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परमेश्वर के आत्मा का विध्वंसात्मक कार्य

THE WITHERING WORK OF GOD’S SPIRIT
(Hindi)

डॉ आर एल हिमर्स
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

रविवार की संध्या, १२ मार्च, २०१७ को लॉस ऐंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल
में दिया गया संदेश
A sermon preached at the Baptist Tabernacle of Los Angeles
Lord’s Day Evening, March 12, 2017


उदारवादी सेमनरी में उन्होंने हमें सिखाया था कि यशायाह के दो अध्याय हैं। परंतु वे गलत थे। पहले ३९ अध्याय पाप एवं आने वाली गुलामी के विषय में कहते हैं। ४० वें अध्याय से लेकर अंतिम अध्याय तक भविष्यवक्ता उनके छुटकारें के विषय में कहते हैं। दूसरा हिस्सा मसीह के दुख उठाने और उद्वार के विषय में बतलाता है।

‘‘बोलने वाले का वचन सुनाई दिया, प्रचार कर! मैं ने कहा, मैं क्या प्रचार करूं? सब प्राणी घास हैं, उनकी शोभा मैदान के फूल के समान है (सुंदरता, एनएएसवी; उनकी महिमा, एनआयवी) । जब यहोवा की सांस उस पर चलती है, तब घास सूख जाती है, और फूल मुर्झा जाता है; निसन्देह प्रजा घास है। घास तो सूख जाती, और फूल मुर्झा जाता है; परन्तु हमारे परमेश्वर का वचन सदैव अटल रहेगा '' (यशायाह ४०:६–८)

‘‘यह किस प्रकार के प्रचार का स्वर है'' जिसका संकेत यशायाह देता है? ‘‘यह प्रभु के मुख से निकला'' प्रचार का स्वर है। पद पांच इस बताता है प्रचार कर के लिये इब्रानी शब्द कारा है। इसका अर्थ है उसे पुकारना जो व्यक्ति (सामने) हो (स्ट्रॉंग ७१२१) यही समान इब्रानी शब्द यशायाह ५८:१ में प्रयुक्त किया गया है

‘‘गला खोल कर पुकार, कुछ न रख छोड़, नरसिंगे का सा ऊंचा शब्द कर; मेरी प्रजा को उसका अपराध अर्थात याकूब के घराने को उसका पाप जता दे'' (यशायाह ५८:१)।

इसी तरह यूहन्ना बपतिस्मादाता प्रचार करते थे। वे यशायाह ४०:३ यूहन्ना का संदर्भ देते थे। उनका प्रसिद्व कथन था, ‘‘जंगल में एक पुकारने वाले का शब्द हूं कि तुम प्रभु का मार्ग सीधा करो'' (यूहन्ना १:२३; यशायाह ४०:३)। यूहन्ना १:२३ में ‘‘चिल्लाना'' शब्द यूनानी शब्द बोआओ का अनुवाद है। इसका अर्थ है ‘‘जोर से चिल्लाना.....पुकारना'' (स्ट्रॉंग ७१२१) । इब्रानी और यूनानी शब्द कहते हैं ‘‘जोर से चिल्लाओ'' (यशायाह ५८:१)।'' अर्थात एक प्रचारक को परमेश्वर का प्रवक्ता बनकर जोर से प्रचार करना चाहिये......‘‘चिल्लाना और प्रचार करना'', उन्हें जो भटक गये हैं और उलझन में हैं! प्रचारक को परमेश्वर के वचन को अपने सुनने वालों के सामने उंची आवाज में सुनाना चाहिये। दुख की बात है, कि वर्तमान में अब यह प्रचार का तरीका नहीं रहा। बाइबल की बातों के प्रति अब आधारभूत अनाज्ञाकारिता प्रबल हो रही है। आधुनिक मिनिस्टीज ने अब ‘‘प्रचार करना छोड़ दिया है'' परंतु वे शिक्षण करती हैं, जैसा कि पुराने लोग कहते थे। ये आधुनिक मिनिस्टीज परमेश्वर का कहना नहीं मानती हैं। परमेश्वर ने यशायाह से कहा था ‘‘गला खोल कर पुकारो, कुछ न रख छोड़ों।'' आधुनिक मिनिस्टीज यीशु के उदाहरण का अनुसरण नहीं करती हैं। यीशु ‘‘मंदिर में चिल्लाये थे'' (यूहन्ना ७:२८) । परंतु यह पुकार यूहन्ना ७:३७ के समान पुकार नहीं है ‘‘जब वह खड़े हुए और पुकार कर लगे।'' न ही यह पतरस के समान पेंतुकुस्त के दिन की पुकार थी। पतरस ‘‘ऊंचे शब्द से कहने लगे'' एवं जो वचन परमेश्वर ने उन्हें दिया, वह सुनाने लगे (प्रेरितों के कार्य २:१४) । डॉ जॉन गिल का कथन था, ‘‘उन्होंने अपनी आवाज उठाई, ताकि संपूर्ण भीड़ सुन सके....... उन्हें अपना जुनून और आत्मा का जोशीलापन व विचारों की धैर्यता को प्रगट करना था। परमेश्वर का आत्मा उन्हें साहस प्रदान कर रहा था, उस समय वे मनुष्यों के भय से अप्रभावित थे'' (एन एक्सपोजिशन ऑफ न्यू टेस्टामेंट; प्रेरितों के कार्य २: १४ पर व्याख्या) । इसलिये मैं एक बार फिर दोहराता हूं कि हमारे पुल्पिट से अब बाइबल की बातों के प्रति आधारभूत अनाज्ञाकारिता दिखाई देती है। प्रचार की शैली में भयानक अनाज्ञाकारिता प्रबल हो रही है। पौलुस प्रेरित ने कहा था कि अंतिम दिनों में लोग अपने सिद्वांतों से हटेगें। उन्होंने कहा था, ‘‘तू वचन को प्रचार कर....... क्योंकि ऐसा समय आएगा, कि लोग खरा उपदेश न सह सकेंगे पर (कानों की खुजली के कारण) अपनी अभिलाषाओं के अनुसार अपने लिये बहुतेरे उपदेशक बटोर लेंगे,'' एनएएसवी (२ तीमुथियुस ४:२,३) । हमारे समय में लगातार शिक्षा देने का कार्य चल रहा है प्रचार करना तो लोग भूल गये हैं। जितना हम सुन रहे हैं शिक्षा है - सिर्फ ‘‘शिक्षा’’ जिसमें कोई आग्रह नहीं न कोई जोश! वर्तमान में सेमिनार में हम यही सीख रहे हैं! धूल के समान शुष्क, एक एक पद की व्याख्या द्वारा शिक्षा देना! सुसमाचार से किसी का सामना ही नहीं हो पा रहा है ‘‘शिक्षण'' की इस पद्वति से लोगों को उनकी आत्मिक नींद में झकझोरा नहीं जा रहा है। आप बकरियों को भेड़ बनने की ‘‘शिक्षा'' नहीं दे सकते हैं! प्रचार द्वारा आप को उन्हें उनके पाप और आलस से निकल आने के लिये जगाना होगा! ‘‘बोलने वाले का वचन सुनाई दिया, प्रचार कर'' (यशायाह ४०:६)। सच्चे सुसमाचार प्रचार की यही शैली होती है। केवल प्रचार के द्वारा ही परमेश्वर मृतक हृदयों और आलस्य को जगाता है! और दूसरा कुछ नहीं परंतु एकमात्र आत्मा को झकझोरने वाला प्रचार ही आत्मा को जगा सकता है! ब्रायन एच एडवर्ड ने कहा था, ‘‘आत्मा को जगाने वाले प्रचार में परमेश्वर के वचन की ऐसी सामर्थ होती है कि वह सुनने वालों के हृदयों व विचारों पर हथोड़े के समान वार करती है। आत्मिक जाग्रति के लिये प्रचार करने वालों को निर्भीक और आग्रह पूर्ण होना चाहिये'' (रिवाईवल ए पीपल सैचुरेटेड विथ गॉड, इवेंजलीकल प्रेस, संस्करण १९९७, पेज १०३)। डॉ ल्योड जोंस बींसवी शताब्दी के महान प्रचारकों में से एक थे। उन्होंने पूछा, ‘‘प्रचार क्या है? तर्क जो जोशीला हो!.....धर्मविज्ञान जो ओज से भरपूर हो। एक ऐसा धर्मविज्ञान जो त्रुटिपूर्ण ढंग से जोशीला न हो ....... प्रचार वह धर्मविज्ञान है जो ओज से भरपूर व्यक्ति से निकल कर आता है....... जो व्यक्ति सुसमाचार और उससे जुड़ी बातों के विषय में जोशीलेपन से प्रचार न कर सके, मेरी समझ से उसे प्रचार करने का कोई अधिकार नहीं है; ऐसे व्यक्ति को सदैव प्रवेश से ही वंचित करना उचित होगा (प्रीचिंग एंड प्रीचर्स पेज ९७)।

तब यशायाह ने कहा, ‘‘मैं क्या प्रचार करूं?'' (यशायाह ४०:६)। एक युवा ने बताया कि सेमनरी के प्राध्यापक ने क्या कहा। उनके अनुसार अगले छः महिनों के संदेशों की तैयारी पहले से ही कर लेना चाहिये। मैं सर्वथा ऐसे व्यक्ति नापसन्द को करता हूं जो ऐसा करता है! जो व्यक्ति ऐसी तैयारी करता है, वह परमेश्वर द्वारा प्रेरित संदेशों को दे ही नहीं सकता है! ऐसा संभव नहीं है! स्पर्जन तो कालयुगीन प्रचारक थे। उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया। सच्चे प्रचारक को तो परमेश्वर से विषय मांगना चाहिये। बांट जोहना चाहिये कि उसे बोले जाने के लिये विषय मिले। ‘‘मैं क्या प्रचार करूं?'' जो विषय परमेश्वर देते हैं, उसे प्रबल आवाज में प्रचार करूं। किसी ने मेरे लिये कहा था कि मैं हिटलर के समान प्रचार करता हूं। एक प्रकार से वह सही कहता है। हिटलर झूठ भी बहुत जोश में भरकर बोलता था। हमें सत्य को जोश में भरकर बोलना है! केवल जोशीला प्रचार लोगों की आत्मा को परमेश्वर के लिये झकझोर सकता है। बाइबल की व्याख्या लोगों को सुला देती है! डॉ ल्योड जोंस ने कहा था, ‘‘आजकल का प्रचार लोगों को उद्वार दिलाने में सहायक नहीं है। यह व्यक्ति की आत्मा को विचलित नहीं करता। उन्हें नाराज भी नहीं करता। बिना उन्हें आकुल बनाये, आराम की दशा में ही रहने देता है।'' प्रचार की यह पद्वति गलत है! लोगों की आत्मा में विघ्न पहुंचना चाहिये!

‘‘बोलने वाले का वचन सुनाई दिया, प्रचार कर! मैं ने कहा, मैं क्या प्रचार करूं? सब प्राणी घास हैं, उनकी शोभा मैदान के फूल के समान है....... घास तो सूख जाती, और फूल मुर्झा जाता है।'' (यशायाह ४०:६–८)

१॰ पहले, मुझे जीवन की लघुता पर प्रचार करना चाहिये।

‘‘बोलने वाले का वचन सुनाई दिया, प्रचार कर! मैं ने कहा, मैं क्या प्रचार करूं? सब प्राणी घास हैं, उनकी शोभा मैदान के फूल के समान है....... घास तो सूख जाती, और फूल मुर्झा जाता है।'' (यशायाह ४०:६–८)

जीवन जल्द बीत जाता है। बहुत जल्द बीत जाता है। ऐसा लगता है कि हम सदा युवा बने रहेंगे परंतु - यह समय शीघ्रता से गुजर जाता है। मैं अपनी आत्मकथा लिख रहा हूं। मेरे पुत्र राबर्ट ने मुझे ऐसा करने के लिये कहा। मैं कुछ सप्ताह में छियहत्तर साल का हो जाउंगा। ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ महिने पहिले तो मैं युवा ही था! आप के साथ भी ऐसा ही होगा! गर्मी का सूरज तपता है। घास मुरझा जाती है। फूल सूख जाते और गिर जाते हैं।

जीवन क्षणसाथी है, स्थाई नहीं, कुछ वक्त का है, अनित्य है। सुनिये प्रेरित याकूब इस विषय में क्या कहते हैं। उनका प्रसिद्व कथन है,

‘‘और धनवान.......अपनी नीच दशा पर: क्योंकि वह घास के फूल की नाईं जाता रहेगा। क्योंकि सूर्य उदय होते ही कड़ी धूप पड़ती है और घास को सुखा देती है, और उसका फूल झड़ जाता है, और उस की शोभा जाती रहती है; उसी प्रकार धनवान भी अपने मार्ग पर चलते चलते धूल में मिल जाएगा।'' (याकूब १:१०–११)

बहुत कम लोग जीवन की इस सच्चाई से साक्षात्कार कर पाते हैं। जो सच्चाई है उसे जाने बिना, भौतिक और विलासिता की वस्तुएं के अर्जन को ही जीवन मान बैठते हैं – जानते ही नहीं कि कैसे यह अंत हो जायेगा! सी टी स्टड (१८६०–१९३१) एक अमीर आदमी थे, उनके पास अथाह धन था। अंत में उन्होंने सब कुछ दान में दे दिया और मिशनरी बनकर चीन चले गये। बाद में अफ्रीका के मध्य स्थल में पहुंचे जो बहुत ही खतरनाक स्थान माना जाता था। इन्हीं सी टी स्टड का कहना था,

केवल एक जीवन,
   और यह भी जल्द बीत जायेगा;
केवल मसीह के लिये क्या किया
   यह शेष रहेगा

मैं चाहता हूं हर जवान व्यक्ति सी टी स्टड के बारे में पढ़े, और उसे अपनी हीरो बना लीजिये! अगर आप इस कविता का सत्य पहचान सकें!

केवल एक जीवन,
   और यह भी जल्द बीत जायेगा;
केवल मसीह के लिये क्या किया
   यह शेष रहेगा

यीशु कहते थे,

‘‘यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? और मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा?'' (मरकुस ८:३६, ३७)

‘‘बोलने वाले का वचन सुनाई दिया, प्रचार कर! मैं ने कहा, मैं क्या प्रचार करूं? सब प्राणी घास हैं, उनकी शोभा (सुंदरता) मैदान के फूल के समान है....... घास तो सूख जाती, और फूल मुर्झा जाता है।'' (यशायाह ४०:६–८)

इसलिये मुझे जीवन की लघुता पर प्रचार करना आवश्यक है! आप को भी जीवन के क्षणसाथी होने के विषय में सोचना चाहिये। बाइबल कहती है, ‘‘हम को अपने दिन गिनने की समझ दे कि हम बुद्धिमान हो जाएं'' (भजन ९०:१२)

२॰ दूसरा, हमें पवित्र आत्मा के प्रचंड कार्य किये जाने के विषय पर प्रचार करना चाहिये।

‘‘निस्तेज'' होना शब्द का तात्पर्य है, सूख जाना, कुम्हला जाना या अपनी ताजगी खो देना। यशायाह भविष्यवक्ता अध्याय ४०:७ में कहते हैं,

‘‘जब यहोवा की सांस उस पर चलती है, तब घास सूख जाती है, और फूल मुर्झा जाता है; नि:सन्देह प्रजा घास है'' (यशायाह ४०:७)

स्पर्जन ने कहा था, ‘‘परमेश्वर का आत्मा हवा के समान आप की आत्मा के खेत के उपर से गुजरेगा तब वह (आप की) सुंदरता को धूमिल कर देगा। उसे (आप को) पापों का बोध देना आवश्यक है। ताकि (आप) (अपने) पतित स्वभाव को देख सके, जो सिर्फ भ्रष्टता है और ‘जो देह के अनुसार जीवन काट रहे हैं, वे परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर पायेंगे।' (ताकि हम महसूस कर सके) कि मरण की आज्ञा हमारे पूर्व दैहिक जीवन पर है....... केवल बीमारों को वैध की आवश्यकता लगेगी....... जिस पापी की आत्मा जब जागने लगती है, वह परमेश्वर से स्वयं पर दया किये जाने की मांग करता है। लेकिन वह यह जानकर तुष्ट होता है कि उसकी आत्मा में शांति भरने के स्थान पर, परमेश्वर के क्रोध का अहसास उसकी आत्मा को झुका देता है.....क्योंकि आप मसीह के लहू की कीमत कभी नहीं जान पायेगें जो सारे पापों से हमें शुद्व करता है, अगर हमने पहले अपने पापों के लिये शोक नहीं मनाया हो यह कहकर कि हम अशुद्व प्राणी हैं’’ (‘‘विदरिंग वर्क ऑफ दि स्पिरिट,’’ पेज ३७५, ३७६)

इसे पवित्र आत्मा का विध्वंसकारी कार्य कहते हैं। वह आप की झूठी आशाओं को सुखा डालता है, आप के हृदय की अवस्था से आप का सामना करवाता है, जिससे आप के विचारों में समायी हुई समस्त उम्मीदें बुझ जाती हैं। सच्ची उम्मीद आप को केवल मसीह में मिलती है। जो आप के पाप से आप को बचाने के लिये स्वयं आप के स्थान पर खड़ा हुआ। जब पवित्र आत्मा आप की आत्मा को ‘‘सुखा डालता है।’’ तब आप को दिखाई देता है कि आप की उपर से प्रगट होने वाली ‘‘अच्छाई’’ मैले चीथड़ों के समान है। आप ने ऐसा कुछ नहीं किया है जो आप को परमेश्वर की निगाहों में ग्रहणयोग्य बनाये। आप का कैसा भी सत्कर्म आप को न्याय और दंड से बचा पाने में समर्थ नहीं होगा।

तभी परमेश्वर आप को झूठे परिवर्तन से गुजर जाने देता है। ऐसे अनेकों बार आप ने झूठे परिवर्तनों के अहसास को जीवन में जिया होगा। तब बेहद तड़फ के बाद आप को शांति मिली होगी। इसका यह अर्थ नहीं है कि परमेश्वर आप को छोड़ देते हैं। कदापि नहीं! परमेश्वर इन झूठे परिवर्तनों के अहसास को भी काम में ले लेते हैं। वह तो चाहते हैं कि आप की आत्मा चित्कार उठे ‘‘सब प्राणी घास हैं, उनकी सुंदरता मैदान के फूल के समान है।’’

आप अपने कर्म या अच्छाई या नैतिकता द्वारा स्वयं का उद्वार कर लेंगे, ऐसी हर आशा को परमेश्वर सुखा देते हैं। जॉन न्यूटन का कथन है,

मैं चाहता कि किसी कृपापूर्ण घड़ी में,
   वह एकाएक मेरी विनती का उत्तर देता,
उसके प्रेम की विवश कर देने वाली सामर्थ
   मेरे पापों को वश में कर लेती और मुझे विश्राम देती।

पर इसके बदले, उसने मुझे बोध करवाया
   मेरे मन की कंदरा में छिपी बुराईयों का;
नर्क की क्रोधित शक्ति मुझे
   हर पल हर भाग पर प्रहार करती लगती

तो आयको से पूछिये! डैनी से पूछिये! जॉन कैगन से पूछिये! मुझसे पूछिये! हम रोये थे यह कहकर कि परमेश्वर हमें विश्राम दीजिये – परंतु उसने हमें शैला नोन के समान अहसास दिया। जो कहती थी कि, ‘‘मुझे स्वयं से इतनी नफरत हो गई थी।’’ एक ओर लड़की ने कहा, ‘‘कि मैं अपने आप से बेहद नाराज थी।’’ डॉ कैगन और मैने उससे कहा कि तुम्हें ‘‘नाराज’’ होने से भी बढ़कर महसूस करना चाहिये। शैला के समान उसका अनुभव भी स्वयं से नफरत’’ होने का होना चाहिये। जब तक स्वयं से ‘‘नफरत’’ नहीं होगी, आत्मा के सूख जाने का बोध नहीं होगा, भीतर के भटकाव का निराकरण नहीं होगा। सच्चा क्रिश्चियन वही, जिसका अंर्तमन पूरा सूख जाये। तब परमेश्वर का आत्मा उसे भीतर से नया बनाने का कार्य आरंभ करेगा। बस यही क्रिश्चियनिटी है। फिर जीवनपर्यंत प्रक्रिया चलती रहती है आप अंश दर अंश बदलते जाते हैं।

‘‘सूखने’’ की प्रक्रिया बहुत जरूरी है। आप के भीतर यह घट रहा है, आप को समझ में आना चाहिये। अंतर्मन से ‘‘सूख जाइये’’ अर्थात ‘‘शर्म से गढ़ जाइये..........ये पापों का बोध आप को असहाय बना दे..........केवल (तभी) आप यीशु की उपस्थिति के लिये पुकार उठेंगे (स्ट्रॉंग, ३००)।’’

‘‘जब यहोवा की सांस उस पर चलती है, तब घास सूख जाती है, और फूल मुर्झा जाता है; नि:सन्देह प्रजा घास है'' (यशायाह ४०:७)

अंतर्मन में इस प्रक्रिया का घटना नितांत आवश्यक है। पवित्र आत्मा आप का संपूर्ण आत्म विश्वास सूखा दे। जब तक कि आप का मुरझा न जायें - आप के सामने आप का भ्रष्ट स्वभाव बार बार कचोटने लगे। आप शर्म से भर जायें, ‘‘यही सच्चे परिवर्तन की प्रक्रिया है।’’ सूखने से पुनः परमेश्वर की आत्मा से भरने की ओर।

‘‘जब यहोवा की सांस उस पर चलती है, तब घास सूख जाती है, और फूल मुर्झा जाता है; नि:सन्देह प्रजा घास है'' (यशायाह ४०:७)

जब स्वयं से नफरत हो जायेगी, तब हमें आप को यीशु पर विश्वास लाने के लिये कहना आवश्यक होगा। वह अपने लहू से आप के पापों को शुद्व करेंगे और आप को परमेश्वर के न्याय से बचायेंगे।

महान सुसमाचार प्रचारक जार्ज व्हाईटफील्ड ने कहा था, ‘‘क्या परमेश्वर ने आप के सामने प्रगट किया कि यीशु में आप का कोई विश्वास नहीं है? क्या आप ने कभी इस तरह प्रार्थना की, ‘हे प्रभु’ मसीह पर विश्वास रखने में मेरी सहायता करें। क्या परमेश्वर ने आप की अयोग्यता को दर्शाया कि आप स्वयं से यीशु के पास नहीं आ सकते हैं। क्या आप प्रार्थना में मसीह पर विश्वास लाने के लिये पुकार उठे? अगर ऐसा नहीं हुआ है तो आप को मन में शांति नहीं मिलेगी। हो सके आप को ठोस शांति मिले। मरने से पहले यह कार्य अंर्तमन में घट जाये।’’ (‘‘दि मैथड ऑफ ग्रेस’’) सच्चा मन फिराव होने के पहले आपके अंर्तमन में पाप के साथ गहरा संघर्ष चलना आवश्यक है। मसीह ने गेतसेमनी बाग में जिस प्रकार पापों को वहन करने पर जैसी आकुलता महसूस की थी, आप की बैचेनी ऐसी तीव्र होनी चाहिये। भीतर व्याकुलता व्याप्त होनी चाहिये। आप की चिल्लाहट मसीह की पुकार के समान होनी चाहिये, जो कह उठी थी, ‘‘मेरा जी बहुत उदास है यहां तक कि मेरे प्राण निकला चाहते हैं..........हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझ से टल जाए’’ (मत्ती २६:३८, ३९)

निवेदन करता हूं कि अपने स्थानों पर खड़े होकर गीत संख्या १० ‘‘कम ई सिनर्स’’ को गायें।

आओ, हे पापी जन, दीन हीन और निकम्मे, कमजोर, घायल, लाचार, रोगी;
यीशु प्रेम, दया, सामर्थ से परिपूर्ण, आप के लिये तैयार खड़े है;
वह समर्थ हैं, वह समर्थ हैं, वह आप को मुक्ति प्रदान करते हैं;
वह समर्थ हैं, वह समर्थ हैं, वह आप को मुक्ति प्रदान करते हैं;

हे बोझ से दबे लोगों, परंपराओं से दबे लोगों, टूटे चुके लोगों आओं;
अगर राह देखोगे कि दशा तुम्हारी सुधरेगी, तो राह न देखों:
धमिर्यो को नहीं, धमिर्यो को नहीं, पापियों को यीशु बुलाते हैं;
धमिर्यो को नहीं, धमिर्यो को नहीं, पापियों को यीशु बुलाते हैं।

मसीहा को देखिये, जो परम पिता से आप के लिये विनती करते हैं
अपने आप को यीशु के भरोसे छोड़ दीजिये, आप का विश्वास ही पर्याप्त है;
यीशु आप पापी की मदद कर सकते हैं, यीशु आप पापी की मदद कर सकते हैं
यीशु आप पापी की मदद कर सकते हैं, यीशु आप पापी की मदद कर सकते हैं।
(‘‘आओ, हे पापी जन’’ जोसेफ हार्ट, १७१२ – १७६८; इसे थोड़ा बदला गया है)

एक मन फिराने वाले आशापूर्ण युवा की गवाही सुनिये। उस युवा के शब्द इस प्रकार हैं।

मैं अपने पापों का बोझ अपनी आत्मा पर महसूस कर रहा था। पर मैं इंतजार कर रहा था कि संदेश जल्दी समाप्त हो। किंतु पास्टर का प्रचार करना थम ही नहीं रहा था और मेरे पापों का बोझ सहना मेरे लिये अत्यंत बोझिल होता जा रहा था........ मैं और अधिक कांटो के विरूद्व ‘‘संघर्ष’’ नहीं कर सका अब वह दिन आ गया था कि मेरा उद्वार होना तय था! जब निमंत्रण दिया गया तब भी मैं इसे नकार रहा था लेकिन मैं अब और नहीं सह सका। मैं जानता था कि मैं बहुत ही बुरा व्यक्ति था और परमेश्वर द्वारा मुझे नर्क में भेजना सही था। मैं अपने विरूद्व संघर्ष करते करते थक गया था। मैं सच में बहुत थक चुका था। पास्टर ने मुझे समझाया कि मसीह के पास आ जाओ। मैं उनकी अवज्ञा करता रहा। मेरे पाप मेरी आंखों के सामने थे तौभी मेरे पास यीशु नहीं थे। ये क्षण मेरी जिंदगी के सबसे भारी क्षण थे और मुझे लग रहा था कि मुझे उद्वार नहीं मिल सकेगा और मेरा नर्क जाना निश्चित है। मैं स्वयं बचने का प्रयास कर रहा था। मैं यीशु पर विश्वास रखने का प्रयास कर रहा था ....... लेकिन यह सब करने मे मैं असफल रहा और मैं और अधिक हताश होता चला गया। मैं जान रहा था कि मेरे पाप मुझे नर्क की तरफ धक्का दे रहे थे और मेरे भीतर का हठी मन मेरे आंसुओं को दूर धकेल रहा था। मैं इस संघर्ष में फंस कर रह गया। अचानक मुझे बरसों पुराना एक प्रचार याद आया जिसके शब्द थे .....मसीह के आगे समर्पण करो मसीह के आगे समर्पण करो अचानक यीशु को जीवन समर्पण के विचार ने मुझे हताशा से भर दिया और मुझे लगा कि मैं उन्हें जीवन नहीं दे पाउंगा। यीशु ने तो मेरे लिये अपने प्राण दिये। सच्चे यीशु मेरे लिये क्रूस पर चढ़ गये और मैं उनका ही शत्रु बना जा रहा था उनके आगे समर्पित होने से बच रहा था। इस विचार ने मुझे तोड़ कर रख दिया और मैंने अपने भीतर से सब बह जाने दिया .....अब मैं अपने आप पर काबू नहीं रख पाया और मुझे यीशु की तीव्र आवश्यकता मेरे जीवन में महसूस होने लगी.....उसी क्षण मैं विश्वास के साथ यीशु के आगे समर्पित हो गया और मुझे लगा कि मैं अगर समर्पण नहीं करता हूं तो शायद मर ही जाउंगा और यीशु ने मुझे नया जीवन दिया न मैंने अपने किसी प्रयास से, न इच्छा के बल पर, बल्कि अपने मन से यीशु को अपना मान लिया। यीशु ने, मुझे नया जीवन दिया।


अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स आप से सुनना चाहेंगे। जब आप डॉ हिमर्स को पत्र लिखें तो आप को यह बताना आवश्यक होगा कि आप किस देश से हैं अन्यथा वह आप की ई मेल का उत्तर नहीं दे पायेंगे। अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स को इस पते पर ई मेल भेजिये उन्हे आप किस देश से हैं लिखना न भूलें।। डॉ हिमर्स को इस पते पर rlhymersjr@sbcglobal.net (यहां क्लिक कीजिये) ई मेल भेज सकते हैं। आप डॉ हिमर्स को किसी भी भाषा में ई मेल भेज सकते हैं पर अंगेजी भाषा में भेजना उत्तम होगा। अगर डॉ हिमर्स को डाक द्वारा पत्र भेजना चाहते हैं तो उनका पता इस प्रकार है पी ओ बाक्स १५३०८‚ लॉस ऐंजील्स‚ केलीफोर्निया ९००१५। आप उन्हें इस नंबर पर टेलीफोन भी कर सकते हैं (८१८) ३५२ − ०४५२।

(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व बैंजामिन किंकैड ग्रिफिथ ने एकल गान गाया गया:
‘‘कम होली स्पिरिट होली डव'' (डॉ आयजक वॉट १६७४–१७४८
टू दि टयून ऑफ ओ सेट इ ओपन अनटू मी)
(‘‘आओ, हे पापी जन'' जोसेफ हार्ट १७१२ – १७६८)


रूपरेखा

परमेश्वर के आत्मा का विध्वंसात्मक कार्य

THE WITHERING WORK OF GOD’S SPIRIT

डॉ आर एल हिमर्स
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

‘‘बोलने वाले का वचन सुनाई दिया, प्रचार कर! मैं ने कहा, मैं क्या प्रचार करूं? सब प्राणी घास हैं, उनकी शोभा मैदान के फूल के समान है। जब यहोवा की सांस उस पर चलती है, तब घास सूख जाती है और फूल मुर्झा जाता है; नि:सन्देह प्रजा घास है। घास तो सूख जाती, और फूल मुर्झा जाता है; परन्तु हमारे परमेश्वर का वचन सदैव अटल रहेगा '' (यशायाह ४०:६–८)

(यशायाह ४०:५; ५८:१; ४०:३;यूह १:२३; यूहन्ना ७:२८,३७;
प्रेरितों के कार्य २:१४; २ तिमोथी ४:२,३)

१॰     पहले, मुझे जीवन की लघुता पर प्रचार करना चाहिये, यशायाह ४०:६;
याकूब १:१०–११; मरकुस ८:३६; भजन ९०:१२

२॰   दूसरा, हमें पवित्र आत्मा के प्रचंड कार्य किये जाने के विषय पर प्रचार करना
चाहिये, यशायाह ४०:७; मत्ती २६:३८, ३९