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हेरोदेस और यूहन्ना

HEROD AND JOHN
(Hindi)

डॉ आर एल हिमर्स द्वारा
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

ल्योस ऐंजीलिस बैपटिस्ट टैबरनेकल‚ रविवार संध्या १२ नवंबर‚ २०१७
को प्रचार किया गया संदेश
A sermon preached at the Baptist Tabernacle of Los Angeles
Lord’s Day Evening, November 12, 2017

‘‘क्योंकि हेरोदेस यूहन्ना को धर्मी और पवित्र पुरूष जानकर उस से डरता था, और उसे बचाए रखता था, और उस की सुनकर बहुत घबराता था, पर आनन्द से सुनता था" (मरकुस ६:२०)


राजा हेरोदेस और यूहन्ना बपतिस्तादाता की कहानियां बाइबल और उसके इतिहास की सबसे अधिक त्रासदायक कहानियों में से एक है। यूहन्ना बपतिस्मादाता एक रोमांचक युवा इवेंजलिस्ट थे। वह राजा हेरोदेस के मुकाबले खड़े होते हैं − जो एक अस्थिरचित्त और दुर्बल इच्छा शक्ति वाला राजा था। वह यूहन्ना की आज्ञा मानना तो चाहता था। परमेश्वर से मेलमिलाप करना तो चाहता था। परंतु उसकी दुर्बलता और अनिर्णय ने उसे नष्ट कर दिया − और यूहन्ना के वध करने के लिये प्रेरित किया और अंत यूं हुआ कि उसने यूहन्ना का शीश कटवा डाला!

जब मैं राजा हेरोदेस के बारे में पढ़ता हूं मुझे उसके विषय में दुख लगता है। फिर उसके बाद मुझे उस पर क्रोध आता है। वह ऐसा निरा मूर्ख था। जो उद्धार पाने के इतने निकट आ चुका था। परंतु फिर भी वह उद्धार नहीं पा सका। जब कभी भी मैं हेरोदस के बारे में सोचता हूं तो मि. ग्रिफिथ का यह गीत मुझमें सिहरन उत्पन्न कर देता है‚

लगभग मुझे समझाया गया कि अब मैं विश्वास कर लूं; लगभग मैं असफल ही रहा!
लगभग मुझे समझाया गया कि मैं मसीह को ग्रहण कर लूं;
मैं लगभग उसका लाभ न ले सका, लगभग मैं असफल ही रहा!
शोकित कितना शोकित‚ लगभग मैं असफल ही रहा!
(‘‘लगभग मुझे समझाया गया" फिलिप पी. ब्लिस‚ १८३८−१८७६)

लगभग मुझे समझाया गया! शोकित शोकित‚ कितना शोकित –
लगभग मैं असफल ही रहा!

हेरोदेस और यूहन्ना बपतिस्मादाता की कहानियां हमें कितने महान मसीही सत्यों से अवगत करवाती है।

पहली बात‚ उद्धार का संदेश आप को सदैव निर्णय लेने के लिये आमंत्रित करता है। ‘‘निर्णय लेना" शब्द हमें बुरा प्रतीत होता है − क्योंकि यह भ्रामक ‘‘निर्णयवाद" के प्रचलन की ओर संकेत देता है। परंतु ‘‘निर्णयवाद" केवल इसलिये बुरा होता है क्योंकि लोग गलत फैसले लेते हैं! हेरोदेस सही निर्णय ले सकता था। परंतु इसके बदले वह अस्थिर होता रहा - और जो सच्चाई यूहन्ना ने उसे समझाई थी, उस पर वह अडिग नहीं रहा। यूहन्ना के प्रचार करने की सबसे उत्कृष्ट बात थी कि वे निर्णय लेने के लिये चुनौती देते थे। वे लोगों के मध्य पश्चाताप करने का प्रचार करते थे और जो उनका प्रचार संदेश सुनते थे, उनसे वे निर्णय लेने की मांग करते थे। वे इतने सामर्थशाली ढंग से प्रचार करते थे कि लोग चिल्ला उठते थे‚ ‘‘कि फिर हम क्या करें?" (लूका ३:१०) लोगों के समक्ष उन्होंने केवल दो चयन रखे‚ स्वर्ग अथवा नर्क। चौड़ा मार्ग विनाश की ओर ले जाता है और संकरा मार्ग जीवन की ओर। रेत पर निर्मित किया घरौंदा हो या चटटान पर बनाया गया घर हो। परमेश्वर चाहिये या संपत्ति। लोगों को दो रास्तों में से एक का चयन करना है या तो मसीह की ओर हो जायें या उनके विरूद्ध। मसीह का प्रचार सुनने वालों को इस बात की चुनौती देता था कि या तो वे यीशु के पीछे हो लेने का निर्णय लेवें या फिर उनके विरूद्ध होने का। पेंतुकुस्त के दिन पतरस ने भी ऐसा ही प्रचार किया था। पतरस ने लोगों से निर्णय करने की मांग की। पतरस ने लोगों से निर्णय करने की मांग की। तब लोगों की प्रतिक्रिया आयी‚ ‘‘तो हम क्या करें?" (प्रेरितों के कार्य २:३७) प्रेरितों के अंतिम अध्याय में पौलुस के प्रचार ने लोगों को दो समूहों में बांट दिया। ‘‘तब कितनों ने उन बातों को मान लिया‚ और कितनों ने प्रतीति न की।" (प्रेरितों के कार्य २८:२४)। लोगों के सामने निर्णय लेने की घड़ी थी! संपूर्ण मसीही इतिहास में परमेश्वर के जन इसी तरह से आत्मिक जागरण के लिये प्रचार करते आये। जिन्होंने उन्हें सुना‚ उन्हें निर्णय लेना ही था!

किंतु आज के युग में प्रचार का स्वरूप बदल गया है। लोगों के समक्ष कोई मांगे नहीं रखी जाती हैं। कुछ प्रचारक बहुत मीठे ढंग से लोगों को उनके रोगों से ठीक होने के लिये आमंत्रण देते हैं। कुछ उन्हें कोमल आरामदायक कहानियां सुनाते हैं। कुछ प्रचारक लोगों को धूल समान शुष्क बाइबल व्याख्याओं पर आधारित प्रचार सुनाते हैं जिसमें मसीह के बलिदानी रक्त का कोई स्थान नहीं है। आखिर कहां है वह आग? कहां है वह चुनौती? युवाओं के झुंड के झुंड हमारे चर्चेस से भाग रहे हैं! अगर जॉन नैंस गार्नर (१९३३−१९४१) के शब्दों में अन्य संदर्भ में कहें − तो वर्तमान में चर्च के संदेश मूल्यहीन होकर रह गये हैं। राजा हेरोदेस और यूहन्ना बपतिस्मादाता की कहानी ऐसे प्रचार संदेशों की घोर निरर्थकता प्रकट करती है। यह हमें स्मरण दिलाती है कि मसीह निर्णय लेने के लिये आमंत्रण देते हैं। वैसे, क्या आप ने कोई निर्णय लिया है? क्या इस निर्णय से आप के जीवन पर कुछ प्रभाव पड़ा है? क्या इस निर्णय से आप में कुछ बदलाव आया है?

राजा हेरोदेस ने ‘‘खुशी खुशी यूहन्ना के प्रचार को सुना" था। हेरोदस राजा को प्रचारक अच्छा लगा। उन्हें प्रचार करते सुनना भी भला लग रहा था। परंतु प्रचार का कुछ प्रभाव उस पर नहीं पड़ा। मुझे बिल्कुल पसंद नहीं आता जब लोग मुझसे कहते हैं कि मैंने बड़ा अच्छा संदेश सुनाया। मुझे इससे जरा आनंद नहीं मिलता। मैं केवल तभी आनंदित होता हूं जब मैं किसी को उनके पापों से मन फिराते और स्वयं को यीशु की दया पर छोड़ते हुए देखता हूं। केवल एक ही बात मुझे प्रफुल्लित करती है जब मैं किसी को ठोस निर्णय लेते हुए देखता हूं कि वह सच्चे बदलाव के अंतर्गत प्रभु यीशु पर विश्वास करता है और उसके जीवन में बदलाव दिखाई देता है। यह इस बात की परीक्षा होती है कि मेरा प्रचार परमेश्वर द्धारा आशीषित है! आप मेरे संदेश से प्रसन्न होते हैं या नही‚ इससे मुझे अंतर नहीं पड़ता। आप मेरे संदेश सुनकर विचलित हुए कि नहीं‚ आप को इससे प्रसन्नता हुई या आप मुझे पसंद करते हैं या नहीं कोई भी बात से मुझे फर्क नहीं पड़ता है। मेरे लिये तो यह एक परीक्षा है कि − क्या मेरे संदेश के कारण आप ने कोई निर्णय लिया या नहीं? क्या आप ने संपूर्ण मन और संपूर्ण जीवन से प्रभु यीशु पर विश्वास अधिक लाने का एक सुनिश्चित कार्य किया है अथवा नहीं? एक चर्च सदस्य का प्रश्न था‚ ‘‘और उन्हें हमसे क्या चाहिये?" मैं उनसे कहता हूं मसीह आप का संपूर्ण जीवन चाहते हैं - हां सारा जीवन!

परंतु हेरोदेस के समान लोगों के लिये यह उदास कर देने वाली बात है। उसने लगभग निर्णय ले लिया था। वह लगभग मसीह पर विश्वास करने और एक सच्चा मसीही बनने के लिये तैयार हो गया था। हेरोदेस के समान ही कितने लोग उदास और हताश हैं। आप चर्च आते हैं। आप प्रचार करते हुए मुझे सुनते हैं। आप सुनकर भावुक हो जाते हैं। आप को लगता है कि प्रभु यीशु पर विश्वास कर लेना चाहिये। आप कहते हैं कि आप उन पर विश्वास करना चाहते हैं। परंतु आप कभी ऐसा करते नहीं हैं। यीशु पर विश्वास करने के स्थान पर आप उस भावना को प्रधानता देते हैं जिससे सिद्ध हो जाये कि आप ने मसीह पर विश्वास किया है। ऐसा करने से कभी बदलाव नहीं हो सकता! कभी नहीं! कभी नहीं! यह कैसे संभव है कि प्रभु यीशु पर विश्वास लाने से पहले आप के अंदर विश्वास करने की ‘‘भावुकता" पैदा हो जाये? कोरी भावुकता का पैदा होना निरी बकवास है! भावना पैदा होना उद्धार नहीं है, मसीह पर सच्चा विश्वास लाना उद्धार तक पहुंचाता हैं। आप यीशु पर विश्वास लाने से केवल एक कदम की दूरी पर हैं। परंतु आप वह कदम ही तो नहीं उठाते। कितने विचित्र इंसान हैं आप। रविवार बीतते जाते हैं‚ आप को चर्च आते आते। किंतु मसीहा पर विश्वास लाने से इंकार आप का सतत बना रहता है। आराधना के पश्चात आप हमसे मिलने भी आते हैं − किंतु उन पर विश्वास लाने का कोई इरादा नहीं है। मैं आप से पूछता हूं कि‚ ‘‘क्या आप ने मसीह पर विश्वास किया?" आप उत्तर देते हैं‚ ‘‘नहीं।" आप इतनी प्रबलता से ‘‘नहीं" उत्तर देते हैं − जैसे कि आप को बिल्कुल पक्का पता है कि आप ने विश्वास नहीं किया है। इतने निंश्चित आप कैसे हैं? ऐसा इसलिये क्योंकि आप भावुकता पर टिके हुए हैं! यही एक कारण है कि आप अनिर्णय की स्थिति में हैं! मैं आप को एक कड़वा सच कहूंगा। जिस ‘‘भावना" की आप बात कर रहे हैं वह एक दुष्टात्मा है! शैतान उस दुष्टात्मा का प्रलोभन हमारे विचारों में रखता जाता है। ‘‘मुझे तो उस भावना की सख्त आवश्यकता है! मुझे तो अत्यंत तीव्र भावना की जरूरत है! मैं तो इस भावना रूपी दुष्टात्मा के बगैर कभी संतुष्टी पाउंगा ही नहीं!" जब शैतान आप को अपने मोहपाश में बांधे रखता है, आप उस की पकड़ में होते हैं - तब वह आप के मन में मसीह के प्रति भावुकता पैदा करता है! आप शैतान पर मंत्रमुग्ध हुए जाते हैं और उसी आकर्षण में बंधे रहते हैं कि लेकिन साथ ही आप उद्धार प्राप्त करने से बहुत दूर चले जाते हैं! मसीह के प्रति कोरी भावुकता में बहना मूर्तिपूजा के समान है, जीवन भर आप आप इसी भावुकता से प्रेम करते रहते हैं, आप केवल भावना से प्रेम करते हैं। जब आप ऐसी स्थिति से होकर गुजरते हैं तो आप शैतान के इतने मजबूत जाल में फंसे होते हैं कि सच्चे यीशु को जो क्रूस पर आप को बचाने के लिये बलिदान हुए, उन पर कभी भी विश्वास ला ही नहीं पाते हैं! ‘‘भावना" रूपी शैतान आप को गुलाम बनाये रखता है, वशीभूत कर लेता है और आप को नर्क के निम्नतम स्थानों की ओर खींच कर ले जाता है। मैं तो इस ‘‘भावना" रूपी शैतान को आप के उपर अटठहास लगाते हुए सुन सकता हूं! ‘‘मैंने अब तुमको जकड़ लिया है! मैंने अब तुमको जकड़ लिया है! तुम नर्क में सदा के लिये मेरे गुलाम बन कर रहोगे!" प्रियों, यह हंसने का समय नहीं है। लाखों लोग सोचते हैं कि उनके पास पवित्र आत्मा है − जबकि उनके पास वास्तव में एक दुष्टात्मा है। पवित्र आत्मा से भरे होने के स्थान पर वे दुष्टात्मा से भरे हुए होते हैं। मैं आप को चेतावनी देना चाहता हूं कि आप उस भावना से बचें जो आप को भुलावे में रखती है कि आप ने यथार्थ में उद्धार प्राप्त कर लिया है − मैं आप को चेताना चाहता हूं! आप रहस्यमय बातों से खेल रहे हैं! आप आग से खेल रहे हैं! उद्धार पाने का जो आवेग आप के अंदर पैदा होता है, उस ‘‘भावना" से बचिये और स्वयं को सीधे मसीह यीशु के कदमों में डाल दीजिये, जो परमेश्वर के पुत्र हैं, जिन्होंने आप के लिये क्रूस पर रक्त बहाया और आप को बचाने के लिये स्वयं के प्राणों की आहूति दे दी!

ऐसे कुछ प्रचारक हैं जो इस प्रकार की दासता पैदा करने के स्त्रोत हो गये हैं। मैं ऐसे प्रचारकों को जानता हूं जो लोगों को आकर्षित करते हैं और उद्धार देने का प्रलोभन देते हैं‚ यथार्थ में वे जो कर रहे होते हैं‚ वह शैतानी कार्य होता है। वे मसीह के स्थान पर वे स्वयं के अनुयायी बनाने के लिये भीड़ को बांध रहे हैं। यूहन्ना बपतिस्मादाता को मैं किसी भी दशा में ऐसे प्रचारकों की श्रेणी में नहीं रख सकता।

हेरोदेस ने यूहन्ना को कारागार में डाल दिया था क्योंकि उसकी पत्नी यूहन्ना से डाह रखती थी क्योंकि उन्होंने उसे व्यभिचारिणी कहा था। बाइबल बताती है‚ ‘‘क्योंकि हेरोदेस यूहन्ना को धर्मी और पवित्र पुरूष जानकर उस से डरता था।" उसने यूहन्ना को पवित्र जन के रूप में देखा। इसलिये वह यूहन्ना को कारागार में बार बार देखने गया। वह यूहन्ना को ‘‘बचाए रखता था" अर्थात उसने यूहन्ना को ‘‘सुरक्षित रखा था।" हेरोदेस जानता था कि यूहन्ना में पवित्रता और कुछ भिन्न बात है और ‘‘वह (यूहन्ना) की बातें आनंद से सुनता था।" वह उन लोगों के समान था जो संत की आराधना किया करते थे। वे समझते थे कि संत ईश्वरीय जन होते हैं उदाहरण के लिये संत अगस्तिन। ऐसे लोग संतों के वचनों को पढ़ेंगे और उन पर मनन करेंगे परंतु मसीह पर कभी विश्वास नहीं करेंगे, भले ही संत अगस्तिन जैसे लोग उन्हें ऐसा करने के लिये क्यों न कहें। मेरे विचार से हेरोदेस यूहन्ना को उसी प्रकार समझता था जैसे कैथोलिक्स संतों को स्थान देते हैं। लिखा है, ‘‘वह उनका प्रचार आनंद से सुनता था।" परंतु इस प्रकार से सुनने से उस पर कोई अंतर नहीं पड़ा!

हेरोदस कारागार में उनसे मिलने जाता रहा। यद्यपि वह जानता था कि इससे उसकी पत्नी अप्रसन्न होगी। परंतु उसने जाना जारी रखा। उसको कोई बात खींच कर वहां ले जाती थी। कुछ ऐसी बात उसने महसूस की जो उसे वहां खींच रही थी‚ वह ऐसी प्रबल भावना थी। जब वह यूहन्ना की बातें सुनने गया‚ ‘‘उसने उनका प्रचार आनंद से सुना।" पवित्र आत्मा उसे उन भविष्यवक्ता की बातें सुनने के लिये खींच रहा था। ऐसे कई लोग हैं जो इसी कारण से चर्च आते रहते हैं। चर्च में होना उन्हें भाता है, भले ही संदेश में उन्हें उलाहना क्यों न मिलें। परंतु वे मसीह के आगे समर्पण नहीं करते हैं। हेरोदेस बदलाव के बिंदु तक लगभग पहुंच चुका था। किंतु उसका मन परिवर्तन कभी नहीं हो पाया। क्यों इस हेरोदेस ने बाद में यूहन्ना का शीश कटवाया? हम हेरोदेस जैसे पुरूष को कैसे समझ सकते हैं?

यूहन्ना के प्रचार के प्रभाव में हेरोदेस ने परमेश्वर की उपस्थिति और सामर्थ को महसूस किया। वह जानता था कि यूहन्ना अपनी जगह सही है। तौभी उसने मसीह के सामने समर्पण नहीं किया। वह समझता था यूहन्ना किस बात का प्रचार कर रहे हैं। किंतु मसीह पर विश्वास वह नहीं लाने वाला है। वह सीखता रहा सीखता रहा परंतु कभी भी निश्चित तौर पर मसीह पर विश्वास करने का प्रण नहीं किया। वह अपना जीवन बदलना नहीं चाहता था। ऐसा करने पर उसे उस दुष्ट स्त्री हैरोदियास से अलग होना पड़ेगा। अपने जीवन में उसे अपनी जीवन शैली में बदलाव करना पड़ेगा। पूर्व के अनेक युवा भी ऐसे ही हैं। उनके माता पिता उन्हें हमारे चर्च में आने तो देते हैं परंतु जो प्रचार हम करते हैं‚ उससे वे पूरी रीति से सहमत नहीं होते हैं। वे सोचते हैं कि हम बहुत कठोर हैं। उनके बच्चे चर्च आते हैं − परंतु उनके साथ सख्ती बरती जाती है। क्या यह आप के लिये सच है? क्या आप के माता पिता सोचते हैं कि हम बहुत कठोर हैं? वे आप को चर्च तो आने देते हैं परंतु जब वे आप से बात करते हैं तो वे हमारी आलोचना ही करते हैं। वे आप को चर्च में इतना समय बिताने के लिये मना करते हैं। वे आपसे कुछ ऐसा कहते हैं‚ ‘‘क्या तुमको चर्च में इतना रूकना पड़ता है?" तो आप अपने माता पिता और चर्च के बीच बिखर जाते हैं। आप जानते हैं कि हम सही कह रहे हैं परंतु आप को आपके माता पिता को प्रसन्न रखना आवश्यक है। आप अपने गैर विश्वासी माता पिता के विरूद्ध जाकर हमारे साथ नहीं आना चाहते। वे यह भूल जाते हैं कि यीशु ने क्या कहा था‚ ‘‘जो माता या पिता को मुझ से अधिक प्रिय जानता है‚ वह मेरे योग्य नहीं" (मत्ती १०:३७)। हेरोदस मसीही विश्वासी बनना चाहता था। परंतु वह हेरोदियास को भी प्रसन्न रखना चाहता था। बाइबल कहती है‚ ‘‘वह व्यक्ति दुचित्ता है, और अपनी सारी बातों में चंचल है" (याकूब १:८)। चार्ल्स सी रायरी ने कहा था‚ ‘‘दो विचारों में विभक्त मनुष्य बंटी हुई निष्ठा वाला मनुष्य होता (है)" (रायरी स्टडी बाइबल)। क्या यही बात हेरोदेस के साथ गलत नहीं थी? वह मसीही विश्वासी होना तो चाहता था परंतु हेरोदियास को प्रसन्न करना चाहता था। वह दुविधा में पड़ा हुआ जन था। इसलिये वह एक सच्चा मसीही नहीं बन पाया।

अभी हाल ही में ही हमारे यहां पूर्व देश की एक युवा लड़की थी। वह अपने गैर विश्वासी माता पिता को प्रसन्न करना चाहती थी। परंतु वह मसीही विश्वासी भी होना चाहती थी। अंततः वह पूरी रीति से टूट गयी जब उसने देखा कि उसे पूर्ण रूप से यीशु के पास आना आवश्यक है। उसने अपने माता पिता के विरूद्ध जाने और पूर्णत: यीशु के पास आने का निर्णय लिया। जिस क्षण उसने ऐसा विचार किया उसी क्षण वह ठोस रूप में परिवर्तित हो गयी। उसने यीशु को अपने जीवन का प्रभु बनाने का निर्णय लिया। सारी अनिश्चयता जाती रही और अब वह एक प्यारी सी मसीही विश्वासी लड़की है। परंतु हेरोदेस ने यूहन्ना बपतिस्मादाता और हैरोदियास के बीच निर्णय नहीं लिया। इसलिये वह कभी सच्चा मसीही नहीं बन पाया। वह मरा और नर्क में गया। बाइबल कहती है‚ ‘‘तो आज चुन लो कि तुम किस की सेवा करोगे" (यहोशु २४:१५)। आप को अपने भटके हुए माता पिता और मसीह के बीच चयन करना है। आप को अपने भटके हुए मित्रों और मसीह के मध्य चुनाव करना है। उद्धार प्राप्त करने का और मसीह के लिये स्पष्ट साक्षी देने का कोई और दूसरा मार्ग नहीं है। हेरोदेस के समान निर्णय लेने में आगे पीछे मत होइये। मसीह और चर्च को चुनिये। सीधा सीधा निर्णय लीजिये। ‘‘आज चुन लीजिये कि किसकी सेवा करेंगे।" ‘‘वह व्यक्ति दुचित्ता है, और अपनी सारी बातों में चंचल है" (याकूब १:८)। यीशु ने कहा था‚ ‘‘जो माता या पिता को मुझ से अधिक प्रिय जानता है‚ वह मेरे योग्य नहीं" (मत्ती १०:३७)।

हेरोदेस यूहन्ना का प्रचार सुनने गया था और ‘‘जब उसने सुना‚ उसने अनेक बातें कीं।" हां‚ उसने बहुत सी बातें कीं। हां‚ सब कुछ किया परंतु एक कार्य नहीं किया जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण था। इसमें कोई संदेह नहीं कि उसने कुछ पापों को त्याग दिया होगा। हां‚ ‘‘उसने अनेक चीजें मानीं।" परंतु यूहन्ना ने जो एक मुख्य बात करने को कहा था‚ हेरोदेस उसे करने से वंचित रह गया। उसने कभी भी मसीह पर विश्वास नहीं किया! क्या यही कारण तो नहीं कि आप लगभग एक सतही मसीही जन ही हैं? हां लगभग से मेरा तात्पर्य‚ अभी भी भटके हुए जन हैं! आपने भी ‘‘अनेक चीजें मानीं" होंगी परंतु ऐसा करना पर्याप्त नहीं है। एक युवा लड़की का कथन था, ‘‘उनको हमसे और क्या चाहिये?" जबकि उसको यह पूछना था, ‘‘परमेश्वर हमसे और कितना चाहते हैं?’ डॉ मार्टिन ल्योड जोंस ने मूलतः इस संदेश को प्रचारित किया था, जिसे मैंने उनसे साभार लिया है। डॉ ल्योड जोंस ने पूछा था, ‘‘कौनसी बातें तुम्हें रोक रही है? अपने आप को जांचिये। बुद्धिमान बनिये और जो रोक रहा है उसे अलग कीजिये! ‘कई चीजें मानना’ (पर्याप्त नहीं) है। परमेश्वर आप का संपूर्ण समर्पण चाहते हैं (केवल) कुछ पापों को त्यागना पर्याप्त नहीं किंतु अपनी संपूर्ण इच्छा शक्ति को उनको सौंपना होगा।" आपका संपूर्ण जीवन मसीह के सामने समर्पित होना चाहिये! डॉ मार्टिन ल्योड जोंस‚ एम. डी. ‘‘मिसिंग दि मार्क")।

एक और बात मैं आप से कहना चाहता हूं पद २४ में हैरोदियास ने अपनी पुत्री से कहा कि यूहन्ना बपतिस्मादाता का शीश मांग ले। हेरोदेस बहुत उदास हुआ ‘‘परंतु अपनी शपथ के कारण और साथ बैठने वालों के कारण उसे टालना न चाहा" (मरकुस ६:२६)। तो बात सचमुच ऐसी थी कि − अपनी प्रतिष्ठा की खातिर और दूसरों के द्धारा अच्छा समझे जाने के कारण‚ उसे यह कदम उठाना पड़ा। दिल में तो वह जानता था कि ये लोग गलत हैं। दूसरी ओर वह यूहन्ना को पसंद करता और जानता था कि वे सही हैं। तौभी उसने पापियों के सामने समर्पण किया और यूहन्ना के प्रचार का इंकार किया। उसने शाश्वत उद्धार को ठुकरा दिया और नर्क का चयन किया‚ केवल इस भय से कि लोग क्या कहेंगे। सच में‚ कितनी बड़ी मूर्खता है! भले ही सारा संसार आप पर हंसता हो‚ मखौल उड़ाता हो‚ यहां तक कि आप के परिवार के लोग भी आप को धार्मिक उन्मादी का नाम क्यों न दे दें‚ भले ही पूरा समाज आप को पागल कहकर क्यों न बुलाता हो - चिंता की बात नहीं‚ जब कायनात के मालिक ने आप को स्वीकार कर लिया हो? क्योंकि वही एकमात्र न्यायी है!

वह करिये जो परमेश्वर ने आप से करने के लिये कहा है। मसीह यीशु पर विश्वास लाइये। अपने परिवार मित्रों को बता दीजिये कि आप ने इस दुष्ट संसार से मुंह मोड़ लिया है −और पूर्ण रूप से प्रभु यीशु के समक्ष समर्पण कर दिया है!

एक बार अगर आप को बोध हो जाता है कि मसीह सच्चे और सही हैं‚ तो जब तक आप अपना जीवन उनको समर्पित नहीं कर देते हैं‚ आप को शांति नहीं मिलेगी। बेचारा हेरोदेस! यूहन्ना का शीश कटवाने के बाद उसका जीवन कितना दुष्कर हो गया होगा! यूहन्ना उसके जीवन को प्रताड़ित करते रहते होंगे। जब हेरोदेस ने यीशु के विषय में सुना तो विचार किया कि शायद यह यूहन्ना हो‚ जो मरकर जीवित हुए हों। यूहन्ना सपनों में उसे परेशान करते होंगे! उसे स्वप्न में यूहन्ना का शीश कटा थाल उसके सामने आता हुआ दिखाई देता होगा। भले ही आप ने सत्य का इंकार कर दिया परंतु सत्य समाप्त नहीं होता है। सत्य आप को परेशान करता रहेगा और बार बार आप के सामने आता रहेगा। सत्य आप को चैन नहीं लेने देगा। हेरोदेस को यूहन्ना के बारे में सपने आते होंगे − ‘‘सचमुच यूहन्ना‚ मैंने क्यों तुम्हारी बातें नहीं मानीं? ओह यूहन्ना‚ क्यों मैंने मेरी आत्मा की बात मानी? ओह यूहन्ना‚ क्यों मैं लोगों के विचार से इतना भयभीत हो गया कि वे मेरे लिये क्या सोंचेंगे? ओह यूहन्ना‚ मैं सचमुच कितना निरा मूर्ख था।"

यूहन्ना का शीश कटवाने के बाद हेरोदेस के जीवन की कल्पना कीजिये। ऐसा ही आप का जीवन होगा‚ बल्कि इससे भी भयानक होगा‚ अगर आप संसार की बातें छोड़कर‚ प्रभु यीशु पर विश्वास नहीं लाते हैं और स्वयं को उनके सामने पूर्ण समर्पित नहीं कर देते हैं। मैं आप को भयभीत करने के आरोप लगाये जाने से नहीं डरता। मैं निश्चित तौर पर आप को डराने का प्रयास कर रहा हूं। अगर यीशु मसीह का अदभुत प्रेम आप को आकर्षित नहीं करता है तो मसीह विहीन अनंत की उस भयावहता से आप को डराने के लिये मैं उत्तम प्रयास करूंगा। अगर यीशु मसीह का अदभुत प्रेम आप को आकर्षित नहीं करता है तो मसीह विहीन अनंत काल का दोष‚ अनंतकालीन परेशानियां और अकथनीय प्रताड़ना आप के हिस्सें में आना ही है। जो मनुष्य सब कुछ त्यागने में और मसीह को संपूर्ण मन से स्वीकार करने में अगर असफल रहे‚ तो उनके लिये इन्हीं बातों की सौगात तैयार है। हो सके‚ मसीह आप को आप के पापों से छुटकारा देवे‚ जैसे कि वह इन्हीं क्षणों का इंतजार कर रहे हों। मसीह के पास आइये और चाहे जो भी हो‚ उन पर विश्वास कीजिये −तब आप को पापों से छुटकारा प्राप्त होगा। अन्यथा और कोई दूसरा मार्ग नहीं है। आमीन। जॉन कैगन‚ आइये और प्रार्थना में मांगिये कि परमेश्वर किसी को ऐसा मन देवें कि वह अपना संपूर्ण जीवन प्रभु यीशु को अर्पित कर देवें।


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(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व बैंजामिन किंकेड ग्रिफिथ का एकल गान:
‘‘लगभग मुझे समझाया गया" (फिलिप पी ब्लिस‚ १८३८−१८७६)