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क्या आप का हृदय कांटो भरा मैदान है?

IS YOUR HEART THORNY GROUND?
(Hindi)

डॉ आर एल हिमर्स
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

रविवार की सुबह, १ मई, २०१६ को लॉस ऐंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल
में किया गया प्रचार संदेश
A sermon preached at the Baptist Tabernacle of Los Angeles
Lord’s Day Morning, May 1, 2016

''और अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा''
(मत्ती २४:१२)


नये नियम का यह एक प्रमुख पद है जो हमें हमारे चर्चेस की दशा को समझाने में सहायक है। अगर आप यह पद नहीं समझ पाये तो आप हमारे चर्चेस में व्याप्त चुनौतियां और उनका हल भी नहीं समझ पायेंगे। यह एक ऐसा प्रमुख पद है जिस पर सालों साल और दशकों तक विचार जाते हैं। मैंने पहले इस पद पर बिली ग्राहम से सुना था। जब मैं एक किशोर बालक था तो प्रति रविवार की दोपहर उन्हें रेडियों पर सुना करता था। मि ग्राहम जब जब अंत समय के चिंन्हों के उपर प्रचार किया करते थे वे अक्सर इस पद का उल्लेख किया करते थे। उनकी बहुत अच्छी अंतिम पुस्तक वर्ल्ड अफ्लैम (डबलडे, १९६५) थी। उनका कथन था,

         यीशु के वचन थे, ''और अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा'' (मत्ती २४:१२ एनइबी) । पर यह जान रख कि अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे। क्योंकि मनुष्य अपस्वार्थी........और परमेश्वर के नहीं वरन सुखविलास ही के चाहने वाले होंगे। वे भक्ति का भेष तो धरेंगे, पर उस की शक्ति को न मानेंगे; ऐसों से परे रहना (२ तीमुथियुस ३:१−५)........ये सारी बातें उस समय की ओर संकेत देती हैं जब पाखंड व्यापक रूप में फैला होगा और बडी संख्या में चर्चेस के अंदर लोग पशुओं के झुंड के समान उपस्थित होंगे जिनका प्रभु यीशु से व्यक्तिगत कोई संबंध नहीं होगा......झूठे शिक्षक घुसपैठ कर चुके होंगे........वे ‘पतन की ओर जा रहे’ होंगे लोगों के अगुआ होंगे ऐसे लोग ही अंत समय के चर्च का प्रतिनिधित्व कर रहे होंगे (बिली ग्राहम, डी डी, वर्ल्ड अफ्लैम, डबलडे ऐंड कंपनी, १९६५, पेज २२०,२२१,२१९)।

बाद में मैंने डॉ बिली ग्राहम द्वारा मि देहान के बेटे को भेजा गया एक नोट पढा। जब डॉ देहान का कार दुर्घटना में निधन हो गया था, मि ग्राहम ने कहा कि उन्होंने कई विचार मि देहान के रेडियो कार्यक्रम को सुनते हुये प्राप्त किये हैं। अपनी पुस्तक समय के चिंन्हों, मे डॉ देहान ने लिखा था,

अधर्म और उदासीनता ये दो पापों का वर्णन है। ''और अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा'' (मत्ती २४:१२) । मानव इतिहास में यह बात इतनी सच कभी नहीं हुई जितनी आज हो रही है। कुछ ही संक्षिप्त दशकों में हम हमारे आचारी पूर्वजों के साधारण विश्वास से पलट गये........और मसीहियों के लिये तो यह बहुत दुखदायी सच है कि ''बहुतों का प्रेम ठंडा हो जाएगा'' बहुतों का प्रेम ठंडा हो गया है (एम आर देहान, एम डी, साइंस ऑफ दि टाईम्स, जोंदरवन पब्लिशिंग हाउस, १९५१, पेज ५८)

सदैव डॉ बिली ग्राहम और डॉ देहान को सुनते हुये मैं मत्ती २४:१२ पर मनन करता आया। ये शब्द यीशु मसीह की ओर से हैं जो उन्होंने अपने शिष्यों को दिये गये उत्तर में दिये थे। उनके शिष्यों का प्रश्न था, ''तेरे आने का चिंन्ह क्या होगा और इस संसार का अंत कब होगा?'' मसीह ने जो उत्तर दिया उसका एक भाग इस पद में मिलता है,

''और अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा'' (मत्ती २४:१२)

१. पहला, मसीह ने कब कहा कि ऐसा होगा?

उसने कहा ''ये बातें कब होंगी और (तेरे) आने का और जगत के अन्त का क्या चिन्ह होगा'' (मत्ती २४:३) धर्मशास्त्र के अन्य पदों में भी अंत समय के चिंन्हों का वर्णन मिलता है। स्कोफील्ड की व्याख्या अपने इस पेज १०३३ के अंत में बिल्कुल सही कहती है कि ''यह पद खास रूप से अंत समय के उपर उपयुक्त बैठता है........जितने भी लक्षण वर्णित है वे सब बहुत तीव्रता लिये हुये इस युग को परिभाषित कर रहे हैं'' (स्कोफील्ड स्टडी बाइबल, १९१७, पेज १०३३; मत्ती २४:३ पर व्याख्या) मैं और भी ऐसे पद बता सकता हूं, जैसे २ तीमुथियुस ३:१−१३; यहूदा ४,१९; प्रकाशितवाक्य ३:१४−२२ आदि।

आप जवान लोगों को इस सच का अंदेशा नहीं होगा कि चर्चेस का कितना अधिक पतन हो चुका है। पर मैंने अपने जीवन काल में इसे बहुत स्पष्टता से देखा है। मैंने स्थानीय चर्च में १९६९ में आत्मिक जागरण देखा है। मैंने क्षेत्रवार व्यापक आत्मिक जागरण १९७१ में देखा है। एक और स्थानीय चर्च में १९९२ में आत्मिक जागरण देखा है। पर उसके बाद मैंने अमेरिका और पश्चिमी जगत में किसी आत्मिक जागरण के विषय में नहीं सुना! एक भी नहीं! पर अब मत्ती २४:१२ की दुखद स्थिति के आइने में हम अपने चर्चेस को देखते हैं,

''और अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा'' (मत्ती २४:१२)

बैपटिस्ट और इवेंजलीकल्स चर्चेस की आज यही दशा है अभी आप की उम्र कम है इस लिये आप ने केवल इन्हीं चर्चेस को देखा होगा। अगर आप को पिछली आत्मिक जाग्रतियों के बारे में पता होगा तो उसकी तुलना में आज के चर्चेस की दशा अत्यंत भयानक व शोचनीय है! आप मुझे अजीब समझते होंगे जब मैं एक अच्छे चर्च के बारे में बाते करता हूं। क्योकि आप ने अपने छोटे से जीवन काल में ऐसे अच्छे चर्च के बारे में सुना ही नहीं होगा। डॉ कैनेथ कोनाली, जिन्होंने हमारे चर्च में प्रचार किया था उनका कथन है कि आप ऐसी पीढी में पैदा हुये हैं जिसने कभी आत्मिक जागरण देखा ही नहीं − कम से कम पश्चिमी जगत में तो नहीं!

''और अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा'' (मत्ती २४:१२)

२. दूसरा, मसीह ने ऐसा क्यों कहा कि ऐसा होगा?

पद के पहले ''और'' शब्द पर ध्यान कीजिये। ''और अधर्म के बढ़ने से, बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा।'' पद १० से १२ तक ''और'' शब्द की श्रंखला पर ध्यान दीजिये। ''और........ तब बहुतेरे ठोकर खाएंगे'' (पद १०) ''और एक दूसरे से बैर रखेंगे'' (पद १०) । ''एक दूसरे से घृणा रखेंगे'' (पद १०) । ''और बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे'' (पद ११) ''और बहुतों को भरमाएंगे'' (पद ११) । ''और अधर्म बढ़ जाएगा'' (पद १२) । ऐसी नकारात्मक बातें ही ''और'' की श्रंखला को पैदा करती है − वे ऐसे नकारात्मक परिणाम देती है ''जैसे लोगों का आपसी प्रेम ठंडा हो जायेगा''। ''और'' की इस लंबी श्रंखला का परिणाम है कि चर्चेस में (''बहुतेरे'' एनआयवी) लोगों का आपसी प्रेम ठंडा हो (जायेगा)।'' पद १० में वर्णित चर्च का विभाजन और चर्च की लडाईयों का परिणाम है कि झूठे शिक्षक उठ खडे होते हैं जो लोगों को दिग्भ्रमित करते हैं (''धोखा देते हैं'' एनएएसवी) और परिणामस्वरूप चर्चेस में गड़बड़ी (अनैतिकता; अराजकता) फैलने लगती है। इन बातों के कारण ठंडापन व्याप्त हो गया है और चर्चेस में मसीहियों में ''अगापियों'' और मसीही प्रेम का अभाव पाया जाने लगा − उनमें न मसीह के लिये प्रेम है, न परमेश्वर पिता के लिये, और न ही और दूसरे लोगों के लिये कोई प्रेम है! एक ''सुसमाचारिय महाविपदा'' आन पडी है (डॉ फ्रांसिस शैफर की पुस्तक के शीर्षक से) लिया गया है! बैपटिस्ट और इवेंजलीकल्स चर्च में व्याप्त झगडों से चर्च में उत्पात मचा हुआ है (पद १०) । विशेष अवसरों पर भ्रामक प्रचारक प्रवेश कर जाते हैं (पद ११) । चर्च में ऐसी भीड जमा हैं जिसने कभी यीशु को ग्रहण नहीं किया और इसीलिये पीठ पीछे बुराई में लिप्त पायी जाती है। चर्च में मसीह के लिये कोई प्रेम नहीं आपस में लोगों के लिये कोई प्रेम नहीं इसलिये शुष्कपन व्याप्त है!

''और अधर्म के (बढ़ने) से बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा'' (मत्ती २४:१२)

३. तीसरा, वह कैसी भीड है जिसमें ठंडापन आ गया है?

''बहुतेरे'' लोग वे हैं जिन्होंने यीशु पर विश्वास नहीं किया है, जो पतित अवस्था में ही जी रहे हैं, यह इस बात से सिद्व होता है कि इस युग में व्याप्त अराजकता ने उनके भीतर से प्रेम और ईश्वरीय भक्ति को हर लिया है। वे ''ठंडे हो चले'' हैं क्योंकि जगत की अराजकता ने उनके भीतर के प्रेम और सर्मपण भाव जो वे दिखा सकते थे उसका हरण कर लिया है।

बीज बोने वाली कहानी बताती है कि ''बहुतेरे'' लोग क्यों ''ठंडे'' पड गये हैं। बीज बोने वाली कहानी चार प्रकार के लोगो के बारे में बताती है जो सुसमाचार सुनकर अलग अलग ढंग से प्रतिक्रिया देते हैं। कहानी में चार प्रकार के लोग हैं। पहले तीन प्रकार के लोग सच्चे मसीही नहीं हैं। डॉ जे वर्नान मैगी ने कहा, ''(पहले) तीन प्रकार की मिटटी तीन प्रकार के विश्वासियों को बताती है − जो विश्वासी है ही नहीं उन्होंने केवल वचन सुना और उसे ग्रहण करने की घोषणा कर दी।'' (जे वर्नान मैगी, टी एच डी, थ्रू दि बाइबल, वोल्यूम ४; मत्ती १३:२२ व्याख्या) केवल चौथे प्रकार के लोग यीशु को ग्रहण करने वाले सच्चे लोग हैं। शेष खोये हुये लोग हैं।

इस कहानी में ''बीज'' परमेश्वर का वचन है। मैगी का कथन है, ''ध्यान दीजिये बीज कहां गिरता है। यह चार प्रकार की मिटटी पर गिरता है तीन चैथाई बीज उगते ही नहीं है − मर जाते हैं। समस्या बीज के साथ नहीं है मिटटी के साथ है।'' वे बीज जो मार्ग किनारे गिरते हैं ऐसे लोगों की ओर संकेत देते हैं जो वचन सुनते हैं और शैतान उनके मन में से वचन उठा कर ले जाता है। ऐसे लोग थोडी ही बार चर्च आते हैं पर वचन उनको प्रभावित नहीं करता। दूसरे प्रकार के वे लोग है कि वचन मानो कठोर भूमि पर गिरा हो, और ऐसा हुआ कि उन्होंने ग्रहण भी किया, पर जब परीक्षा या सताव आया तो वे स्थिर न रह सके। तीसरे प्रकार के वे लोग हैं जैसे बीज कंटीली झाडियों में गिरा। उन्होंने वचन सुना और परिवर्तित से प्रतीत हुये। देखिये लूका ८:१४ क्या कहता है,

''जो झाड़ियों में गिरा, सो वे हैं, जो सुनते हैं, पर होते होते चिन्ता और धन और जीवन के सुख विलास में फंस जाते हैं, और उन का फल नहीं पकता'' (लूका ८:१४)

परमेश्वर का वचन आगे ग्रहण किये जाने से ''रूक'' जाता हैं − वे ''चिन्ता, धन और जीवन के सुख विलास में फंस जाते हैं और उन का फल नहीं पकता'' या (वे सिद्व नहीं हो पाते); लूका ८:१४। डॉ मैक आर्थर की शिक्षा, मसीह के रक्त के संबंध में गलत है लेकिन वह लूका ८:१४ पर सही बोलते हैं। उनका कथन है कि ये दो विचारधारा रखने वाले लोग (सांसारिक बातों) के प्रभाव में बह जाते हैं (याकूब १:८) − जैसे पापमय आनंद, कामनायें, इच्छा, कैरियर, घर, कार, प्रतिष्ठा, संबंध, प्रसिद्वी − ये सब बातें सुसमाचार का बीज मन में गहरा नहीं उतरने देती और उन का फल नहीं पकता क्योंकि मन को 'पहले से ही चिन्ता, धन और जीवन के सुख विलास में उलझा रखा है''’ (दि मैक आर्थर न्यू टेस्टामेंट कमेंटरी; लूका ८:१४ पर व्याख्या)

पहले प्रकार के लोगों को देख पाना आसान है। उनके भीतर ''शैतान तुरन्त आकर वचन को जो उन में बोया गया था, उठा ले जाता है।'' (मरकुस ४:१५) वे कुछ संदेश सुनते हैं, और फिर हमें चर्च में कभी दिखाई नहीं देते। दूसरे प्रकार के लोगों को पहचानना भी आसान है। ऐसा लगता है कि वे परिवर्तित हो गये हैं, परन्तु ''अपने भीतर जड़ न रखने के कारण वे थोड़े ही दिनों के लिये रहते हैं; इस के बाद जब वचन के कारण उन पर (क्लेश) या उपद्रव होता है तो वे........(‘तुरन्त ठोकर’ एनआयवी) खाते हैं'' मरकुस ४:१७

पर ''कंटीली भूमि वाले लोगों'' को पहचानने में बहुत समय लगता है हमारे आधुनिक बैपटिस्ट चर्चेस में (हमारे चर्च में) भी ऐसा होता है यह देखने में आता है कि वे विश्वास का अंगीकार करते हैं। कई बार इसमें आंसुओं और संघर्ष की प्रक्रिया भी जारी रहती है। वे बच्चे और किशोर की उम्र में सीखना आरंभ करते हैं ताकि मसीह के सामने जा सकें। वे कहते हैं कि उनके भीतर नया मन और नयी उमंग है जिससे वे मसीह की सेवा करना चाहते हैं। इन्होंने मुझे भी कई बार मूर्ख बनाया। वे गंभीर तो दिखते हैं। सच्चे मसीही के समान तो दिखते हैं। जब तक वे युवा नहीं हो जाते बात सामने नहीं आती। तब उनकी गवाही में दरार दिखाई पडती है। माता पिता उन्हें पैसे देते हैं। माता पिता के घर में उन्हें बिना किराये का कमरा मिलता है। खर्च करने को पैसे मिलते हैं। पर जब वे कालेज खत्म कर लेते हैं उन्हें नौकरी मिल जाती है। जब वे स्नातक करने कालेज जाते हैं उन्हें लोन भी मिल जाता है। ऐसा वे कहते हैं − कि इसी में उनके ''स्वतंत्र'' होने की उम्मीद छिपी है। अब उनकी गवाही में दरारें प्रगट होने लगती हैं। उन्होंने ऐसा कुछ करने का प्रण नहीं किया जिसे उनके पिता और पास्टर्स पसंद करते हों। चर्च के अगुए भी यह देखने में देरी कर देते हैं कि वे गलत दिशा में जा रहे हैं। उन्हें रोकने की चेष्टा नहीं की जाती है और उन्हें हमारी सहायता की भी आवश्यकता नहीं है। धीरे धीरे मसीह के लिये उनके मन में प्रेम की तीव्रता कम होती जाती है और ''वे (अपने आप) को संसार के कामों में फंसा लेते हैं'' (२ तीमुथियुस २:४)। अगर चर्च के अगुए उन्हें सुरक्षात्मक रूप से वापस लाने का प्रयास करते हैं तो वे गुस्से और कडवाहट से भर जाते हैं। तब शैतान उनके भीतर भर जाता है और फुसफुसाता है ''उन लोगों की मत सुनो!'' ''आखिर वे जानते ही क्या है?'' आखिरकार, वे संसार और शैतानी बातों के जाल में उलझते जाते हैं। वे तर्क करते हैं ''मैंने चर्च आना थोडे ना छोडा है'' − जैसे चर्च आना छोडना ही केवल एक पाप है! पर उनके हृदय ने तो मसीह को पहले ही छोड दिया!

बाइबल में उजियाह से हमारा परिचय होता है तब वह मात्र सोलह ही साल का था। जब वह युवा था ''उसने वही किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था'' (२ इतिहास २६:४)। जर्कयाह उसके लिये पास्टर के समकक्ष था। ''जब तक वह यहोवा की खोज में लगा रहा, तब तक परमेश्वर उसको भाग्यवान किए रहा'' (२ इतिहास २६:५)। और हमें बताया गया है, ''उसके ताकतवर होने तक उसको आश्चर्यजनक रूप से सहायता मिलती रही।'' परन्तु ''जब वह सामथीं हो गया, तब उसका मन फूल उठा; और उसने बिगड़ कर − अपने परमेश्वर यहोवा का विश्वासघात किया'' (२ इतिहास २६:१६ केजेवी एनएएसवी)। जब वह सामर्थी हो गया तो उसका हृदय इतना घमंडी हो गया कि वह पथभ्रष्ट हो गया! तब परमेश्वर ने उजियाह को पथभ्रष्ट किया और ''वह मरने के समय तक कोढी रहा'' (२ इतिहास २६:२१) ।

उजियाह के जीवन के द्वारा परमेश्वर ने हमें एक उदाहरण दिया है। वह ऐसे जवान लडके लडकी की तस्वीर है जो अपने जीवन में कांटे उगने देते हैं और परमेश्वर के वचन को उनके जीवन में कार्य करने से बाधा उत्पन्न करते हैं। वे चिंता के ढेर तले दबे जाते हैं और आवश्यकता से बढकर मिलने वाला पैसा भी उनको संतुष्ट नहीं करता। फिर आत्मा को उलझाने वाली बातें, कैंसर की तरह, देह और शरीर दोनों को खत्म कर देती है। जो लोग अपनी आत्मा में ऐसे कांटे बोये जाने की अनुमति देते हैं उनके भीतर परमेश्वर के वचन के बढने की कोई गुंजायश नहीं होती। क्या आप का प्रेम ठंडा हो गया है? क्या आप सांसारिक हो गये हैं? क्या आप विद्रोही हो गये हैं? क्या आप पहले से और बुरी दशा में आ गये हैं? लौट आइये, इस सांसारिकता से लौट आइये। विद्रोहीपन से लौट आइये। लौट आइये। पश्चाताप कीजिये। क्यों ऐसा जीवन व्यतीत करना जब आप को मसीह में शांति मिल सकती है? − क्या आप अपने घमंड और विद्रोही स्वभाव को उसके पैरों पर डाल देंगें जो आप को उद्वार देने के लिये मरा?

''और अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा'' (मत्ती २४:१२)

बीज बोने वाली कहानी इसलिये दी गयी है − ''कि आप स्वयं को जांचे कि आप किस समूह के हैं अगर आप पहिले तीन समूहों में से एक हैं तो आप को परिवर्तन करने की आवश्यकता है''− और कम से कम स्मरण रख‚ ''कि तु ने किस रीति से शिक्षा प्राप्त की और सुनी थी, और उस में बना रह, और मन फिरा'' (प्रकाशितवाक्य ३:३) अपने जीवन को इससें पहले कि आप का हृदय ''कांटे का मैदान'' बन जाये मसीह को समर्पित कर दीजिये! (विलियम हैंडरीकसन‚ टी एच डी‚ दि गास्पल आफ लूक‚ बेकर बुक हाउस‚ १९७८ पेज ४२९; लूका ८:१४ पर व्याख्या)

आप से ऐसा अपेक्षित है कि आप कहें‚ ''हे पिता‚ मैं अपने घमंड और विद्रोह को छोडता हूं! आप मुझे मसीह के रक्त से शुद्व कीजिये!'' ''पिता‚ मेरे भीतर एक शुद्व मन उत्पन्न कीजिये!'' (भजन ५१:१०)

कृपया खडे होकर गीत संख्या ४ गाइये।

स्वर्गिक पिता कहते‚ ''मुझे अपना मन अर्पण करो''
     उसके लिये हमारे प्रेम से बढकर कोई उपहार नहीं;
धीरे धीरे वह कहता है‚ जहां कहीं तुम हो‚
     ''आभारी होकर मेरा विश्वास करो अपना मन मुझे अर्पण करो''
''अपना मन मुझे अर्पण करो‚ अपना मन मुझे अर्पण करो''
     धीमी आवाज सुनो‚ जहां कहीं तुम हो:
इस गहरे संसार से वह तुम्हें खींच लेगा;
     कोमलता से वह कहता है‚ ''अपना मन मुझे अर्पण करो।''

''अपना मन मुझे अर्पण करो'' मनुष्यों का मसीहा कहता है‚
     बार बार वह दया से बुलाता है;
''पाप से मुंह फेरो‚ बुराई से दूर भागो‚
     क्या मैंने तुम्हारे लिये प्राण नहीं दिये? अपना मन मुझे अर्पण करो''
''अपना मन मुझे अर्पण करो अपना मन मुझे अर्पण करो''
     धीमी आवाज सुनो‚ जहां कहीं तुम हो:
इस गहरे अंधकार से वह हमें खींच लेगा;
     कोमलता से वह कहता है‚ ''अपना मन मुझे अर्पण करो।''

''अपना मन मुझे अर्पण करो‚'' आत्मा ने कहा;
     ''वह जो मेरे लिये सब छोड कर आया;
तेरा अनुग्रह मेरे आसपास सदा मिलता है मुझे‚
     मेरे समक्ष पूर्ण समर्पण करो अपना मन मुझे अर्पण करो''
''अपना मन मुझे अर्पण करो‚ अपना मन मुझे अर्पण करो‚''
     धीमी आवाज सुनो‚ जहां कहीं तुम हो:
इस गहरे अंधकार से वह हमें खींच लेगा;
     कोमलता से वह कहता है‚ ''अपना मन मुझे अर्पण करो।''
(''अपना मन मुझे अर्पण करो'' एलिजा ई हैविट‚ १८५१−१९२०)

अगर आप ने अभी तक उद्वार नहीं प्राप्त किया है‚ मैं आप से बिनती करता हूं कि आप पाप से मुंह मोड लीजिये और यीशु पर विश्वास कीजिये। वह क्रूस पर अपने प्राण आप को पापों से बचाने के लिये बलिदान करता है। वह मुरदों में से जीवित हुआ ताकि आप को शाश्वत जीवन मिले। मैं प्रार्थना करता हूं कि आप उस पर विश्वास करें और उसके लिये जिये। आमीन!


अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स आप से सुनना चाहेंगे। जब आप डॉ हिमर्स को पत्र लिखें तो आप को यह बताना आवश्यक होगा कि आप किस देश से हैं अन्यथा वह आप की ई मेल का उत्तर नहीं दे पायेंगे। अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स को इस पते पर ई मेल भेजिये उन्हे आप किस देश से हैं लिखना न भूलें।। डॉ हिमर्स को इस पते पर rlhymersjr@sbcglobal.net (यहां क्लिक कीजिये) ई मेल भेज सकते हैं। आप डॉ हिमर्स को किसी भी भाषा में ई मेल भेज सकते हैं पर अंगेजी भाषा में भेजना उत्तम होगा। अगर डॉ हिमर्स को डाक द्वारा पत्र भेजना चाहते हैं तो उनका पता इस प्रकार है पी ओ बाक्स १५३०८‚ लॉस ऐंजील्स‚ केलीफोर्निया ९००१५। आप उन्हें इस नंबर पर टेलीफोन भी कर सकते हैं (८१८) ३५२ − ०४५२।

(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे द्वारा धर्मशास्त्र पढ़ा गया: मरकुस ४:१३−२०
संदेश के पूर्व बैंजमिन किंकेड ग्रिफिथ ने एकल गान गाया गया:
     ''टेक माय लाईफ ऐंड लेट इट बी'' (फ्रांसिस आर हैवरगैल, १८३६−१८७९)


रूपरेखा

क्या आप का हृदय कांटो भरा मैदान है?

IS YOUR HEART THORNY GROUND?

डॉ आर एल हिमर्स
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

''और अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा''
(मत्ती २४:१२)

(२ तीमुथियुस ३:१−५)

१.      पहला, मसीह ने कब कहा कि ऐसा होगा? मत्ती २४:३

२.    दूसरा, मसीह ने ऐसा क्यों कहा कि ऐसा होगा?
मत्ती २४:१०‚११‚१२

३.  तीसरा, वह कैसी भीड है जिसमें ठंडापन आ गया है? लूका ८:१४;
याकूब १:८; मरकुस ४:१५‚१७; २ तीमुथियुस २:४;
२ इतिहास २६:४‚५‚१६‚२१; भजन ५१:१०; प्रकाशितवाक्य ३:३