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‘‘अनुग्रह की पद्धति" जार्ज व्हाईटफील्ड द्वारा आधुनिकअंग्रेजी के प्रति संक्षिप्त एवं अनुकूलित

“THE METHOD OF GRACE” BY GEORGE WHITEFIELD,
CONDENSED AND ADAPTED TO MODERN ENGLISH
(Hindi)

डॉ आर एल हिमर्स
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

जॉन सेम्यूएल कैगन द्वारा बैपटिस्ट
टैबरनेकल ल्यास ऐंजीलिस में रविवार
की संध्या को दिया संदेश‚ ८ जनवरी‚ २०१७
A sermon preached by Mr. John Samuel Cagan
at the Baptist Tabernacle of Los Angeles
Lord’s Day Evening, January 8, 2017

"वे शान्ति है शान्ति ऐसा कह कह कर मेरी प्रजा के घाव को ऊपर ही ऊपर चंगा करते हैं‚ परन्तु शान्ति कुछ भी नहीं" (यिर्मयाह ६:१४)


परिचय: जार्ज व्हाईटफील्ड का जन्म ग्लूसेस्टर‚ इंग्लैंड में १७१४ में हुआ। वह एक शराबखाने के मालिक के बेटे थे। ऐसे वातावरण में मसीही घराने का प्रभाव उन पर बहुत थोड़ा पड़ा, परंतु विधालय में वह एक प्रतिभाशाली विधार्थी थे। वे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी गये, जहां वह जॉन और चार्ल्स वीजली के मित्र बन गये और उनके बाइबल अध्ययन व प्रार्थना समूह में भाग लेने लगे।

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में उन्होंने नया जन्म पाया। वह चर्च ऑफ इंग्लैंड में अभिषिक्त किये गये। नया जन्म लेना बहुत आवश्यक है‚ वह जब ऐसा प्रचार करते, चर्चेस उनके लिये अपने दरवाजे बंद करना आरंभ कर देते। क्योंकि सांसारिक पास्टर्स डरते थे कि उनका ऐसा प्रचार उनके अधिकारियों को रूष्ट न कर दे। चर्चेस के दरवाजे उनके लिये क्या बंद हुए, वे खुले मैदानों में प्रचार करने लगे। इसी के कारण, उन्हें प्रसिद्धि मिली।

१७३८ में व्हाईटफील्ड अमेरिका आये और उन्होंने एक अनाथ आश्रम की स्थापना वहां की। एक के बाद एक वे अमेरिका के नगरों में और ग्रेट ब्रिटेन में घूमे और प्रचार किया व अनाथ आश्रम के लिये चंदा उगाया। उन्होंने स्पेन‚ हॉलैंड‚ जर्मनी‚ फ्रांस‚ इंग्लैंड‚ वेल्स और स्कॉटलैंड में प्रचार किया और तेरह बार अटलांटिक को पार किया कि अमेरिका में प्रचार कर सके।

वह बैंजामिन फ्रेंकलीन‚ जोनाथन एडवर्ड और जॉन वीजली के अभिन्न मित्र थे और अपने समान उन्होंने जॉन वीजली को भी खुले मैदानों में प्रचार करने के लिये प्रेरणा दी। बैंजामिन फ्रेंकलीन ने एक बार अनुमान लगाया कि व्हाईटफील्ड ने तीस हजार लोगों की भीड़ को संबोधित किया। उनकी खुले मैदानों की सभा में २५००० के पार दर्शकों की संख्या हो जाया करती थी। एक बार उन्होंने स्कॉटलैंड, ग्लासग्लो के पास, एक ही सभा में १००००० से अधिक लोगों के मध्य प्रचार किया - उन दिनों में जब कोई माइक्रोफोन नहीं हुआ करते थे! उस सभा में दस हजार से अधिक लोगों का विश्वास मसीह पर हुआ।

कई इतिहासकारों ने उन्हें संपूर्ण काल का सबसे महानतम अंग्रेजी में प्रचार करने वाला उपदेशक ठहराया। यद्यपि‚ बिली ग्राहम ने इलेक्टानिक मायक्रोफोन की सहायता से इस से भी बड़ी भीड़ को संबोधित किया है‚ परंतु व्हाईटफील्ड के प्रभाव ने सभ्यता पर निसंदेह अधिक छाप छोड़ी।

लोगों के मध्य जब पहला आत्मिक जागरण फैला‚ व्हाईटफील्ड उसके अगुवा थे‚ अपने समय की इस गहन जाग्रति ने १८ वीं सदी के मध्य काल के अमेरिका को आध्यात्मिक आकार दिया। उनके उपदेशों से नगर के नगर आत्मिक आग से भर जाते थे। १७४० में न्यू इंग्लैंड में छः सप्ताह के व्हाईटफील्ड के प्रवास में यह जाग्रति शिखर पर पहुंची। लगभग पैंतालीस दिनों की अवधि में एक सौ पचहत्तर संदेश उन्होंने दिये‚ जिसने हजारों हजार की भीड़ में‚ उन क्षेत्रों में आत्मिक उथल पुथल मचा दी। यह काल अमेरिका के मसीहाई जगत का स्वर्णिम युग था।

उनका देहांत होने तक वह संपूर्ण आंग्ल भाषी संसार का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर चुके थे। और निसंदेह प्रशंसा भी। प्रिंसटन यूनिवर्सिटी‚ डार्टमाउथ कॉलेज और यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिलवेनिया की स्थापना में उनकी प्रमुख भूमिका रही। वर्ष १७७० में, अमेरिका में क्रांति होने के छः वर्ष पहले मैसाचुसेटस, न्यूबरीपोर्ट में प्रचार करने के बाद, उनका निधन हो गया। जार्ज वाशिंगटन हमारे देश के पिता माने जाते हैं‚ परंतु जार्ज व्हाईटफील्ड दादा थे।

निम्नलिखित उपदेश आधुनिक अंग्रेजी में था। यह मूल संदेश है‚ परंतु मैंने इसमें वर्तमान के हिसाब से लोगों के समझ में आने लायक संशोधन किया है।

"वे शान्ति है शान्ति ऐसा कह कह कर मेरी प्रजा के घाव को ऊपर ही ऊपर चंगा करते हैं‚ परन्तु शान्ति कुछ भी नहीं" (यिर्मयाह ६:१४)

संदेश: एक देश के लिये बड़ी आशीष यह होती है कि परमेश्वर उस देश में अच्छे सच्चे उपदेशक भेजे। परंतु सबसे बड़ा श्राप है कि वह देश ऐसे चर्चेस को चलाये जिनमें उपदेशक का नया जन्म न हुआ हो और उपदेशक केवल धन उपार्जन से जुड़ा हो। तौभी हर युग में झूठे उपदेशक उठ खड़े होते हैं। जिन्हें लोगों को उनके कानों को अच्छे लगने वाले संदेश देने के द्वारा पैसे की आवक को और बढ़ाना है। कई सेवायें भ्रष्टता की पताका फहरा रही हैं और बाइबल की शिक्षा को तोड़ मरोड़ रहीं हैं। केवल जो कर्ण प्रिय हो‚ ऐसे संदेश लंबे समय से चर्चेस में दिये जा रहे हैं।

यिर्मयाह भविष्यवक्ता के दिनों में भी कुछ ऐसा ही था। यिर्मयाह ने परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता रखी। कड़ाई से बोले। झूठे उपदेशकों को भी उन्होंने खूब फटकार लगाई। अगर आप उनकी पुस्तक पढ़ें तो पायेगें कि उनके समान किसी ने भी झूठे उपदेशकों के विरूद्ध इतनी कड़ी बातें नहीं कही। जिस अध्याय के पद का हम अध्ययन कर रहे हैं‚ उसी अध्याय में उन्होंने कठोर वचन कहे हैं।

"वे शान्ति है शान्ति ऐसा कह कह कर मेरी प्रजा के घाव को ऊपर ही ऊपर चंगा करते हैं‚ परन्तु शान्ति कुछ भी नहीं" (यिर्मयाह ६:१४)

यिर्मयाह कहते हैं कि वे केवल धन कमाने के लिये बोलते हैं। तेरहवें पद में वे कहते हैं‚ वे लोभी और झूठा प्रचार करते हैं।

"क्योंकि उन में छोटे से ले कर बड़े तक सब के सब लालची हैं और क्या भविष्यद्वक्ता क्या याजक सब के सब छल से काम करते हैं" (यिर्मयाह ६:१३)

वे लोभी और झूठा प्रचार करते हैं।

हमारे आज के पद में उन्होंने बताया है कि कैसे इस तरह भी वे झूठा संदेश देते हैं। भविष्यवक्ता बताते है कि भटके हुए लोगों को ये उपदेशक कैसे धोखा देते हैं:

"वे शान्ति है शान्ति ऐसा कह कह कर मेरी प्रजा के घाव को ऊपर ही ऊपर चंगा करते हैं‚ परन्तु शान्ति कुछ भी नहीं" (यिर्मयाह ६:१४)

परमेश्वर पिता ने उन्हें यिर्मयाह के माध्यम से आने वाले युद्ध के लिये चेताया। उन्हें चेतावनी देना चाहा कि − आने वाले युद्ध में उनके घर नष्ट हो जायेंगे (यिर्मयाह ६:११−१२)

यिर्मयाह ने गरजनदार कथन किये। इससे लोगों को भयभीत हो जाना चाहिये था। उन्हें प्रायश्चित करने पर आ जाना था। परंतु ये दैहिक, संसारी भविष्यवक्ता और पुजारी अपने श्रोताओं को झूठा आराम पहुंचाते रहे। उन्होंने यिर्मयाह को झक्की समझा। उन्होंने कहा कोई युद्ध नहीं होने वाला। जब यिर्मयाह कहता था कि अशांति फैल जायेगी, तब वे लोगों को भुलावे में रखते रहे कि शांति बनी रहेगी।

"वे शान्ति है शान्ति ऐसा कह कह कर मेरी प्रजा के घाव को ऊपर ही ऊपर चंगा करते हैं, परन्तु शान्ति कुछ भी नहीं" (यिर्मयाह ६:१४)

इस पद के कथन मूलतः उपरी शांति की बात कहते हैं। परंतु आगे चलकर वे आत्मा के संदर्भ में कहते हैं। मैं मानता हूं कि वे उन झूठे उपदेशकों के लिये कहते हैं जो लोगों को बताते हैं कि नया जन्म लेने की आवश्यकता नहीं, वे तो ऐसे ही इतने भले हैं। जिन्होंने नया जन्म नहीं पाया उनको यह संदेश अच्छा लगता है। यह मनुष्य मन बहुत धोखेबाज और दुष्ट है। कितना धोखेबाज है, कि परमेश्वर इस मन की असल दशा जानते है।

आप में से बहुत यह कहते हैं कि परमेश्वर के साथ हमारा मेलमिलाप है‚ जीवन शांतिपूर्ण चल रहा है‚ मगर आप भुलावे में हैं! आप कहते हैं मैं क्रिश्चयन हूं‚ परंतु यथार्थ में क्रिश्चयन नहीं हैं। ये जो शांति दिख रही है‚ शैतान ने ऐसी झूठी शांति आपको दे रखी है। पैसों की सुरक्षा शांति नहीं होती। परमेश्वर ऐसी "शांति" नहीं देते। मानवीय बुद्धि से परे नहीं है‚ यह शांति। आप के पास झूठी आरामदायक शांति है।

जांचे कि आप के पास परमेश्वर की सच्ची शांति है या नहीं‚ प्रत्येक जन इसे जानना चाहेगा। शांति मिले यह हर इंसान की दिली इच्छा होती है। सुकुन होना आशीष है। इसलिये मैं आप को बताता हूं कैसे आप को परमेश्वर से सच्ची शांति प्राप्त करना चाहिये। मैं आप के समक्ष परमेश्वर की संपूर्ण मंत्रणा रखूंगा। बाइबल के वचनों से मैं बताने का प्रयास करूंगा कि आप के भीतर क्या घट जाना आवश्यक है‚ कैसी उथल पुथल होनी चाहिये‚ जिससे आप परमेश्वर के साथ सच्ची शांति पाने की राह पर चलने लगेंगे।

१॰ पहली बात‚ परमेश्वर से सच्ची शांति मिले इसके पहले‚ आपने परमेश्वर के विरूद्ध जो पाप किये हैं‚ उन्हें देखिये‚ उन्हें महसूस कीजिये‚ उन पर रोइये‚ उन पर दुख बनाइये।

बाइबल में लिखा है‚ "जो प्राणी पाप करे वही मर जाएगा" (यिजकेल १८:४) परमेश्वर की व्यवस्था में लिखी बातें जो निरंतर नहीं करता है, वह श्रापित है।

आप को कुछ चीजें नहीं करना है, आप को सब चीजें करना आवश्यक है अन्यथा आप श्रापित हैं:

"क्योंकि लिखा है‚ कि जो कोई व्यवस्था की पुस्तक में लिखी हुई सब बातों के करने में स्थिर नहीं रहता‚ वह श्रापित है" (गलातियों ३:१०)

परमेश्वर की व्यवस्था के अनुसार उनकी आज्ञा को विचार‚ वचन‚ कार्य के द्वारा तोड़ने से आप अनंत दंड के भागीदार बन जाते हैं। और अगर एक बुरा विचार‚ एक बुरा शब्द‚ एक बुरा कार्य अनंत दंड का भागीदार बनाता है‚ तो आप नर्क से कैसे बच सकते हैं? जब तक आप के हृदय में परमेश्वर के साथ मेलमिलाप या शांति स्थापित नहीं होगी‚ आप निश्चित यह देखेंगे कि परमेश्वर के विरूद्ध पाप के परिणाम कितने भयानक होते हैं?

अपने हृदय को जांचिये। मुझे आप से पूछने दीजिये - क्या ऐसा समय था जब आप के पापों के स्मरण से आप को गहन दुख हुआ? क्या ऐसा कोई समय आया कि आप के पापों का बोझ आप के लिये असहनीय हो गया? क्या आप को कभी लगा कि परमेश्वर का क्रोध जो आप पर उतरा, वह उचित था, क्योंकि आप ने उनकी आज्ञाओं का उल्लंघन किया था? क्या आंतरिक रूप से आप को अपने पापों के लिये बहुत बुरा लगा? क्या आप ने कभी कहा, ‘‘मेरे मन में मेरे पापों का बोझ बहुत भारी है?’’ क्या कभी ऐसी अवस्था का अनुभव आप को हुआ? अगर नहीं हुआ है तो अपने आप को मसीही मत कहिये! आप कहेंगे, मुझे शांति है, मगर आप के पास सच्ची शांति नहीं है। परमेश्वर पिता आप की आत्मा को जगाये! परमेश्वर आप के हृदय को नया बना दे!

२॰ दूसरा‚ परमेश्वर से शांति प्राप्त करने से पहले आप के पाप का बोध गहराई से आप को कचोटना चाहिये‚ आप के पापमय स्वभाव का यकीन होना चाहिये‚ अपनी आत्मा की भ्रष्टता ज्ञात होना चाहिये।

आप को अपने वास्तविक पापों का बोध होना चाहिये। अपने पापों के उपर आप को कंपकंपी छुटना चाहिये। परंतु पापों का बोध इससे भी गहरे उतरना चाहिये। आप सच में परमेश्वर की आज्ञा तोड़ने के दोषी हैं। इससे भी बढ़कर आप का जो मूल पाप है‚ आप के हृदय में जन्मजात बसा है‚ जो आप को नर्क के मार्ग पर ले चलेगा।

कई लोग जो स्वयं को बुद्धिजीवी कहते हैं‚ उनका मानना है कि मूल पाप जैसी कोई चीज नहीं है। वे कहते हैं कि परमेश्वर उन्हें नर्क भेजने के कारण अन्यायी है क्योंकि आदम के मूल पाप को उन्होंने पाया है। उनका कहना है हम पाप में नहीं जन्मे। वे कहते हैं आप को नया जन्म लेने की आवश्यकता नहीं है। तौभी‚ इस संसार पर नजर डालिये। क्या यह वह स्वर्ग है जिसको देने की प्रतिज्ञा परमेश्वर ने मनुष्य जगत से की थी? नहीं! इस संसार की हर वस्तु का क्रम बदल चुका है! क्योंकि मानव जाति में कुछ गलत बात है। यह मूल पाप है जिसने संसार को भ्रष्ट बना दिया है।

आप कितनी भी सशक्तता से इस सत्य का इंकार करें‚ जब आप की आत्मा में जाग्रति फैलती है‚ आप देखेंगे कि पाप आप के जीवन में आप के अपने भ्रष्ट हृदय से निकल कर आया − वह हृदय जिसे मूल पाप ने विषाक्त बना डाला।

जब पहली बार अपरिवर्तित व्यक्ति में मन में जाग्रति फैलती है, उसे आश्चर्य होता है, ‘‘मैं इतना दुष्ट कैसे हो गया’’ तब परमेश्वर का आत्मा उसे दिखाता है कि उसके स्वभाव में कुछ अच्छा नहीं है। तब वह देखता है कि वह संपूर्ण रूप में पापमय है। अंततः वह विचार करता है कि परमेश्वर का उसको दंड देना उचित है। वह देखता है कि वह अपने मूल स्वभाव में कितना विद्रोही और विषाक्त है, इसलिये सही है कि परमेश्वर उसे दंडित ठहराये, भले ही उसने अपने पूरे जीवन काल में कोई पाप नहीं किया हो।

क्या आप को कभी ऐसा अनुभव हुआ है? क्या आप ने महसूस किया है − कि यह सही है या यह उचित है कि परमेश्वर आप को दोषी ठहराये? क्या आप इस बात से सहमत थे कि आप अपने मूल स्वभाव से ही क्रोध की संतान थे? (इफिसियों २:३)

अगर आप ने सच में नया जन्म प्राप्त किया होता‚ तो आप को इन सब बातों का अनुभव होता। अगर आप ने मूल पाप का बोझ अपने उपर महसूस नहीं किया है तो अपने को क्रिश्चियन मत कहिये! एक सच्चे मसीही का सबसे बड़ा बोझ मूल पाप है। एक मनुष्य जिसने सच में नया जन्म पाया है‚ वह अपने मूल पाप और विषाक्त स्वभाव पर शोकित होता है। एक सच्चा परिवर्तित व्यक्ति अक्सर चिल्ला उठता है‚ "मैं कैसा अभागा मनुष्य हूं‚ मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा?’’ (रोमियों ७:२४) एक आत्मिक रूप से जाग्रत जन को उसके भीतर का पाप बहुत कचोटता है। अगर आप को भीतर के पाप ने इतना व्यथित नहीं किया है‚ तब आप को अपने में शांति कदापि नहीं मिल सकती।

३॰ तीसरा, इसके पहले कि परमेश्वर पिता से आप शांति पाओ, आप को अपने पापों से न केवल जीवन में, स्वभाव में, परंतु आपके निर्णयों में, प्रतिबद्धता और ‘‘दिखावे के मसीही जीवन में’’ भी परेशानी होना चाहिये।

मित्रों‚ आप के धर्म में ऐसा क्या है जो परमेश्वर के सामने आप को स्वीकृति देगा? आप के स्वभाव में आप धर्मी नहीं ठहराये गये हैं‚ न आप ने नया जन्म पाया है। आप के बाहरी पापों के लिये आप दस गुना अधिक नर्क के दंड के अधिकारी होंगे। आप के धार्मिक विश्वास आप का क्या भला करेंगे बिना नया जन्म प्राप्त किये आप कुछ नहीं कर सकते।

‘‘और जो शारीरिक दशा में है‚ वे परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते’’ (रोमियों ८:८)

एक अपरिवर्तित जन के लिये परमेश्वर की महिमा के लिये कुछ कर पाना असंभव है।

जब हम नया जन्म पा भी लेते हैं तौभी हम थोड़े ही अनुपात में नये बनाये जाते हैं। अंदर बसने वाला पाप हमारे भीतर बना रहता है। हमारे उत्तरदायित्वों में फिर भी भ्रष्टता का मिश्रण है। अगर हम परिवर्तित होते हैं और प्रभु यीशु मसीह को हमें हमारे "भले कार्यो’’ के आधार पर हमें स्वीकार करना होता‚ तो हमारे कार्य हमें दंडित ठहराते।

हम बिना पाप से मुक्त हुए प्रार्थना भी नहीं कर सकते‚ कुछ स्वार्थ‚ कुछ आलस्य‚ किसी प्रकार का नैतिक अधूरापन हमारे भीतर व्याप्त रहता। मैं नहीं जानता‚ आप क्या क्या विचार करते हैं‚ परंतु मैं बिना पाप किये प्रार्थना नहीं कर सकता। बिना पाप किये उपदेश नहीं दे सकता। बिना पाप के मैं कुछ नहीं कर सकता। मेरे पश्चाताप को भी पश्चाताप की आवश्यकता है‚ मेरे आंसुओं को प्रभु यीशु‚ मेरे छुड़ाने वाले के बहुमूल्य लहू में शुद्ध होना आवश्यक है!

हमारे बहुत अच्छे संकल्प‚ हमारे उत्तम उत्तरदायित्व‚ हमारा सर्वोत्तम धर्म‚ हमारे सबसे अच्छे निर्णय‚ इतने सारे पाप होते हैं। हमारे धार्मिक कार्य पाप से भरे हैं। परमेश्वर से मेलमिलाप करने से पहले आप को न केवल अपने मूल पाप से‚ बाहरी और भीतर बसे पाप से व्यथित होना चाहिये बल्कि अपनी स्वयं की धार्मिकता‚ कर्त्तव्य और धार्मिकतावाद से भी व्यथित होना चाहिये। आप ने अभी भी नया जन्म प्राप्त नहीं किया है। अपनी स्वधार्मिकता से आप का एक बहुत गहरा बोध बाहर आना चाहिये। अगर आप ने कभी महसूस नहीं किया हो कि आप की अपनी कोई धार्मिकता नहीं है तो आप प्रभु यीशु मसीह के द्वारा बचाये नहीं जाते। आप ने अभी भी नया जन्म प्राप्त नहीं किया है।

कोई कह सकता है कि "मैं तो इन सब पर विश्वास करता हूं।’’ परंतु "विश्वास करने’’ और "महसूस करने’’ के मध्य बहुत फर्क है। क्या आप ने कभी आप के जीवन में मसीह की कमी महसूस की? क्या आप ने महसूस किया कि आप के भीतर आप की स्वयं की कोई अच्छाई नहीं है इसलिये आप को मसीह की आवश्यकता है? और क्या आप अब कह सकते हैं‚ "कि प्रभु आप मुझे मेरे सबसे अच्छे धार्मिक कार्यो के लिये दंड दे सकते हैं’’ जब तक आप अपने भीतर से ये बातें नहीं उडेंलेगे‚ आप को परमेश्वर से वास्तविक शांति नहीं मिलेगी।

४॰ चौथा‚ इसके पहले कि आप परमेश्वर से शांति प्राप्त करें‚ एक ऐसा पाप है जिसके लिये आप को बहुत अत्यधिक परेशानी होना चाहिये। मैं सोचता हूं कि बहुत कम लोग इसके बारे में सोचते होंगे। यह संसार का सबसे अधिक भर्त्सना किये जाने वाला पाप है तौभी लोग इसे पाप नहीं मानते। आप पूछेंगे‚ "ये कौन से पाप है?’’ यह वह पाप है जिसके लिये आप स्वयं को दोषी नहीं मानतें − यह मसीह यीशु पर अविश्वास करने का पाप है।

इसके पहले कि आप परमेश्वर से आप का मेलमिलाप हो‚ आप को अपने मन के अविश्वास पर परेशानी होना चाहिये कि आप वास्तव में प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास नहीं करते हैं।

मैं आप के हृदय से आग्रह करता हूं। मैं सोचता हूं आप से बढ़कर शैतान प्रभु यीशु मसीह पर अधिक विश्वास रखता है। शैतान आप की तुलना में बाइबल पर अधिक विश्वास करता है। वह यीशु मसीह के परमेश्वरत्व को मानता है। वह विश्वास करता और थरथराता है। वह उन हजारों से अधिक कांपता है जो नामधारी मसीही हैं।

मैं सोचता हूं आप सोचते हैं कि आप इसलिये विश्वास करते हैं क्योंकि आप को बाइबल पर विश्वास है‚ क्योंकि आप चर्च जाते हैं। मसीह में सच्चा विश्वास रखे बगैर आप यह सब कर सकते हैं। केवल यह विश्वास करते हैं कि मसीह मेरे लिये भला क्या अच्छा कर सकते हैं‚ इससे अधिक आप को सीजर या सिकंदर महान पर विश्वास है। बाइबल परमेश्वर का वचन है। हम इसके लिये धन्यवाद करते हैं। परंतु आप इस पर विश्वास कर सकते हैं तौभी प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास नहीं करते।

अगर मैं आप से पूछूं कि आप कब से यीशु मसीह पर विश्वास कर रहे हैं तो आप का उत्तर होगा‚ कि आप ने तो हमेशा मसीह पर विश्वास किया है। इससे बढ़कर और बड़ा प्रमाण और आप क्या मुझे दे सकते हैं कि आप ने मसीह पर तौभी अभी तक विश्वास नहीं किया है। क्योंकि जो विश्वास करते हैं‚ वे जानते हैं कि एक समय ऐसा था‚ जब वे मसीह पर विश्वास नहीं करते थे।

मुझे इस पर और अधिक बोलना चाहिये क्योंकि यह एक भ्रम है। कई लोग इसी विचार में पड़े हुए हैं − कि वे मसीह पर विश्वास कर चुके हैं। एक बार एक व्यक्ति पास्टर के पास आया और कहने लगा कि उसने अपने सारे पापों को दस आज्ञाओं की श्रेणी में रखकर सूची बद्ध कर लिया है तौभी उसे शांति क्यों नहीं है। पास्टर ने उसकी सूची में देखा और देखा और कहा‚ "दूर होइयें! मुझे इस सूची में अविश्वास नाम का पाप नहीं दिखता।’’ यह परमेश्वर पवित्र आत्मा का कार्य है − कि वह आप को आप के अविश्वास के बारे में बताये। यीशु मसीह ने पवित्र आत्मा के बारे में कहाः

"और वह आकर संसार को पाप और धामिर्कता और न्याय के विषय में निरूत्तर करेगा। पाप के विषय में इसलिये कि वे मुझ पर विश्वास नहीं करते’’ (यूहन्ना १६:८−९)

तो‚ मेरे प्यारे मित्रों‚ क्या परमेश्वर ने आप को कभी प्रगट किया कि यीशु मसीह में आप का सच्चा विश्वास नहीं है? क्या आप को अविश्वास वाले अपने कड़े हृदय के लिये कभी दुख हुआ? क्या आप ने कभी प्रार्थना की‚ "कि प्रभु मुझे मसीह पर विश्वास करने मे मेरी सहायता कीजिये?’’ क्या परमेश्वर ने आप को इस बात का अहसास करवाया कि आप यीशु मसीह के पास स्वयं आने में असक्षम हैं और क्या आप को प्रार्थना में इस पुकार के लिये प्रेरित किया है कि मसीह में विश्वास करने का आत्मा प्रदान करें? अगर ऐसा नहीं हुआ है तो आप को हृदय में शांति नहीं मिलेगी। परमेश्वर पिता आप की आत्मा को जगाये और यीशु में विश्वास रखने के द्वारा वास्तविक शांति प्रदान करे‚ इसके पहले कि आप मर जावे और दुबारा कोई अवसर यीशु पर विश्वास करने का न मिल पावे।

५॰ पांचवी बात‚ इसके पहले कि परमेश्वर पिता से आप को शांति मिले‚ आप को मसीह की धार्मिकता में संपूर्ण विश्वास होना आवश्यक है।

आप को न केवल अपने मूल और वास्तविक पाप के लिये‚ अपनी स्वयं की धार्मिकता पर विश्वास करने वाले पाप‚ अविश्वास करने वाले पाप के बारे में पता होना चाहिये‚ परंतु इसके साथ ही प्रभु यीशु मसीह की सिद्ध धार्मिकता पर विश्वास करने योग्य होना चाहिये। मसीह की धार्मिकता पर आप का विश्वास होना चाहिये। तब आप को शांति मिलेगी। यीशु ने कहा था:

"हे सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे लोगों मेरे पास आओ‚ मैं तुम्हें विश्राम दूंगा’’ (मत्ती ११:२८)

यह पद और किसी को नहीं परंतु थके और बोझ से दबे लोगों को विश्राम देता है। विश्राम का वायदा उन्हीं से किया गया है जो मसीह के पास आते और उन पर विश्वास करते हैं। परमेश्वर पिता से शांति प्राप्त होने के पूर्व आप को मसीह में विश्वास करने से धर्मी ठहरना आवश्यक है। पहले आप के पास मसीह होना आवश्यक है तब मसीह की धार्मिकता आप की धार्मिकता होगी।

मेरे मित्रों क्या मसीह से आप का विवाह हुआ? क्या मसीह ने स्वयं को आप के लिये दे दिया? क्या आप एक जीवित विश्वास के द्वारा मसीह के पास कभी आये? मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता हूं कि मसीह आप के पास आयें और ये सब बातें देखने में आप को ईश्वरीय सहायता मिले। नया जन्म लेने के लिये ये अनुभव आवश्यक है।

मैं अब किसी दूसरे संसार की कुछ अप्रकट बातों का वर्णन कर रहा हूं‚ आंतरिक मसीहत और एक पापी के हृदय में परमेश्वर के कार्य का वर्णन कर रहा हूं। जो बातें आप के लिये बहुत महत्वपूर्ण हैं‚ उनका वर्णन कर रहा हूं। आप को इनके प्रति अत्यंत चिंता रखने वाले होना चाहिये। आप की आत्मा को इसमें चिंतिंत होना चाहिये। आप का आंतरिक उद्धार इन्हीं बातों पर निर्भर है।

मसीह के साथ आप का मेलमिलाप होना चाहिये। शैतान ने तो आप को सुला दिया है और झूठे विश्राम में धकेल दिया है। जब तक वह आप को नर्क में न भेज देवे‚ वह आप को सुलाये रखेगा। किंतु नींद खुलेगी‚ आप की उन ज्वालाओं के मध्य‚ ऐसा भयानक स्थान वह होगा‚ लेकिन तब देर हो चुकी होगी। सारे अनंतकाल पानी की एक बूंद के लिये तरसेंगे‚ परंतु कोई उस जीभ को तृप्त करने वाला न होगा।

आप की आत्मा को तब तक चैन न मिले जब तक आप यीशु मसीह पर विश्वास नहीं कर लेते हैं! मेरा उददेश्य भटके हुए पापी इंसानों को मसीहा के पास लाना है। परमेश्वर पिता आप को यीशु के पास लेकर आ सकें‚ मेरी विनती है। हो सके पवित्र आत्मा आप को महसूस करवायें कि आप पापी है और आप को आप के दुष्ट तरीकों से मोड़ कर प्रभु यीशु मसीह के पास लाये। आमीन।


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(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व प्रार्थना: मि. नोहा सांग
संदेश के पूर्व बैंजामिन किंकेड ग्रिफिथ का एकल गान:
‘‘ओ लार्ड‚ हाउ वाइल एम आय’’ (जॉन न्यूटन, १७२५−१८०७)


रूपरेखा

‘‘अनुग्रह की पद्धति" जार्ज व्हाईटफील्ड का आधुनिक अंग्रेजी में संक्षिप्त अनुकूलित संदेश

“THE METHOD OF GRACE” BY GEORGE WHITEFIELD,
CONDENSED AND ADAPTED TO MODERN ENGLISH

संदेश का लेखन आर एल हिमर्स द्वारा
संदेश जॉन कैगन द्वारा दिया गया
A sermon written by Dr. R. L. Hymers, Jr.
and preached by Mr. John Samuel Cagan

"वे शान्ति है शान्ति ऐसा कह कह कर मेरी प्रजा के घाव को ऊपर ही ऊपर चंगा करते हैं, परन्तु शान्ति कुछ भी नहीं" (यिर्मयाह ६:१४)

(यिर्मयाह ६:१३)

१॰ पहली बात‚ परमेश्वर से सच्ची शांति मिले इसके पहले‚ आपने परमेश्वर
के विरूद्ध जो पाप किये हैं‚ उन्हें देखिये‚ उन्हें महसूस कीजिये‚ उन पर
रोइये‚ उन पर दुख बनाइये‚ यिजकेल १८:४; गलातियों ३:१०

२॰ दूसरा‚ परमेश्वर से शांति प्राप्त करने से पहले आप के पाप का बोध गहराई
से आप को कचोटना चाहिये; आप के पापमय स्वभाव का यकीन
होना चाहिये‚ अपनी आत्मा की भ्रष्टता ज्ञात होना चाहिये‚ इफि २:३;
रोमियों ७:२४

३॰ तीसरा, इसके पहले कि परमेश्वर पिता से आप शांति पाओ, आप को
अपने पापों से न केवल जीवन में, स्वभाव में, परंतु आपके निर्णयों
में, प्रतिबद्धता और ‘‘दिखावे के मसीही जीवन में’’ भी परेशानी
होना चाहिये‚ रोमियों ८:८

४॰ चौथा‚ इसके पहले कि आप परमेश्वर से शांति प्राप्त करें‚ मसीह यीशु पर
अविश्वास करने के पाप से आप को परेशानी होना चाहिये‚
यूहन्ना १६:८‚९

५॰ पांचवी बात, इसके पहले कि परमेश्वर पिता से आप को शांति मिले, आप
को मसीह की धार्मिकता में संपूर्ण विश्वास होना आवश्यक है‚ मत्ती ११:२८