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वे पुर्नजीवित हुए — जैसा उन्होंने कहा था!

HE IS RISEN – AS HE SAID!
(Hindi)

डॉ आर एल हायमर्स जूनि.
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

लॉस ऐंजीलिस के बैपटिस्ट टैबरनेकल में २० अप्रैल‚ २००३ रविवार
संध्या पर दिया गया संदेश
A sermon preached at the Baptist Tabernacle of Los Angeles
Lord's Day Evening, April 20, 2003

‘‘वे यहाँ नहीं हैं परन्तु अपने वचन के अनुसार जी उठे हैं" (मत्ती २८:६)


मेरा जन्म ईस्टर से एक दिन पूर्व जिसे लोग ‘‘पवित्र शनिवार" कहते हैं‚ १२ अप्रैल १९४१ के दिन दोपहर ४ बजे हुआ। अगली सुबह वे मुझे अस्पताल के कमरे में लेकर आए और मेरी मां के हाथों में दिया। मां मुझे ये बात अनेक बार बताया करती थीं। मुझे गोद में लेकर उन्होंने अस्पताल की खिड़की से सामने बगीचे में बने ग्लैंडेल के कब्रिस्तान की ओर देखा। उस सुबह कब्रिस्तान की उस पहाड़ी पर सैकड़ों सफेद कबूतरों को उड़ाया जा रहा था। मेरी मां मुझे हाथ में लिए कबूतरों के उस बड़े झुंड को देखती रही। मां के मन में मसीह के पुर्नजीवित होने का ख्याल आया।

छप्पन साल के बाद मैं अपनी मां की कब्र के पास खड़ा था और बुलडोजर उनके ताबूत पर मिटटी डाल रहा था। उस क्षण मसीह के कहे ये शब्द मेरे दिमाग में गूंजने लगे:

‘‘यीशु ने उस से कहा‚ पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूं‚ जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए‚ तौभी जीएगा। और जो कोई जीवता है‚ और मुझ पर विश्वास करता है‚ वह अनन्तकाल तक न मरेगा" (यूहन्ना ११:२५—२६)

मां की कब्र से मैंने इन्हीं शब्दों को दोहराते हुए विदा ली‚ ‘‘जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए‚ तौभी जीएगा।" मैं यीशु की बातों पर यकीन कर सकता था क्योंकि मैं जानता था कि वे स्वयं मर कर जीवित हुए थे। मेरी मां भी किसी दिन फिर से कब्र से जीवित होगी और यीशु से बादलों में मिलेगी‚ क्योंकि यीशु ने मृत्यु को जीत लिया है।

‘‘तुम यीशु नासरी को‚ जो क्रूस पर चढ़ाये गये‚ ढूंढ़ती हो: वे जी उठे हैं यहां नहीं हैं; देखो‚ यही वह स्थान है‚ जहां उन्हें रखा था" (मरकुस १६:६)

‘‘वे यहाँ नहीं हैं परन्तु अपने वचन के अनुसार जी उठे हैं" (मत्ती २८:६)

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१॰ पहिली बात‚ यह संदेश मसीह के शिष्यों ने दिया था।

जब मसीह मरकर पुनः जीवित हुए तब सभी शिष्योंने उन्हें देखा था। उनकों देखने के विषय में सारे शिष्य दृढ़ निश्चयी थे एवं लूका ने तो इतना तक लिख दिया कि‚

‘‘और मसीह ने दु:ख उठाने के बाद बहुत से बड़े प्रमाणों से (मरणोपरांत) अपने आप को उन्हें जीवित दिखाया‚ और चालीस दिन तक वह उन्हें दिखाई देते रहे और परमेश्वर के राज्य की बातें करते रहे" (प्रेरितों के कार्य १:३)

आज प्रात:काल के उपदेश में‚ मैं मसीह के पुर्नजीवित होने संबंधी तीन प्रमाण प्रस्तुत करूंगा। मैं आज की रात्रि के उपदेश में इन तीन बिंदुओं को नहीं दोहराउंगा। इसके बजाय मैं सिर्फ इतना कहूंगा कि मसीह के अनुयायी मानते थे कि उन्होंने मसीह के मरकर जीवित होने के ‘‘अभ्रांत प्रमाणों" को देखा था।

उनके पुर्नजीवित होने के उपरांत बहुत सारे लोगों ने उन्हें देखा था। १ कुरूंथियों में पौलुस प्रत्यक्षदर्शियों की एक लंबी फेहरिस्त देते हैं‚

‘‘और कैफा को (अर्थात पतरस को) तब बारहों को दिखाई दिए। फिर पांच सौ से अधिक भाइयों को एक साथ दिखाई दिए.........फिर याकूब को दिखाई दिए‚ तब सब प्रेरितों को दिखाई दिए। और सब के बाद मुझ को भी दिखाई दिए‚ जो मानो अधूरे दिनों का जन्मा हूं" (१ कुरूंथियों १५:५—८)

शिष्यों के प्रचार का मुख्य विषय मसीह का पुर्नजीवित होना होता था। जब मसीह को क्रूस पर चढ़ाया गया तब उनके शिष्य मारे भय के उन्हें छोड़कर भाग गये थे‚ उस समय ऐसा जान पड़ा मानो मसीह के दुनिया में आने के प्रयोजन का ही अंत हो गया। किंतु क्रूस पर चढ़ाये जाने के पचास दिनों के उपरांत तो यरूशलेम की गलियां उन लोगों की पुकार से गूंज गयी‚ जिन्होंने संदेश सुनाना आरंभ किया कि यहोवा ने यीशु को मरे हुओं में से जीवित किया और वे इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी थे। ये लोग प्रेरित कहलाए। अंग्रेजी का ‘‘एपोस्टल" शब्द‚ यूनानी शब्द ‘‘एपोस्टोलस" से निकला है और इसका अर्थ है ‘‘एक संदेशवाहक" जिसे संदेश लेकर भेजा गया हो (स्ट्रॉंग कंकोर्डेस‚ नंबर ६५२)। और उनका संदेश सरल सा था — ‘‘वे यहाँ नहीं हैं परन्तु अपने वचन के अनुसार जी उठे हैं" (मत्ती २८:६) ।

प्रेरित पतरस का कथन था:

‘‘उसी को.........तुम ने अधमिर्यों के हाथ से क्रूस पर चढ़वा कर मार डाला। परन्तु उसी को परमेश्वर ने मृत्यु के बन्धनों से छुड़ाकर जिलाया: क्योंकि यह अनहोना था कि वह उसके वश में रहता" (प्रेरितों के कार्य २:२३—२४)

तब पतरस कहते हैं:

‘‘इसी यीशु को यहोवा परमेश्वर ने जिलाया‚ जिस के हम सब गवाह हैं" (प्रेरितों के कार्य २:३२)

उसी प्रकार प्रेरित पौलुस का कथन था:

‘‘और यहोवा परमेश्वर ने अपनी सामर्थ से प्रभु को जिलाया और हमें भी जिलाएगा" (१ कुरूंथियों ६:१४)

‘‘इसी यीशु को परमेश्वर ने जिलाया‚ जिस के हम सब गवाह हैं" (प्रेरितों के कार्य २:३२)। तो इस तरह प्रेरितों और सैकड़ों शिष्यों ने इस साहसी गवाही को दिया कि उन्होंने मरणोपरांत सशरीर जीवित हुए यीशु मसीह को देखा था! उन सभी के कहने का यह भाव था‚

‘‘वे यहाँ नहीं हैं परन्तु अपने वचन के अनुसार जी उठे हैं" (मत्ती २८:६)

२॰ दूसरी बात‚ इसी संदेश को फैलाने के कारण शिष्यों ने दुख उठाया और मारे गये।

मसीह के पुर्नजीवित होने का संदेश फैलाने के कारण उनके सारे प्रेरित मार डाले गये। यूहन्ना नामक शिष्य को छोड़कर‚ इस प्रचार की वजह से सभी प्रेरित मारे गये — यूहन्ना को उन्होंने उबलते तेल के कुंड में डाल दिया और वह बड़ी मुश्किल से मौत के मुंह से बचा। उसके बाद उनको पतमुस टापू पर निकाला दे दिया गया‚ उनका पूरा शरीर तेल से जले निशानों से भरपूर था। पतरस को उल्टा क्रूस पर लटका दिया गया था। पौलुस का सिर कलम कर दिया गया था। यीशु के भाई यहूदा को पत्थरवाह कर करके मौत के घाट उतार दिया गया था। यूहन्ना के भाई यहूदा को तलवार के वार से मार दिया गया। थोमा भाले से मारे डाले गये। तदै को तीरों से मारा गया। बरतुल्मैं की जीते जी खाल निकाल ली गयी और उसके बाद उल्टा क्रूस पर लटका दिया। लूका को भी फांसी दी गयी। और शिष्य मरकुस, सम्राट नीरों के शासनकाल में आठवें साल में शहीद की मौत मरे (संदर्भ जोश मैकडावेल, ऐ रेडी डिफेंस, थॉमस नेल्सन‚ १९९३‚ पेज ४३६)। इतिहासकार फिलिप शॉफ का कहना था कि ‘‘मसीह के पुर्नजीवित होने से इंकार करने के बजाय प्रेरितों द्वारा जान देने की इच्छा रखना‚ मसीही आध्यात्मिकता के सबसे बड़े प्रमाणों में से एक है और यही मसीही धर्म का अविनाशी जीवन है” (फिलिप शॉफ‚ हिस्ट्री ऑफ दि क्रिश्चियन चर्च, इयर्डमंस, १९१०, वॉल्यूम १‚ पेज ८) जोश मैकडावेल का कथन था कि “इन व्यक्तियों ने नैतिक और आचार संबंधी ईमानदारी को अपने जीवन से बढ़कर महत्वपूर्ण माना। ऐसे मसीही अनुयायी क्रोध में जलते हुए कट्टरपंथी कदापि नहीं थे। न ही वे जीवन के किसी खास दर्शन के प्रति जुनून रखने वाले भक्त थे। वे सरल से स्त्री पुरूष थे जो केवल अपने रक्त बहाने के द्वारा इतना भर कहना चाहते थे कि उन्हें इस सत्य से इंकार नहीं कि नाजरथ के यीशु इस पृथ्वी पर हुए, उन्होंने शिक्षा प्रदान की‚ मारे गये और मरने के उपरांत इसलिए जीवित किए गये कि ये प्रकट हो कि वे ही मसीहा और प्रभु व यहोवा हैं” (जोश मैकडावेल‚ उक्त संदर्भित‚ पेज ४३७) प्रेरित पौलुस तो इतनी प्रबलता से मसीह के पुर्नजीवित होने पर विश्वास करते थे कि ये उनकी घोषणा थी, “क्योंकि मेरे लिये जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है” (फिलिप्पयों १:२१)

आप इन सभी शिष्यों पर भरोसा कर सकते हैं जिनका विश्वास इतना पुख्ता था कि उन्होंने इस सत्य की घोषणा के लिए मौत का चुनाव करना पसंद किया

“वे यहाँ नहीं हैं परन्तु अपने वचन के अनुसार जी उठे हैं” (मत्ती २८:६)

३॰ तीसरी बात‚ यह संदेश आप को उम्मीद और उद्धार दिला सकता है।

“वे यहाँ नहीं हैं परन्तु अपने वचन के अनुसार जी उठे हैं” (मत्ती २८:६)

इन शब्दों की ताकत और इस घटना के अनुभव ने इतिहास की धारा को मोड़ कर रख दिया और सदियों तक लाखों लोगों को उम्मीद और उद्वार प्रदान करते आए हैं।

यहोवा ने अपने पुत्र को भेजा‚ लोग उन्हें यीशु कहते थे;
वे प्रेम करने‚ रोग ठीक करने‚ क्षमा के लिए आए;
मेरे पापों की क्षमा मोल लेने हेतु वे जिए और मरे,
उनकी खाली कब्र प्रमाण है कि मेरे मसीहा जीवित हैं।

वे जिंदा हैं इसलिए मैं कल का सामना कर सकता हूं;
वे जिंदा हैं इसलिए सारा भय जाता रहा है;
क्योंकि मैं जानता हूं कि मेरा भविष्य उनके हाथों में हैं‚
मेरा जीना इसलिए खास है क्योंकि वे जीवित हैं।
(“बीकॉज ही लिव्स” गीत रचनाकार बिल गैथर)

यीशु के वचन थे,

“इसलिये कि मैं जीवित हूं तुम भी जीवित रहोगे” (यूहन्ना १४:१९)

उन्होंने यह भी कहा था‚

“तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो मुझ पर भी विश्वास रखो” (यूहन्ना १४:१)

इसके बाद उन्होंने कहा‚

“मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता” (यूहन्ना १४:६)

बाइबल अनुसार मसीह के पुर्नजीवित होने का वर्णन‚ सीधे जीवित मसीह से आप का सामना करवाता है। अब निर्णय आप को करना है। क्या आप मसीह पर विश्वास करने का चुनाव करेंगे और उनके द्वारा अपने पापों से उद्धार पाएंगे? क्या आप नये जन्म लेने के इच्छुक हैं? हमारा सरल सा संदेश आप के लिए हैः मसीह का चुनाव कीजिए — और आप सदा काल तक जीवित रहेंगे!

“वे यहाँ नहीं हैं परन्तु अपने वचन के अनुसार जी उठे हैं” (मत्ती २८:६)


अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स आप से सुनना चाहेंगे। जब आप डॉ हिमर्स को पत्र लिखें तो आप को यह बताना आवश्यक होगा कि आप किस देश से हैं अन्यथा वह आप की ई मेल का उत्तर नहीं दे पायेंगे। अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स को इस पते पर ई मेल भेजिये उन्हे आप किस देश से हैं लिखना न भूलें।। डॉ हिमर्स को इस पते पर rlhymersjr@sbcglobal.net (यहां क्लिक कीजिये) ई मेल भेज सकते हैं। आप डॉ हिमर्स को किसी भी भाषा में ई मेल भेज सकते हैं पर अंगेजी भाषा में भेजना उत्तम होगा। अगर डॉ हिमर्स को डाक द्वारा पत्र भेजना चाहते हैं तो उनका पता इस प्रकार है पी ओ बाक्स १५३०८‚ लॉस ऐंजील्स‚ केलीफोर्निया ९००१५। आप उन्हें इस नंबर पर टेलीफोन भी कर सकते हैं (८१८) ३५२ − ०४५२।

(संदेश का अंत)
आप डॉ.हिमर्स के संदेश इंटरनेट पर प्रति सप्ताह पढ सकते हैं
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पांडुलिपि संदेशों का कॉपीराईट नहीं है। आप उन्हें बिना डॉ.
हिमर्स की अनुमति के भी उपयोग में ला सकते हैं। यद्यपि डॉ.
हिमर्स के सारे विडियो संदेश का कॉपीराईट है और उन्हें
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संदेश के पूर्व धर्मशास्त्र का पद पढ़ा गयाः यूहन्ना ११:२५—२६
संदेश के पूर्व एकल गान की प्रस्तुतिः ‘‘मैं यीशु के साथ होना चाहूंगा" (रिया एफ मिलर,
१९२२; संगीत रचना जार्ज बेवरली शिया‚ १९०९—)


रूपरेखा

वे पुर्नजीवित हुए — जैसा उन्होंने कहा था!

HE IS RISEN – AS HE SAID!

डॉ आर एल हायमर्स जूनि.

‘‘वे यहाँ नहीं हैं परन्तु अपने वचन के अनुसार जी उठे हैं"
(मत्ती २८:६)

(यूहन्ना ११:२५—२६; मरकुस १६:६)

१॰ पहिली बात‚ यह संदेश मसीह के शिष्यों ने दिया था‚ प्रेरितों १:३;
१ कुरूं १५:५—८; प्रेरितों २:२३—२४; प्रेरितों २:३२; १ कुरूं ६:१४

२॰ दूसरी बात‚ इसी संदेश को सुनाने के कारण उन्होंने दुख उठाया और मारे गये‚
फिलिप्पयों १:२१

३॰ तीसरी बात‚ यह संदेश आप को उम्मीद और उद्धार दिला सकता है‚
यूहन्ना १४:१९‚ १‚ ६