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मुझे सिर्फ यीशु चाहिये

ALL I NEED IS JESUS
(Hindi)

द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

शनिवार संध्या‚ ३ मई‚ २०१४ को दि लॉस एंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल में प्रचार
किया गया संदेश
A sermon preached at the Baptist Tabernacle of Los Angeles
Saturday Evening, May 3, 2014

“परन्तु उसी की ओर से तुम मसीह यीशु में हो, जो परमेश्वर की ओर से हमारे लिये ज्ञान ठहरा अर्थात धर्म‚ और पवित्रता‚ और छुटकारा। ताकि जैसा लिखा है‚ वैसा ही हो‚ कि जो घमण्ड करे वह प्रभु में घमण्ड करे।” (१कुरंथियों १:३०‚३१)


मि.प्रुद्योमे ने आज का जो पाठ १कुरंथियों, से कुछ मिनटों पूर्व पढा। प्रेरित ने कहा कि इस संसार के बहुत सारे सांसारिक रूप से विद्वान लोग, (प्रभावशाली)‚ ताकतवर लोग, व महान (उत्तम) कहलाये जाने वाले लोग नहीं बचाये गये हैं। वे तो इस विचारधारा के हैं कि उनको ईश्वर की आवश्यकता ही नहीं है। वे केवल इस संसार की बातों से नाता रखते हैं। वे किसी चीज का नुकसान सहन करने को तैयार नहीं हैं, न ही अपने आप को कुछ नहीं समझने में उनका मन है और न वे मसीह का क्रूस लेकर पीछे चलने के इच्छुक हैं।

प्रेरित ने कुरंथियो की मंडली को स्मरण दिलाया कि उनकी कलीसिया में बहुत धनवान और प्रसिद्ध लोग नहीं थे। किंतु उनकी कलीसिया उन लोगों से मिलकर बनी थी जिन्हें परमेश्वर ने चुन लिया था‚ जिन लोगों को यह संसार मूर्ख कहता है‚ जो कमजोर वर्ग के हैं, त्यागे हुये हैं‚ जिन पर लोगों का ध्यान भी नहीं जाता। परमेश्वर ने इन तुच्छ व नगण्य समझे जाने वाले लोगों का चुनाव करके उन्हें जो बहुत कुछ हैं “नगण्य” ठहरा दिया। वास्तव में यही हुआ। संसार ने इन मसीहियों को एकदम तुच्छ जाना था। किंतु ऐसा समझने वाले लोग गलत थे। वे थोडे से साधारण कहलाये जाने वाले मसीह संपूर्ण रोमन सत्ता में फैल गये, और इसके उपरांत पूरे विश्व में फैल गये। परमेश्वर ने निम्न समझे जाने वाले मसीहियों को चुन लिया ताकि विशाल मूर्तिपूजक रोमन साम्राज्य को नगण्य ठहरा दें। मुझे ऐसा लगता है कि परमेश्वर ऐसा फिर से कम्यूनिस्ट देश चीन में करने जा रहा है। जैसा कि हमारा एक गीत कहता है‚ “विश्वास की विजय है‚ जिससे संसार जीता जा सकता है” जब अमेरिका नहीं रहेगा, तब भी मसीही लोग यहां पाये जाऐंगे।

विश्वास ही विजय है, विश्वास ही विजय है!
ओह, वह महान विजय जिससे संसार जीता जा सकता है।
(“विश्वास ही विजय है'”द्वारा जॉन एच.येटस‚१८३७-१९००)

परमेश्वर ने कमजोरों व तुच्छ लोगों को चुना ताकि अहंकारी का अहंकार झुका दे। कोई व्यक्ति घमंड न कर सके‚” (१कुरंथियों १:२९)। डॉ.जे.वर्नान मैगी ने कहा कि कई इवेंजलीकल्स भी‚ “प्रसिद्ध लोगों को ही मान देते हैं (उनके लिये विश्वास भी व्यापार जैसा है) – जैसे मनोरंजनकर्ताओं को‚ उद्योगपतियों को‚ सरकार में उंचे ओहदे पर बैठे लोगों को। किंतु परमेश्वर औसत कहलाने वाले लोगों में से ज्यादातर लोगों का चुनाव करता है। वह आपके व मेरे जैसे लोगों को बुला रहा है” (जे.वर्नान मैगी‚ टीएचडी‚ थ्रू दि बाईबल‚ थॉमस नेल्सन पब्लिशर्स‚ १९८३‚ वॉल्यूम वी‚ पेज १२)

क्या आपने ध्यान दिया है कि हम धनवान व प्रसिद्ध लोगों को सुसमाचार सुनाने पर अधिक जोर नहीं देते? आप चकित होंगे जानकर कि हम क्यों उन पर अधिक जोर नहीं देते हैं? इस बारे में बाईबल पाठ यह कहता है‚

“हे भाइयो‚ अपने बुलाए जाने को तो सोचो, कि न शरीर के अनुसार बहुत ज्ञानवान‚ और न बहुत सामर्थी‚ और न बहुत कुलीन बुलाए गए। परन्तु परमेश्वर ने जगत के मूर्खों को चुन लिया है‚ कि ज्ञान वालों को लज्ज़ित करे; और परमेश्वर ने जगत के निर्बलों को चुन लिया है, कि बलवानों को लज्ज़ित करे। और परमेश्वर ने जगत के नीचों और तुच्छों को, वरन जो हैं भी नहीं उन को भी चुन लिया, कि उन्हें जो हैं, व्यर्थ ठहराए।” (१ कुरंथियों १:२६–२९)

आप देखते हैं‚ कि हमने वर्षो के अनुभव से यह जाना है कि हम प्रसिद्ध और धनवान लोगों को चर्च आने‚ सुसमाचार सुनने और बचाये जाने के लिये बाध्य नहीं कर सकते। हमारा चर्च इसलिये बढ रहा है क्योंकि हम हाई स्कूल या कॉलेज के जवान बच्चों को शुभ संदेश सुनाते हैं। लोग इन जवान बच्चों को कम आंकते हैं, कमजोर व मूर्ख समझते हैं। परन्तु परमेश्वर आपमें से कुछ को बुलाता है; और धनवान व प्रसिद्ध लोगों के पास से गुजर जाता है! वह जानता है कि उनमें से बहुत थोडे ही सुनेंगे और मसीह के चेले बन जायेंगे! वे अपने में ही मगन‚ संतुष्ट व भौतिकतावादी मसीही हैं। वे कभी सच्चे मसीही बन भी नहीं सकते। तो परमेश्वर ऐसे धनी लोगों के पास से निकल जाता है। वह इन लोगों को प्रभावशाली बुलाहट भी नहीं भेजता। वह लगभग विशेष तौर पर जवान बच्चों को बुलाता है। और आप में से कुछ मसीह के पास आये भी हैं और बचाये गये हैं। हमारा पाठ कहता है कि ईश्वर द्वारा बुलाया जाना कितनी गर्व की बात है‚ और उतना ही गर्व का विषय है कि हम उसके पुत्र यीशु के द्वारा बचाये गये!

“परन्तु उसी की ओर से तुम मसीह यीशु में हो, जो परमेश्वर की ओर से हमारे लिये ज्ञान ठहरा अर्थात धर्म, और पवित्रता, और छुटकारा। ताकि जैसा लिखा है, वैसा ही हो, कि जो घमण्ड करे वह प्रभु में घमण्ड करे।” (१कुरंथियों १:३०‚३१)

हमको इस पाठ से तीन सबक सीखने को मिलते हैं।

१. प्रथम, मसीह यीशु के पास आने का अधिकार

पद कहता है, “परमेश्वर के कारण ही तुम मसीह यीशु में विद्यमान हो ”(१कुरंथियों १:३०) “उसके कारण” – अर्थात “परमेश्वर के कारण।” इसका अनुवाद इस तरह किया जा सकता है कि‚ “परमेश्वर के कारण आप मसीह यीशु में पाये जाते हो।” यह स्पष्ट दर्शाता है कि परमेश्वर एकमात्र वह सत्ता है जो एक खोई हुई आत्मा का मसीह के साथ मेल करवाती है। परमेश्वर ने होशे नबी के द्वारा कहा था‚ “मैंने ही करूंणा की डोरी से‚ प्रेम के बंधन से उसको अपने पास खींचा था” (होशे ११:४) और यीशु ने कहा‚ “जब तक पिता‚ जिसने मुझे भेजा है‚ न खींचे‚ कोई मेरे पास नहीं आ सकता” (यूहन्ना ६:४४) आधुनिक “निर्णयवाद ”यह सिखाता है कि लोग जब ऐसा महसूस करें वे पिता के पास आ सकते हैं! किंतु बाईबल यह सिखाती है कि केवल परमपिता परमेश्वर पापियों को खींचते हैं ताकि मसीह के साथ उनका मेल हो सके। “किंतु उसके द्वारा वे मसीह यीशु में हैं।” “परन्तु उसके कार्यो के कारण तुम मसीह यीशु में पाये जाते हो।” स्पर्जन ने इसे इस कहावत द्वारा समझाया‚ “परमेश्वर के द्वारा हम मसीह यीशु में हैं।”

इससे यह प्रगट होता है कि यह सोचना निरी मूर्खता है कि आप मसीह के पास आना सीख सकते हो। परमेश्वर को आपको मसीह में लाना चाहिये। परमेश्वर एकमात्र ने‚ “मसीह यीशु में उसके साथ उठाया‚ और स्वर्गीय स्थानों में उसके साथ बैठाया” (इफिसियों २:६) अगर आप पहले से ही बचाये हुये हैं तो आपको इस महान सत्य को जानकर बहुत अच्छा लगेगा। आपने स्वयं ने अपने आप को नहीं बादला है। परमेश्वर ने आपको बदला है। आप यह पता नहीं लगा सकते थे कि किस प्रकार मसीह के पास आना है और “उसमें बने रहना है।” नहीं! नहीं! “परमेश्वर के द्वारा आप मसीह यीशु में हैं।” परमेश्वर की खींचने वाली सामर्थ के कारण आप मसीह की कलीसिया के सदस्य हो‚ और यीशु के साथ संयुक्त हुये हैं। आप को यह याद रखने में अच्छा लगेगा कि खोये हुये होना कैसा होता था। आपको यह सोच कर अच्छा लगेगा कि आपने कितना संघर्ष किया तौभी आप यीशु के पास नहीं पहुंच पाये। हर सच्चे मसीही को जानकर अच्छा लगेगा कि वह अपने प्रयासों में असफल रहा‚ असफल रहा‚ पुन: असफल रहा‚ और अंत तक असफल रहा, केवल परम पिता उसे खींचकर मसीह यीशु के पास लाये! इसलिये एक सच्चा मसीही बडे संतोष के साथ यह गीत गाता है‚

अदभुत अनुग्रह! कितनी मधुर आवाज
जिसने मुझ निकम्मे को बचाया!
मैं एक बार खो गया था, पर अब मिल गया हूं।
पहले अंधा था, पर अब मैं देखता हूं
(“अदभुत अनुग्रह” द्वारा जॉन न्यूटन‚१७२५–१८०७)

सचमुच! कितनी अदभुत बात है कि परम पिता परमेश्वर, ने अपने अनुग्रह में‚ मुझे खोजकर मसीह यीशु के साथ संयुक्त किया है!

फिर भी मैं आपमें से कुछ से पूछना चाहता हूं‚ “क्या आप मसीह यीशु में हैं?” क्या प्रेरित आप से पूछ सकते थे‚ “परमेश्वर में होते हुये आप मसीह यीशु में हैं?”

यीशु मसीह आपको ग्रहण करने के लिये तैयार है अगर आप सच में उसके पास आने की इच्छा रखते हो। परन्तु आप कह नहीं सकते कि कितने समय तक दरवाजे खुले रहेंगे। संरक्षक नूह भी जहाज में सवार हो गया था व बचाया गया। वह जहाज मानो मसीह है। क्या आपको सोच कर आश्चर्य नहीं होता कि केवल नूह व उसके परिवार ने ही जहाज में प्रवेश किया? जब मैं इस संदेश को लिख रहा था मैंने इसके कई कारण सोचने की चेष्टा की। हो सकता है आप भी अन्य कारण खोज सकते हैं‚ किंतु मैं केवल तीन कारण सोच पाया।

१. पहला, उन्होंने सोचा नहीं था कि दंड उनके उपर आ पडेगा - वे अपने पापों के प्रति सजग नहीं थे।

२. दूसरा, वे नूह के प्रचार पर विश्वास नहीं करते थे। वह तो “धार्मिकता का प्रचारक” (२पतरस २:५) था। उन्होंने उसके प्रचार परध्यान ही नहीं दिया।

३. उन्हे इतना घमंड था कि वे स्वयं को नीचा नहीं कर सके और उस जहाज को भी मूर्खता समझा जो उन्हें बचा सकता था।


मैं सोचता हूं इन तीन कारणों में से एक भी या तीनों ही कारण आप को भी मसीह के पास आने से रोकते हैं। मैं पुन: इन तीन बातों को दोहराउंगा। सोच कर देखिये आपको कौन सा एक या (एक से अधिक) कारण यीशु के पास नहीं आने देता।

१. पहला, अगर, आपको भी ऐसा लगता है कि दंड आपके उपर नहीं – आने वाला तो इसका अर्थ है आप को अपने पापों का भान ही नहीं है।

२. दूसरा, जो प्रचार किया जाता है आप उसको हल्का जानकर विश्वास नहीं करते।

३. तीसरा, आपको इतना घमंड है कि आप नम्र नहीं बनना चाहते कि केवल मसीह के उपर अपने आप को छोड दें ताकि वह आपको बचाये।


क्या आज की रात आपकी बिल्कुल यही दशा है? हम महान प्रचारक जॉर्ज वाईटफील्ड (१७१४–१७७०) के साथ कह सकते हैं‚ “लोग (मसीह) को कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे‚ और हम उन्हें कोई विश्राम नहीं दे सकते‚ जब तक कि वे पाप में गहराई तक न डूब जाये‚ और इच्छा करे कि यीशु आकर उनको गले लगा ले“ (जॉर्ज वाईटफील्ड‚ “दि डयूटी आँफ ए गॉस्पल मिनिस्टर)”

क्या यह आपको विरोधाभासी दिखाई पडता है? आप अपने प्रयासों से यीशु के – पास नहीं आ सकते और फिर भी आपको उसके पास आना चाहिये नहीं तो नष्ट हो जाओगे। पुराने प्रचारक इसे “सुसमाचारीय शिकंजा कसना”' कहते थे। आप इस शिकंजे में निचुड चुके होते हैं। एक तरफ तो आवाज आती है कि आपको यीशु के पास आना चाहिये। दूसरी ओर यह आवाज आती है कि आप अपने प्रयासों से उसके पास नहीं पहुंच सकते। तब आप क्या करेंगे? आप चर्च छोड कर अपना कोई मार्ग ले सकते हैं‚ यह कहते हुये कि यह तो बडा कठिन है। या फिर नूह के दिनों में जो लोगों ने नहीं किया आप वह कर सकते हैं‚

“दुखी होओ, और शोक करा, और रोओ: तुम्हारी हंसी शोक में और तुम्हारा आनन्द उदासी में बदल जाए। प्रभु के साम्हने दीन बनो, तो वह तुम्हें शिरोमणि बनाएगा।” (याकूब ४:९–१०)

डॉ.मार्टिन ल्यॉड-जोंस ने कहा‚

         हम लोगों को कोई “निर्णय” पर पहुंचाने के लिये बडी जल्दबाजी मचाते हैं। जब आपने बहुत गहराई तक दर्द का अनुभव कर लिया हो तब आपको आराम बहुत अच्छा लगेगा। जो मनुष्य मौत के दरवाजे पर पहंचकर चंगा किया जाता है वह परम पिता के प्रति अधिक धन्यवाद से भरा होगा। वह पापी जो लगभग नरक के दर्शन कर चुका हो वह स्वर्ग की ज्योतियों को अधिक आनंद से निहारेगा(मार्टिनल्यॉडजोंसएम.डी.‚दिअश्योरेंसआँफसाल्वेशन‚ स वे बुक्स‚२०००‚पेज ३०५)

केवल मसीह आपको बचा सकता है। आपने मुझे कई बार कहते हुये सुना होगा। किंतु जब तक आप इस आवश्यकता को स्वयं महसूस नहीं करेंगे आप इस पर विश्वास भी नहीं करेंगे। परमेश्वर जानता है कि

जो व्यक्ति उसकी इच्छा के विरूद्ध किसी बात के लिये राजी किया जाता है वह अपने मन में अपनी ही बात रखे होता है।

इसलिये‚ आप इस सत्य को मान लें‚ इसके लिये परमेश्वर आपको दुखी करने के बिंदु तक लेकर आता है। आपको मसीह की सख्त आवश्यकता महसूस होनी चाहिये। आपको यह विचार आने लगना चाहिये‚ “मैं इस तरह अब नहीं चल सकता! मेरे पापों को मसीह से माफी मिलना ही चाहिये” डॉ.ल्यॉड–जोंस ने कहा था‚ “जब तक दुख की चरम सीमा नहीं आ जाती कोई मसीह के पास नहीं आता” (मार्टिन ल्यॉड–जोंस‚एम.डी.‚ गॉडस वे नॉटअवर्स‚ दि बैनर आँफ टूथ ट्रस्ट‚२००३‚पेज ७१) परमेश्वर द्वारा आपको आपकी जरूरत के लिये जगाना जाना चाहिये‚ वहीं आराम के लिये आपको यीशु के नजदीक खींच कर लायेगा। ये सब आप अपने आप से नहीं कर सकते। कई लोग इन बातों का अनुभव ही नहीं करते। वे अपनी दुर्दशा के प्रति जागरूक ही नहीं हो पाते‚ और यीशु के पास खिंचे चले नहीं आते। इसलिये मैं कहता हूं कि मसीह के पास आपका खींचा जाना बडी गर्व की बात है‚ “मसीह यीशु में बने रहना।” बाईबल कहती है‚ “बहुत हैं जो बुलाये हुये हैं‚ किंतु थोडे हैं जो चुने हुये हैं'” (मत्ती २२:१४)

२. दूसरा, यीशु मसीह में जो विशेष अधिकार हमें उपलब्ध करवाये गये हैं।

मैंने शायद मसीह के पास आने का जो सौभाग्य मुझे मिला था उस पर बहुत समय खर्च कर दिया। परन्तु यह बहुत आवश्यक भी था। जब तक मसीह के पास आप बुलाये नहीं जाते आप मसीह से आपके लिये रखे हुये लाभ भी प्राप्त नहीं कर सकते। ये लाभ उन्ही के लिये दिये गये हैं जो मसीह के हैं और जो ''मसीह यीशु में'' हैं। पाठ इस प्रकार कहता है,

“मसीह यीशु, जो परमेश्वर की ओर से हमारे लिये ज्ञान ठहरा अर्थात धर्म, और पवित्रता, और छुटकारा।” (१ कुरंथियों १:३०)

विद्वता,धार्मिकता,पवित्रीकरण और छुटकारा - यह पाठ इन चारों चीजों को देने का वायदा उन लोगों से करता है जो “मसीह यीशु में है।” प्रथम, हमें “विद्वता” देने का वायदा किया गया है। जब मैं बचाया गया था तब मैं सोचता था कि मुझे मदद करने वाला या मेरा सहारा कोई भी नहीं है। मेरे माता-पिता का तलाक हो चुका था, और मेरे पास आय का कोई जरिया नहीं था। मैं यह सोचा करता था कि मुझे कोई गलती नहीं करना चाहिये। मेरी एक गलती भी मुझे मिशनरी बनने से रोक सकती थी। इसलिये मैंने विशेषकर परमेश्वर से बुद्धिमानी का गुण मांगा। उसने मुझे बुद्धिमानी से भरपूर किया! मैं तो हमेशा डरता रहा कि अगर मसीह मुझे थामे नही रहेंगे तो मैं फिसल कर गिर सकता हूं किंतु मसीह ने मुझे कसकर थामे रहा! उसने मुझे बुद्धिमानी से भरपूर किया! एक बूढी स्त्री ने जो पहले से मुझे जानती थी जब मैं कॉलेज में था कहा कि “तुम सदैव एक बहुत गंभीर जवान लडके रहे हो।” यीशु ने ही मुझे गंभीर बनाया। यीशु ने ही मुझे बुद्धिमता सौंपी। बाईबल कहती है, “परमेश्वर का भय मानना बुद्धि का मूल है” (नीतिवचन १:७)

दूसरा, हमको “धार्मिकता” का वादा किया गया। मसीह स्वयं “हमारे लिये……धार्मिकता बने।” हम दूसरे की धार्मिकता को ओढे हुये हैं - स्वयं यीशु की! जैसा कि एक पुराने गीत में लिखा है, “केवल उसकी धार्मिकता में सजे हुये, बिना त्रुटि किये सिंहासन के सामने खडे हुये” (“दि सॉलिड रॉक”) कई बार शैतान मेरे पास आया और कहा, “तुम इसे कैसे प्रचार कर सकते हो? तुम कैसे यह कदम उठा सकते हो?” उस समय मुझे, इफिसियों के, अध्याय एक, के शब्द बहुत मधुर लगे! जिसमें कहा गया है, “हम को उस में उसके लोहू के द्वारा छुटकारा, अर्थात अपराधों की क्षमा, उसके उस अनुग्रह के धन के अनुसार मिला है” (इफिसियों १:६,७) यीशु वह “प्यारा जन” है। मैं यीशु में ग्रहण किया गया हूं। मेरी धार्मिकता उससे है! “उसकी धार्मिकता में सजे हुये, निष्पाप उसके सिंहासन के सामने खडे हुये।” जब शैतान ने मुझे भरमाया कि एक जवान के रूप में, मैं एक अच्छा प्रचारक नहीं था, मैं उसे केवल यह शब्द दोहरा सका, “उसने (मुझे) अपने प्यार में ग्रहण किया है” (इफिसियों १:६) कितनी आशीष से भरपूर है! सताव के समय संत लोग शैतान के उपर इसी तरह जीत हासिल करते हैं! “और उन्होंने यीशु के लहू से जयवंत हुये” (प्रकाशितवाक्य १२:११) महान मिशनरी काउंट निकोलस जिनजेनदोर्फ ने कहा,

मैं उस महान दिवस में निर्भीक हूंगा,
कौन मेरे आरोपो को उठायेगा?
जबकि उसके लहू से मेरा निदान हुआ है
मेरे बडे पापों व शर्म से मुक्ति मिली है।
(''यीशु,तेरा लहू और धार्मिकता'' काउंट निकोलस जिनजेनदोर्फ,
           १७००–१७६०; जॉन वेस्ली द्वारा अनुवादित,१७०३–१७९१)

मसीह यीशु स्वयं हमारे लिये पवित्रता बने। पवित्र आत्मा हमें भी पवित्र बनाती है क्योंकि हम मसीह के साथ संयुक्त हैं। अगर कोई मसीह में है तो वह कुछ परिवर्तनों के साथ पुराना प्राणी नहीं रह जाता। नहीं! नहीं! “अगर कोई मसीह में है, वह एक नई रचना है; पुरानी बातें बीत गई है, देखो, सब नई हो गई है” (२ कुरंथियों ५:१७) पुराने स्वभाव को किसी अस्पताल भेज कर चंगा नहीं किया जा सकता। इसे क्रूस पर चढाया जाता है। इसे रूपांतरित या सुधारा नहीं जा सकता, किंतु इसे मारना पडता है और इसे गाड़ा जाता है। कितनी अजीब बात है, लोग सोचते हैं कि वे मसीह के पास क्षमा और न्याय के लिये आ सकते हैं; और मूसा के पास पवित्र बनने के लिये आ सकते हैं! ऐसा नहीं चलेगा! जब आप बचाये जाते हैं तब आप और पवित्र हो जाते हें - आप मसीह में विश्वास करने से और पवित्र हो जाते हैं। क्रूस पर मसीह आपके उद्धार का साधन है। अब क्रूस पर मसीह के अनुग्रह में आप आत्मिक रूप से बढ़ते जाते हो! यीशु हमें हमारे पापों से बचाते हैं, और हमारे लिये परमेश्वर के सामने ''पवित्रता'' बने रहते हैं। इन महान शब्दों को याद कीजिये,

जब गहरे पानी से होके जाने को तू बुलाये,
दुख की नदियां मुझे डुबो न सकेगी;
मैं तेरी हर परेशानी में तुझे आशीष दूंगा,
तेरे गहन दुख में तुझे पवित्र करूंगा।
   (''कैसी ठोस नींव है'' जॉर्ज कैथ, १६३८–१७१६)

अब, जो अंतिम लाभ हमारे लिये मसीह में हैं वह है “छुटकारा”। लोग कहते हैं, “क्या यह हमारा पहला, खास अधिकार नहीं होना चाहिये?” हां, किंतु यही अंतिम भी है। अगर आप मसीही हैं, आपको पाप से मुक्त होना चाहिये, किंतु उसकी सामर्थ में आप पूरी तरह से छुटकारा नहीं पाते हो। आप मर भी जायेंगे तब भी आपको पूर्ण छुटकारा नहीं मिलेगा। आप “लेपालक होने की, अर्थात अपनी देह के छुटकारे की बाट जोहते हैं।” (रोमियों ८:२३) हमारा छुटकारा मसीह में तभी पूरा होगा जब यीशु मसीह बादलों में हमारे लिये आयेंगे!

“क्योंकि प्रभु आप ही स्वर्ग से उतरेगा; उस समय ललकार, और प्रधान दूत का शब्द सुनाई देगा, और परमेश्वर की तुरही फूंकी जाएगी, और जो मसीह में मरे हैं, वे पहिले जी उठेंगे। तब हम जो जीवित और बचे रहेंगे, उन के साथ बादलों पर उठा लिए जाएंगे, कि हवा में प्रभु से मिलें, और इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे।” (१थिस्सलुनिकियों ४:१६-१७)

मेरा स्वयं का थका हुआ बूढा शरीर जीवित मसीह के समान बनाया जायेगा। हम सनातन छुटकारे के लिये मरे हुओं में से जी उठेंगे - और सनातन आनंद में हमेशा रहेंगे, क्योंकि हम मसीह यीशु में हैं, जो हमारे उद्धार का आरंभ व अंत है। किंतु मैं अब जल्दी से अंतिम बिंदु पर आता हूं।

३. तीसरा, मसीह यीशु को सारी प्रशंसा दी जानी चाहिये कि वह हमें बचाता है और चीजें प्रदान करता है।

मैं इस बात को जल्दी जल्दी बताउंगा।

“परन्तु उसी की ओर से तुम मसीह यीशु में हो, जो परमेश्वर की ओर से हमारे लिये ज्ञान ठहरा अर्थात धर्म, और पवित्रता, और छुटकारा। ताकि जैसा लिखा है, वैसा ही हो, कि जो घमण्ड करे वह प्रभु में घमण्ड करे” (१कुरंथियों १:३०‚३१)

भाईयों और बहनों, मसीह के रूप में हमारा अस्तित्व पूर्ण रूप से मसीह यीशु पर निर्भर करता है। जो सच में मसीह को जानते हैं वे उसमें महिमा पायेंगे - वे मसीह में घमंड करते हैं जो कुछ उसने उनके लिये किया।

मैं उन “गवाहियों” को सुनना नहीं पसंद करता जहां लोग केवल अपने बारे में बोलते जाते हैं, कि वे कैसे पापी थे, वे अपने बुराई से भरे जीवन की एक एक विस्तार में जानकारी देते हैं, कि वे कैसे बागी स्वभाव के थे, कैसा विकार युक्त जीवन था। वे अपनी गवाही का अंत यह बोलते हुये करते हैं - “और मैंने यीशु पर भरोसा किया।” वे यीशु को बहुत बाद का विचार जानकर प्रगट करते हैं। वे स्वयं को पांच मिनिट महिमा देते रहते हैं, अपने जीवन के बारे में हांकते रहते हैं - किंतु मसीह की महिमा में केवल एक या दो सैकंड ही बिताते हैं! इन गवाहियों से मुझे नाराजगी होती है! शायद परमेश्वर को भी!

“जो घमण्ड करे वह प्रभु में घमण्ड करे” (१कुरंथियों १:३०‚३१)

जब आप आपके महिमामयी मसीहा के बारे में कहते हो तो आप को अपनी गवाही में बहुत कुछ मसीहा के लिये कहना चाहिये! आपको बुद्धिमानी, धार्मिकता, पवित्रता और छुटकारा जो मसीह यीशु में है उस पर बोलने योग्य बनना चाहिये! आपको बार बार केवल मसीह प्रभु की महिमा के विषय में बोलते आना चाहिये।

अब जो बचाये नहीं गये हैं मैं उनसे कहता हूं। क्या आप यीशु के पास आयेंगे और इन आशीषों को प्राप्त करेंगे? जिस क्षण आप उस पर विश्वास लायेंगे उसी क्षण यीशु आपको बचायेंगे। उसका लहू आपको आपके, कैसे भी पाप क्यों न हो उनसे साफ करेगा। क्या यीशु के पास आयेंगे? या उसे ठुकराते रहेंगे और आत्मिक गरीबी में जीवन बिताते रहेंगे और एक दिन आपको धक्का लगेगा जब आप नरक के गढढे में गिर चुके होंगे? आप का क्या जवाब है?

(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व धर्मशास्त्र पढा गया मि.ऐबेल प्रुद्योमें: १कुरंथियों १:२६–३१‚
संदेश के पूर्व एकल गाना गाया गया। मि.बैंजामिन किन्केड गिफिथ:
“मुझे सिर्फ यीशु चाहिये” (लेखक अज्ञात)


रूपरेखा

मुझे सिर्फ यीशु चाहिये

द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स

“परन्तु उसी की ओर से तुम मसीह यीशु में हो, जो परमेश्वर की ओर से हमारे लिये ज्ञान ठहरा अर्थात धर्म‚ और पवित्रता‚ और छुटकारा। ताकि जैसा लिखा है‚ वैसा ही हो‚ कि जो घमण्ड करे वह प्रभु में घमण्ड करे।” (१कुरंथियों १:३०‚३१)

(१कुरंथियों १:३०‚३१)

१. प्रथम, मसीह यीशु के पास आने का अधिकार‚होशे११:४;
यूहन्ना ६:४४; इफिसियों २:६; २पतरस २:५; याकूब ४:९–१०;
मत्ती २२:१४

२. दूसरा, यीशु मसीह में विशेषअधिकार हमें उपलब्ध करवाये गये हैं
नीतिवचन १:७;इफिसियों १:६‚७;प्रकाशितवाक्य १२:११;
२ कुरंथियों ५:१७; रोमियों ८:२३; १थिस्सलुनिकियों ४:१६-१७

३. तीसरा, मसीह यीशु को सारी प्रशंसा दी जानी चाहिये कि वह हमें बचाता है
और चीजें प्रदान करता है‚१कुरंथियों १:३१