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आत्मिक जागरण के महान सिद्वांत

(आत्मिक जागरण पर संदेश संख्या २०)
THE GREAT DOCTRINES OF REVIVAL
(SERMON NUMBER 20 ON REVIVAL)
(Hindi)

द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

रविवार की सुबह, ६ सितंबर, २०१५ को लॉस ऐंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल में
प्रचार किया गया संदेश
A sermon preached at the Baptist Tabernacle of Los Angeles
Lord’s Day Morning, September 6, 2015

''हे प्रियो, जब मैं तुम्हें उस उद्धार के विषय में लिखने में अत्यन्त परिश्रम से प्रयत्न कर रहा था, जिस में हम सब सहभागी हैं; तो मैं ने तुम्हें यह समझाना आवश्यक जाना कि उस विश्वास के लिये पूरा यत्न करो जो पवित्र लोगों को एक ही बार सौंपा गया था। क्योंकि कितने ऐसे मनुष्य चुपके से हम में आ मिले हैं, जिन के इस दण्ड का वर्णन पुराने समय में पहिले ही से लिखा गया था: ये भक्तिहीन हैं, और हमारे परमेश्वर के अनुग्रह को लुचपन में बदल डालते हैं, और हमारे अद्वैत स्वामी और प्रभु यीशु मसीह का इन्कार करते हैं'' (यहूदा ३, ४)


शिष्य यहूदा प्रभु यीशु मसीह का चचेरा भाई था। उसने सामान्य तौर पर उद्वार के विषय पर लिखने का सोचा था। किंतु जब उसने लिखना आरंभ किया तो पवित्र आत्मा उन्हें अन्य विषयों की ओर ले गया। उनने यह सुना था कि कुछ लोग चर्च में झूठी शिक्षा लेकर आ रहे हैं। इसलिये उन्होंने विषय बदलकर उनसे कहा ''कि विश्वास की अच्छी कुश्ती लडो।'' उन्होंने सिखाया कि बाइबल की सच्ची शिक्षाओं की रक्षा करो। उनको डटकर विश्वास की रक्षा करना है − एपागोनीजेस्थाई− अर्थात हद से भी बढकर मसीहत की शिक्षाओं की रक्षा करना है!

ये शब्द सदा काल के लिये महत्वपूर्ण हैं! हम उस युग में रह रहे हैं जब अमेरिका और यूरोप में चर्च मरणासन्न अवस्था में हैं। ३० साल की उम्र आते आते ८० प्रतिशत जवान चर्च छोड देते हैं। पास्टर्स के पास कोई ऐसा विचार नहीं हैं कि इन जवानों को इस संसार से कैसे लौटा लायें। डॉ कार्ल एफ एच हैनरी ने जो लिखा उसको पहली बार जब मैंने पढा तो मेरी मानो सांसे थम गई।

हमारी पीढी ने परमेश्वर की सच्चाई को आत्मिक प्रकाशन की सत्यता को परमेश्वर की इच्छा के सारांश को उनके द्वारा छुटकारा दिये जाने के बल को उनके वचनों की शक्ति को खो दिया है। इस नुकसान के एवज में (हम) तेजी से मूर्तिपूजा की ओर बढते जा रहे हैं...वह सभ्यता जो पहले ही निःशक्त हो चुके चर्च की छाया में चुपके से प्रवेश कर चुकी है। (कार्ल एफ एच हैनरी, टी एच डी, पी एच डी, ''दि बारबेरियंस आर कमिंग,'' टवीलाइट आफ ए ग्रेट सिविलाइजेशन: दि ड्रिफ्ट टूवर्ड ग्रेट नियो पैगेनिज्म‚ क्रासवे बुक्स, १९८८‚ पेज १५‚ १७)

पिछले ४० वर्षो से मैं प्रयास कर रहा हूं कि इस प्रकार के चर्च की रचना करूं जहां जवान लोगों को इस कुचले हुए, एकाकी, हताश शहर के निरर्थक वातावरण से विश्राम मिले। हमारे चर्चेस आज निर्जीव अवस्था में है और वे हमारे जवान लोगों की कोई मदद नहीं कर पा रहे हैं − और आप जानते हैं कि मैं सही कह रहा हूं! डॉ मार्टिन ल्योड जोंस ने कहा था‚ ''चर्च में पिछले (१५०) वर्षो से बढता हुआ भयावह स्वधर्म त्याग चर्च का एक लक्षण हो गया।'' (मार्टिन ल्योड जोंस‚ एम डी‚ रिवाईवल‚ क्रासवे बुक्स‚ १९८७‚ पेज ५५)

मैं आपसे कहता हूं‚ ''अकेले क्यों रहना? घर आइये − अर्थात चर्च आइये! क्यों भटके हुए रहना? घर आइये − अर्थात यीशु मसीह, परमेश्वर के पुत्र के पास आइये।'' जब तक परमेश्वर के द्वारा भेजी गई आग चर्च को प्रेरित न करे तब तक मैं आपसे कह नहीं सकता! जी हां! परमेश्वर प्रदत्त आग आत्मिक जागरण लाती है! यही हमें चाहिये! इसकी हमें घोर आवश्यकता है! पवित्र आत्मा द्वारा भेजा गया आत्मिक जागरण − इस चर्च को परमेश्वर के लिये प्रज्जवलित रहना है!!! ऐसा हो सके इसके लिये नींव डालने की आवश्यकता है‚ जो हमसे चाहा गया है हमें वह अवश्य करना है कि ''उस विश्वास के लिये पूरा यत्न करो जो पवित्र लोगों को एक ही बार सौंपा गया था।'' (यहूदा ३) यह विश्वास वह नींव है जिस के आधार पर हम आत्मिक जाग्रति की आशा कर सकते हैं।

मार्टिन ल्योड जोंस ने आत्मिक जागरण पर एक महानतम आधुनिक पुस्तक लिखी उसमें उन्होंने लिखा था‚

कोई भी आत्मिक जागरण चर्च के इतिहास में जाना नहीं गया है जो कुछ विशेष सत्यों का इंकार करे। मैं इसे मानता हूं आश्चर्यजनक रूप से प्रभावशाली व महत्वपूर्ण बिंदु मानता हूं। आपने ऐसे किसी आत्मिक जागरण के बारे में नहीं सुना होगा जो चर्च के प्रधान और मसीही विश्वास के लेखों का इंकार करे। आपने त्रिएकत्व विरोधी के यहां कभी भी आत्मिक जागरण के बारे में नहीं सुना होगा क्योंकि वहां कभी जाग्रति फैली ही नहीं। यह इतिहास का एक वास्तविक सत्य है। (ल्योड जोंस‚ पूर्वोक्त‚ ३५)

मार्टिन ल्योड जोंस ने कहा था‚ ''बिना किसी एक भी अपवाद के ये प्रधान शिक्षाओं का पुर्नप्रकाशन है जिन्होंने आखिरकार पुर्नजागरण को जन्म दिया...... इसलिये मैं इन सत्यों पर जोर दे रहा हूं कि ऐसे कुछ विशेष सत्य हैं जो आत्मिक जागरण के लिये बिल्कुल आवश्यक है और अगर इन सत्यों का इंकार किया जाता है‚ इनकी उपेक्षा की जाती है‚ या अवज्ञा की जाती है‚ तो हमें आत्मिक जागरण की आशिष पाने का कोई अधिकार नहीं है।'' (पूर्वोक्त पेज ३५‚ ३६‚ ३७) ल्योड जोंस ने उन बडी शिक्षाओं की सूची सौंपी है।

१. अगर हम चाहते हैं तो हमें जीवित परमेश्वर की प्रभु सत्ता के लिये दृढ़तापूर्वक कहना आवश्यक है।

यह वह परमेश्वर है जो मसीहत के इतिहास में कार्य करता है। भले ही लोगो की कितनी ही गलत धारणायें हों लेकिन जैसा शिष्य पौलुस कहते हैं‚ ''तौभी परमेश्वर की पड़ी नेव बनी रहती है'' (२ तीमुथियुस २:१९) परमेश्वर की दृढ़ नेव अविचल खडी रहती है चाहे संसार में कुछ भी क्यों न हो − चाहे लोग बाइबल या मसीहत के बारे में कुछ भी क्यों न कहें − ''तौभी परमेश्वर की डाली गयी नेव बनी रहती है''

उनमें से कुछ संशयवादी थे। कुछ नास्तिक थे। कुछ ''नये युग'' की विचारधारा पर चल रहे थे। उनमें से कुछ स्वयं को इस प्रकार के आध्यात्मिक जन मानते थे जो मृतक आत्मा से भी बात कर सकते थे।

मेरे कोई भी रिश्तेदार मसीही नहीं थे। लेकिन मैंने तो परमेश्वर का अनुभव किया था इसलिये मैं जानता था कि बाइबल का परमेश्वर ही एकमात्र सच्चा परमेश्वर है। मैं इसे तब भी जानता था और मैं इसे अब भी जानता हूं। वह ही सर्वोच्च सामर्थशाली परमेश्वर हैं‚ वही एकमात्र सच्चे परमेश्वर हैं‚ और वही जीवित परमेश्वर हैं। हम उनसे प्रार्थना कर सकते हैं और वह हमारे लिये अदभुत कार्य कर सकते हैं! जहां जीवित सामर्थी परमेश्वर पर विश्वास नहीं किया जाता है वहां जाग्रति भी नहीं आ सकती। अगर वह जीवित परमेश्वर नहीं होते तो हम उनसे प्रार्थना भी कैसे कर सकते हैं? अगर वह नीचे आकर चीजों को नहीं बदलते तो हम उनसे क्योंकर प्रार्थना करते?

२. दूसरा‚ हमें बाइबल की रक्षा के लिये दृढ़तापूर्वक कहना आवश्यक है अगर हम आत्मिक जाग्रति चाहते हैं तो।

बाइबल जीवित परमेश्वर का प्रकाशन है। परमेश्वर ने स्वयं को मनुष्य के उपर बाइबल के द्वारा प्रगट किया है। संसार में बहुत सारे धर्म पंथ और दर्शन हैं। हम कैसे जान सकते हैं कि कौन सा सच्चा है या झूठा? हरेक का अपना मत है। उन्होंने परमेश्वर के लिये अपनी अपनी विचारधारायें बना रखी है। पर ऐसा करने का उनका कोई अधिकार नहीं है। जब मैं छोटा था और उन्हें सुना करता था तो मैं महसूस करता था कि उनमें आपस में बहुत विरोधाभास था। वे बात तो निपुण जैसी किया करते थे‚ लेकिन व्यवहार मूर्खो जैसा करते थे। जब मैं बहुत छोटा था मुझे याद है‚ ''कि मैं सोचा करता था कि ये लोग ईश्वर के बारे में कुछ नहीं जानते। वे सिर्फ अपनी अज्ञानता को बांट रहे हैं।'' मैंने निर्णय कर लिया था जबकि मैं उस समय परिवर्तित भी नहीं हुआ था कि मैं बाइबल के वचन पर विश्वास करूंगा − न कि मनुष्यों के मत पर। मैंने एक जवान के रूप में भजन संहिता स्मरण कर लिया था‚

''तेरी बातों के खुलने से प्रकाश होता है; उससे भोले लोग समझ प्राप्त करते हैं।'' (भजन ११९:१३०)

''तेरे वचन मुझ को कैसे मीठे लगते हैं‚ वे मेरे मुंह में मधु से भी मीठे हैं! तेरे उपदेशों के कारण मैं समझदार हो जाता हूं‚ इसलिये मैं सब मिथ्या मार्गों से बैर रखता हूं'' (भजन ११९:१०३‚ १०४)

हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश‚ और समझाने‚ और सुधारने‚ और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है। ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने‚ और हर एक भले काम के लिये तत्पर हो जाए (२ तीमुथियुस ३:१६‚१७)

जब आप आत्मिक जागरण का इतिहास पढोगे तो आप जान जाओगे कि किस प्रकार लोग विश्वास रखा करते थे। इतिहास में लोगो के मध्य ऐसे ही आत्मिक जाग्रति नहीं फैल गयी इसके बदले उन्होंने बाइबल के एक एक शब्द पर विश्वास किया था। जब लोग बाइबल के स्थान पर अपना मत रखने लगे तब भी आत्मिक जाग्रति नहीं फैली। क्योंकि बाइबल जीवित परमेश्वर के वचन है। मैं ऐसे लोगों को जानता हूं जो बाइबल के उन केवल उन हिस्सों पर विश्वास करते हैं जिनसे वे सहमत रहते हैं। लेकिन वे अच्छे मसीही जन नहीं थे। उन्होंने अपनी प्रार्थनाओं के उत्तर में कभी आश्चर्यकर्मो को नहीं प्राप्त किया होगा। आज जो हम आत्मिक जाग्रति नहीं देखते हैं उसका सबसे बडा कारण बाइबल में विश्वास नहीं होना है।

३. तीसरा‚ जो व्यक्ति पाप में है पाप में नष्ट हो गया है हमें उसके लिये परमेश्वर से कहना चाहिये अगर हम आत्मिक जाग्रति चाहते हैं तो।

तीसरी महान शिक्षा जिसकी उपेक्षा की गयी है वह यह है कि मनुष्य पाप में उत्पन्न हुआ है‚ स्वभाव से पापी है‚ और परमेश्वर के क्रोध में जीवन बिता रहा है। मसीहत का इतिहास पढिये जितने भी निर्जीव कालखंड हुये उनमें से किसी ने भी यह विश्वास नहीं किया कि वे पाप में उत्पन्न हुये हैं। आत्मिक जाग्रति के समय में मनुष्य के पाप में भ्रष्ट हो जाने की शिक्षा सबसे अधिक उभर कर आती है। जब परमेश्वर आत्मिक जागरण भेजते हैं तो आप पायेंगे कि लोग पाप के बोध के कारण शोकित होते हैं रोने लगते हैं। उन्हें ऐसा अनुभव होता है जैसा शिष्य पौलुस को हुआ था जब उन्होंने इस बारे में लिखा‚

''क्योंकि मैं जानता हूं‚ कि मुझ में (अर्थात‚ मेरे शरीर में) कोई अच्छी वस्तु वास नहीं करती........ मैं कैसा अभागा मनुष्य हूं!'' (रोमियों ७:१८‚ २४)

केवल जब एक मनुष्य अपने आप को पाप में धंसा हुआ और विद्रोह से भरा हुआ पाता है तभी वह स्वयं से बेहद हताश हो जाता है। हमारे चर्चेस में से अब यह प्रवृत्ति बिल्कुल गायब ही हो गयी कि व्यक्ति अपने आप से पापों के कारण करने लगे। आजकल यह बिल्कुल दुर्लभ हो गया है कि लोगों को अपने पापों का बोध हो। हमारे पूर्वज तो अपने विश्वास में अभिभूत होकर अपने पापों के अंगीकार को लेकर इतने व्याकुल हो जाते थे कि वे सो नहीं पाते थे − और दया की भीख मांगते थे। हमारे बैपटिस्ट पूर्वज जॉन बुनयन की ऐसी दशा लगभग अठारह महिनों तक रही जब यीशु ने उन्हें बचाया। पर जब तक लोग इस दशा में से होकर नहीं गुजरेंगे तब तक उनके मध्य आत्मिक जाग्रति नहीं आ सकती। डॉ ल्योड जोंस ने कहा था कि, ''जब तक आप अपने मन में लगे रोग को नहीं पहचानोगे आदम से मिले स्वभाव का दूषित होना नहीं जानोगे अगर आप पवित्र और धर्मी परमेश्वर जो संपूर्ण अस्तिस्व से पाप से घृणा करता है उनके समक्ष अपनी नाउम्मीदपन और हताशा को नहीं महसूस करोगे तो आपको आत्मिक जाग्रति की बात करने का अधिकार नहीं है और न ही प्रार्थना करने का। आत्मिक जाग्रति जिस बात को प्रगट करती है वह है प्रभु की प्रभु सत्ता और मनुष्य का प्रभु के सामने घोर असहाय, हताश, और अधर्मी होना।'' (पूर्वोक्त, ४२)

४. चौथा, हमें मसीह द्वारा कूस पर हमारे बदले किये गये त्याग − और बहाये गये लहू के लिये कहना चाहिये अगर हमें आत्मिक जागरण चाहिये तो।

यह एक बहुत उदास कर देने वाली सत्यता है कि हमारे बैपटिस्ट और इवेंजलिकल चर्चेस की तुलना में कैथोलिक के प्रसाद वितरण में मसीह का अधिक वर्णन होता है। हां, मैं जानता हूं कि उनकी मास करने वाली प्रथा दोषपूर्ण है। लेकिन मैं यह भी जानता हूं कि हम भी गलत है। हम सरासर गलत है जब हम मसीह के क्रूस पर हमारे बदले बहाये गये लहू के बारे में नहीं बोलते हैं। कई इवेंजलीकल्स यह सोचते हैं कि उन्हें बिना मसीह और क्रूस पर किये गये बलिदान के उपर विश्वास किये बिना परमेश्वर से क्षमा मिल जायेगी।

कुछ उदारवादी दुष्ट प्रचारक जैसे हैरी इर्मसन फासडिक और दुष्ट से ग्रस्त उदारवादी बिशप जेम्स पाईक कुंआरी कन्या से जन्म और हमारे स्थान पर लहू बहाये जाने और मसीह के पुर्नजीवित होने पर के सत्य पर प्रहार करते थे। अब वे अपने संदेशों में से मसीह और उनके संदेशों को बिल्कुल बाहर किये हुये हैं! उन्होने मसीह के उपर प्रचार ही बंद कर दिया है! मैं बिल्कुल आश्वस्त हूं कि क्यों एक कालेज जाने वाली लडकी ने कहा कि वह बहुत लंबे समय तक रिक वारेन के चर्च में गयी और यीशु के बारे में एक भी शब्द नहीं बोल सकी! जरा सोचिये − एक भी शब्द नहीं बोल सकी − यीशु मसीह के बारे में − जब मैंने उससे कहा कि मैं उसकी गवाही सुनना चाहता हूं। ऐसी केवल एक वह ही लडकी नहीं है। जब बैपटिस्ट और इवेंजलीकल्स को उनकी गवाही सुनाने के लिये कहा जायेगा तो २० में से एक भी मसीह की महिमा नहीं कर पायेगा। परंतु बहुत ही कम − अत्यंत कम − लोग प्रभु यीशु मसीह के बारे में एक या दो शब्द कह पायेंगे! उन्होंने संदेशों में ही यीशु के बारे में कम सुना है तो आप कैसे अपेक्षा कर सकते हैं कि ये खोये हुये, बेचारे इवेंजलीकल् उनकी गवाही में यीशु के बारे में कुछ कह पायेंगे! वेस्टमिंनस्टर सेमनरी केलीफोर्निया में डॉ माइकेल होरटेन सिस्टमेटिक थियोलोजी पढाते हैं। डॉ होरटेन की एक बहुत प्रसिद् पुस्तक है क्राईस्टलेस क्रिस्चीऐनिटी: दि अल्टरनेटिव गास्पल आफ दि अमेरिकन चर्च (बेकर बुक्स, २०१२ का संस्करण)

इस भयानक चलन ने प्रभु यीशु मसीह को उनके अपने चर्चेस से बाहर कर दिया! यह हमारे स्वतंत्र बैपटिस्ट चर्चेस के लिये भी सच है। इसलिये अनेक बैपटिस्ट चर्चेस में रविवार रात की आराधना बंद होने के कई कारणों में से एक यह भी है। तो पास्टर को पूरे सप्ताह में एक बार में केवल ३० मिनिट अपने लोगों को प्रचार करने के लिये मिलते हैं। वह पूरे समय उद्वारहीन लोगों को ''मसीही जीवन'' कैसे जिया जाये उन्हें एक एक पद की ''व्याख्यात्मक उपदेश'' के द्वारा सिखाया करता है ऐसे संदेश नीरस होते हैं। अंत में वे केवल उन्हीं लोगों को हाथ खडा करने के लिये कहते हैं जो उद्वार चाहते हैं। मसीह का सुसमाचार सुनाने की उनके लहू बहाने और उनके पुर्नत्थान के बारे में प्रचार करने की क्या आवश्यकता है। लोगो को अब इसकी जरूरत नहीं है। उन्हें केवल एक कार्ड भरना है, हाथ उंचे करना है, कुछ शब्द मुंह ही मुंह में दोहराना है जो वे नहीं समझते वैसी (तथाकथित पापियों की प्रार्थना) दोहराना है और उसके बाद उन्हें बपतिस्मा दे दिया जाता है। इस तरह हमारे हजारो हजार बच्चे बिना उद्वार पाये बपतिस्मा पा लेते हैं उन्होंने प्रभु यीशु मसीह का वास्तविक सुसमाचार भी नहीं सुना है − और हमें आश्चर्य होता है कि क्यों १५० सालों से आत्मिक जागरण क्यों नहीं हुआ! हमारे चर्चेस में ''मसीह के बिना जो मसीहत'' व्याप्त है तो ऐसे वातावरण में आत्मिक जागरण आना कैसे संभव है? इसलिये मैं यू टयूब और हमारी वेबसाईटस पर प्रति सप्ताह बताता रहता हूं कि ऐसे चर्च में मत जाइये जहां रविवार को संध्या की आराधना नहीं होती हो! जैसे लूत ने अपनी पत्नी से कहा था, ''इसे छोडो और पीछे मुड कर मत देखना!''

जवान बच्चों, आप को मसीह के पास मुड कर आना चाहिये और उन्होंने जो बहुमूल्य लहू आप के लिये क्रूस पर बहाया ताकि आप परमेश्वर के कोप से बच सको और अपने पापों से छुडाये जायें इसलिये उस लहू में धुलकर शुद् हो जाइये। डॉ ल्योड जोंस ने कहा था कि, ''सब चीजों से बढकर आत्मिक जागरण परमेश्वर के पुत्र प्रभु यीशु मसीह का प्रशस्ति गान है।'' (पूर्वोक्त, पेज ४७)

इससे बढकर भी, डॉ ल्योड जोंस ने ऐसा कहा था कि, ''आप आत्मिक जागरण के प्रत्येक काल में, बिना किसी अपवाद के, मसीह के लहू पर बहुत अधिक जोर दिया गया है, ऐसा पायेंगे'' (पूर्वोक्त, पेज ४८)। मेरे सहयोगी डॉ कैगन एक वर्ष तक प्रति रविवार − डॉ मैक आर्थर के चर्च में सम्मिलित हुये। मेरे पास भी डॉ मैक आर्थर के संदेशों का टेप है। हम दोनों जानते हैं कि डॉ मैक आर्थर मसीह के लहू की अवमानना करते हैं, और अपनी शिक्षाओं में बारंबार यीशु के ''लहू'' को ''मृत्यु'' में बदल देते हैं। वह ऐसा क्यों करते हैं? साधारण सी बात है! वह एक आधुनिक प्रचारक हैं और पुराने चलन की आत्मिक जाग्रति को पसंद नहीं करते हैं। पर डॉ ल्योड जोंस बिल्कुल सही थे जब उन्होंने कहा, ''मसीही सुसमाचार की शक्ति, उसका केंद्र, और उसका तत्व यह है : ‘उसे परमेश्वर ने उसके लोहू के कारण एक ऐसा प्रायश्चित्त ठहराया, जो विश्वास करने से कार्यकारी होता है’ (रोमियों ३:२५) ‘हम को उस में उसके लोहू के द्वारा छुटकारा, अर्थात अपराधों की क्षमा, उसके उस अनुग्रह के धन के अनुसार मिला है’ (इफिसियों १:७)'' (पूर्वोक्त, पेज ४८)। डॉ ल्योड जोंस ने फिर कहा, ''मुझे आत्मिक जाग्रति की कोई आशा दिखाई नहीं देती जबकि पुरूष और स्त्रियां क्रूस के लहू का इंकार कर रहे हैं और उस चीज का उपहास कर रहे हैं जिस पर घमंड किया जाना चाहिये।'' (पूर्वोक्त, पेज ४९)। आत्मिक जाग्रति में प्रचार के समय सदैव यीशु के लहू पर अत्यधिक जोर दिया जाता है और गीतों में भी, लहू पर बल दिया जाता है। उन महान जाग्रतियों के समय लिखे गये गीतो को सुनिये जो उस काल में लिखे गये थे‚

ओह! क्या मेरे मसीहा का लहू बहा?
   ओह क्या मेरा प्रभु मरा?
क्या उसने अपना पवित्र शीश मेरे लिये दे दिया
   मैं जो एक कीडे सरीखे का हूं?
(''ओह!क्यामेरेमसीहाकालहूबहा?''डॉआइजक वाटस‚१६७४−१७४८)

एक खून का चश्मा जारी है
   यीशु की शिराओं से;
जो पापी उस धारा में नहायेंगे‚
   अपने पाप के दंड से छुटेंगे।
(''एक खून का चश्मा जारी है'' विलियम काउपर‚ १७३१−१८००)

वह सदैव उपर विद्यमान है मेरे लिये मध्यस्थता करने के लिये;
   उनका सदा मुक्त करना प्रेम‚ बेशकीमती लहू विनती करता है‚
उनका लहू जो सारी जाति के लिये बहा‚ अब अनुग्रह सिंहासन पर छिडका जाता है‚
   अब अनुग्रह सिंहासन पर छिडका जाता है।
(''जाग! हे मेरी आत्मा‚ अब जाग!'' चार्ल्ज़ वेस्ली‚ १७०७−१७८८)

जैसा डॉ ल्योड जोंस ने कहा ने कहा − आत्मिक जाग्रति में क्रूस और लहू विशिष्ट स्थान पाते हैं।

५. पांचवा‚ अगर हम आत्मिक जागरण चाहते है तो हमें पवित्र आत्मा द्वारा मनुष्य के भीतर बोध और परिवर्तन करवाने के लिये डटे रहना चाहिये।

पवित्र आत्मा का कार्य है कि वह हमें प्रेरित करता है और सब शिक्षाओं पर लागू होता है। पवित्र आत्मा क्या करता है? वह हमारे भीतर परमेश्वर का सच्चा प्रकाशन भरता है। वह बाइबल की सच्चाई देखने और उसे प्राप्त करने के लिये हमारी आत्मिक आंखों को खोलता है। वह हमें पापों का बोध करवाता है ताकि हम यीशु के लहू से शुद् होने की इच्छा करें! ''और वह आकर संसार को पाप और धामिर्कता और न्याय के विषय में निरूत्तर करेगा।'' (यूहन्ना १६:८) तब वह आपको यीशु के पास खींचता है‚ और जब आप यीशु के लहू से धुलकर अपने सारे पापों से शुद् हो जाते हैं तो वह आप को संपूर्ण मन से यीशु पर विश्वास रखने में सहायता करता है। यीशु ने कहा था‚ ''वह मेरी महिमा करेगा, क्योंकि वह मेरी बातों में से लेकर तुम्हें बताएगा (जो मेरा है वह तुम पर प्रगट करेगा।)'' (यूहन्ना १६:१४)

मेरे प्रिय मित्रों‚ हम हमारे चर्च में पवित्र आत्मा के उडेले जाने के लिये प्रार्थना कर रहे हैं − क्योंकि हमारी हार्दिक इच्छा है कि पवित्र आत्मा चर्च में हमारें बीच में जो भटके हुये सदस्य हैं उनके मन में पाप का बोध उत्पन्न करें और यीशु के पास लेकर आये ताकि यीशु के लहू से उनके सारे पापों को शुद्व होने में सहायता करे। चूंकि वे पाप के गुलाम है और स्वयं वह बंधन तोड कर यीशु के पास नहीं आ सकते। केवल पवित्र आत्मा वह कैदखाने को तोड सकता हैं जिसमें वे पाप के कारण बंधे हैं। केवल पवित्र आत्मा उन्हें उनके बुरे कर्मो के प्रति मन में खेदित बना सकता है। केवल पवित्र आत्मा उन्हें यीशु के पास उनके लहू‚ और क्रूस के द्वारा उद्वार पाने में सहायक हो सकता है!

आप को यहां चर्च में आना चाहिये ताकि आप सच्चे मसीही जन बने रहना सीख सकें। आते रहिये! आते रहिये! खडे होकर गीत संख्या ३ गाइये‚ ''यीशु के लहू में सामर्थ है''

क्या आप पाप के बंध से मुक्त होंगें?
   यीशु के लहू में सामर्थ है‚ लहू में सामर्थ है।
क्या आप पराजय को जय में बदल देंगे?
   यीशु के लहू में अदभुत सामर्थ है।
सामर्थ‚ सामर्थ‚ आश्चर्य करने वाली सामर्थ है
मेम्ने के बहुमूल्य लहू में;

क्या आप अपने पाप और घमंड से मुक्त हुये हैं?
   यीशु के लहू में सामर्थ है‚ लहू में सामर्थ है।
कलवरी के बहते सोते से शुद्व होने के लिये आइये;
   यीशु के लहू में अदभुत सामर्थ है।
सामर्थ‚ सामर्थ‚ आश्चर्य करने वाली सामर्थ है
   मेम्ने के बहुमूल्य लहू में;
सामर्थ‚ सामर्थ‚ आश्चर्य करने वाली सामर्थ है
   मेम्ने के बहुमूल्य लहू में
       (''यीशु के लहू में सामर्थ है'' लेविस इ जोंस १८६५−१९३६)

डॉ चान‚ कृपया प्रार्थना में हमारी अगुवाई कीजिये।


अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स आप से सुनना चाहेंगे। जब आप डॉ हिमर्स को पत्र लिखें तो आप को यह बताना आवश्यक होगा कि आप किस देश से हैं अन्यथा वह आप की ई मेल का उत्तर नहीं दे पायेंगे। अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स को इस पते पर ई मेल भेजिये उन्हे आप किस देश से हैं लिखना न भूलें।। डॉ हिमर्स को इस पते पर rlhymersjr@sbcglobal.net (यहां क्लिक कीजिये) ई मेल भेज सकते हैं। आप डॉ हिमर्स को किसी भी भाषा में ई मेल भेज सकते हैं पर अंगेजी भाषा में भेजना उत्तम होगा। अगर डॉ हिमर्स को डाक द्वारा पत्र भेजना चाहते हैं तो उनका पता इस प्रकार है पी ओ बाक्स १५३०८‚ लॉस ऐंजील्स‚ केलीफोर्निया ९००१५। आप उन्हें इस नंबर पर टेलीफोन भी कर सकते हैं (८१८) ३५२ − ०४५२।

(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे ने प्रार्थना की
संदेश के पूर्व बैंजामिन किन्केड गिफिथ द्वारा एकल गीत गाया गया:
''रिवाइव दाय वर्क‚ ओ लॉर्ड'' (अल्बर्ट मिडलेन, १८२५−१९०९)


रूपरेखा

आत्मिक जागरण के महान सिद्वांत

(आत्मिक जागरण पर संदेश संख्या २०)
THE GREAT DOCTRINES OF REVIVAL
(SERMON NUMBER 20 ON REVIVAL)

द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स

''हे प्रियो, जब मैं तुम्हें उस उद्धार के विषय में लिखने में अत्यन्त परिश्रम से प्रयत्न कर रहा था, जिस में हम सब सहभागी हैं; तो मैं ने तुम्हें यह समझाना आवश्यक जाना कि उस विश्वास के लिये पूरा यत्न करो जो पवित्र लोगों को एक ही बार सौंपा गया था। क्योंकि कितने ऐसे मनुष्य चुपके से हम में आ मिले हैं, जिन के इस दण्ड का वर्णन पुराने समय में पहिले ही से लिखा गया था: ये भक्तिहीन हैं, और हमारे परमेश्वर के अनुग्रह को लुचपन में बदल डालते हैं, और हमारे अद्वैत स्वामी और प्रभु यीशु मसीह का इन्कार करते हैं'' (यहूदा ३, ४)

१. पहला, हमें जीवित परमेश्वर की प्रभु सत्ता के लिये दृढ़तापूर्वक कहना
आवश्यक है अगर आत्मिक जागरण चाहिये, २ तीमुथियुस २:१९

२. दूसरा‚ हमें बाइबल की रक्षा के लिये दृढ़तापूर्वक कहना आवश्यक है अगर
हमें आत्मिक जागरण चाहिये, भजन ११९:१३०, १०३, १०४;
२ तीमु ३:१६,

३. तीसरा‚ जो व्यक्ति पाप में है या नष्ट हो गया है हमें उसके लिये परमेश्वर
से कहना चाहिये अगर हम आत्मिक जाग्रति चाहते हैं तो,
रोमियों ७:१८, २४

४. चौथा, हमें मसीह द्वारा कूस पर हमारे बदले किये गये त्याग − और बहाये
गये लहू के लिये कहना चाहिये अगर हमें आत्मिक जागरण चाहिये,
रोमियों ३:२५; इफिसियों १:७

५. पांचवा‚ अगर हम आत्मिक जागरण चाहते है तो हमें पवित्र आत्मा द्वारा
मनुष्य के भीतर बोध और परिवर्तन करवाने के लिये डटे रहना
चाहिये, यूहन्ना १६:८, १४