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मुक्तिदाता की शर्म

THE SAVIOUR’S SHAME
(Hindi)

द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

रविवार की संध्या, 30 मार्च 2014 को लॉस एंजीलिस के दि बैपटिस्ट टेबरनेकल में प्रचार किया गया संदेश
A sermon preached at the Baptist Tabernacle of Los Angeles
Lord’s Day Evening, March 30, 2014

''जिसने उस आनंद के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्जा की कुछ चिन्ता न करके, क्रूस का दुख सहा; और सिंहासन पर परमेश्वर के दाहिने जा बैठा’’ (इब्रानियों १२˸२)


यह संदेश सी.एच.स्पर्जन के ''प्रचारकों का राजकुमार'' नामक तीन बिंदु संदेश के केवल एक बिंदु से लिया गया है। परमेश्वर आपको आशीष दे!

मुझे आश्चर्य होता है कि आजकल के आधुनिक प्रचारक ईस्टर के पहले आने वाले रविवारों में मसीह के क्रूस पर दुख उठाने के बारे में प्रचार क्यों नहीं करते। वे ईस्टर संडे के पहले तक के रविवारों में अपनी विवरणात्मकशैली वाले संदेश और स्वयं सहायक संदेश को ही सुनाते हैं। उसके पश्चात अचानक पता नहीं कहां से विषय निकालकर यीशु के कब्र से निकलकर जी उठने का प्रचार करने लगते हैं!

डॉ. माईकल हारटन ने यहां तक बताया कि कई इवेंजलीकल प्रचारक तो ईस्टर के दिन भी यीशु के पुनरूत्थान का प्रचार नहीं करते हैं! उन्होंने एक उदारवादी धर्मविज्ञानी के बारे में बताया जिसके पास एक बडा इवेंजलीकल चर्च था। डॉ.माईकल ने सोचा कि वे शायद सुसमाचार प्रचार सुनेंगे। इसके बजाय उन्होंने यह संदेश सुना कि ''कैसे यीशु समस्त बाधाओं को पार करने की ताकत देता है।’’ तब डॉ. हॉरटन ने आगे एक उदारवादी मैथोडिस्ट धर्मविज्ञानी के बारे में बताया जो किसी अन्य ''बाईबल पर विश्वास रखने वाले'' चर्च में गया जहां यह संदेश सुनाया गया ''कि कैसे यीशु ने उनकी बाधायें पार की और इस तरह हम भी कर सकते हैं।'' वह मैथौडिस्ट प्राध्यापक यह कहते हुये गया कि उसके अनुभव ने इस विचार को पक्का कर दिया कि बाईबल पर विश्वास रखने वाले भी उन उदारवादियों के समान होते हैं जो ''लोकपिय मनोविज्ञान, राजनीति, या नैतिकता के उपर बात करते हैं बजाय सुसमाचार सुनाने के'' (माईकल हॉरटन,पी.एच.डी.,क्राइस्ट लेस किश्चयनिटि: दि अल्टरनेटिव गॉस्पल आँफ दि अमेरिकन चर्च, वेकर बुक्स,२००८, पेज २९‚३०)

आजकल मसीह के दुख उठाने व मौत के उपर बहुत कम प्रचार किया जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि प्रचारक सोचते हैं कि चर्च आने वाला प्रत्येक जन मसीही है - इसलिये उसे मसीह के दुख उठाने के बारे में सुनने की कोई आवश्यकता ही नहीं है। यही गलती प्रारंभिक उन्नीसवीं सदी के जर्मन चर्चेस ने भी की। लेविस ओ. ब्रास्टोव ने कहा कि जर्मनी में प्रचार इसलिये गलत साबित हुआ क्योंकि ऐसा माने जाने लगा था कि जो जन चर्च आ रहे हैं वे सब बचाये हुये हैं। डॉ. ब्रास्टोव ने कहा, ''एक बपतिस्मा पायी मंडली को मसीही मंडली माना जाना चाहिये और ऐसे ही संबोधित किया जाना चाहिये.......इससे कुछ हद तक जर्मन प्रचार का इस विषय में अप्रभावीपन प्रगट होता है'' (रिप्रेजेंटेटिव मॉडर्न प्रीचर्स, मेकमिलन, १९०४, पेज ११) अधिकतर बैपटिस्ट प्रचारक आज यही मानते हैं कि उनके सदस्य तो पहले से ही मसीही हैं, इसलिये मसीह की क्रूस पर यातना व मरने का प्रचार का कोई अर्थ ही नहीं है। इसी सोच के कारण मुझे निश्चय है कि हमारे चर्चेस में एक एक आयत समझाते जाने वाली प्रचार शैली का विकास हुआ है।

मेरे विचार से बचाये गये लोगों को भी मसीह के दुख सहने का वर्णन सुनना आवश्यक है। प्रेरित पतरस ने कहा था,

''क्योंकि मसीह भी तुम्हारे लिये दुख उठाकर,तुम्हे एक आदर्श दे गया है, कि तुम भी उसके चिन्ह पर चलो'' (१ पतरस २˸२१)

आज हमारे चर्चेस में मसीही किसी भी प्रकार के दुख उठाने से बचना चाहते हैं। वे रविवार की शाम की आराधना और मध्य सप्ताह की किसी प्रार्थना सभा में भी नहीं आते। एक कारण जो सत्य है कि उन्हें मसीही के दुख उठाने का स्मरण नहीं रहा - जिसके लिये प्रेरित पतरस ने कहा था कि ''वह एक आदर्श है, जिस पर हमें चलना है।'' एक आदमी ने मुझसे शिकायती लहजे में कहा कि चर्च आने के लिये उसे दोनों ओर चालीस मिनिट गाडी चलाकर आना पडता है। मैंने उससे कहा कि इससे उसका भला होगा। आखिर, मसीह ने ''हमारे लिये दुख उठाया, हमारे लिये एक आदर्श छोडा, ताकि हम भी उसके चिन्ह पर चलें।'' जैसा रोमियों ५˸३−५ में हमें बताया गया है, हम मजबूत चेले तभी बन सकेंगे जब हम मसीह के समान दुख उठाना सीख लें। हम अब दुबारा मसीह के, दुख उठाने व उसकी लज्जा झेलने की ओर बढेंगे जिससे गुजरकर उसने हमें बचाया,

''और विश्वास के कर्ता और सिद्ध करने वाले यीशु की ओर ताकते रहे; जिस ने उस आनंद के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्जा की कुछ चिन्ता न करके, कूस का दुख सहा और सिंहासन पर परमेश्वर के दाहिने जा बैठा'' (इब्रानियों १२˸२)

आज शाम मैं इन शब्दों को चुनकर बोल रहा हूं,''लज्जा की कुछ चिंता न करके यूनानी शब्द जो ''लज्जा'' के लिये अनुवादित किया गया है अर्थात ''आदरसूचक नहीं समझना'' या ''उसका महत्व न जानना।'' ऐलीकोट बताते हैं कि, ''शाब्दिक अर्थ बहुत बल पैदा करने वाला है, क्रूस का दुख सहा, लज्जा की कुछ चिंता न करके; जो आनंद उसके आगे रखा था वह आनंद उस लज्जापूर्ण क्रूस की मौत पर विजयी हुआ'' (चाल्र्स जॉन ऐलीकॉट, एडीटर, एलीकोटस कमेंटरी आँन दि व्होल बाईबल, वॉल्यूम ८, जोंडरवन पब्लिशिंग हाउस, एन.डी., पेज ३३६; इब्रानियों १२˸२ पर व्याख्या)

मेरा उददेश्य आज की शाम आपको यह बताने का है कि मसीह ने लज्जा जनक दुख उठाया। कितनी भयानक बात है कि यीशु को उन दिनों की इतनी बडी शर्मनाक दशा में से हमें बचाने के लिये होकर गुजरना पडा! जोसेफ हार्ट ने इसे कुछ इस तरह बयां किया। उन्होंने कहा,

देखें कैसे धीरज रखकर यीशु खडा है‚
   ऐसी भयानक जगह में अपमानित हुआ!
पापियों ने खुदा के हाथ बांध दिये थे,
   और रचनाकार के चेहरे पर थूका।
(''उसका दुख उठाना'' द्वारा जोसेफ हार्ट, १७१२−१७६८ पास्टर
   द्वारा आगे पीछे किया गया।)

हमारे भले के लिये, हमारे उद्धार पाने के लिये, यीशु ने चार तरीके से लज्जा झेली।

१. पहला‚ सोचिये यीशु के विरोध में शर्मनाक आरोप लगाये गये।

वह तो पाप से अज्ञात था। उसने कुछ गलत नहीं किया था। स्वयं पिलातुस, रोम का सर्वोच्च राजपाल जिसके पास भीड उसे ले गयी थी, उन्होंने उसके बारे में कहा; मैं ''इस आदमी में कोई दोष नहीं पाता” (लूका २३˸४) '' मैं तो उसमें कोई दोष नहीं पाता'' (यूहन्ना १८˸३८) तौभी यीशु के उपर बुरे प्रकार के पाप के आरोप लगाये गये। सनहेंदिन के समक्ष उसके उपर परमेश्वर की निंदा करने का आरोप लगाया गया। क्या यीशु परमेश्वर की निंदा कर सकता था? जो अपनी आत्मा में व्याकुल होकर रक्त के मानिंद पसीने से तरबतर होकर चिल्ला उठता है, ''पिता....मेरी नहीं, वरन तेरी मर्जी पूरी हो'' (लूका २२˸४२) नहीं, यीशु ने कभी भी अपने पिता, परमेश्वर की निंदा नहीं की। यह चूंकि उसके चरित्र के बिल्कुल विपरीत बात थी। अत: इस शर्मनाक आरोप ने उसे बहुत कष्ट दिया।

अगले दिन उन्होंने उस पर देश विरोधी होने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा यीशु गददार था, वह रोमी सम्राट के विरोध में था। उन्होंने कहा कि वह लोगों को बरगलाता है और स्वयं को राजा बताता है। बेशक यीशु पूर्ण रूप से निर्दोष था। जब लोगों ने उस पर राजा बनने के लिये जोर भी डाला, वह उन्हे छोडकर जंगल मं प्रार्थना करने चला गया। उसने पिलातुस के सामने स्वयं कहा, ''मेरा राज्य इस संसार का नहीं है'' (यूहन्ना १८˸३६) उसने कभी भी सरकार का विरोध नहीं किया। तौभी लोगों ने उस पर आरोप लगाये।

२. दूसरा, यीशु ने वह शर्मनाक उपहास सहा ।

यीशु ने अपना शर्मनाक उपहास भी सहन किया। उसे लगभग नग्न करके सिपाहियों ने कोडे मारे। उसका शरीर दो बार वस्त्रहीन किया गया। यद्यपि चित्रकार क्रूस पर यीशु के साथ एक कटि वस्त्र को चित्रित करते हैं; तथापि यीशु नितांत रूप से नग्न थे। लोगों की घूरती आंखों से अपने शरीर को बचाने के लिये और उपहास करती भीड के सामने शर्म से बचने के लिये यीशु बिल्कुल बेबस थे। उन्होंने तो यीशु के कुरते के लिये चिटठी डाली जबकि यीशु क्रूस पर अपने निर्वस्त्र होने की शर्म को ढांपने के लिये बिल्कुल असहाय थे।

उन्होने यीशु का परमेश्वर के पुत्र होने के कारण की भी हंसी उडाई। उन्होंने कहा, ''अगर तू परमेश्वर का पुत्र है, तो क्रूस से नीचे उतर आ'' (मत्ती २७˸४०) वे उसके उपर चिल्लाये;

''उस ने परमेश्वर पर भरोसा रखा है, यदि वह इस को चाहता है, तो अब इसे छुडा ले, क्योंकि इस ने कहा था, कि मैं परमेश्वर का पुत्र हूं। इसी प्रकार डाकू भी जो उसके साथ क्रूसों पर चढाये गए थे उस की निंदा करते थे’’ (मत्ती २७˸४३−४४)

उसने उन उपहास उडाते हुये लोगों को कुछ नहीं कहा - क्योंकि उसने ''लज्जा की कुछ चिन्ता न करके, क्रूस का दुख सहा’’ (इब्रानियों १२˸२)

उन्होंने फिर उसकी हंसी यह कहते हुये उडाई कि वह इजरायल का राजा है। वह तो वास्तव में आत्मिक तौर पर उनका राजा था, किंतु वे उससे चिढते थे, उसका मखौल उडाते थे, और उन्होंने यीशु को लज्जित किया। वह तो राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु था। वह तो इन लोगों को नष्ट करने के लिये हजारों की संख्या में स्वर्गदूत बुलवा सकता था। वह चाहता तो चिल्लाता और जमीन फट जाती और यही लोग उसमें समा जाते '' जीवित ही गडडे में समा जाते'' अपने ग्रंथों के साथ। ये लोग मूसा के विरोध में बोलते थे, ये ही लोग मसीह के विरोध में भी बोले (गिनती १६˸३३) वह उनके लिये स्वर्गदूत से भस्म करने वाली आग बुलवा सकता था ताकि वे जिन्दा ही जल जायें, जैसे एलियाह ने राजा अहाब के सैनिकों के साथ किया था ( २ राजा १˸९−१०) ''तौभी उसने अपने बचाव में अपना मुंह नहीं खोला'' (यशायाह ५३˸७)

उन्होंने उसके भविष्यवक्ता होने की भी हंसी उडाई। उन्होंने उसकी आखों पर पटटी बांधी। तब उन्होंने उसके चेहरे पर थप्पड मारे और कहा, ''हे मसीह, हम से भविष्यवाणी करके कह कि किस ने तुझे मारा?'' (मत्ती २६˸६८) हम भविष्यवक्ताओं से अब प्रेम रखते हैं। यशायाह ने मसीह के बारे में बिल्कुल स्पष्ट भविष्यवाणी की और हमारी आत्मा के उद्धार के लिये गहरी बातें कहीं उन्हें पढकर हम चकित हो जाते हैं। सचमुच हमें कितना दुख महसूस होता है जब, यीशु भविष्यवक्ता को, आंख पर पटटी बांधकर मारा गया, हंसी उडाई गई और महायाजक के महल में अपमानित किया गया!

उसने हमारे पुरोहित होने के रूप में भी उपहास सहा। यीशु इस संसार में हमारे लिये बलिदान होने वाले पुरोहित बन कर आये। किंतु उन्होंने उसके पुरोहित्व की भी हंसी उडाई। उस समय सारा उद्धार उन पुरोहितों के हाथ में ही थ। इसलिये वे मखौल उडाते हुये यीशु से कहते हैं, ''अगर तू मसीह है तो अपने आप को और हम को भी बचा'' यीशु तो स्वयं महायाजक था। वह तो स्वयं फसह का मेम्ना था। वह परमेश्वर का मेम्ना था जो जगत के पाप उठा ले जाता है। कितनी भयानक बात है कि उसे ऐसा निर्दयी उपहास सहन करना पडा! तौभी उसने क्रूस की यातना सही, ''लज्जा की चिंता न करके'' (इब्रानियों १२˸२)

३. तीसरा‚ उस शर्मनाक कोडे मारे जाने और क्रूसीकरण के बारे में सोचो।

उसे कोडे मारकर भी उसका उपहास उडाया गया। पूर्वी कलीसिया के कई लोग यीशु के कोडे मारे जाने का बडा भयानक वर्णन सुनाते हैं। हम नहीं कह सकते कि जो कुछ उन्होंने कहा वह तथ्य पर ही आधारित था। किंतु कोडे मारे जाना निसंदेह दर्दनाक होता था, क्योंकि भविष्यवक्ता ने कहा था,

''परंतु वह हमारे अपराधो के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के हेतु कुचला गया; हमारी ही शांति के लिये उस पर ताडना पडी, कि उसके कोडे खाने से हम चंगे हो जायें’’ (यशायाह ५३˸५)

उसकी पीठ पर अति क्रूरतापूर्ण तरीके से कोडे मारे गये - क्योंकि भविष्यवक्ता ने कहा था वह ''घायल किया गया, ''कुचला गया,'' ''उस पर ताडना पडी'' और कोडे मारे गये।'' हर बार जब कोडे की मार से उसकी पीठ का मांस निकलता तो वे कूर लोग पाशविक हंसी हंसते। उसके ताजे घावों से रक्त फव्वारा बनकर फूट पडता था, उसकी पसलियों पर से मांस निकला जाता था, इतनी घनघोर यातना के साथ वे उसके उपर हंस रहे थे, खिल्ली उडा रहे थे ऐसा बर्बर व्यवहार यीशु के दर्द को और भयानक बना रहा था। तौभी उसने हमारी भलाई के लिये, हमारे उद्धार के लिये, उस लज्जा को सहन किया!

और तब वह क्रूस पर चढा। उन्होंने उसे कीलों से ठोंक दिया। अपनी पाशविकता में वे तो उसकी दर्दनाक दशा पर भी हंस रहे थे। महायाजक और शास्त्री बैठकर उसका तमाशा देखते रहे और उसके सिर पर कांटों का मुकुट देखते रहे। मैं यह कहते हुये उन शास्त्रियों की कल्पना कर सकता हूं ,''कि वह अब भीड को कभी भी इकटठा नहीं कर सकेगा!'' ''हा, हा, हा, देखो अब ये हाथ कभी भी कोढियों को छू नहीं सकेंगे न चंगा कर पायेंगे, न यह मुरदों को कभी जिला पायेगा, यह कुछ नहीं कर पायेगा अब!'' उन्होंने उसका मन भर कर ठटटा उडाया। अंत में जब यीशु ने कहा,'' मैं प्यासा हूं,'' उन्होंने उसे सिरका मिला द्रव पीने को दिया - उसके शुष्क मुंह व सूजी हुई जीभ की भी हंसी उडाने लगे!

कैसा धीर यीशु खडा था,
   इस भयानक जगह पर लज्जित किया गया!
पापियों ने खुदा के हाथ बांध दिये,
   और रचनाकार के चेहरे पर थूका।

कांटों से उसका शरीर रक्त पिंड बना,
   हर अंग से लहू की फूटती धारा;
पीठ पर भारी कोडे की पडती मार,
   किंतु प्रचंड कोडा उसके दिल को बेध गया।

क्रूस! क्रूस! आज जब हम इन शब्दों को सुनते हैं तो हमें लज्जा के विचार नहीं आते। किंतु मसीह के समय में क्रूस सर्वाधिक दर्दनाक दंड हुआ करता था। इसकी दर्दनाक प्रकिया उन अपराधियों के लिये होती थी - जिन्होंने अपने मालिक का कत्ल किया हो, जो देश विरोधी हो, क्रूर अपराधी हो। क्रूस मौत को भयानक बना देता था और जो अपराधी थे उनके लिये क्रूस की मौत मरना भयंकर पीडा को सहन करना था- एक हत्यारा, एक हमलावर, एक बलवा करने वाला इन सब के लिये क्रूस का दंड तय था। इसमें मरने से पहले की प्रकिया बहुत लंबी व यातनापूर्ण होती थी। पुराने समय में, रोमियों द्वारा, दी जाने वाली क्रूस की मौत सर्वाधिक तडपाने वाली होती थी। हम इसे पूर्ण रूप से समझ भी नहीं सकते कि क्रूस की मौत कितनी लज्जा जनक होती थी। यहूदी इसे जानते थे रोमी इसे जानते थे। और मसीह इसे जानते थे कि नग्न कर कोडे मारा जाना और क्रूस पर ठोंका जाना क्या होता है। यीशु का दंड तो औरों से भी बढकर बहुत यातनापूर्ण था। उसे गलियों में से होते हुये अपना क्रूस उठाकर ले जाना था। उसे अपराधियों के बीच में टांगा गया। इस प्रकार उसकी मौत को और लज्जाजनक बना दिया गया। किंतु यीशु ने लज्जा की चिंता न करके क्रूस को सहा- हमारे उद्धार पाने के लिये, हमारा आदर्श बनने के लिये!

४. चौथा, यीशु के क्रूस के और करीब आयें, और उसकी और अधिक लज्जा को देंखे।

क्रूस! क्रूस! इसके बारे में विचार करते ही हमारे दिल दर्द से भर जाते हैं! जमीन पर एक लकडी का टुकडा पडा है। मसीह को पीठ के बल उस पर लेटाया जाता है। चार सिपाहियों ने उसके हाथ और पैर कील से ठोंक दिये। लहू की धारा बहने लगी। उसे हवा में उठाया गया। क्रूस का एक सिरा गडडे में धंसा था। उसकी भुजायें अव्यवस्थत हो रही थीं। प्रचंड खिंचाव होने से हडडी अपने स्थान से हट रही थी। वह वस्त्रहीन होकर शर्म को झेल रहा था, भारी भीड उसे इस पीडा में देख रही थी। उसके घायल कुचले शरीर पर तेज सूरज अपनी गर्मी उगल रहा था। शरीर ताप से तप रहा था। जुबान सूख कर तालू से चिपक रही थी। दर्द की अधिकतम सीमा थी जो असहनीय थी।

इन सब से भी बढकर एक खराब बात हुई, उसके साथ वह घटा जो शहीदों को ताकत दिया करता था। किंतु परमेश्वर ने उसका साथ यहां छोड दिया। अब पिता उसे मनुष्यों के पापों के बदले में चढाया गया दंड मान रहा था। अब पिता को ''यह भाया.....कि वह कुचला जाये; उसे दुख उठाने दिया जाये: वह पापों के बदले में एक बलिदान बनाया गया'' (यशायाह ५३˸१०) अब यहां यीशु क्रूस पर टंगा है - परमेश्वर का त्यागा हुआ और मित्रों का त्यागा हुआ!

उस शापित क्रूस पर नग्न टंगा‚
   जमीं ने देखा स्वर्ग ने देखा‚
रक्त पिंड बना घावों से भरपूर‚
   कुचले गये प्रेम का उदास मंजर।

देखें! उसकी दर्दनाक चींखे तैरती
   स्वर्गदूत द्रवित हो गये, यह मंजर देखकर;
रात ही उसके मित्र उसे छोड गये,
   और अब परमेश्वर भी उसे छोडता है!

यहां यीशु अकेला है। चेले मारे डर के भाग चुके हैं। परमेश्वर ने उसे दंड दिया और मुख फेर लिया। यीशु इस पीडा को झेलता, अपने ही रक्त में रंजित होकर लटका हुआ है! हमारे भले के लिये, हमारे उद्धार के लिये, वह घायल किया गया, कुचला गया, नष्ट किया गया, मौत होने तक उसकी आत्मा को पीडित किया गया।

प्राचीन समय में यीशु के इस वर्णन को सुनकर लोग रो दिया करते थे। कभी कभी तो वे आराधना में रो दिया करते थे। किंतु अब तो यह हमें केवल किताबो में ही पढने को मिलता है। आपकी पीढी ने तो, हजारों हजार हत्यायें टी.वी. पर देखी है, तो वह एक आंसू भी यीशु की कठोर यातना पर कैसे बहा सकती है। आपकी पीढी, तो पचपन लाख बच्चों की भ्रूण हत्या के रक्त से डूबी हुई है, तो कैसे वह दुख की एक आह भी निकाल सकती है, आपकी पीढी तो आपसी प्रेम से शुष्क पीढी है, तो कैसे यीशु के दुख से आपकी आंखें भर सकती है! अगर आपकी पीढी एक साधारण पीढी होती, तो आपके दिल में उस यीशु के लिये दर्द पैदा होता जो आपकी आत्मा को बचाने के लिये इतने दर्द से गुजरा।

मेरे दोस्तों, जरा सोचो तो, यीशु ने इतनी शर्म झेली सिर्फ आपके लिये। इतना दर्द सहा कि आपको उद्धार मिले, वह दुख उठाने में एक नमूना बन गया। क्रूस पर उसने यातना सही, लज्जा की कोई चिंता नहीं की।

''जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा। सो जब कि हम, अब उसके लोहू के कारण धर्मी ठहरे, तो उसके द्वारा गुस्से से क्यों ने बचेंगे'' (रोमियों ५˸८−९)

क्रपया अपने स्थान पर खडे होकर पेपर पर अंत में छपा हुआ गीत गाइये।

जिस क्रूस पर यीशु मरा था‚
   वह क्रूस अदभुत जब देखता हूं‚
संसारी लाभ को टोटा सा‚
   और यश को निन्दा जानता हूं।

मत फल जा मेरे मूरख मन‚
   इस लोक के सुख और संपत पर;
हो ख्रीष्ट के मरण से प्रसन्न‚
   और उस पर सारी आशा धर।

देख उसके सिर हाथ पावों के घाव‚
   वह कैसा दुख और कैसा प्यार;
अनूठा है यह प्रेम स्वभाव‚
   अनूप यह जग का तारणहार?

जो तीनों लोक दे सकता मैं‚
   इस प्रेम के योग्य यह होता क्यूं;
हे यीशु प्रेमी आप के तई‚
   मैं देह और प्राण चढाता हूं।
(“जिस क्रूस पर यीशु मरा था” डॉ. आइजक वाटस‚ १६७४−१७४८)

(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व धर्मशास्त्र पढा गया मि.ऐबेल प्रुद्योमें: मत्ती २६˸ ५९−६८
संदेश के पूर्व एकल गाना गाया गया मि.बैंजामिन किन्केड गिफिथ:
''उसका दुख उठाना'' (द्वारा जोसेफ हार्ट, १७१२−१७६८)


रूपरेखा

मुक्तिदाता की शर्म

द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स

''जिसने उस आनंद के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्जा की कुछ चिन्ता न करके, क्रूस का दुख सहा; और सिंहासन पर परमेश्वर के दाहिने जा बैठा’’ (इब्रानियों १२˸२)

(१पतरस २˸२१)

१. पहला‚ सोचिये यीशु के विरोध में शर्मनाक आरोप लगाये गये‚
लूका २˸३४ यूहन्ना १८˸३८; लूका २२˸४२;यूहन्ना १८˸३६

२. दूसरा, यीशु ने वह शर्मनाक उपहास सहा‚ मत्ती २७˸४०‚४३−४४;
गिनती १६˸३३;२राजा १˸९−१०; यशायाह ५३˸७ ;मत्ती २६˸६८

३. तीसरा‚ उस शर्मनाक कोडे मारे जाने और क्रूसीकरण के बारे में सोचो
यशायाह ५३˸५

४. चौथा, यीशु के क्रूस के और करीब आयें, और उसकी और अधिक लज्जा को देंखे‚यशायाह ५३˸१०; रोमियों ५˸८−९