिरौन ने इस से निपटने की योजना बनाने और अमल में लाने के लिए युसुफ को ही नियुक्त कर दिया। फिरौन ने युसुफ के कार्य करने के ढंग से ही पहचान लिया कि उसे अलौकिक आर्शीवाद मिला हुआ है। इस तरह युसुफ संपूर्ण मिस्र पर राज्य करने वाला अधिकारी बना (४१:३८—४३)। उसने मिस्रियों के प्रति सहानुभूति रखते हुए और बुद्धिमानी के साथ राज्य किया — और अपने परिवार के भाइयों के संग अनुशासन व प्रेम से राज्य किया। अंत में अपने भाइयों से कहीं अधिक बढ़कर युसुफ को सम्मान मिला (४९:२६)

डॉ. लिन का कथन था‚ ‘‘जैसे परमेश्वर ने युसुफ को पृथ्वी पर के राज्य को चलाने के लिए तैयार किया‚ ऐसे ही परमेश्वर आत्मिक रूप से जीत हासिल करने वाले लोगों को अपने आने वाले राज्य के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं।’’ यीशु पर विश्वास करने वालों के लिए पापों से उद्धार बिना शर्त उपलब्ध है। जिसमें आपके कर्मो का कोई योगदान नहीं होगा। किंतु मसीह के साथ राज्य करने के अवसर मिलने की शर्त होगी। जी हां‚ बाइबल कहती है‚

‘‘यदि हम धीरज से (सहते रहेंगे)‚ तो उनके साथ राज्य भी करेंगे: यदि हम उनका इन्कार करेंगे तो वह भी हमारा इन्कार करेंगे’’ (२ तिमोथी २:१२)

पास्टर रिचर्ड वर्मब्रैंड ने एक कम्यूनिस्ट जेल में १४ वर्ष बिताए थे। पास्टर वर्मब्रैंड ने कहा था‚ ‘‘मैं किसी ऐसे मसीही को नहीं जानता हूं जिसने अपार कष्ट झेले हो‚ आंतरिक संघर्षो से होकर गया हो और उसके बाद आत्मिक धनी बनकर न लौटा हो’’ (पुस्तक की भूमिका ‘‘इफ प्रिजन वॉल्स कूड स्पीक’’)

पास्टर वर्मब्रैंड फिर से बोले‚ ‘‘मेरे भाइयों और बहिनों‚ आपकों यह मानना चाहिए कि परमेश्वर के हाथों में आपका जीवन मिट्टी के समान है। वह कभी गलती नहीं करते हैं। अगर किसी समय वह आपके साथ कठोर है.......आप केवल उन पर विश्वास कीजिए। जिस कारण वह आपको अनुशासित कर रहे हैं‚ उस के पीछे छिपे संदेश को जानने की कोशिश कीजिए। आमीन।’’ (पेज १६)

अगर आप युसुफ के समान जीत हासिल करने वाले बन गए हैं तब परमेश्वर का यह वायदा आपके लिए है। जरा प्रकाशितवाक्य २:२६ को पढ़िए।

‘‘जो जय पाए, और मेरे कामों के अनुसार अन्त तक करता रहे, मैं उसे जाति जाति के लोगों पर अधिकार दूंगा’’ (प्रकाशितवाक्य २:२६)

मैं डॉ. तिमोथी लिन को धन्यवाद देता हूं‚ आपके महान संदेश से मुझे सिखाने के लिए। इसने मेरे जीवन को बदल कर रख दिया‚ मेरे प्रिय पास्टर। मैं इस उपदेश और शिक्षा के लिए हृदय से आभारी हूं!

आइए‚ हम खड़े होकर आज का गीत गाते हैं‚ ‘‘क्या मैं जो योद्धा क्रूस का?’’

क्या मैं जो चेला मेम्ने का और क्रूस का योद्धा हूं;
शरमाऊँ नाम के मानने से और सेवा न करूं?

जयफल परिश्रम संकट से औरों ने पाया है क्या बैठूं मैं‚
आराम के साथ‚ सुख भोगूं हर समय?

क्या दुष्टों का मैं सामना कर‚ शैतान से न लड़ू संसार
पर क्या मुक्त होने का भरोसा मैं प्रभु से करूं?

जो राज्य मैं करना चाहता हूं‚ वह निश्चय लड़ना है!
सहूंगा दुख परिश्रम को जब तक न हो विजय।
(‘‘एम आय ए सोल्जर ऑफ दि क्रॉस?‚’’ रचयिता डॉ. आयजक वाट’स‚१६७४‚१७४८)

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अगर आपने अभी तक अपने पापों से उद्धार नहीं पाया है‚ तो मैं चाहता हूं कि आप मसीह यीशु पर विश्वास करें। वह स्वर्ग से आपके लिए पृथ्वी पर आए कि आपके पापों का दंड भरने के लिए क्रूस पर बलिदान दें। जिस घड़ी आप यीशु पर विश्वास करते हैं‚ उनका लहू आपको सारे पापों से शुद्ध करता है। मेरी प्रार्थना है कि आप यीशु पर विश्वास रखेंगे।


अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स आप से सुनना चाहेंगे। जब आप डॉ हिमर्स को पत्र लिखें तो आप को यह बताना आवश्यक होगा कि आप किस देश से हैं अन्यथा वह आप की ई मेल का उत्तर नहीं दे पायेंगे। अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स को इस पते पर ई मेल भेजिये उन्हे आप किस देश से हैं लिखना न भूलें।। डॉ हिमर्स को इस पते पर rlhymersjr@sbcglobal.net (यहां क्लिक कीजिये) ई मेल भेज सकते हैं। आप डॉ हिमर्स को किसी भी भाषा में ई मेल भेज सकते हैं पर अंगेजी भाषा में भेजना उत्तम होगा। अगर डॉ हिमर्स को डाक द्वारा पत्र भेजना चाहते हैं तो उनका पता इस प्रकार है पी ओ बाक्स १५३०८‚ लॉस ऐंजील्स‚ केलीफोर्निया ९००१५। आप उन्हें इस नंबर पर टेलीफोन भी कर सकते हैं (८१८) ३५२ − ०४५२।

(संदेश का अंत)
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