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मार्ग सच्चाई और जीवन

THE WAY, THE TRUTH, AND THE LIFE
(Hindi)

द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

रविवार की सुबह, १५ नवंबर, २०१५ को लॉस ऐंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल
में किया गया प्रचार किया गया संदेश
A sermon preached at the Baptist Tabernacle of Los Angeles
Lord's Day Morning, November 15, 2015

''यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।'' (यूहन्ना १४:६)


जब हम यूहन्ना का १३ और १४ वां अध्याय पढते हैं तो पाते हैं कि चेले आत्मिक रूप से कितने अंधे थे। वे यीशु के साथ पिछले तीन वर्षो से थे और अभी तक अंधे थे। उन्होंने बीमारों को अच्छा किया था दुष्टात्माओं को निकाला था तो भी वे अभी तक अंधे थे। मुझे आश्चर्य होता है कि लोग चार सुसमाचार पढते हैं लेकिन अभी तक इस बात को समझ नहीं पाते हैं! यीशु ने उन्हें बार बार बताया कि वह कूस पर चढाये जायेंगे वह मारे जायेंगे वह पुर्नजीवित होंगे।

''फिर उस ने बारहों को साथ लेकर उन से कहा; देखो, हम यरूशलेम को जाते हैं, और जितनी बातें मनुष्य के पुत्र के लिये भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा लिखी गई हैं वे सब पूरी होंगी। क्योंकि वह अन्यजातियों के हाथ में सौंपा जाएगा, और वे उसे ठट्ठों में उड़ाएंगे; और उसका अपमान करेंगे, और उस पर थूकेंगे। और उसे कोड़े मारेंगे, और घात करेंगे, और वह तीसरे दिन जी उठेगा। और उन्होंने इन बातों में से कोई बात न समझी: और यह बात उन में छिपी रही, और जो कहा गया था वह उन की समझ में न आया'' (लूका १८:३१−३४; मत्ती १२:३८−४२; १६:२१−२३; १७:२२−२३; २०:१७−१९ मरकुस १०:३२−३४)

उनके चेले यह मूलभूत सत्य नहीं समझ सके। ''जो कहा गया था वह उन की समझ में न आया'' वे सुसमाचार को नहीं समझे! हम देखते हैं कि यीशु अपने शिष्यों के साथ अंतिम भोज कर रहे हैं। उसके ठीक अगले दिन वह कूस पर चढाये जाने वाले हैं। तौभी सुसमाचार के सबसे सरलतम रूप को भी ये चेले अंधे बने रहकर पहचान नहीं सके!

अंतिम भोज के पश्चात यीशु चेलों के पैर धो रहे हैं। पतरस उनसे कहते हैं, ''तू मेरे पांव कभी न धोने पाएगा।'' यीशु उत्तर देते हैं, ''यदि मैं तुझे न धोऊं, तो मेरे साथ तेरा कुछ भी साझा नहीं।'' तब पतरस कहते हैं, ''हे प्रभु, तो मेरे पांव ही नहीं, वरन हाथ और सिर भी धो दे'' (यूहन्ना १३:८−९) । वे इस कार्य के द्वारा दीन बनने की आवश्यकता है यह बात नही समझे। (१३:१४−१७) । उसके बाद यहूदा चेलो से अलग होकर यीशु के साथ धोखा करने के लिये निकल जाता है (१३:३०) । तब पतरस यीशु से पूछते हैं, ''प्रभु आप किधर जाते हैं'' प्रभु पतरस को उत्तर देते हैं कि वह अभी उनके पीछे नहीं आयेंगे लेकिन बाद में प्रभु के पीछे हो लेंगें (यूहन्ना १३:३६) । तब पतरस को यह विचार ही नहीं आया कि यीशु अपने स्वर्ग पर पुन: लौट जाने के विषय में बोल रहे हैं। तब पतरस बिना समझे बोल पडते हैं, ''मैं तो तेरे लिये अपना प्राण दूंगा'' (यूहन्ना १३:३७) । तब यीशु कहते हैं, ''कि मुर्ग बांग न देगा जब तक तू तीन बार मेरा इन्कार न कर लेगा'' (यूहन्ना १३:३८) । उसके पश्चात यीशु का यह भी कथन था कि, ''मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूं'' (यूहन्ना १४:२) । तब भी चेलो को विचार नहीं आया कि वह स्वर्ग जाने के विषय में बोल रहे हैं। थोमा नामक शिष्य बिना समझे बोलते हैं, ''हे प्रभु, हम नहीं जानते तू कहां जाता है तो मार्ग कैसे जानें?'' (यूहन्ना १४:५) । जैसा कि मैंने पहले कहा कि यीशु के चेले इस साधारण सत्य के विषय में बिल्कुल अनभिज्ञ थे। उनके इस अंधत्व के विषय में स्कोफील्ड कहते हैं,

हमारे नये जन्म लेने की आवश्यकता इस बात में से निकल कर आती है कि एक संसारी मनुष्य परमेश्वर के राज्य में ''प्रवेश करने'' और ''देखने के लिये'' असक्षम रहता है यद्यपि वह कितना ही प्रतिभावान, नैतिक, अथवा सुसंस्कृत हो तौभी संसारी व्यक्ति आध्यात्मिक सत्यों के प्रति, अंधा ही बना रहता है वह परमेश्वर राज्य में प्रवेश के लिये असक्षम ही बना रहता है। वह स्वयं अपने प्रयासों से आज्ञाकारी, समझ रखने वाला, और परमेश्वर को प्रसन्न करने योग्य नहीं होता है।

मैं इस कथन से पूर्णत: सहमत हूं। जो मनुष्य मन नहीं फिराता वह ''अपने अपराधों और पापों के कारण मरे'' के समान है (इफिसियों २:१) । स्कोफील्ड की व्याख्या कहती है, ''संसारी मनुष्य आध्यात्मिक सत्यों के प्रति अंधा ही बना रहता है।'' यही दशा यीशु के कूस पर चढाये जाने के समय तक उनके शिष्यों की थी। उन्होंने तीन वर्षो तक यीशु का अनुसरण किया उसके उपरांत भी वे आध्यात्मिक रूप से अंधे ही बने रहे! क्योंकि,

''परन्तु शारीरिक मनुष्य परमेश्वर के आत्मा की बातें ग्रहण नहीं करता, क्योंकि वे उस की दृष्टि में मूर्खता की बातें हैं, और न वह उन्हें जान सकता है क्योंकि उन की जांच आत्मिक रीति से होती है।'' (१ कुरूंथियों २:१४)

यीशु के शिष्य अपरिवर्तित दशा में आध्यात्मिक रूप में मृतक ही रहे जब तक कि ईस्टर रविवार की संध्या को यीशु पुर्नजीवित होकर उन्हें दर्शन नहीं देते हैं! कोई कहेगा, ''ऐसा कहां लिखा है?'' इन स्वधर्म त्याग के दिनों में हम मन फिराने के प्रति कितने अंधे बने हुये हैं! चारों सुसमाचारों के अंत में यह लिखा हुआ है! (यूहन्ना २०:१९−२२; लूका २४:३६−४५) मुझे यह देखकर धक्का लगता है कि अनेक प्रचारक आज भी इस साधारण से सत्य के प्रति अनभिज्ञ बने हुये हैं! इसलिये इसमें कोई आश्चर्य ही बात नहीं कि वे सुसमाचार प्रचार नहीं करते हैं! अब सुसमाचार प्रचार करने वाले प्रचारकों के बारे में सुनने को बहुत कम मिलता है! हम उनके बारे में सुना करते थे। विशेषकर अमेरिका में तो इसकी बहुत आवश्यकता है! पर अब उनके बारे में सुनाई नहीं पडता, कम से कम अमेरिका में तो नहीं! मुझे लगता है अनेक प्रचारक इतने ही अंधे हैं जैसे शिष्य थोमा ने कहा था, ''जब तक मैं उस के हाथों में कीलों के छेद न देख लूं, और कीलों के छेदों में अपनी उंगली न डाल लूं, और उसके पंजर में अपना हाथ न डाल लूं, तब तक मैं प्रतीति नहीं करूंगा'' (यूहन्ना २०:२५) थोमा भी बाकि अन्यों के ही समान था। थोमा अविश्वासी था, उसने मन नहीं फिराया था, वह एक भटका हुआ इंसान था। इसी भटके हुये इंसान थोमा ने यीशु से पूछा था, ''हे प्रभु, हम नहीं जानते कि तू कहां जाता है (कहां जा रहा है) तो मार्ग कैसे जानें?'' (यूहन्ना १४:५)

यीशु थोमा और अन्य चेलों से गुस्सा नहीं हैं। थोमा ने स्वर्ग के विषय में प्रश्न उठाये थे और वहां प्रवेश का मार्ग पूछा था। यीशु उसे बताते हुये उत्तर देते हैं,

''मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता'' (यूहन्ना १४:६)

मैं संदेश का शेष भाग राबर्ट मरे मैकचेनेये (१८१३−१८४३) से ले रहा हूं जो एक महान स्काटिश प्रचारक थे और २९ वर्ष की आयु में मरने के पूर्व अपने चर्च में आत्मिक जागरण देख पाये थे। राबर्ट मरे मैकचेनेये का कथन था, ''इस संदर्भ में (यूहन्ना १४:६) सुसमाचार द्वारा उद्वार पाने का एक पूर्ण विवरण है तो चलिये इसके अलग अलग भागों पर जायें।''

१. प्रथम, परमेश्वर तक पहुंचने के लिये मसीह एक मार्ग हैं।

यीशु स्वयं स्वर्ग जाने का एक मार्ग हैं। यह लेख विशेषण में लिख हुआ है, ''मैं ही मार्ग हूं'' न केवल यीशु हमें परमेश्वर तक जाने का मार्ग दिखाते हैं लेकिन − वह ही मार्ग हैं। और कोई दूसरा मार्ग नहीं है! केवल यीशु आपको परमेश्वर तक ला सकते हैं!

जब मैं बारह वर्ष का था तब मेरी मां मुझे कार में फिनिक्स ऐरीजोना से कैनेडा ले गयी थी। जब हम शिकागो में पहुंचे तब तब मां ने पुलिस वाले से पूछा कि कौन से राजमार्ग को लेना है। उसने उन्हें यू टर्न लेने को कहा। उसने बताया कि वही रास्ता है। हम एक घंटे तक कार में चलते रहे लेकिन मैंने ध्यान दिया, कि रास्ते में मुझे वही परिचित चीजें दिखाई दे रही थी, जो मैंने पहले भी देखी थी। मैंने कहा, ''मां ऐसा लगता है हम वापस जा रहे हैं उसी रास्ते से जिससे हम आये थे।'' वह मार्ग से उतर आयीं और वहां एक टैक्सी कैब खडी थी उससे पूछा। मां ने उससे पूछा, ''हम पूर्वी शिकागो से टोरंटो जा रहे हैं तो क्या हम सही रास्ते पर हैं?'' टैक्सीड्राइवर के मुंह में से एक तरफ सिगरेट लटक रही थी। उसने कहा, ''महोदया आप बिल्कुल गलत रास्ते पर आ गयी हैं! आप को तो उस रास्ते पर जाना था!'' उसने उसी तरफ इशारा किया जहां से हम पहले से चले आ रहे थे। तब हम मुडे और वापस उसी ओर निकले जहां से अभी तक का रास्ता पार किया था! पुलिस वाले ने हमें गलत निर्देश दिये थे। हम सब गलत रास्ते पर जा रहे हैं जब तक कि हमारे रास्ते में यीशु नही आते हैं पुराने समय की कहावत है, ''सभी रास्ते रोम की ओर जाते हैं।'' आज के समय में कहा जाता है कि, ''सारे मार्ग नर्क के रास्ते पर जाते हैं'' एकमात्र यीशु परमेश्वर तक पहुंचने का एक ही मार्ग हैं!

राबर्ट मैकचेनेये का कथन था, ''यीशु ने आदम के बेचारे पुत्रों पर दया की तो परमेश्वर तक स्वर्ग पहुंचने का मार्ग खोज रहे थे और यीशु स्वयं स्वर्ग छोड कर नीचे उतर आये ताकि उनके लिये परमेश्वर तक स्वर्ग पहुंचने का रास्ता खोल दें। उन्होंने ऐसा किस प्रकार किया? ....... वह हमारे जैसे मनुष्य बने। हमारे पापों को अपने उपर ले लिया। उनके लहूलुहान शरीर द्वारा, बडे से बडा अपराधी भी अब परमेश्वर के स्वर्ग में, प्रवेश करने के योग्य कहलाया और वह सदैव जीवित रहेगा। यीशु के पास शीघ्र आइये, और संदेह मत कीजिये; क्योंकि वह कहते हैं कि ‘मैं ही मार्ग’ हूं।''

''पापियों की प्रार्थना दोहराने से'' आप पिता के पास नहीं आ सकते। अच्छा जीवन जीने से यह संभव नहीं है। कुछ पाप त्याग देने से यह संभव नहीं है। यीशु के बारे में कही गई चीजों पर विश्वास करके भी यह संभव नहीं है।

राबर्ट मैकचेनेये ने पूछा, ''तो मेरे मित्रों आपके लिये कौनसा मार्ग है परमेश्वर के पास आने का? मसीह कहते हैं, ‘मैं ही वह मार्ग हूं......बिना मेरे कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता’ तो, अगर अपने द्वारा किये गये प्रयासों को ही जारी रखेंगे − चाहे वह अपने आप को और अधिक सुधारने से संबंधित हो‚ या ऐसी आशा करने से हो कि परमेश्वर अधिक कठोर नहीं होंगे − अगर आप को चेताया नहीं गया‚ तो न्याय के समय आप अपने आप को नर्क की आग में पायेंगे।''

मसीह के पास आने के द्वारा आप को पिता के पास आना चाहिये। आप के बचने का और कोई उपाय नहीं है ''परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में भी एक ही बिचवई है‚ अर्थात मसीह यीशु जो मनुष्य है'' (१ तीमुथियुस २:५)

२. दूसरा मसीह ही सत्य है।

''यह नहीं कहा जा सकता कि एक अपरिवर्तित व्यक्ति सत्य को जानता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि एक अपरिवर्तित व्यक्ति और बहुत से सत्यों को जानता है। वह गणित के सत्य को जानता है − वह ऐसे अनेक आम सत्यों को जानता होगा; तौभी अभी यह नहीं कहा जा सकता कि एक अपरिवर्तित व्यक्ति सत्य को जानता है‚ क्योंकि मसीह वह सत्य हैं'' − राबर्ट मरे मैकचेनेये का यह कथन था।

मेरे दो अंकल थे दोनो ही बहुत अच्छे पाठक थे। मेरे दो अंकल थे दोनो ही बहुत अच्छे पाठक थे। द्वितीय विश्व युद्व के समय जब टेलीविजन नहीं था तब कई लोग खूब पढा करते थे। लोगों के लिये उन दिनों में किताबें पढना मामूली बात हुआ करती थी। ये दो अंकल तो और लोगों की तुलना में कहीं अधिक किताबें पढा करते थे। जबकि उन दिनों में आज की तुलना में कहीं अधिक किताबें पढी जाती थी।

उनमें से एक अंकल का नाम था पोर्टर − राबर्ट पोर्टर एलियट। पर हर कोई उन्हें उनके मध्य नाम से ही पुकारता था‚ पोर्टर। वह पहले सेना में हुआ करते थे‚ पर अब वह मैकेनिक थे‚ और एक ब्रेक शॉप सेंटा मोनिका में कार्यरत थे। वह हमेशा ही पढते रहते थे। काम से अवकाश के समय दोपहर के भोजन के बाद जब वह टी वी भी देख रहे होते थे तब भी नीचे देखकर किताब पढते रहते थे। वह हत्या की पहेलियां जैसी किताबें अगाथा किस्टी के उपन्यास जैसी सामग्री पढा करते थे। लेकिन उनकी पसंदीदा पुस्तकें विज्ञान और उस पर आधारित काल्पनिक कहानी हुआ करती थी। वास्तव में उनके पास विज्ञान और उस पर आधारित काल्पनिक कहानी की सैकडों पुस्तकें थी। वह पास्तविक विज्ञान के बारे में बहुत सारी बातें जानते थे‚ और इससे भी अधिक विज्ञान की कपोल काल्पनिक कहानियों के बारे में जानते थे। वह डारविन के क्रमिक विकास में बहुत ज्यादा विश्वास करने वाले थे। वह इस पर घंटों तक बात कर सकते थे।

एक रविवार की सुबह मै उन्हें हमारे चर्च आता देख बडा चकित हुआ। वह बडी शांति से पीछे बैठकर मेरा प्रचार सुनते रहे। बाद में मैंने उन्हें आने के लिये धन्यवाद दिया। उन्होने कहा कि मेरा संदेश बहुत अच्छा था। उसके बाद वह प्रत्येक रविवार चर्च आने लगे। आखिरकार कई सप्ताह बाद मैने उन्हें मसीही बनने के लिये कहा। उन्होंने मुझे बहुत ध्यान से सुना और मैं उन्हें मसीह के मैं उन्हें मसीह के उपर विश्वास दिलवाने में आगे लेकर चला। मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था! वह इतने निरुत्साही और विद्वान व्यक्ति थे कि मैं एक बच्चे के रूप में उनसे बोलते हुये डर रहा था। वह कुछ कुछ हंफरे बोगार्ट जैसे दिखते थे और मोटे कांच का चश्मा पहनते थे। पर जब वह परिवर्तित हुये तो वह मुस्कुराये और उन्होंने हमारे यहां के जवानों के साथ बिल्कुल अलग अंदाज में बातें की। फिर वह मुझसे मसीही साहित्य के बारे में पूछने लगे। मैंने उन्हें क्रमिक विकास के विरूद्व लिखी एक बडी‚ मोटी पुस्तक थमाई। उन्होंने उसे बडे चाव से पढी। अगले रविवार उन्होंने मुझसे और अधिक पुस्तकें चाहीं। मैंने उन्हें चालीस या पचास पुस्तकों के ढेर से लाद दिया। उन्होंने वह सब पढ डाली और उनमें से तो कुछ दो या तीन बार पढ डाली। उन्होंने फिर हत्या संबंधी जासूसी साहित्य व विज्ञान की कपोल काल्पनिक कहानी फिर नहीं पढी। मैंने उन्हें बपतिस्मा दिया था और वह चर्च के एक बहुत विश्वसनीय सदस्य बन गये थे। मिसिस सैली कुक अंकल पोर्टर को बहुत अच्छे से जानती हैं। फिर हार्ट अटैक से बाद में उनका देहांत हो गया था।

राबर्ट पोर्टर एलियट के साथ क्या घटा था? वह विज्ञान और उस पर आधारित काल्पनिक कहानी व क्रमिक विकास से क्यों मुड गये? सीधी सी बात थी − उन्हें प्रभु यीशु मसीह मिल गये थे! अब उन्हें कपोल कथाओं की आवश्यकता नहीं थी। उन्हें सत्य मिल चुका था अर्थात − यीशु‚ जिन्होंने कहा था‚ ''मैं मार्ग सच्चाई और जीवन हूं'' अंकल पोर्टर उन लोगों में से प्रथम होंगे जिनसे मैं स्वर्ग में मिलूंगा! उन्हें यीशु ने बचा लिया‚ जो संपूर्ण सत्य की चाबी हैं!

मेरे दूसरे मामा जो मां के बडे भाई थे उनका नाम था ल्यॉड फ्लाउअर जूनियर। वह द्वितीय विश्व युद्व के समय अमेरिकी सेना में थे। अंकल पोर्टर के समान अंकल ल्योड भी खूब अच्छे पाठक थे। वह विशेषकर मैटाफिजिक्स और पूर्वी धर्मो से संबंधित पुस्तकों के पढने में रूचि रखते थे। जहां भी जाते उनके साथ ऐसी ही कोई पुस्तक हाथ में होती। वह एक बागबान थे परंतु उनके पास हमेशा पिरामिड‚ चित्रलिपि से संबंधित और पूर्वी धर्मो से संबंधित पुस्तकें मौजूद होती थी। वह मेरे मित्र थे मैं उन्हें घंटों पिरामिड और पूर्वी धर्मो से संबंधित बातें करते सुना करता था। हांलाकि मैंने चाहा कि वह बाइबल पढें लेकिन उन्होंने इसमें बिल्कुल भी कोई रूचि नहीं दिखाई। वह भी एकाएक आये हार्ट अटैक से मर गए। पर अंकल पोर्टर के समान नहीं‚ ल्यॉड अंकल बिना मसीह प्रभु को स्वीकारें मरे। वह मुझसे अक्सर कहा करते थे कि मैं सत्य की खोज कर रहा हूं। परंतु सत्य को कभी पाया नहीं। उन्होंने यीशु को कभी नहीं पाया जो संपूर्ण सत्य के मूर्त रूप थे! दुख की बात यह होगी कि जब मैं स्वर्ग पहुंचुंगा मैं अंकल ल्यॉड को नहीं देख पाउंगा − क्योंकि मैं जानता हूं कि वे वहां नहीं होंगे क्योंकि यीशु ने कहा था‚ ''मैं ही ......... सच्चाई हूं.........बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता'' (यूहन्ना१४:६) अंकल ल्यॉड नर्क में हैं।

मेरे कौन से अंकल आप के समान हैं? क्या आप पोर्टर अंकल के समान है‚ जिन्होंने यीशु में सत्य को पाया? या आप ल्यॉड के समान हैं जिन्होंने कभी मसीहा को नहीं पाया?

३. तीसरा मसीह जीवन हैं।

राबर्ट मैकचेनेये का कहना था‚ ''धर्मशास्त्र और अनुभव दोनों समान रूप से गवाही देते हैं कि हम अपराध और पापों के कारण मरे हुये हैं........यह सच है‚ कि जो पाप के कारण मरे हुये हैं वे नहीं जानते कि वे मरे हुए हैं। यद्यपि जब पवित्र आत्मा आप को आपके मृत व पापमयी जीवन के बारे में बोध करवायेगा तो आप जान जायेंगे......क्या आप ने कभी परमेश्वर की सब आज्ञाओं को मानने का प्रयास किया है‚ क्या आप ने पाप भरे विचारों को नहीं सोचने का प्रयास किया है‚ क्या आप ने लालचीपन और पाप को अपने से दूर रखने का प्रयास किया है − जब जब आप ने ये सब प्रयास किये हैं‚ तो क्या आप को ऐसा करना मुश्किल नहीं लगा? यह तो मानों मुरदे को जीवित करने जितना कठिन है! सचमुच सीधी सी बात है − कि आप मृत है − और आप का नया जन्म नहीं हुआ है! आप को नया जन्म लेना आवश्यक है। आप को मसीह से मिलना परम आवश्यक है‚ क्योंकि मसीह ही जीवन है।''

क्या आप की आत्मा मुरझाई हुई शाख के समान है − सूखी‚ फलविहीन और मृत? यीशु के पास आइये! उन पर विश्वास कीजिये। उनके लहू से शुद्व हो जाइये। उनके पुर्नरूत्थान से आप भी आत्मिक रूप से जीवित हो जाइये। तब आप जानेंगे कि आप का जीवन मसीह में है! आप भी शिष्य पौलुस के समान कह उठेंगे‚ ''मैं तो केवल उस विश्वास से जीवित हूं‚ जो परमेश्वर के पुत्र पर है‚ जिस ने मुझ से प्रेम किया‚ और मेरे लिये अपने आप को दे दिया'' (गलातियों २:२०) । यीशु कहते हैं‚

''मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता'' (यूहन्ना १४:६)

वह ऐसा कैसे कह सकते थे? क्योंकि यह सत्य है। यीशु ही एकमात्र परमेश्वर के पुत्र हैं। वह ही एकमात्र जन थे जो हमारे पापों का दंड चुकाने के लिये कूस पर मरे। वह ही एकमात्र जन थे जो मर कर पुर्नजीवित हुये। इसलिये ''बिना (उनके) कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।'' मैं प्रार्थना करता हूं कि आज सुबह आप यीशु पर विश्वास लायेंगे और उनके कीमती लहू से आप के पाप धुलकर शुद्व हो जायेंगे!

''दुखी पुरूष'' कैसा नाम
   परमेश्वर के पुत्र का जो है आया
नष्ट होते पापियों को बचाने!
   हैलीलुयाह! कितने अदभुत मसीहा!

मेरे स्थान पर शर्म व उपहास सहते हुये‚
   मेरे स्थान पर दंडित खडे हुये;
मेरी क्षमा अपने लहू से सुरक्षित कर दी;
   हैलीलुयाह! कितने अदभुत मसीहा!
(''हैलीलुयाह‚कितनेअदभुतमसीहा!''फिलिपपी ब्लिस‚ १८३८−१८७६)

डॉ चान कृपया प्रार्थना में निवेदन कीजिये


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(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे द्वारा धर्मशास्त्र से पढा गया: यूहन्ना १४:१−६
संदेश के पूर्व बैंजामिन किन्केड गिफिथ द्वारा एकल गान गाया गया:
''फॉर आँल माय सिन'' (नार्मन क्लेटन, १९४३) .


रूपरेखा

मार्ग सच्चाई और जीवन

THE WAY, THE TRUTH, AND THE LIFE

द्वारा डॉ.आरएल.हिमर्स
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

''यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।'' यूहन्ना १४:६)

(लूका१८:३१−३४; यूहन्ना१३:८‚९‚१४−१७‚३०‚३६‚३७‚३८;
यूहन्ना १४:२‚५; इफिसियों२:१; १कुरूंथियों२:१४;
यूहन्ना २०:१९−२२; लूका २४:३६−४५; यूहन्ना २०:२५; १४:५)

१. प्रथम, परमेश्वर तक पहुंचने के लिये मसीह एक मार्ग हैं‚
यूहन्ना १४:६अ; १तिमोथी २:५

२. दूसरा मसीह ही सत्य है‚ यूहन्ना १४:६ब

३. तीसरा मसीह जीवन है‚ यूहन्ना १४:६स; गलातियों २:२०