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युसुफ और यीशु

(उत्पत्ति की पुस्तक पर ८६ वां संदेश)
JOSEPH AND JESUS
(SERMON #86 ON THE BOOK OF GENESIS)
(Hindi)

द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

रविवार की सुबह, ६ दिसंबर, २०१५ को लॉस ऐंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल
में किया गया प्रचार किया गया संदेश
A sermon preached at the Baptist Tabernacle of Los Angeles
Lord’s Day Evening, December 6, 2015

''और परमेश्वर ने यों कहा; कि तेरी सन्तान के लोग पराये देश में परदेशी होंगे, और वे उन्हें दास बनाएंगे, और चार सौ वर्ष तक दुख देंगे। फिर परमेश्वर ने कहा; जिस जाति के वे दास होंगे, उस को मैं दण्ड दूंगा; और इस के बाद वे निकल कर इसी जगह मेरी सेवा करेंगे। और उस ने उस से खतने की वाचा बान्धी; और इसी दशा में इसहाक उस से उत्पन्न हुआ; और आठवें दिन उसका खतना किया गया; और इसहाक से याकूब और याकूब से बारह कुलपति उत्पन्न हुए। और कुलपतियों ने यूसुफ से डाह करके उसे मिसर देश जाने वालों के हाथ बेचा; परन्तु परमेश्वर उसके साथ था। और उसे उसके सब क्लेशों से छुड़ाकर मिसर के राजा फिरौन के आगे अनुग्रह और बुद्धि दी, और उस ने उसे मिसर पर और अपने सारे घर पर हाकिम ठहराया। तब मिसर और कनान के सारे देश में अकाल पडा; जिस से भारी क्लेश हुआ, और हमारे बाप दादों को अन्न नहीं मिलता था। परन्तु याकूब ने यह सुनकर, कि मिसर में अनाज है, हमारे बाप दादों को पहिली बार भेजा। और दूसरी बार यूसुफ अपने भाइयों पर प्रगट को गया, और यूसुफ की जाति फिरौन को मालूम हो गई। तब यूसुफ ने अपने पिता याकूब और अपने सारे कुटुम्ब को, जो पछत्तर व्यक्ति थे, बुला भेजा।'' (प्रेरितों ७:६−१४)


बाइबल में युसुफ नाम के दो व्यक्ति प्रमुख रहें हैं। नये नियम में जो युसुफ हैं वह परमेश्वर के एकमात्र पुत्र यीशु के सौतेले पिता हैं। पुराने नियम में युसुफ याकूब के पुत्र हैं। मैं आज की संध्या पुराने नियम के युसुफ के विषय में बोलूंगा। उत्पत्ति में जो सात महान संतों के बारे में बताया गया है युसुफ उनमें से अंतिम हैं। वे सात हैं आदम, हाबिल, नूह, अब्राहम, इजहाक, याकूब और युसुफ। उत्पत्ति के अनेक अध्याय युसुफ की कहानी का वर्णन करते हैं जितना और किसी के लिये नहीं करते। आर्थर डब्ल्यू पिंक ने कहा था,

युसुफ का जीवन इजरायलियों की उस वृद्धि (बढोतरी) की कहानी कहती है जो मुटठी भर भटकते हुए चरवाहे थे और मिस्र में एक (विशाल) जाति में परिवर्तित हो गये। इसमें कोई संदेह नहीं कि क्यों युसुफ के जीवन का वर्णन इतने विस्तार से किया गया है क्योंकि (उसके जीवन) में घटी लगभग हर घटना का कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में मसीह से जुडाव पाया गया है.......(युसुफ) के जीवन का इतिहास और मसीह के जीवन के इतिहास में हम लगभग सैकडों समानता के बिंदु ढूढ सकते हैं! (आर्थर डब्ल्यू पिंक, ग्लीनिंग्स इन जेनेसिस, मूडी प्रेस, १९८१ पुर्नमुद्रण, पेज ३४२, ३४३)

युसुफ स्पष्टत: मानो एक उदाहरण है आने वाले मसीहा का संकेत है। कुछ का कहना है कि नये नियम में युसुफ का कोई प्रतिरूप नहीं है। स्कोफील्ड बाइबल उत्पत्ति ३७:२ की व्याख्या में कहती है ''यह कहीं दावा नहीं किया गया है कि युसुफ यीशु का उदाहरण है।'' यह गलत है। नये नियम के चारो सुसमाचार बताते हैं कि युसुफ का जीवन कई रूप में एक उदाहरण ही था और प्रभु यीशु मसीह प्रतिरूप ही थे वह उस उदाहरण की पूर्णता थे। जैसे कि स्कोफील्ड की व्याख्या आगे कहती है, ''समानताये इतनी अधिक हैं कि उन्हें संयोग नहीं माना जा सकता।'' आर्थर डब्ल्यू पिंक ने ''समानताओं के सैकड़ों बिंदु दिये'' − जिनमें युसुफ और परमेश्वर के पुत्र यीशु के मध्य तुलना है। मै इस संदेश में सौ समानतायें तो नहीं बता पाउंगा लेकिन उनमें से कुछ महत्वपूर्ण पर अवश्य प्रकाश डालूंगा।

१. प्रथम, युसुफ का जन्म और यीशु का जन्म दोनों चमत्कार ही थे।

युसुफ की मां रेचल थी, जो याकूब की पत्नी थी। उसके बच्चे नहीं होते थे उसने अपने पति से रोकर कहा, ''मुझे भी सन्तान दे, नहीं तो मर जाऊंगी'' (उत्पत्ति ३०:१)। उसने उसे झिडका और कहा, ''क्या मैं परमेश्वर हूं?'' − क्या मैं परमेश्वर की जगह हूं जिसने तुम्हें बच्चे होने से रोक रखा है? पर हम पढते हैं कई वर्षो पश्चात, ''परमेश्वर ने राहेल की भी सुधि ली, और उसकी सुनकर उसकी कोख खोली। सो वह गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; सो उसने कहा, परमेश्वर ने मेरी नामधराई को दूर कर दिया है। सो उसने यह कह कर उसका नाम यूसुफ रखा.........कि परमेश्वर मुझे एक पुत्र और भी देगा'' (उत्पत्ति ३०:२२−२४)। डॉ जे वर्नान मैगी ने कहा था, ''युसुफ का जन्म इस रूप में चमत्कार था क्योंकि परमेश्वर का हाथ इसमें था और यह एक प्रार्थना का उत्तर था। प्रभु यीशु कुंआरी कन्या से उत्पन्न हुये। उनका जन्म निश्चित रूप से एक चमत्कार था!'' (थू दि बाइबल, थॉमस नेल्सन पब्लिशर्स, १९८१, वॉल्यूम १, पेज १५०) स्वर्गदूत ने कुंआरी मरियम से कहा,

''पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्थ तुझ पर छाया करेगी इसलिये वह पवित्र जो उत्पन्न होनेवाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा'' (लूका १:३५)

२. दूसरा, युसुफ और यीशु अपने पिता के विशेष प्रेम पात्र थे।

उत्पत्ति ३७:३ कहता है, ''इस्राएल (याकूब) अपने सब पुत्रों से बढ़के यूसुफ से प्रीति रखता था, क्योंकि वह उसके बुढ़ापे का पुत्र था'' जब यीशु का बपतिस्मा हुआ तो वे पानी से बाहर निकलकर आये तब परमेश्वर की वाणी सुनाई दी, ''और देखो, यह आकाशवाणी हुई, कि यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं अत्यन्त प्रसन्न हूं'' (मत्ती ३:१७)

३. तीसरा, युसुफ और यीशु दोनों ने इस संसार में अपनी सेवकाई तीस वर्ष की आयु में प्रारंभ की।

उत्पत्ति ४१:४६ कहता है, ''जब यूसुफ मिस्र के राजा फिरौन के सम्मुख खड़ा हुआ, तब वह तीस वर्ष का था।'' अर्थात उसने अपने जीवन का मुख्य कार्य तब आरंभ किया। नया नियम हमें बताता है, ''जब यीशु आप उपदेश करने लगा, जो लगभग तीस वर्ष की आयु का था'' अर्थात उन्होंने अपने जीवन का मुख्य कार्य इस संसार में तब आरंभ किया। (लूका ३:२३)

४. चौथा, युसुफ और यीशु दोनों से उनके भाई घृणा करते थे।

हमें उत्पत्ति ३७:८ में बताया गया है,

''तब उसके भाइयों ने उससे कहा, क्या सचमुच तू हमारे ऊपर राज्य करेगा? वा सचमुच तू हम पर प्रभुता करेगा? सो वे उसके स्वप्नों और उसकी बातों के कारण उससे और भी अधिक बैर करने लगे'' (उत्पत्ति ३७:८)

युसुफ के भाई उसे नापसंद करते थे क्योंकि उसके वह अपने पिता का चहेता था, ''सो जब उसके भाईयों ने देखा, कि हमारा पिता हम सब भाइयों से अधिक उसी से प्रीति रखता है, तब वे उससे बैर करने लगे और उसके साथ ठीक तौर से बात भी नहीं करते थे'' (उत्पत्ति ३७:४)। वे युसुफ को नापसंद करते थे और कहते थे, ''क्या सचमुच तू हमारे ऊपर राज्य करेगा?'' (उत्पत्ति ३७:८)। नये नियम में यीशु कहते हैं, ''परन्तु उसके नगर के रहने वाले उस से बैर रखते थे, और उसके पीछे दूतों के द्वारा कहला भेजा, कि हम नहीं चाहते, कि यह हम पर राज्य करे'' (लूका १९:१४)। यीशु यह भी कहते हैं, ''उन्होंने मुझ से व्यर्थ बैर किया'' (यूहन्ना १५:२५)। डॉ जे वर्नान मैगी ने कहा कि, ''युसुफ अपने भाइयों के पास पहुंचता है और वे उसे मारने का षडयंत्र रच रहे होते हैं वह कई रंगों वाला अंगरखा पहने होता है.........जो किसी उच्च पद का सूचक होता है। हमें यह स्मरण रखना चाहिये कि युसुफ उनसे छोटा था पर पद में उंचा था। तो यह बैर और डाह सब बातों की जड़ में होती है जो हत्या का कारण बनती है!'' (मैगी, उक्त संदर्भित, उत्पत्ति पर व्याख्या ३७:१८−२०)

५. पांचवा, युसुफ और यीशु दोनों के विरूद्व उनके भाई योजना बनाते है।

उत्पत्ति ३७:१८ में बताया गया है,

''और ज्योंही उन्होंने उसे (युसुफ) दूर से आते देखा......... तो उसके निकट आने के पहिले ही उसे मार डालने की युक्ति की।''

नये नियम में हम पढ़ते हैं,

''तब महायाजक और प्रजा के पुरिनए काइफा नाम महायाजक के आंगन में इकट्ठे हुए। और आपस में विचार करने लगे कि यीशु को छल से पकड़कर मार डालें।'' (मत्ती २६:३‚४)

६. छटवां, युसुफ और यीशु दोनों चांदी के सिक्कों के बदले बेचे गये।

युसुफ के भाइयों ने उसे गडडे में फेंक दिया था। वहां से जब अरब के व्यापारी निकले तो उन्होंने ''उसे इश्माएलियों के हाथ चांदी के बीस टुकड़ों में बेच दिया'' (उत्पत्ति ३७:२८)

जब यहूदा ने यीशु को धोखा दिया, वह महायाजकों के पास गया, ''यदि मैं उसे (यीशु को) तुम्हारे हाथ पकड़वा दूं तो मुझे क्या दोगे? उन्होंने उसे तीस चान्दी के सिक्के तौलकर दे दिए।'' (मत्ती २६:१५)

७. सांतवा, युसुफ और यीशु दोनों के कपड़े रक्त रंजित थे।

जब युसुफ के भाइयों ने उसे अरब के व्यापारियों को बेच दिया था, ''तब उन्होंने यूसुफ का अंगरखा लिया, और एक बकरे को मार के उसके लोहू में उसे डुबा दिया'' (उत्पत्ति ३७:३१) यीशु प्रभु भी जब क्रूस पर प्राण त्याग रहे थे उनके वस्त्रों को जुए में सिपाहियों ने बांट लिया था।

''जब सिपाही यीशु को क्रूस पर चढ़ा चुके, तो उसके कपड़े लेकर चार भाग किए, हर सिपाही के लिये एक भाग और कुरता भी लिया, परन्तु कुरता बिन सीअन ऊपर से नीचे तक बुना हुआ था; इसलिये उन्होंने आपस में कहा, हम इस को न फाडें, परन्तु इस पर चिट्ठी डालें कि वह किस का होगा'' (यूहन्ना १९:२३)

८. आठवां, यीशु और युसुफ बहुत लंबे समय तक अपने भाइयों से अलग रहें।

डॉ मैगी ने कहा,

''जब युसुफ को मिस्र में बेच दिया गया था वह कई सालों तक लोगों की आंखों से ओझल रहा। मसीह स्वर्ग पर चढाये गये। उन्होंने अपने शिष्यों को कहा कि वे अब से उन्हें नहीं देखेंगे'' − उनके द्वितीय आगमन तक ।

९. नवां, युसुफ और यीशु दोनों ही अंधकार की जगहों पर उतरें।

युसुफ को गुलाम बनाकर मिस्र में बेच दिया गया जो अंधकार और मरण से कम नहीं था। यीशु के शव को सील करके कब्र के अंधकार में दफन कर दिया गया था।

डॉ एम आर देहान ने कहा, ''युसुफ का वस्त्र अलग किया गया और उसे गढढे में मरने के लिये डाल दिया गया। परंतु वह मरने की जगह से बाहर जीवित निकल आया'' − जैसे यीशु ईस्टर की सुबह कब्र में से जीवित निकल आये (एम आर देहान, एम डी, पोर्टेट आँफ क्राईस्ट इन जेनेसिस, जोंदरवन पब्लिशिंग हाउस, १९६६, पेज १७१) । भजनकार दाउद ने कहा था, ''क्योंकि तू मेरे प्राण को अधोलोक में न छोड़ेगा, न अपने पवित्र भक्त को सड़ने देगा'' (भजन १६:१०) शिष्य पतरस ने प्रेरितों २:३१ में कहा था कि यह बात यीशु के लिये कही गई थी। इस तरह, यीशु और युसुफ दोनों अंधकार में गये थे, और उससे बाहर जीवित, निकल आये।

१०. दसवां युसुफ और यीशु दोनों अपने लोगों के लिये मुक्तिदाता हो गये।

जब युसुफ अरबियों को २० चांदी के टुकड़े में बेच दिया गया वह मिस्र देश ले जाया गया। मिस्र में युसुफ और यीशु के बीच की समानतायें बहुत अधिक गहरी हो गयी। डॉ देहान ने कहा,

''युसुफ........मिस्र (इस संसार का चित्रण करता है) देश ले जाया गया वह एक सेवक हो गया (जैसे यीशु हो गये थे) । पोतीपर की पत्नी ने उन पर झूठा इल्जाम लगाकर जेल में डलवा दिया। उसने अपने को बचाने का कोई प्रयास नहीं किया और जेल में वह अपराधियों के साथ गिना गया (जैसे यीशु क्रूस पर अपराधियों के समकक्ष गिने गये थे) । जब युसुफ जेल में अकेला हो गया था वहां वह राजा के रसोइये का मसीहा और राजा के रोटी बनाने वाले का न्यायी ठहरा (प्रतीकात्मक रूप में चित्रण यीशु के समान था जिनके आस पास दो चोर टंगे हुये थे) । वह रसोइया आजाद किया गया, और (बाद में) उसने राजा को युसुफ का नाम सुझाया क्योंकि राजा ने एक बहुत भयानक स्वप्न देखा था। युसुफ को बुलाया गया कि वह फिरौन राजा को उस स्वप्न का अर्थ बता सके (‘सुन, सारे मिस्र देश में सात वर्ष तो बहुतायत की उपज के होंगे। उनके पश्चात सात वर्ष अकाल के आयेंगे, और सारे मिस्र देश में लोग इस सारी उपज को भूल जायेंगे; और अकाल से देश का नाश होगा’ उत्पत्ति ४१:२९‚३०) स्वप्न का अर्थ बताकर युसुफ उंचे स्थान पर पहुंचा'' (देहान, उक्त संदर्भित, पेज १७१)

फिरौन युसुफ से इतना प्रभावित हुआ और उसे यह कहकर ठहराया कि ''ऐसा पुरूष जैसा यह है, जिस में परमेश्वर का आत्मा रहता है'' (उत्पत्ति ४१:३८) उसके पश्चात फिरौन ने युसुफ को प्रधान मंत्री बना दिया फिरौन से एक पद कम का स्थान दिया। बहुतायत के सात वर्षो में युसुफ ने लोगों के लिये अनाज एकत्रित करके रख दिया। तब अगले सात वर्षो का अकाल आरंभ हो चला।

''जब मिस्र का सारा देश भूखों मरने लगा; तब प्रजा फिरोन से चिल्ला चिल्लाकर रोटी मांगने लगी: और वह सब मिस्रियों से कहा करता था, यूसुफ के पास जाओ: और जो कुछ वह तुम से कहे, वही करो। सो जब अकाल सारी पृथ्वी पर फैल गया, और मिस्र देश में काल का भयंकर रूप हो गया, तब यूसुफ सब भण्डारों को खोल खोल के मिस्रियों के हाथ अन्न बेचने लगा। सो सारी पृथ्वी के लोग मिस्र में अन्न मोल लेने के लिये यूसुफ के पास आने लगे, क्योंकि सारी पृथ्वी पर भयंकर अकाल था'' (उत्पत्ति ४१:५५−५७)

इस तरह युसुफ अपने समय के संसार के लोगो के बीच मसीहा कहलाया। डॉ मैगी इसे इस तरह समझाते हैं, ''मैं आपका ध्यान इस सत्य की ओर आकर्षित करना चाहता हूं कि उस समय एकमात्र युसुफ के पास रोटी थी। यहां एक ओर समानता पायी जाती है। यीशु मसीह ने कहा था, 'जीवन की रोटी मैं हूं जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा’'' (यूहन्ना ६:३५) मैगी, उक्त संदर्भित, पेज १६८; उत्पत्ति पर व्याख्या ४१:५४, ५५

''सो सारी पृथ्वी के लोग मिस्र में अन्न (धान्य) मोल लेने के लिये यूसुफ के पास आने लगे, क्योंकि सारी पृथ्वी पर भयंकर अकाल था'' (उत्पत्ति ४१:५७)

संसार के सब देशों के लोग युसुफ से अनाज मोल लेने आने लगे। और यीशु ने भी कहा था कि वें जीवन की रोटी हैं − ''जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा।’' जैसे अकाल में भूखे मरते लोग बचने के लिये रोटी खरीदने युसुफ के पास आये थे वैसे ही आप को बचने के लिये यीशु के पास आना चाहिये। युसुफ ने संसार भर के लोग, जो उसके पास आये उन्हें बचाया। यीशु भी संसार भर के लोग जो उसके पास विश्वास से आते हैं उन्हें बचाते है।

युसुफ के भाइयों ने सुना कि मिस्र में धान्य है। तो जो उनकी आवश्यकता थी वे उसे खरीदने के लिये मिस्र गये। युसुफ ने अपने भाइयों को पहचान लिया, परंतु उन्होंने उसे नहीं पहचाना। युसुफ बहुत लंबे समय से मिस्र में रह रहा था। वह मिस्री वेशभूषा में था। उन्होंने उसे नहीं पहचाना। जब वे दुबारा आये तो युसुफ स्वयं को उनके सामने प्रगट करने के लिये तैयार हो गया।

अब मैं चाहता हूं कि आप बाइबल में से उत्पत्ति ४५:१ निकाल लेंवे। वे भाई जिन्होंने उसे मार ही डाला था, गढढे में फेंक दिया था, और गुलाम बनाकर मिस्र में बेच डाला था। अब वे भाई उसके सामने खड़े थे, वह युसुफ जो समस्त मिस्र का प्रधानमंत्री था। वे अभी नहीं जानते थे कि वह कौन है, पर वह उन्हें जानता था। मैं उत्पत्ति ४५ के प्रथम पांच पद पढने जा रहा हूं। यह संपूर्ण बाइबल के मर्मस्पर्शी पदों में से एक विवरण है। मेरे साथ इसे देखिये।

''तब यूसुफ उन सब के साम्हने, जो उसके आस पास खड़े थे, अपने को और रोक न सका; और पुकार के कहा, मेरे आस पास से सब लोगों को बाहर कर दो। भाइयों के साम्हने अपने को प्रगट करने के समय यूसुफ के संग और कोई न रहा। तब वह चिल्ला चिल्लाकर रोने लगा और मिस्रियों ने सुना, और फिरौन के घर के लोगों को भी इसका समाचार मिला। तब यूसुफ अपने भाइयों से कहने लगा, मैं यूसुफ हूं, क्या मेरा पिता अब तब जीवित है? इसका उत्तर उसके भाई न दे सके; क्योंकि वे उसके साम्हने घबरा गए थे। फिर यूसुफ ने अपने भाइयों से कहा, मेरे निकट आओ। यह सुनकर वे निकट गए। फिर उसने कहा, मैं तुम्हारा भाई यूसुफ हूं, जिस को तुम ने मिस्र आनेहारों के हाथ बेच डाला था। अब तुम लोग मत पछताओ, और तुम ने जो मुझे यहां बेच डाला, इस से उदास मत हो; क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हारे प्राणों को बचाने के लिये मुझे आगे से भेज दिया है’' (उत्पत्ति ४५:१−५)

मेरे साथ इसे देखिये। डॉ मैगी की टिप्पणयों को सुनिये,

(युसुफ) फूट फूटकर रोने लगता है इसे युसुफ के अतिरिक्त कोई नहीं जानता। उसके स्वयं के भाई भी इस समय नहीं जानते...... ऐसे ही वह दिन आ रहा होगा जब प्रभु यीशु मसीह अपने भाइयों, यहूदियों पर स्वयं को प्रगट करेंगे। जब पहली बार उसने स्वयं को प्रगट किया था, ''वह अपने घर आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया’' (यूहन्ना १:११)। और वास्तव में तो उन्होंने उसे क्रूस पर चढ़ा दिया। पर जब वह वह दूसरी बार आता है तो स्वयं को अपने भाइयों के समक्ष प्रगट करता है। ''तब उस से यह पूछा जाएगा, तेरी छाती पर ये घाव कैसे हुए, तब वह कहेगा, ये वे ही हैं जो मेरे प्रेमियों के घर में मुझे लगे हैं’' (जकर्याह १३:६) मसीह अपने भाइयों के सामने स्वयं को प्रगट करेंगे। ''उसी समय दाऊद के घराने और यरूशलेम के निवासियों के लिये पाप और मलिनता धोने के निमित्त एक बहता हुआ सोता होगा’' (जकर्याह १३:१) यह प्रभु यीशु मसीह और उनके भाइयों के मध्य एक पारिवारिक बात होगी। युसुफ द्वारा अपने को अपने भाइयों के सामने प्रगट करने से हमें थोड़ा संकेत मिलता है कि मसीह का प्रकाशन कितना अदभुत होगा जब वह फिर से दुबारा प्रगट होंगे (मैगी, उक्त संदर्भित, पेज १७९, उत्पत्ति ४५:१‚२ पर व्याख्या)

मैं भविष्यवाणी वाले धर्मशास्त्र का पिछले पचास वर्षो से अध्ययन कर रहा हूं। बाइबल सीधे तौर पर उस आने वाले अदभुत दिन संसार के सारे यहूदियों के उद्वार के विषय में कहती है। रोमियों ११:२५‚२६ निकाल लीजिये।

''हे भाइयों‚ कहीं ऐसा न हो‚ कि तुम अपने आप को बुद्धिमान समझ लो: इसलिये मैं नहीं चाहता कि तुम इस भेद से अनजान रहो‚ कि जब तक अन्यजातियां पूरी रीति से प्रवेश न कर लें‚ तब तक इस्त्राएल का एक भाग ऐसा ही कठोर रहेगा। और इस रीति से सारा इस्त्राएल उद्धार पाएगा; जैसा लिखा है‚ कि छुड़ाने वाला सियोन से आएगा‚ और अभक्ति को याकूब से दूर करेगा।’' (रोमियों ११:२५‚२६)

यह एक रहस्य है (मस्टेरियन) जो हम नहीं समझ सकते‚ कि‚ ''तब तक इस्त्राएल का एक भाग ऐसा ही कठोर रहेगा − जब तक (गैर यहूदी मसीही) अन्यजातियां (पूरी रीति) से प्रवेश न कर लें और इस रीति से सारा इस्त्राएल उद्धार पाएगा; जैसा लिखा है‚ कि छुड़ाने वाला सियोन (इज़राइल) से आएगा‚ और अभक्ति को याकूब से दूर करेगा।’' (रोमियों ११:२५‚२६)

''और अभक्ति को याकूब से दूर करेगा।’' (रोमियों ११:२६) मैंने अभी अभी ये शब्द एक बैपटिस्ट पास्टर को पढ़कर सुनाये जो उदारवादी सेमनरी से धर्मविज्ञान की शिक्षा ग्रहण किये हुये थे। उसने कहा‚ ''इसका यह अर्थ नहीं है!’' मैंने उससे कहा कि‚ ''मैं आपको इसका अर्थ नहीं समझा रहा हूं मैंने तो सिर्फ यह वचन आप के सामने पढ़ा है।’' ''और अभक्ति को याकूब से दूर करेगा।’' वचन को वैसा ही रहने दीजिये जैसे वह लिखा है! युसुफ के समान प्रभु यीशु भी आयेंगे‚ खुशी और दुख मिश्रित आंसुओं के साथ‚ ताकि अपने अति प्रिय कहलाये जाने वाले यहूदी भाइयों को गले लगा सके। ''और अभक्ति को याकूब से दूर करेगा।’' यह परमेश्वर का वचन है! इसे पूर्ण होने दीजिये!

यीशु ने अन्यजातियों के भटके हुए लोगों से भी वैसा ही प्रेम किया। वैसे ही युसुफ ने पूरे संसार को जीवन देने वाला अनाज प्रदान किया। ''सो सारी पृथ्वी के लोग मिस्र में अन्न मोल लेने के लिये यूसुफ के पास आने लगे‚ क्योंकि सारी पृथ्वी पर भयंकर अकाल था’' (उत्पत्ति ४१:५७) । यीशु हमारे युसुफ हैं। उनके पास आइये। वह उनके बेशकीमती लहू से आप के सारे पापों को शुद्व करेंगे। वह मरके जीवित होने के द्वारा आप को अनंतकालीन जीवन प्रदान करेंगें। मैं आपसे आग्रह करता हूं‚ यीशु के पास आइये। यीशु पर विश्वास कीजिये। अब केवल उन पर ही विश्वास कीजिये। वह आपको आप के पापों से बचायेंगे। आमीन। डॉ चान निवेदन है कि प्रार्थना में अगुआई कीजिये।


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(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे द्वारा प्रार्थना की गयी।
संदेश के पूर्व बैंजामिन किन्केड गिफिथ ने एकल गान गाया गया:
''व्हॉट ए फ्रेंड वी हेव इन जीजस'' (जोसफ स्किीवेन १८१९−१८८६)


रूपरेखा

युसुफ और यीशु

(उत्पत्ति की पुस्तक पर ८६ वां संदेश)
JOSEPH AND JESUS
(SERMON #86 ON THE BOOK OF GENESIS)

द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

''और परमेश्वर ने यों कहा; कि तेरी सन्तान के लोग पराये देश में परदेशी होंगे, और वे उन्हें दास बनाएंगे, और चार सौ वर्ष तक दुख देंगे। फिर परमेश्वर ने कहा; जिस जाति के वे दास होंगे, उस को मैं दण्ड दूंगा; और इस के बाद वे निकल कर इसी जगह मेरी सेवा करेंगे। और उस ने उस से खतने की वाचा बान्धी; और इसी दशा में इसहाक उस से उत्पन्न हुआ; और आठवें दिन उसका खतना किया गया; और इसहाक से याकूब और याकूब से बारह कुलपति उत्पन्न हुए। और कुलपतियों ने यूसुफ से डाह करके उसे मिसर देश जाने वालों के हाथ बेचा; परन्तु परमेश्वर उसके साथ था। और उसे उसके सब क्लेशों से छुड़ाकर मिसर के राजा फिरौन के आगे अनुग्रह और बुद्धि दी, और उस ने उसे मिसर पर और अपने सारे घर पर हाकिम ठहराया। तब मिसर और कनान के सारे देश में अकाल पडा; जिस से भारी क्लेश हुआ, और हमारे बाप दादों को अन्न नहीं मिलता था। परन्तु याकूब ने यह सुनकर, कि मिसर में अनाज है, हमारे बाप दादों को पहिली बार भेजा। और दूसरी बार यूसुफ अपने भाइयों पर प्रगट को गया, और यूसुफ की जाति फिरौन को मालूम हो गई। तब यूसुफ ने अपने पिता याकूब और अपने सारे कुटुम्ब को, जो पछत्तर व्यक्ति थे, बुला भेजा।'' (प्रेरितों ७:६−१४)

१. प्रथम, युसुफ का जन्म और यीशु का जन्म दोनों चमत्कार ही थे,
उत्पत्ति ३०:१, २२−२४; लूका १:३५

२. दूसरा, युसुफ और यीशु अपने पिता के विशेष प्रेम पात्र थे,
उत्पत्ति ३७:३; मत्ती ३:१७

३. तीसरा, युसुफ और यीशु दोनों ने इस संसार में अपनी सेवकाई तीस वर्ष की आयु में प्रारंभ की, उत्पत्ति ४१:४६; लूका ३:२३

४. चौथा, युसुफ और यीशु दोनों से उनके भाई घृणा करते थे, उत्पत्ति ३७:८, ४; लूका १९:१४; यूहन्ना १५:२५

५. पांचवा, युसुफ और यीशु दोनों के विरूद्व उनके भाई योजना बनाते है,
उत्पत्ति ३७:१८; मत्ती २६:३‚४

६. छटवां, युसुफ और यीशु दोनों चांदी के सिक्कों के बदले बेचे गये,
उत्पत्ति ३७:२८; मत्ती २६:१५

७. सांतवा, युसुफ और यीशु दोनों के कपड़े रक्त रंजित थे, उत्पत्ति ३७:३१;
यूहन्ना १९:२३

८. आठवां, यीशु और युसुफ बहुत लंबे समय तक अपने भाइयों से अलग रहें,

९. नवां, युसुफ और यीशु दोनों ही अंधकार की जगहों पर उतरें, भजन १६:१०;
प्रेरितों २:३१

१०. दसवां, युसुफ और यीशु दोनों अपने लोगों के लिये मुक्तिदाता हो गये,
उत्पत्ति ४१:२९, ३०, ३८, ५५−५७; यूहन्ना ६:३५; उत्पत्ति ४५:१−५;
यूहन्ना १:११; जकर्याह १३:६, १; रोमियों ११:२५‚ २६; उत्पत्ति ४१:५७