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तीन शब्द जो प्रारंभिक चर्च का
रहस्य प्रकट करते हैं!

THREE WORDS GIVE THE SECRET
OF THE EARLY CHURCH!
(Hindi)

डॉ आर एल हिमर्स द्वारा
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

ल्योस ऐंजीलिस बैपटिस्ट टैबरनेकल‚ रविवार संध्या १९ नवंबर‚ २०१७
को प्रचार किया गया संदेश
A sermon preached at the Baptist Tabernacle of Los Angeles
Lord's Day Evening, November 19, 2017

‘‘और वे प्रति दिन एक मन होकर मन्दिर में इकट्ठे होते थे‚ और घर घर रोटी तोड़ते हुए आनन्द और मन की सीधाई से भोजन किया करते थे। और परमेश्वर की स्तुति करते थे‚ और सब लोग उन से प्रसन्न थे: और जो उद्धार पाते थे‚ उन को प्रभु प्रति दिन उन में मिला देता था" (प्रेरितों के कार्य २:४६‚४७)


हमारे चर्चेस निष्प्राय हो रहे हैं‚ उनमें कलह व्याप्त है। चर्चेस ८८‰ से अधिक १६ से ३० वर्ष के युवाओं को खोते जा रहे हैं। प्रसिद्ध सर्वेक्षणकर्ता जार्ज बारना वर्षो से हमें यह बताते आ रहे हैं। दि सदर्न बैपटिस्ट कौंसिल ऑन फैमेली लाईफ के अनुसार ८८‰ बच्चे जो बाइबल सुसमाचार पर विश्वास रखने वाले घरों में बढ़े होते हैं‚ वे (लगभग) १८ की उम्र में कभी पलट कर न आने के लिये चर्च छोड़ देते थे (बैपटिस्ट प्रेस जून १२‚ २००२ ) । साथ ही‚ यह भी सर्वज्ञात है कि हमारे चर्चेस मुश्किल से किसी युवा जन को उद्धार पाने के अनुभव तक लेकर आये हों। डॉ जेम्स राबर्टसन के अनुसार चर्च की सदस्यता में वृद्धि लोगों के स्थानांतर के कारण होती है। (‘‘फोकस ऑन दि फैमेली न्यूजलैटर‚" अगस्त १९९८) । जैन हैटमेकर‚ एक इवेंजलीकल लेखक ने कहा था‚ ‘‘हम नये लोगों को (चर्च में) ला भी नहीं पाते हैं और लाने के बाद उन्हें रख भी नहीं पाते हैं। लगभग आधे से अधिक अमेरिकन चर्चेस ने एक भी सदस्य परिवर्तन की दर से नहीं जोड़ा है........ ९४‰ चर्चेस में वृद्धि नहीं हो रही है या फिर वे जिस समाज में रहते हैं उसमें अपने ही (सदस्यों) को खोते जा रहे है........यह चलन अपने पतन की सीमा पर स्पष्टतया तेजी से बढ़ रहा है‚ (क्रिश्चयनिटी का बचे रहना अब दांव पर लगा हुआ है) । (इंटरप्टेड: व्हेन जीजस रेक्स योअर कंफर्टेबल क्रिश्चियनिटी‚ नव प्रेस‚ २०१४‚ पेज ७९‚ ८०)

अब जरा सदर्न बैपटिस्टों की हालत को देखिये। ‘‘कैलीफोर्निया सदर्न बैपटिस्ट" पेपर में छपी कैरोल पाईप्स की रिपोर्ट के अनुसार‚ ‘‘चर्चेस ने (पिछले साल) २००‚००० सदस्यों को खो दिया। वर्ष १८८१ से अभी तक की सबसे बड़ी हानि (चर्चेस की वार्षिक प्रोफाईल अनुसार) ........पिछले दस सालों में बपतिस्मा की गिरती दर है...... पिछला वर्ष‚ १९४७ से अभी तक बपतिस्मा की संख्या में सर्वाधिक गिरावट का साल दर्ज किया गया। थॉम रैनियर (एक एस बी सी अधिकारी) ने कहा‚ ‘मेरा हृदयदुखित होता है‚ यह देखकर कि सारे डिनोमीनेशंस का एक ही मुख्य विषय है...... सदस्य संख्या में गिरावट।’ एक और (अन्य प्रमुख सदर्न बैपटिस्ट) फ़्रैंक पेज के अनुसार‚ ‘सच्चाई यह है कि हमारे चर्चेस में कम लोग हैं जो कम पैसा दे रहे हैं क्योंकि हम मसीह के लिये लोगों को जीत (नहीं) रहे हैं‚ हम उन्हें प्रभु के आत्मिक अनुशासन में प्रशिक्षित नहीं कर रहे हैं।’ वह तो यह भी कहते रहे‚ ‘प्रभु हमें क्षमा करें ........परमेश्वर हमारी सहायता करें कि हम प्रारंभिक चर्चेस में प्रचलित शिष्यता के प्रमुख लक्ष्य के प्रति ........गंभीर हो सकें’" (उक्त संदर्भित‚ पेज ४) ।

ये आंकड़ें हमें अमेरिका के चर्चेस की निराशाजनक‚ हताश कर देने वाली तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। चर्च स्वयं अपने सदस्यों को ही खोते जा रहे हैं एवं इस भटके हुए संसार से एक भी आत्मा को नहीं बचा पा रहे हैं। उत्तम से उत्तम कहलाये जाने वाले चर्चेस भी बाहर के भटके हुए संसार से बिल्कुल न के बराबर व्यक्तियों को अपने में मिला पा रहे हैं।

पूरे पाश्चात्य जगत और अमेरिका के चर्चेस की यह दयनीय दशा है। अब प्रेरितों के कार्य में वर्णित चर्चेस की हमारे चर्च से तुलना कीजिए। मैं पुन: अपना पद पढूंगा‚

‘‘और वे प्रति दिन एक मन होकर मन्दिर में इकट्ठे होते थे‚ और घर घर रोटी तोड़ते हुए आनन्द और मन की सीधाई से भोजन किया करते थे। और परमेश्वर की स्तुति करते थे‚ और सब लोग उन से प्रसन्न थे: और जो उद्धार पाते थे‚ उन को प्रभु प्रति दिन उन में मिला देता था" (प्रेरितों के कार्य २:४६‚४७)

देखिये कितना विरोधाभास है! वे कितने आनंद से भरे हुए होते थे! वे प्रतिदिन एकत्रित होते थे! वे निरंतर परमेश्वर यहोवा की स्तुति किया करते थे! ‘‘और जो उद्धार पाते थे‚ उन को प्रभु प्रति दिन उन में मिला देता था" (प्रेरितों के कार्य २:४७)

डॉ मार्टिन ल्योड जोंस ने कहा था‚ ‘‘जिस स्थान पर हमें जाना चाहिये‚ वह प्रेरितों की पुस्तक है। यहां हमें (मजबूत बनाने वाली औषधि) दवा प्राप्त होगी‚ यह ताजगी का स्थान है। यहां हम महसूस करते हैं कि परमेश्वर का आत्मा उन प्रारंभिक कलीसियाओं में कंपायमान होता था" (आथेंटिक क्रिश्यचनिटी‚ वॉल्यूम १ (प्रेरितों के कार्य १−३)‚ बैनर ऑफ ट्रूथ ट्रस्ट‚ पेज २२५) पहली सदी के चर्च के आनंद‚ जुनून और सामर्थ के बारे में पढ़ना हमें प्रफुल्लित कर देता है! मैं डॉ माईकल ग्रीन की पुस्तक‚ इवेंजलिज्म इन दि अर्ली चर्च (इयर्डमंस‚ २००३ संस्करण) पढ़कर प्रेरित हुआ हूं। इस पुस्तक को पढ़कर और साथ ही साथ प्रेरितों के कार्य पुस्तक को पढ़कर, मुझे नये नियम बाइबल में कई यूनानी भाषा के शब्द मिले जो पहली सदी के आरंभिक चर्चस का चित्रण प्रस्तुत करते हैं।

१॰ पहली बात‚ हमें यूनानी शब्द ‘‘कुरियोज" मिलता है।

अंग्रेजी में इस शब्द का अर्थ ‘‘प्रभु" होता है। इसका अर्थ होता है ‘‘परमेश्वर"‚ ‘‘स्वामी"‚ ‘‘मालिक‚" ‘‘शासक।" प्रेरितों की पुस्तक १०:३६ में शिष्य पतरस इस शब्द का प्रयोग यीशु के विषय में बताते हुए करते हैं‚

‘‘(जो सब का प्रभु है) शान्ति का सुसमाचार सुनाया" (प्रेरितों की पुस्तक १०:३६)

डॉ ग्रीन को सुनिये कि वह बताते हैं कि कैसे आरंभिक मसीही जन यीशु का प्रचार और उनके प्रति गवाही देने का कार्य करते थे‚

हम उन्हें यह शुभ संदेश फैलाते हुए पाते हैं कि यीशु ही मसीहा हैं अथवा उन्हीं के द्वारा प्राचीन प्रतिज्ञाएं पूर्ण हुई हैं। हम उन्हें यीशु शांति का दाता‚ यीशु की प्रभुता‚ यीशु का क्रूस‚ यीशु का पुनरूत्थान‚ इस प्रकार का शुभ संदेश सुनाते हुए या केवल साधारणतः यीशु के बारे में ही बताते हुए पाते हैं। शुभ संदेश सुनाने वाले प्रारंभिक प्रचारकों के पास पास केवल एक ही विषय होता था‚ और वह था यीशु! ........ओरिजेन (१८५−२५४) ने कहा था‚ जीवन एक भली बात है परंतु उत्तम बात है कि यीशु जीवन है। दूसरी अच्छी बात है संसार का प्रकाश होनाः परंतु यीशु ही वह प्रकाश है यह मुख्य सत्य है। यही बात सत्य‚ द्वार और पुर्नरूत्थान के लिये कही जा सकती है। और ये सारी बातें मसीहा कहते हैं कि वे स्वयं ही हैं। ओरीजेन ‘‘मूल प्रेरितों का या (जिन्होंने प्रेरितों से सीखा) था‚ उनका ख्रीस्तीय केद्रित (शुभ संदेश) सुनाने वाला स्वभाव दोहराते हैं" ........ओरीजेन ने शुभ संदेश प्रचार का संपूर्ण उददेश्य प्रकट किया; ‘‘इस धरती पर मसीह के जीवन के ज्ञान को निरंतर करना और उनके द्वितीय आगमन के लिये लोगों को तैयार करना" (ग्रीन‚ उक्त संदर्भित‚ पेज ८०‚ ८१)

आरंभिक मसीही स्वयं की सहायता कैसे करें जैसे संदेश नहीं सुना करते थे। वे बाइबल से एक के बाद एक पद की व्याख्या नहीं सुना करते थे। जो वे लगातार सुनते थे‚ वह सुसमाचार हुआ करता था − मसीह का मरण‚ गाड़ा जाना‚ ‘‘कुरियोज" प्रभु यीशु मसीह का पुर्नरूत्थित होना! ‘‘जो सब का प्रभु है" (प्रेरितों का कार्य १०:३६)

किसी दूसरे चर्च के सदस्य ने मेरी आलोचना की कि मैं अपने संदेश का अंत हमेशा मसीह की मृत्यु और पुर्नरूत्थान से करता हूं। मैंने इस बात पर लंबे समय तक विचार किया। तब मुझे स्मरण हो आया कि स्पर्जन क्या कहते थे‚ ‘‘कि मैं एक पद लेता हूं‚ उसको समझाता हूं और फिर मूल बात है कि उसे (सीधे क्रूस से) जोड़ देता हूं।" स्पर्जन‚आरंभिक मसीहियों के समान ही ख्रीस्त क्रेद्रिय थे − केवल एकमात्र यीशु मसीह पर क्रेदित रहते थे‚ प्रभु यीशु मसीह पर! मूल बात यह है कि आरंभिक चर्च बहुत आसानी से यह कोरस गाने योग्य कार्य कर रहा था‚

आप प्रभु हैं‚ आप प्रभु हैं‚
   आप मृतक में से जीवित हुए हैं
और आप प्रभु हैं।
   हरेक घुटना झुकेगा‚ हरेक जीभ अंगीकार करेगी‚
कि यीशु मसीह प्रभु हैं।
   (‘‘वह प्रभु हैं" मार्विन वी. फ्रे‚ १९१८−१९९२)

इसे मेरे साथ गाइये!

आप प्रभु हैं‚ आप प्रभु हैं‚
   आप मृतक में से जीवित हुए हैं
और आप प्रभु हैं।
   हरेक घुटना झुकेगा‚ हरेक जीभ अंगीकार करेगी‚
कि यीशु मसीह प्रभु हैं।

पहला शब्द ‘‘कुरियोज" उनके संदेशों में यीशु की प्रमुखता एवं यीशु उनके जीवनों के प्रभु हैं‚ इसे प्रगट करता है! इसमें कोई आश्चर्य नहीं जो प्रेरित पौलुस ने कहा था‚

‘‘परन्तु हम तो उस क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह का प्रचार करते हैं" (१ कुरूंथियों १:२३)

‘‘मैं ने यह ठान लिया था कि तुम्हारे बीच यीशु मसीह‚ वरन क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह को छोड़ और किसी बात को न जानूं" (१ कुरूंथियों २:२)

हमें निरंतर क्रूसित मसीह और पुर्नरूत्थित मसीह का प्रचार करते जाना है। यही हमारा हमेशा के लिये मुख्य संदेश होना चाहिये! मैं जानता हूं कि बहुत से चर्च इस मापदंड को पूरा नहीं कर रहे हैं। यही कारण है किआज चर्चेस निष्प्राय हुए जा रहे हैं!

आज मुस्लिम अतिवादी लोगों को उनके साथ मरने के लिये बुलाते हैं। अमेरिका और पश्चिम देशों में हजारों हजार युवा यही कर रहे हैं। आयसिस उन्हें आमंत्रित करती है‚ शरीर पर बम बांधती है और लोगों की जानें लेने के लिये उन्हें भेजती है। प्रभु यीशु मसीह ऐसा नहीं करते हैं। वें तो आप को आमंत्रित करते हैं कि आइये और अनंत जीवन के उपहार को ग्रहण कीजिए। मसीह हमसे प्रतिज्ञा करते हैं‚ ‘‘मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूं और वे कभी नाश न होंगे" (यूहन्ना १०:२८) प्रभु यीशु मसीह आप को उनके शिष्य हो जाने के लिये बुलाते हैं। प्रभु यीशु मसीह यह भी कहते हैं‚ ‘‘यदि (कोई) मेरे पीछे आना चाहे तो अपने आप का इन्कार करे और अपना क्रूस उठाए‚ और मेरे पीछे हो ले" (मत्ती १६:२४) मसीह आप को हमारे चर्च में आने के लिये और आत्मा को जीतने वाले बनने के लिये आमंत्रण दे रहे हैं। वह आप को बुलाहट देते हैं कि आप आयें और भटके हुए लोगों को लाने में हमारी सहायता करें कि वे उद्धार प्राप्त कर सकें!

मैं आप युवा मसीहियों को क्रांतिकारी मसीही जन बनने के लिये आहवान देता हूं! हां‚ मैं चाहता हूं कि आप उग्र बनें! शिष्य बनें! यीशु मसीह के लिये − और परमेश्वर यहोवा के चर्च के लिये उग्र बनियें! रविवार प्रातः चर्च आइये! रविवार की दोपहर आत्मा जीतने के कार्य के लिये हमारे संग प्रस्थान कीजिये। रविवार की रात्रि पुनः आइये। मसीह के लिये क्रांतिकारी शिष्य बन जाइये! ऐसा ही कीजिये! ऐसा ही कीजिये! क्या किसी बैपटिस्ट प्रचारक ने युवा लोगों को ऐसा आहवान दिया है? तो आज ही अपना क्रूस उठा लीजिए और मसीह का अनुसरण कीजिए! उनके शिष्य बन जाइये! मसीह की सेना में सैनिक बन जाइये! गीत संख्या जो पेज — पर अंकित है। उसे हम मिलकर गायेंगे!

आगे बढ़िये‚ मसीही के सैनिकों युद्ध के लिये जाना है‚
   यीशु का क्रूस हमारा नेतृत्व करता है;
मसीह हमारे राजसी स्वामी‚ शत्रु के विरूद्ध हमें ले चलते हैं;
   युद्ध में आगे बढ़ें‚ उनका झंडा हमारे आगे फहराता है।
आगे बढ़िये‚ मसीही के सैनिकों युद्ध के लिये जाना है‚
   यीशु का क्रूस हमारा नेतृत्व करता है
(‘‘आगे बढ़िये‚ मसीही के सैनिकों" सबीन बैरिंग गोल्ड‚ १८३४−१९२४)

अब यहां से हम नये नियम में दूसरे यूनानी शब्द की ओर चलते हैं।

२॰ दूसरा‚ यूनानी शब्द ‘‘अगापे" पाया जाता है।

डब्ल्यू वी वाईन ने कहा था कि ‘‘अगापे मसीहत का प्रमुख गुण प्रदर्शित" करने वाला शब्द है। इसका अर्थ है स्वयं को भी न्यौछावर कर देने वाला प्रेम। यीशु इस शब्द का प्रयोग करते हैं जब वे अपने प्रथम शिष्यों से कहते हैं। उन्होंने कहा था‚

‘‘मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं‚ कि एक दूसरे से प्रेम रखो: जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है‚ वैसा ही तुम भी एक दुसरे से प्रेम रखो। यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो" (यूहन्ना १३:३४‚३५)

डॉ तिमोथी लिन चायनीज चर्च में अनेक वर्षो तक मेरे पास्टर रहें। डॉ लिन का कथन था‚

शिष्यों को प्रेम रखने की यह आज्ञा सीधे हमारे प्रभु से मिली थी और उन्होंने इसे व्यवहार में भी लाये.... बल्कि निरंतर लाते रहे। उसका परिणाम यह हुआ‚ ‘‘देखों‚ एक दूसरे के प्रति कितना प्रेम रखने वाले मसीही लोग हैं!" प्रशंसा के ऐसे स्वर (गैर जातियों से) सुनने को मिलते थे। वर्तमान में‚ ‘‘एक दूसरे से प्रेम रखों" चर्चेस का मात्र एक नारा बन कर रह गया है जिसे यांत्रिक तरीके से दुहरा दिया जाता है........ (इसलिये) परमेश्वर की उपस्थिति (इन लोगों) के साथ बने रहना असंभव लगती है। हो सके परमेश्वर यहोवा की दया ऐसे लोगों पर बनी रहे! (तिमोथी लिन‚ एसटीएम‚ पीएचडी‚ दि सीक्रेट ऑफ चर्च ग्रोथ‚ एफसीबीसी‚ १९९२‚ पेज ३३)

डॉ माईकल ग्रीन ने प्रथम और दूसरी सदी के मसीहियों पर लिखी अपनी पुस्तक में इस बात का जिक्र किया है। डॉ ग्रीन ने बताया कि मसीहियों की एक दूसरे से तीव्र प्रेम करने की सामर्थ को देखकर मूर्तिपूजक रोमी लोग क्रिश्चयनिटी को अपनाने के लिये प्रेरित हुए। (माईकल ग्रीन‚ इवेंजलिज्म इन दि अर्ली चर्च‚ इयर्डमंस‚ २००३‚ पेज १५८)

३॰ तीसरी बात‚ एक और अन्य यूनानी शब्द ‘‘कोईनोनिया" पाया जाता है।

इसका अर्थ संगति‚ सहभागिता‚ भली संगति व मित्रता होता है। सहभागिता चर्च सदस्यों में अगापे प्रकार के प्रेम का एक विस्तारित रूप है।

कुछ प्रचारक मुझसे कहते हैं कि हमें गैर मसीहियों को अपने साथ सहभागिता में सम्मिलित नहीं करना चाहिये। एक अर्थ में वे सही हैं। बाइबल कहती है‚ ‘‘और अन्धकार के निष्फल कामों में सहभागी न हो वरन उन पर उलाहना दो" (इफिसियों ५:११) इस पद ने अन्य चर्चेस के लोगों को बहुत अधिक उलझन में डाला है। वे सोचते हैं कि चर्च के बच्चों को इन नये लोगों से दूर रखा जायें। डॉ जे वर्नान मैगी ने इस पर बहुत अच्छी व्याख्या की है। यह मूलभूत रूप में वैसा ही कहा गया है जैसे डॉ थॉमस हेल ने कहा था‚ ‘‘पौलुस कहते हैं कि हमें उनके (‘‘अन्धकार के निष्फल कामों से") सरोकार नहीं रखना है: परंतु वे यह नहीं कहते हैं कि हमें संसार के (भटके हुए लोगों) से कोई लेना देना नहीं है........आखिरकार यीशु स्वयं पापियों के साथ भोजन ग्रहण करते थे" (थॉमस हेल‚ एम डी‚ दि अप्लाइड न्यू टेस्टामेंट कमेंटरी‚ क्रिग्सवे पब्लिकेशंस‚ १९९७ संस्करण‚ पेज ७८०; इफिसियों ५:११ पर व्याख्या)

डॉ ग्रीन ने प्रथम शताब्दी के आरंभिक मसीहियों के लिये जो कहा‚ मुझे वह पसंद आता है। उनका कथन था कि‚ ‘‘जिज्ञासुओं के लिये कोई सिद्धांत छिपा हुआ नहीं था; उनके साथ सहभागिता करने में कोई रोक नहीं थी" (उक्त संदर्भित २१८) । "जो बिना मन फिराए मूर्तिपूजक हुआ करते थे‚ वे चर्च संगति में घुलमिल जाते थे‚ सहभागिता में लाये जाते थे‚ यधपि तीन वर्षो तक उन्हें बपतिस्मा नहीं दिया जाता था" (उक्त संदर्भित) ।

हमारे बैपटिस्ट चर्च इस कार्य को एक दूसरी रीति से ही करते हैं। वे नये युवा लोगों को एकाएक बपतिस्मा तो दे देते हैं परंतु उनके बच्चों को इतनी जल्दी सहभागिता में नहीं मिलाते। जबकि आरंभिक कलीसिया यह कार्य तुरंत कर लेती थी।

जैक हायल्स के पास दो इमारतें थीं। एक इमारत नये बच्चों के लिये थी‚जो बस से सफर करके आते थे। उनका आराधना स्थल भी अलग था! परंतु "वास्तविक" कलीसिया मूल इमारत में आराधना किया करती थी। "चर्च के बच्चों" को नये बच्चों से दूर रखा जाता था। उन्हें डर होता था कि बाहर के बच्चे उनके "मूल्यवान" बच्चों को बिगाड़ न देवें!

जब मैं एक किशोर के रूप में चर्च में गया। मैं पाया कि चर्च के बच्चों ने मुझे बिगाड़ने का भरसक प्रयास किया! मैंने उन्हें संसार के बच्चों से कहीं अधिक बढ़कर खराब बातें करते हुए पाया। इसलिये ऐसी पद्धति कि बाहर के बच्चों को अलग रखा जाये‚ बाइबल में वर्णित नहीं है‚ आरंभ के युग के चर्च भी ऐसा नहीं करते थे‚ जबकि वे तो मसीह के लिये लाखों लोगों तक पहुंच रहे थें!

मैं कहता हूं कि हमें अपने "संडे स्कूल" के कुछ विचारों से छुटकारा पाने की आवश्यकता है। जो उद्धाररहित बच्चे हैं उन्हें यहां लाया जायें। उन्हें अच्छा भोजन खिलाया जाये। उनको बर्थडे पार्टी दी जाये। उनके साथ अच्छा समय बिताया जाये − "आखिरकार‚ मसीह भी पापियों के साथ खाने की संगति किया करते थे" (थॉमस हैल‚ उक्त संदर्भित)। आइयें‚ "ब्रिंग देम इन" कोरस को मिलकर गाते हैं।

उन्हें भीतर ले आइयें‚ उन्हें भीतर ले आइयें‚
   पाप के क्षेत्रों से उन्हें भीतर ले आइयें;
उन्हें भीतर ले आइयें‚ उन्हें भीतर ले आइयें‚
   भटके हुओं को यीशु के पास ले आइयें।
("भीतर ले आइयें" ऐलेक्सीनाअ थॉमस‚ १९ वीं सदी)

चिड़चिड़े‚ बूढ़े धार्मिक अगुवों को यीशु में सदैव दोष दिखाई दिया करते थे। मत्ती कर वसूलने वाला अधिकारी था। यीशु ने उसे बुलाया और वह यीशु के पीछे हो लिया। तब मत्ती ने अपने घर में लोगों को एक बड़ा भोज दिया। यीशु और उनके बारह शिष्य वहीं थे। कई आम लोग और पापी कहलाये जाने वाले लोग भी भीतर आकर यीशु के साथ भोजन कर रहे थे। धार्मिक अगुवों ने यीशु को गलत समझा। उन्होंने प्रश्न उठाया‚ "वे क्यों पापियों के साथ भोजन करते हैं?" यीशु का उत्तर होता है‚ "मैं धर्मियों को बुलाने के लिये थोड़े ना आया (हूं)‚ मैं तो पापी पश्चाताप कर सकें इसलिये उनके लिये आया हूं" (मत्ती ९:१३)

वे प्रचारक जो बहुत सारे पापियों के जीवन की चुनौती लेने से से घबरा जाते हैं‚ उनके सामने मसीह एक उदाहरण हैं! मैं कहता हूं‚ "पापियों को भीतर लाया जाये! जितने मिल सकें‚ उन सबको लेकर आयें! जितने अधिक पापी होंगे‚ उतना अधिक आनंद होगा!" उन्हें सीधे सहभागिता में लेकर आइये‚ जैसे यीशु ने किया था‚ जैसे आरंभिक मसीही जन किया करते थे! "उन्हें भीतर लेकर आइये!" आइये मिलकर कोरस गाते हैं!

उन्हें भीतर ले आइयें‚ उन्हें भीतर ले आइयें‚
   पाप के क्षेत्रों से उन्हें भीतर ले आइयें;
उन्हें भीतर ले आइयें‚ उन्हें भीतर ले आइयें‚
   भटके हुओं को यीशु के पास ले आइयें।.

पहली सदी के समय के जीवंत और सामर्थशाली चर्च के बारे में सुनियें‚

"और वे प्रेरितों से शिक्षा पाने और संगति (कोईनोनिया!) रखने मे लौलीन रहे और जो उद्धार पाते थे‚ उन को प्रभु प्रति दिन उन में मिला देता था" (प्रेरितों के कार्य २:४२‚४७)

जैक हायल्स और उनका व्यभिचारी पुत्र और उनके किशोर उम्र के व्यभिचारी साले −जैसे लोग दूसरी "इमारत" अर्थात जेल में रखे जाने योग्य हैं! ऐसे सेवकों को अलग रखा जाना चाहिये क्योंकि वे उद्धाररहित बच्चों को बिगाड़ सकते हैं! इन सेवकाई करने वाले "कुत्तों" को उद्धार की आशा में आये युवाओं से दूर रखा जाना चाहिये! और इन भटके हुए युवाओं को सीधे मुख्य चर्च में लेकर आना चाहिये। भटके हुओं को भीतर लेकर आइये‚ ये बात सही है − परंतु इन व्यभिचारी बैपटिस्ट फरीसियों के लिये चर्च के दरवाजे बंद होना चाहिये और संडे स्कूल के बिगड़ैल बच्चों को उनके संडे स्कूल्स में ही बंद कर देना चाहिये। बाहरी जगत के उद्धारहीन बच्चों को राह दिखाई जाये‚ उनके साथ संगति की जाये‚ भोजन प्रदाय किया जाये‚ उनके साथ बर्थडे पार्टी मनायी जाये − पुराने कार्टून देखे जाये! आमीन! एवं इस बूढ़े प्रचारक को सुना जाये‚ कुछ प्राचीन गीत गायें जायें‚ स्तुति की जायें और "आमीन" का तेज स्वर दोहराया जाये − इस तरह आनंददायक समय व्यतीत किया जाये!

ये तीनों यूनानी शब्द जीवंत‚ सामर्थशाली चर्च की ओर संकेत देते हैं! "कुरियोज" − अर्थात प्रभु − मसीह हमारे कुरियोज हैं! वह हमारे प्रभु हैं। पुन: आइये और मसीह के विषय में सीखिये और मसीह के पीछे हो लीजिए और अपने संपूर्ण अंर्तमन से मसीह से प्रेम कीजिए! "अगापे" अर्थात − मसीही प्रेम! पुनः आइये और आप हमसे मसीही प्रेम पायेंगे। हम बेसब्र है कि आप भी हमसे प्रेम रखें। पुराने हिप्पी "प्रेम पूर्ण स्थल" की चर्चा करते थे। उन्हें वुडस्टॉक उत्सव से प्रेम होता था। जबकि "सच्चा" प्रेम आप को यहां चर्च में मिलेगा! पुनः हमारे पास इस प्रेमपूर्ण स्थल पर आइये! यह वुडस्टॉक को संडे स्कूल की पिकनिक के समान अहसास देगा! और तब हमारे मध्य "कोईनोनिया" शब्द का अर्थ व्याप्त होगा। अर्थात‚ संगति‚ सहभागिता‚ मित्रता‚ भली संगति‚ साथ इत्यादि! कोईनोनिया एक सहभागिता है। स्थानीय चर्च में "अगापे" प्रेम का विस्तारित रूप सहभागिता है!

तो देखियें हम यहां हैं! आपकी बाट जोह रहे हैं! अगले रविवार सुबह की आराधना में आइये! अगले रविवार की रात्रि की आराधना में सम्मिलित होइये! शनिवार की रात्रि में आइये! आइये और दूसरों को भी यहां ले आने में हमारी सहायता कीजिए! आइये और इस चर्च को ऐसा स्थान बनाने में हाथ बटाइयें जहां युवा आ सकें और अच्छे मित्र बना सकें; जहां युवा आ सके और प्रफुल्लित हो सकें; जहां युवा आ सकें और मसीह के शिष्य बन सकें और क्रूस के सैनिक बन सकें! आमीन! आइये गीत संख्या आठ गायें — "आगे बढ़िये‚ मसीही के सैनिकों!" सब मिलकर इसे गायेंगे!

आगे बढ़िये‚ मसीही के सैनिकों युद्ध के लिये जाना है‚
   यीशु का क्रूस हमारा नेतृत्व करता है;
मसीह हमारे राजसी स्वामी‚ शत्रु के विरूद्ध हमें ले चलते हैं;
   युद्ध में आगे बढ़ें‚ उनका झंडा हमारे आगे फहराता है।
आगे बढ़िये‚ मसीही के सैनिकों युद्ध के लिये जाना है‚
   यीशु का क्रूस हमारा नेतृत्व करता है।

डॉ चान‚ प्रार्थना में हमारा नेतृत्व कीजिए।


अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स आप से सुनना चाहेंगे। जब आप डॉ हिमर्स को पत्र लिखें तो आप को यह बताना आवश्यक होगा कि आप किस देश से हैं अन्यथा वह आप की ई मेल का उत्तर नहीं दे पायेंगे। अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स को इस पते पर ई मेल भेजिये उन्हे आप किस देश से हैं लिखना न भूलें।। डॉ हिमर्स को इस पते पर rlhymersjr@sbcglobal.net (यहां क्लिक कीजिये) ई मेल भेज सकते हैं। आप डॉ हिमर्स को किसी भी भाषा में ई मेल भेज सकते हैं पर अंगेजी भाषा में भेजना उत्तम होगा। अगर डॉ हिमर्स को डाक द्वारा पत्र भेजना चाहते हैं तो उनका पता इस प्रकार है पी ओ बाक्स १५३०८‚ लॉस ऐंजील्स‚ केलीफोर्निया ९००१५। आप उन्हें इस नंबर पर टेलीफोन भी कर सकते हैं (८१८) ३५२ − ०४५२।

(संदेश का अंत)
आप डॉ.हिमर्स के संदेश इंटरनेट पर प्रति सप्ताह पढ सकते हैं
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संदेश के पूर्व बैंजामिन किंकेड ग्रिफिथ का एकल गान:
‘‘दि चर्च वन फाउंडेशन" (सेम्यूएल जे स्टोन‚ १८३९−१९००)


रूपरेखा

तीन शब्द जो प्रारंभिक चर्च का
रहस्य प्रकट करते हैं!

THREE WORDS GIVE THE SECRET
OF THE EARLY CHURCH!

डॉ आर एल हिमर्स द्वारा
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

‘‘और वे प्रति दिन एक मन होकर मन्दिर में इकट्ठे होते थे‚ और घर घर रोटी तोड़ते हुए आनन्द और मन की सीधाई से भोजन किया करते थे। और परमेश्वर की स्तुति करते थे‚ और सब लोग उन से प्रसन्न थे: और जो उद्धार पाते थे‚ उन को प्रभु प्रति दिन उन में मिला देता था"
    (प्रेरितों के कार्य २:४६‚४७)

१॰ पहली बात‚ यूनानी शब्द ‘‘कुरियोज" हमें मिलता है‚
प्रेरितों के कार्य १०:३६; १ कुरूं १:२३; २:२; यूहन्ना १०:२८; मत्ती १६:२४

२॰ दूसरा‚ यूनानी शब्द ‘‘अगापे" पाया जाता है‚ यूहन्ना १३:३४‚३५

३॰ तीसरी बात‚ एक और अन्य यूनानी शब्द ‘‘कोईनोनिया" है‚ इफिसियों ५:११;