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थिस्सलुनीकियों के मसीहियों को अपना आदर्श बनायें!

MAKE THE THESSALONIAN CHRISTIANS
YOUR EXAMPLE!
(Hindi)

द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

रविवार की सुबह, २७ दिसंबर, २०१५ को लॉस ऐंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल
में किया गया प्रचार किया गया संदेश

''पौलुस और सिलवानुस और तीमुथियुस की ओर से थिस्सलुनिकियों की कलीसिया के नाम जो परमेश्वर पिता और प्रभु यीशु मसीह में है अनुग्रह और शान्ति तुम्हें मिलती रहे'' (१ थिस्सलुनीकियों १:१)


कुछ क्षणों पूर्व मि प्रुद्योमे ने का प्रथम अध्याय पढ़ा। यह हमारे सामने थिस्सलुनीका शहर में स्थित पूर्वी कलीसिया की तस्वीर प्रगट करता है। शिष्य पौलुस ने इस पत्री को ५० ए डी में लिखा था। पौलुस द्वारा लिखित यह पहली पत्री थी। उसने कुछ महिने पहले ही निर्मित हुई मसीही मंडली को पत्री लिखी। जैसा प्रेरितों अध्याय १७ बताता है पौलुस वहां उनके साथ तीन सब्त की अवधि तक रहा था। उस शहर के अविश्वासी यहूदियों की भीड़ ने पौलुस और सिलास को जल्द ही यह आरोप लगाते हुये शहर से बाहर निकाल दिया − और कहा, ''कि ये लोग जिन्हों ने जगत को उलटा पुलटा कर दिया है, (यहां) भी आए हैं (प्रेरितों १७:६)।'' उन्होंने कहा कि यासोन नामक व्यक्ति जो आराधनालय का अगुआ है उसने यह कहने के द्वारा कैसर का नियम तोड़ा है कि एक अन्य राजा यीशु है। उन्होंने यासोन और अन्य मसीहियों को बंदी बनाया और फिर छोड़ दिया। तीसरा अध्याय पद दो में पौलुस वायदा करते हैं कि वह तिमोथी को भेजेंगे ''कि वह तुम्हें स्थिर करे; और तुम्हारे विश्वास के विषय में तुम्हें समझाए'' (१ थिस्सलुनीकियों ३:२) ।

अब हम थिस्सलुनीकियों के १ अध्याय को देखेंगे। हम एक विशेष छोटा मजबूत चर्च देखेंगे, जिसके साथ पौलुस केवल तीन सब्त की अवधि तक ही रह पाये थे एवं जो अभी तकएक ही साल पुराना था। यह एक बहुत अदभुत चर्च था, एक आदर्श चर्च था और जितना हो सके हमें उसका अनुसरण करना चाहिये। पहले अध्याय में आठ बिंदु हैं जिनका अनुसरण हमारे चर्च को करना चाहिये।

१. पहला, वे परमेश्वर और मसीह में बने हुये थे।

''पौलुस और सिलवानुस और तीमुथियुस की ओर से थिस्सलुनिकियों की कलीसिया के नाम जो परमेश्वर पिता और प्रभु यीशु मसीह में है अनुग्रह और शान्ति तुम्हें मिलती रहे'' (१ थिस्सलुनीकियों १:१)

सिलास का दूसरा नाम सिलवानुस था। पहले वे जरूर मूर्तिपूजा वाले आराधक रहे थे पर अब वे ''परमेश्वर पिता में'' थे ''प्रभु यीशु मसीह में'' आ गये थे। पौलुस इस चर्च की यही बात विशेष रूप से कहता हैं। यही वह तरीका है जिससे आप चर्च में सहभागी होते हैं। न कि आप का नाम सदस्यता रजिस्टर में लिखा होना अवश्य है। यह ''परमेश्वर में होने'' और ''मसीह में होने की'' बात है। यह आप को चर्च का सही सदस्य बनाता है। यीशु ने इसके लिये प्रार्थना भी की थी जब उन्होंने ऐसा कहा था, ''जैसा तू हे पिता मुझ में हैं, और मैं तुझ में हूं, वैसे ही वे भी हम में हों, इसलिये कि जगत प्रतीति करे, कि तू ही ने मुझे भेजा (यूहन्ना १७:२१) ।'' अगर आप चर्च में मिलना चाहते हैं तो आप को यीशु से मिला होना जरूरी है परमेश्वर से मिला होना जरूरी है! और कोई दूसरा रास्ता नहीं है। या तो आप यीशु ''में'' बने हुये हैं या आप यीशु से ''बाहर'' हैं। इसलिये हम कहते हैं आप मसीह के पास आइये, मसीह पर विश्वास लाइये, मसीह में विश्राम पाइये। जब ऐसा होता है तब आप हमारे चर्च के सदस्य कहलाते हैं। हमारे चर्च के सदस्य बनने के लिये कोई दूसरा तरीका नहीं है। यीशु ने कहा, ''तुम्हें नये सिरे से जन्म लेना अवश्य है'' (यूहन्ना ३:७) । चर्च में ''आने से'' यह मान लेना कि आप ''प्रभु यीशु मसीह में'' बने हुये हैं यह जरूरी नहीं है (१ थिस्सलुनीकियों १:१) ।

सच्चा चर्च केवल उन लोगों से मिलकर बना होता है जो ''प्रभु यीशु मसीह में'' बने होते हैं। हर कोई चर्च चला आ रहा है, पर वास्तव में चर्च का हिस्सा नहीं है। यह नूह के जहाज के समान वाली बात है। नूह ने जहाज बनाने में दशक बिताये। कई लोग इस विशाल जहाज को देखने आये। कुछ आसपास घूमे होंगे, कुछ लोग तो शायद भीतर भी देखने गये होंगे, और फिर छोड़ कर चले गये होंगे। लेकिन जब प्रलय आया तब वे जहाज के अंदर नहीं थे। यीशु ने कहा था, ''जैसे नूह (नोहा) के दिन थे, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा'' (मत्ती २४:३७) । थिस्सलुनीकियों के लोग मसीह में बने हुये थे लेकिन अगर आप ''प्रभु यीशु मसीह में'' नहीं बने हुये हैं तब फिर आप के लिये कोई आशा नहीं है।

२. दूसरा, उनके पास प्रभु यीशु मसीह में विश्वास, प्रेम और आशा उपस्थित थे।

पद ३ को देखिये।

''और अपने परमेश्वर और पिता के साम्हने तुम्हारे विश्वास के काम, और प्रेम का परिश्रम, और हमारे प्रभु यीशु मसीह में आशा की धीरता को लगातार स्मरण करते हैं'' (१ थिस्सलुनीकियों १:३) ।

शिष्य पौलुस यह स्मरण करते हैं कि थिस्सलुनीका मंडली के मसीही मसीह प्रेम के वशीभूत होकर कार्य करते हैं। उनका कार्य करना मसीह में विश्वास रखने का परिणाम था। जो कार्य वे करते थे वह ''प्रेम का परिश्रम'' होता था। उनके पास धीरज और सहनशीलता होती थी तथा ''प्रभु यीशु मसीह में आशा'' रखने से वे प्रेरित होते रहते थे। १ कुरूंथियों १३ में पौलुस कहते हैं, ''पर अब विश्वास, आशा, प्रेम (मसीही प्रेम) ये तीनों स्थाई है, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है'' (१ कुरूंथियों १३:१३)।

हमने पाया है कि लोग बिना विश्वास, प्रेम और आशा के चर्च आते रहे हैं। ऐसे में वे चर्च में अधिक समय तक टिक नहीं पाते हैं। वे सिर्फ मित्र बनाने के लिये चर्च आते रहे हैं। वे दूसरों के साथ चर्च में होने का आनंद और सहभागिता प्राप्त करते हैं। किंतु क्या होता है, ''ऐसे लोग (परीक्षा) (के) समय बहक जाते हैं'' (लूका ८:१३)। नये साल के प्रारंभ में ऐसा अक्सर होता है। वे क्रिसमस और नये साल की पार्टी में खूब आनंद मनाते हैं। फिर जनवरी आता है। तब तक उनका मजा आधा हो जाता है। क्रिसमस के समय जो मजा उनको आता था वैसा अब प्रतीत नहीं होता है। इस तरह वे ''बहक जाते'' हैं। यह बताता है कि वे केवल मजे और खेलकूद के लिये चर्च आ रहे थे। मसीह से उनका कोई संबंध नहीं। वे ''प्रभु यीशु मसीह में'' बने हुये थे ही नहीं। इसलिये वे बहक जाते हैं और कभी परिवर्तित नहीं होते हैं। वे थिस्सलुनीका के चर्च के लोगों के समान कभी नहीं बन पाते हैं! मैं आशा करता हूं आप के साथ ऐसा नहीं होगा!

३. तीसरा, वे परमेश्वर द्वारा चुने हुये थे।

पद ४ को देखिये।

''और हे भाइयो, परमेश्वर के प्रिय लोगों हम जानतें हैं, कि तुम चुने हुए हो'' (१ थिस्सलुनीकियों १:४)

पौलुस उन्हें ''भाई'' (बंधु) कहकर बुलाता है क्योंकि वे परमेश्वर द्वारा उद्वार पाने के लिये चुने हुये थे। पौलुस ने उनके चुने जाने के विषय में २ थिस्सलुनीकियों २:१३ में फिर से कहा है, ''कि परमेश्वर ने आदि से तुम्हें चुन लिया'' आदि से ही परमेश्वर कुछ लोगों को उद्वार पाने के लिये चुन लेता है। हम ने परमात्मा को नहीं चुना है। उन्होंने हमें चुना है। इफिसियों में, पौलुस ने कहा था, ''जैसा उस ने हमें जगत की उत्पति से पहिले उस में चुन लिया'' (इफिसियों १:४) यीशु स्वयं कहते हैं, ''तुम ने मुझे नहीं चुना परन्तु मैं ने तुम्हें चुना है'' (यूहन्ना १५:१६)

यह एक रहस्य है, जिसे हमारी सांसारिक बुद्वि समझ नहीं सकती। पर यह पूर्णत सच है। सत्तावन साल पहले मुझे प्रचार करने के लिये बुलाहट मिली थी। उस चर्च में बहुत से जवान ऐसे थे जो अच्छे मसीही परिवारों से आते थे। भले ही वे अच्छे मसीही परिवारों से आते थे पर वे कभी भी परिवर्तित नहीं हुये थे और अंतत वे चर्च से दूर होते चले गये। सारे लाभ प्राप्त होने के उपरांत भी वे परमेश्वर द्वारा चुने हुये नहीं थे। और मैं था, एक गरीब लड़का जो तलाक के कारण टूटे हुये परिवार से आता था। मैं चर्च से नहीं भटका − बल्कि आप के सामने हूं, सत्तावन साल बाद भी प्रचार कर रहा हूं। मैं यह कैसे समझा सकता हूं? मैं इसे नहीं समझा सकता। मैं केवल यीशु की कही बात स्मरण कर सकता हूं, ''तुम ने मुझे नहीं चुना परन्तु मैं ने तुम्हें चुना है'' और चूंकि उन्होंने मुझे चुना है इसलिये मैं कठिन और दुख भरे समय में से होकर भी बिना बहके आगे बढ़ पाने में सफल रहा! यही बात थिस्सलुनीका के मसीहियों के लिये भी सच थी। ''हम जानतें हैं, कि तुम चुने हुए हो।''

मुझे एक बात और कहने दीजिये। अगर आप चुने हुये नहीं हैं, तो हम आप को बचाने के लिये कुछ नहीं कर सकते हैं। इससे भी बढ़कर, आप भी अपने आप को बचाने के लिये कुछ नहीं कर सकते! इसीलिये कितने ही लोग सालों तक सुसमाचार सुनते आये हैं लेकिन उद्वार प्राप्त नहीं कर पाये। उनके पास सुनने के लिये कान नहीं है और यीशु पर विश्वास करने के लिये दिल नहीं है। वे सुसमाचार तक ''पहुंच ही नहीं'' पाते हैं। फिलिप चान कहते थे कि उनका दिमाग इस भंवर में घूमता ही रहता था कि कैसे उद्वार प्राप्त किया जाये। फिर एक रविवार की सुबह परमेश्वर ने उनके मन को खोला और उन्होंने यीशु पर विश्वास किया। लेकिन जो चुने हुये नहीं होते हैं तो उनके जीवन में ऐसे क्षण कभी भी नहीं आते। उनका मस्तिष्क भी घूमता होगा वे भी अपनी मुक्ति के लिये सब प्रयास कर लेना चाहते होंगे − लेकिन अंत आ पहुंचता है, वे मर जाते हैं और नर्क की लपटों के हवाले हो जाते हैं। आप को मुक्ति मिलेगी या नहीं इसके लिये चुना जाना आपका अधिकार या आपकी पसंद नहीं है। चुना जाना ''परमेश्वर की ओर'' से होता है जैसा पद ४ कहता हैं।

४. चौथा, उन्होंने सुसमाचार के शब्दों को न केवल सीखकर वरन सामर्थ के साथ भी ग्रहण किया।

निवेदन है पद ५ को देखिये।

''क्योंकि हमारा सुसमाचार तुम्हारे पास न केवल वचन मात्र ही में वरन सामर्थ और पवित्र आत्मा, और बड़े निश्चय के साथ पहुंचा है; जैसा तुम जानते हो, कि हम तुम्हारे लिये तुम में कैसे बन गए थे।'' (१ थिस्सलुनीकियों १:५)

पौलुस यहां इसे ''हमारा सुसमाचार'' कहकर बुलाते हैं क्योंकि यह उन्होंने, सिलास ने और उनके साथियों ने मिलकर प्रचार किया था। अन्य जगहों पर वह इसे ''परमेश्वर का सुसमाचार'' (रोमियों १:१) और ''मसीह का सुसमाचार'' (१ थिस्सलुनीकियों ३:२) कहकर बुलाते हैं।

सुसमाचार बहुत सामर्थ के साथ थिस्सलुनीका के लोगों के पास पहुंचा। १ कुरूंथियों में पौलुस ने कहा था,

''और मेरे वचन, और मेरे प्रचार में ज्ञान की लुभाने वाली बातें नहीं, परन्तु आत्मा और सामर्थ का प्रमाण था'' (१ कुरूंथियों २:४)

डॉ मार्टिन ल्योड जोंस ने कहा था, ''शिष्यगण........प्रचार करने के लिये किसी मानवीय वरदान या युक्ति या तरीके पर निर्भर नहीं रहते थे। प्रचार तो ‘आत्मा और सामर्थ के प्रदर्शन द्वारा होता था।’'' (अनसर्चेबल रिचेस इन क्राईस्ट, पेज ५६)

थिस्सलुनीका के लोग अपनी बाइबल खुली रखे हुये और नोटस बनाते हुये नहीं आये थे! सुसमाचार प्रचार करने का तरीका ऐसा नहीं था। यह तो सुसमाचार प्रचार में रूकावट था। ऐसे ही सिर पर लगे बड़े बड़े प्रोजेक्टर रूकावट होते हैं। आधुनिक अनुवाद बाधा उत्पन्न करते हैं। मैं तो चाहता हूं कि वे अपनी पेंसिलें फेंक दें, प्रोजेक्टर बंद कर दें और पुरानी किंग जेम्स बाइबल में से बहुत सामर्थ के साथ प्रचार करें। हमें पवित्र आत्मा पर निर्भर रहने की आवश्यकता है न कि आधुनिक तिकड़मों पर! थिस्सलुनीका के लोगों को पवित्र आत्मा की बड़ी सामर्थ के साथ प्रचार किया गया था और उन्होंने ठोस रूप से मुक्ति पायी। मैं आप को नहीं सिखा सकता कि कैसे परिवर्तित हुआ जाये। इसलिये तो हम सदैव परमेश्वर और पवित्र आत्मा की समीपता के लिये प्रार्थना मांगते रहते हैं। केवल वे ही सत्य की तरफ हमारा मन खोल सकते हैं और मसीह के पास हमें खींच सकते हैं। वे लोग जो परिवर्तित हुये वे पवित्र आत्मा के प्रचार से परिवर्तित हुये थे, न कि आजकल के पुल्पिट से बाइबल शिक्षाओं के शुष्क रूप वाले प्रचार से! वचन का अकाल पड़ा हुआ है क्योंकि जिस सामर्थ के साथ वे प्रचार करते थे आज हमारे प्रचार में परमेश्वर की आत्मा और बल का अभाव पाया जाता हैं।

५. पांचवा, उन्होंने पौलुस और सिलास के उदाहरण को सामने रखकर स्वयं भी क्लेश सहन किया।

निवेदन है पद ६ को देखिये।

''और तुम बड़े क्लेश में पवित्र आत्मा के आनन्द के साथ वचन को मान कर हमारी और प्रभु की सी चाल चलने लगे'' (१ थिस्सलुनीकियों १:६)

वे पौलुस सिलास और मसीह के (उदाहरण पर चलने) वाले (अनुयायी) बन गये − ''बहुत कष्ट'' झेलने के बाद भी या (प्रचंड वेदना) सहने के बाद भी। इन कष्टों के सहन करने में भी उनको आनंद आता था, जो पवित्र आत्मा उन्हें प्रदान करता था। शिष्य पतरस ने कहा था,

''हे प्रियों, जो दुख रूपी अग्नि तुम्हारे परखने के लिये तुम में भड़की है, इस से यह समझ कर अचम्भा न करो कि कोई अनोखी बात तुम पर बीत रही है। पर जैसे जैसे मसीह के दुखों में सहभागी होते हो, आनन्द करो, जिस से उसकी महिमा के प्रगट होते समय भी तुम आनन्दित और मगन हो।'' (१ पतरस ४:१२−१३)

डॉ थॉमस हेल ने कहा था, ''नये नियम के अनुसार मसीह के कारण क्लेश उठाना आनंददायक सौभाग्य माना जाता था (प्रेरितों ५:४१;१ पतरस ४:१३)। वह चर्च जो आनंद के साथ सताव सहन करता है वह एक मजबूत चर्च में परिवर्तित (होता) जाता है, और उसकी गवाही भी सामर्थशाली ठहरती है'' (थॉमस हेल, एम डी, दि एप्लाइड न्यू टेस्टामेंट कमेंटरी, किंग्सवे पब्लिकेशन, १९९७, १ थिस्सलुनीकियों १:६ पर टिप्पणी) ।

हमारे स्वयं के चर्च में भी जब भयानक विभाजन हुआ तो हम उसके बाद बहुत मजबूत हुये। इसलिये ''पवित्र आत्मा में हम बेहद आनंदित'' है। जो प्रचारक हमारे चर्च में आते हैं तो वे यह देखकर चकित हो जाते हैं कि हम इतने आनंदित हैं! जैसे थिस्सलुनिकियों का चर्च क्लेश सह सहकर मजबूत हुआ, वैसे ही हम भी आग की तपन में तपकर मजबूत हो पाये हैं!

बहुत सारी परेशानियों में से होकर गुजरना ही मजबूत मसीही बनने का एकमात्र रास्ता है। एकमात्र बाइबल अध्ययन ही मजबूत मसीहीजन उत्पन्न नहीं करता है। आजमाइशों में से निकलना हमें ठोस बनाता है। और कोई दूसरा रास्ता नहीं है! अंताकिया के नये बने मसीहियों से शिष्य पौलुस बोले, ''हमें बड़े क्लेश (बहुत कठिनाईयां) उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा'' (प्रेरितों १४:१२) । कठिनाईयां, दवाब और क्लेश न केवल मजबूत मसीही जन तैयार करते हैं − पर साथ ही गेंहूं को भूसे से भी अलग करते हैं। क्योंकि अगर थोड़ा सा दवाब आता है तो जो अपरिवर्तित लोग हैं वे चर्च छोड़ देते हैं और वापस संसार में लौट जाते हैं − जैसा हमने अक्सर देखा है। पर जो कठिनाइयों में से होकर निकलते हैं वे महान मसीहीजन बनते हैं जैसे मिसिस सालाजार, मि प्रुद्योमे, मिसिस बेबूत, डॉ कैगन, मि गिफिथ, मेरी स्वयं की पत्नी, डॉ चान और इस चर्च के कई सारे दूसरे लोग − वे सारे ''३९'' लोग जिन्होंने इस चर्च को एक बड़े विभाजन के समय बचाया ताकि हम बने रह सकें। अगर आप भी इनके समान होना चाहते हैं तो आप को भी कुछ कठिनाइयों को इसी प्रकार सहन करना होगा! परमेश्वर कठिनाइयों के द्वारा ही मजबूत मसीही जन तैयार करते हैं! एक पुराना भजन इसी प्रकार बयान करता है,

जब भयानक परेशानियों में से होकर रास्ता तुम्हारा गुजरे,
मेरा अनुग्रह, काफी होगा, तुम्हारी जरूरतें पूरी करेगा;
लपटें आग की झुलसा न सकेगी; ऐसा मैं बनाता हूं
तेरी अशुद्वि जल जाये, तपते सोने सा तू बाहर आ जावें।
   (''कैसी मजबूत एक नींव'' जार्ज कैथ, १६३८−१७१६;
      ''के'' इन रिपन सिलेक्शन आँफ हिम्स, १७८७)

मैं जानता हूं यह मेरे स्वयं के जीवन के लिये सच है। पास्टर होने के लिये मैं जिन परिक्षाओं और कठिनाइयों से होकर गुजरा वह मेरी वास्तविक सेमनरी शिक्षा थी। परिक्षाओं में पड़कर ही मैंने पास्टर होना सीखा! मैं क्रूस रूपी विद्यालय के प्रति धन्यवादी हूं, जो हमारे इस अदभुत चर्च में सबको महान रूप में परिवर्तित कर देता है!

६. छटवां, वे हमारे मसीही जन के लिये आदर्श बन गये।

पद ७ को देखिये,

''यहां तक कि मकिदुनिया और अखया के सब विश्वासियों के लिये तुम आदर्श बने'' (१ थिस्सलुनीकियों १:७)

डॉ थॉमस हेल ने कहा था,

चूंकि थिस्सलुनीकिया के मसीही जनों ने क्लेश को भी ऐसे आनंद के साथ सहन किया और विश्वसनीय बने रहकर मसीह का अनुकरण करते रहे कि वे एक आदर्श (नमूना) उदाहरण बन गये दूसरे (मसीहियों) के लिये जो मकिदुनिया और यूनान के उत्तरी राज्यों मे रह रहे थे। तो थिस्सलुनीकिया के मसीही जनों को हमारा भी आदर्श बन जाने दीजिये! तब.......हम भी दूसरों के लिये आदर्श बन जायेंगे। (उक्त संदर्भित, १ थिस्सलुनीकियों पर व्याख्या)

७. सांतवा, वे आत्माओं को जीतने वाले थे।

पद ८ को देखिये,

''क्योंकि तुम्हारे यहां से न केवल मकिदुनिया और अखया में प्रभु का वचन सुनाया गया, पर तुम्हारे विश्वास की जो परमेश्वर पर है, हर जगह ऐसी चर्चा फैल गई है, कि हमें कहने की आवश्यकता ही नहीं'' (१ थिस्सलुनीकियों १:८)

वे पूरी रीति से सुसमाचार में ''रचे बसे'' रहते थे। वे आत्माओं को जीतते थे और उन्हें चर्च में लेकर आते थे। वे आत्माओं को जीतने वाले मिशन पर थे। यद्यपि इस कार्य के लिये उन्हें बाइबल अध्ययन के साल पर साल नहीं लगे। डॉ हेल ने कहा था, ''स्मरण रखिये, जब पौलुस ने उन्हें पत्र लिखा तब वह चर्च एक साल से भी कम अवधि का था। यह छोटा और सताव सहने वाला चर्च था। तौभी उनका विश्वास सब दूर प्रसिद्व हो गया'' (उक्त संदर्भित; १ थिस्सलुनीकियों १:८ पर टिप्पणी) ।

सबसे उत्तम एक तरीका है कि शीघ्र एक मजबूत मसीही बनते हुये अभी, इसी समय आत्माओं को जीतने वाले बन जाइये! जो सुसमाचार प्रचार द्वारा नामों को लेकर आते हैं वे जल्द मजबूत मसीही जन बन जाते हैं। पर जो केवल चर्च आते रहते हैं वे कभी परिपक्व मसीही जन में परिवर्तित नहीं हो पाते हैं। आप में से कुछ को इस बारे में सोचना है! क्या यह आप की समस्या है? मैंने कभी एक वास्तविक रूप से मजबूत मसीही जन ऐसा नहीं देखा जो आत्माओं को भी जीतने वाला न हो वह तो भटके हुये लोगों को चर्च लेकर आता है और मुक्ति पाने में सहायता करता है। अगर आप सुसमाचार प्रचार में रूचि नहीं रखते है तो मेरा मानना है कि आप कभी भी एक मजबूत मसीही जन नहीं बन सकते हैं। यह मेरा ५७ साल तक सेवकाई में रहने के बाद का मत है।

८. आठवां, वे सब इतना कर पाये थे क्योंकि उनका मसीह के साथ सच्चे परिवर्तन का अनुभव था।

पद ९ व १० को देखिये,

''क्योंकि वे आप ही हमारे विषय में बताते हैं कि तुम्हारे पास हमारा आना कैसा हुआ; और तुम कैसे मूरतों से परमेश्वर की ओर फिरे ताकि जीवते और सच्चे परमेश्वर की सेवा करो। और उसके पुत्र के स्वर्ग पर से आने की बाट जोहते रहो जिसे उस ने मरे हुओं में से जिलाया, अर्थात यीशु की, जो हमें आने वाले प्रकोप से बचाता है'' (१ थिस्सलुनीकियों १:९−१०)

वे मूर्ति पूजा छोडकर परमेश्वर की तरफ मुड़े थे ताकि सच्चे जीवित परमेश्वर की आराधना कर पाये। परिवर्तित होने के लिये आप को अपने जीवन में पापों से मन फिराना आवश्यक है। पर यही सब कुछ नहीं है। आप को पापों को त्याग कर मसीह की ओर मुड़ना होगा क्योंकि यीशु ने कहा था, ''बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता'' (यूहन्ना १४:६) । अगर आप अपने पापमयी और स्वार्थी जीवन को छोडकर मसीह के पास नहीं आना चाहते तो आप को आपके पापों से कभी छुटकारा नहीं मिलेगा भले ही आप जीवन भर चर्च आते रहें! आप को मन फिराना चाहिये और यीशु पर विश्वास रखना चाहिये ताकि आप के पाप यीशु के पवित्र लहू से साफ हो सकें! तब आपकी आशा एकमात्र यीशु में बनी रहेगी और आप आशा और आनंद के साथ मसीह के दूसरे आगमन की राह देखेंगे!

मैं कितनी प्रार्थना करता हूं कि आप मेरे संदेश की छपी हुई कॉपी घर ले जाये और उसे पढ़े − एक बार नहीं, बल्कि बार बार पढ़े! मैं कितनी प्रार्थना करता हूं कि आप थिस्सलुनीका के चर्च के मसीहियों के समान महान मसीही जन बन जायें! आमीन। डॉ चान, निवेदन है कि प्रार्थना करें।


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(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे द्वारा प्रार्थना की गयी: १ थिस्सलुनीकियों १:१−१०
संदेश के पूर्व बैंजामिन किन्केड गिफिथ ने एकल गान गाया गया:
''लिविंग फॉर जीजस'' (थॉमस ओ चिसहोम‚ १८६६−१९६०)


रूपरेखा

थिस्सलुनीकियों के मसीहियों को अपना आदर्श बनायें!

MAKE THE THESSALONIAN CHRISTIANS
YOUR EXAMPLE!

द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

''पौलुस और सिलवानुस और तीमुथियुस की ओर से थिस्सलुनिकियों की कलीसिया के नाम जो परमेश्वर पिता और प्रभु यीशु मसीह में है अनुग्रह और शान्ति तुम्हें मिलती रहे'' (१ थिस्सलुनीकियों १:१)

(प्रेरितों १७:६; १ थिस्सलुनीकियों ३:२)

१. पहला, वे परमेश्वर और मसीह में बने हुये थे, १ थिस्सलुनीकियों १:१;
यूहन्ना १७:२१; ३:७; मत्ती २४:३७

२. दूसरा, उनके पास प्रभु यीशु मसीह में विश्वास, प्रेम और आशा उपस्थित थे,
१ थिस्सलुनीकियों १:३; १ कुरूंथियों १३:१३; लूका ८:१३

३. तीसरा, वे परमेश्वर द्वारा चुने हुये थे, १ थिस्सलुनीकियों १:४;
२ थिस्सलुनीकियों २:१३; इफिसियों १:४; यूहन्ना १५:१६

४. चौथा, उन्होंने सुसमाचार के शब्दों को न केवल सीखकर वरन सामर्थ
के साथ भी ग्रहण किया, १ थिस्सलुनीकियों १:५; रोमियों १:१;
१ थिस्सलुनीकियों ३:२; १ कुरूंथियों २:४

५. पांचवा, उन्होंने पौलुस और सिलास के उदाहरण को सामने रखकर स्वयं
भी क्लेश सहन किया, १ थिस्सलुनीकियों १:६; १पतरस ४:१२−१३;
प्रेरितों १४:२२

६. छटवां, वे हमारे मसीही जन के लिये आदर्श बन गये, १ थिस्सलुनीकियों १:७

७. सांतवा, वे आत्माओं को जीतने वाले थे, १ थिस्सलुनीकियों १:८

८. आठवां, वे सब इतना कर पाये थे क्योंकि उनका मसीह के साथ सच्चे परिवर्तन का अनुभव था, १ थिस्सलुनीकियों १:९−१०; यूहन्ना १४:६