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क्या आप मसीह के पास आ चुके हैं?

HAVE YOU COME TO CHRIST?
(Hindi)

डॉ आर एल हिमर्स
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

दि बैपटिस्ट टैबरनेकल ल्योस ऐंजीलिस में रविवार
९ नवंबर‚ २००३ की संध्या को दिया संदेश
A sermon preached at the Baptist Tabernacle of Los Angeles
Lord’s Day Evening, November 9, 2003

‘‘फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते" (यूहन्ना ५:४०)


मसीह के समय के धार्मिक अगुवे बहुत सावधानीपूर्वक धर्मशास्त्र का अध्ययन किया करते थे। परंतु इस सत्य को जानने से चूक जाते थे कि धर्मशास्त्र मसीह के विषय में कहते थे − और इसीलिये वे मसीह के पास नहीं आये और मसीह के द्वारा उद्धार प्राप्त नहीं किया।

उनके मध्य एक आम कहावत प्रचलित थी‚ ‘‘जिनके पास व्यवस्था की बातें हैं‚ उनके पास अनंत जीवन है" (मैथ्यू हैनरी‚ यूहन्ना ५:३९ पर व्याख्या) । परंतु यीशु कहते थे कि धर्मशास्त्र उनकी गवाही देते थे‚

‘‘तुम पवित्र शास्त्र में ढूंढ़ते हो‚क्योंकि समझते हो कि उस में अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है‚ और यह वही है जो मेरी गवाही देता है। फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते" (यूहन्ना ५:३९−४०)

वे धर्मशास्त्र की बातों पर विश्वास कर रहे थे, परंतु धर्मशास्त्र में जिस मसीह के लिये कहा गया, उन्होंने उस पर विश्वास नहीं किया। डॉ वालवूर्ड का कथन था, इसी प्रकार आज के लोग हो गये हैं जो मानते हैं कि बाइबल अध्ययन करना ही अपने आप में पर्याप्त है (वालवूर्ड एंड जुक‚ दि बाइबल नालेज कमेंटरी, विक्टर बुक्स, १९८४, वॉल्यूम २, पेज २९२) ।

वे बाइबल के पास आये और बाइबल के वचनों पर विश्वास किया − परंतु वे मसीह के पास नहीं आये और उस पर विश्वास नहीं किया।

‘‘फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते" (यूहन्ना ५:४०)

इस पतित मानवता की भी एक भयानक प्रवति है कि यह मसीह के पास आने के अलावा सबके पास चली जायेगी। सब पर विश्वास कर लेगी, मसीह को छोड़कर।

‘‘और लोग उस से मुख फेर लेते थे" (यशायाह ५३:३)

‘‘वे मुझसे घृणा करती थीं" (जर्कयाह ११:८)

‘‘वे चिल्लाए कि ले जा‚ ले जा‚ उसे क्रूस पर चढ़ा" (यूहन्ना १९:१५)

समस्त मानव जाति मसीह के साथ ऐसा ही तो व्यवहार करती है। जगत में थोड़े लोगों को छोड़कर सभी की ऐसी अवस्था है‚

‘‘फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते" (यूहन्ना ५:४०)

किसी व्यक्ति पर जब परमेश्वर का अनुग्रह होगा‚ वही व्यक्ति मसीह के पास आयेगा। स्वयं यीशु अपने वचनों में कहते हैं‚

‘‘कोई मेरे पास नहीं आ सकता‚ जब तक पिता‚ जिस ने मुझे भेजा है‚ उसे खींच न ले" (यूहन्ना ६:४४)

क्या आज संध्या परमेश्वर आप को खींच रहे हैं? क्या आप महसूस करते हैं कि आप को मसीह की आवश्यकता है? क्या उनके बिना आप स्वयं को असहाय पाते हैं? अगर ऐसा है‚ तो यह जान लेवें कि परमेश्वर आप के झूठे विश्वासों से आप को छुड़ाकर मसीह के पास लाना चाहते हैं। ध्यान से सुनिये‚ मैं क्या कहता हूं‚ अपने झूठे भरोसों को त्याग दीजिए। तब तक आप मसीह के पास नहीं पहुंच सकते। तब तक के लिये मसीह का आप से यह कहना है‚

‘‘फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते" (यूहन्ना ५:४०)

१॰ पहिली बात‚ मसीह के पास आने के बजाय लोग करते क्या हैं।

पेंटीकोस्टल और करिश्माई पृष्ठभूमिक के लोग अक्सर सोचते हैं कि उद्धार अनुभव करने और भावनाओं से उत्पन्न होता है। अक्सर ‘‘पवित्र आत्मा" परमेश्वर और मनुष्य के बीच में मसीह का स्थान ले लेता है (१ तिमोथियुस २:५)। वास्तविकता में यही देखा जाता है कि ‘‘पवित्र आत्मा" को लोग बिचवई मान लेते हैं।

‘‘फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते" (यूहन्ना ५:४०)

रोमन कैथोलिक पृष्ठभूमिक लोग प्रायश्चित करके मसीह के स्थान को भरना चाहते हैं − जैसे पछतावा‚ पाप स्वीकार‚ और भले कार्य इत्यादि। वे एक के बाद एक अपने पापों को स्वीकार करते जाते हैं या मसीह का अनुसरण करने के प्रयास में लगे रहते हैं‚ परंतु सीधे मसीह से उद्धार प्राप्त नहीं करते हैं। यहां मानवीय कार्य मसीह का स्थान ले लेते हैं।

‘‘फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते" (यूहन्ना ५:४०)

संसार के अन्य धर्म जैसे बौद्ध‚ हिंदु‚ इस्लाम और यहूदी मानते हैं कि पापों से छुटकारा या उद्धार मसीह के द्धारा नहीं मिलता है। वे होठों से तो उच्चारित करते हैं कि यीशु मसीह ‘‘एक महान महापुरूष" थे‚ परंतु वे यह विश्वास नहीं करते कि एकमात्र मसीह ही उन्हें उद्धार प्रदान कर सकते हैं। उद्धार पाने के लिये वे ‘‘भले कर्मो" पर निर्भर करते हैं।

‘‘फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते" (यूहन्ना ५:४०)

बैपटिस्ट और इवेंजलीकल्स मसीह को छोड़कर और कुछ ही बातों पर विश्वास करने की प्र से भरे होते हैं। डॉ जॉन आर राईस ने कहा था‚

लाखों लाख चर्च सदस्य उद्धार से वंचित‚ नया जीवन अप्राप्त‚ पापी जन हैं जो परमेश्वर के क्रोध के अधीन हैं। आज नर्क अनगिनित लाखों..... पुरातनपंथी बैपटिस्ट हैं....जो (नर्क) जा चुके हैं कभी भी उद्धार नहीं पा सके। (उनसे) रास्ते के चुनाव में चूक हो गयी। झूठी आशा में जीते रहे और अब नर्क की यंत्रणा झेल रहे हैं (डॉ जॉन आर राईस‚ रिलिजियस बट लॉस्ट‚ सोर्ड ऑफ दि लार्ड‚ १९३९‚ पेज ८)

उसके पश्चात डॉ राईस का कथन है‚

बाइबल में अनेकों बार प्रगट है, यह सुस्पष्ट है कि कोई जन झूठी आशा के द्धारा धोखा खाये और उस पर निर्भर बना रहे। कैसी विडंबना होगी कि अंत में उसे केवल यह पता चले कि वह पूर्णतः उद्धार से वंचित व्यक्ति है (उक्त संदर्भित)

बैपटिस्ट व इवेंजलीकल्स ‘‘पापियों के लिये तैयार की गयी प्रार्थना" के दोहराव पर विश्वास रखते हैं बजाय सीधे मसीह पर विश्वास रखने के। वे कहते हैं कि मैने उन्हें उद्धार प्रदान करने के लिये कहा क्या इतना पर्याप्त नहीं है? नहीं‚ इतना पर्याप्त नहीं है! आप को पापों से मुक्ति पाने के लिये मसीह के पास आना आवश्यक है! आप को ठहराये गये कुछ शब्दों वाली प्रार्थना पर भरोसा रखने की आवश्यकता नहीं है! आप को परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास रखना आवश्यक है! मसीह ने उससे उद्धार मांगने के लिये नहीं कहा। उसने कहा मेरे पास आओ। उनका कथन था,

‘‘हे सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा" (मत्ती ११:२८)

आप धोखे में हैं कि आप मसीह से उद्धार मांग रहे हैं‚ जबकि यथार्थ में आप को मसीह के पास आना है!

बाइबल क्या कह रही है कई लोग इसी पर विचार कर कर के जीवन बिता रहे हैं, बजाय मसीह के पास आने के। बाइबल में उद्धार पाने की योजना से वे बखूबी से परिचित हैं। कौन मसीही जन इस सत्य से अवगत नहीं कि मसीह ने हमारे पापों से छुटकारा देने के लिये बलिदान दिया है। वे जानते हैं मसीह मुरदों के मध्य से जीवित हो उठे। बाइबल के वचन उन्हें कंठस्थ है भली भांति जानते हैं परंतु असल सत्य मसीह के पास नहीं आना चाहते। जैसा डॉ वर्लवुड ने कहा कि‚ ‘‘कई लोग समझते हैं कि केवल बाइबल अध्ययन करना ही पर्याप्त है।"

यीशु लोगों से कहते हैं कि‚ ‘‘फिर तुममें और फरीसियों में क्या अंतर?"

‘‘तुम पवित्र शास्त्र में ढूंढ़ते हो‚ क्योंकि समझते हो कि उस में अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है‚ और यह वही है‚ जो मेरी गवाही देता है। फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते" (यूहन्ना ५:३९−४०)

मसीह के पास नहीं आना‚ परंतु दूसरे सभी सभी रास्ते अपनाते रहना सामान्यतः मसीही और अन्य समाजों में यही तो प्रचलन में हैं। क्या यही गलती आप ने भी तो नहीं की है? जांचिये।

२॰ दूसरी बात‚ अन्य रास्ते अपनाना किंतु मसीह के पास नहीं आना‚ क्यों आप की मदद नहीं करेगा?

जब अंतिम न्याय में परमेश्वर के सिंहासन के सम्मुख आप खड़े होंगे‚ तब यीशु आप से कहेंगे‚

‘‘मैं ने तुम को कभी नहीं जाना‚ हे कुकर्म करने वालों‚ मेरे पास से चले जाओ" (मत्ती ७:२३)

वह क्यों आप को उनसे दूर हो जाने और नर्क की आग में जाने के लिये कहेंगे? कारण सीधा है‚ वह आप को नहीं जानते। इसलिये नहीं जानते क्योंकि आप उनके पास कभी आये ही नहीं! सरल सी बात है!

आप ने कोई सी प्रार्थना दोहरा ली‚ बाइबल की कुछ बातों पर विश्वास कर लिया‚ इस रीति से आप ने उद्धार पाना चाहा। ये क्या बात हुई। सुनिये, बाइबल क्या कहती है,

‘‘उन्होंने उस से कहा‚ परमेश्वर के कार्य करने के लिये हम क्या करें? यीशु ने उन्हें उत्तर दिया‚ परमेश्वर का कार्य यह है‚ कि तुम उस पर‚ जिसे उस ने भेजा है‚ विश्वास करो" (यूहन्ना ६:२८−२९)

केवल एक ही ‘‘कार्य" स्वीकार्य है‚ और वह है प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करना! ‘‘प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करना" ‘‘मसीह के पास आओ" कहने का दूसरा रूप है। ‘‘प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करना" एवं ‘‘मसीह के पास आओ" एक ही बात कहने के दो रूप हैं। जैसा यीशु कहते हैं,

‘‘कोई मेरे पास नहीं आ सकता‚ जब तक पिता‚ जिस ने मुझे भेजा है उसे खींच न ले; और मैं उस को अंतिम दिन फिर जिला उठाऊंगा। भविष्यद्वक्ताओं के लेखों में यह लिखा है‚ कि वे सब परमेश्वर की ओर से सिखाए हुए होंगे। जिस किसी ने पिता से सुना और सीखा है वह मेरे पास आता है। यह नहीं‚ कि किसी ने पिता को देखा परन्तु जो परमेश्वर की ओर से है‚ केवल उसी ने पिता को देखा है। मैं तुम से सच सच कहता हूं‚ कि जो कोई विश्वास करता है‚ अनन्त जीवन उसी का है" (यूहन्ना ६:४४−४७)

हम उपरोक्त लिखे पदों में देखते हैं कि मसीह पर विश्वास करना और मसीह के पास आना एक की बात को कहने के दो अलग तरीके हैं। अब, मेरा प्रश्न आप से यह है कि - क्या आप यीशु के पास आये हैं? क्या आप ने उन पर विश्वास किया है?

और कुछ नहीं‚ केवल यीशु के पास आना ही उद्धार पाना है - कुछ और नहीं परंतु केवल यीशु आप को पापों से मुक्ति प्रदान कर सकते हैं! आप के पापों का मूल्य चुकाने के लिये कोई क्रूस पर नहीं मरा‚ केवल यीशु ने अपने प्राणों से मोल चुकाया। आप को जीवन देने के लिये और कोई नहीं केवल यीशु मरकर जीवित हुए।

‘‘और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें" (प्रेरितों के कार्य ४:१२)

यीशु के पास आना आवश्यक है अन्यथा आप का उद्धार नहीं। दूसरे सब तरीके नर्क की ओर अग्रसर करते हैं। क्या आप अभी तक यीशु के पास नहीं पहुंचे हैं? आप ने यह तो माना है कि बाइबल उनके विषय में कहती है। आप ने यीशु से कहा कि वह आप को बचा लेंवे। परंतु आप उनके पास नहीं − आये हैं।

‘‘फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते" (यूहन्ना ५:४०)

३॰ तीसरी बात‚ कैसे जानें कि आप यीशु के पास आ चुके हैं अथवा नहीं।

आप कह सकते हैं‚ ‘‘कि मैं नहीं जानता कि मैं यीशु के पास आ चुका हूं या नहीं। मै कैसे यह बता सकता हूं?" यह प्रगट करने का तरीका २ कुरूं १३:५ में दे रखा है। प्रेरित पौलुस ने कहा था‚

‘‘अपने आप को परखो‚ कि विश्वास में हो कि नहीं‚ अपने आप को जांचो........ " (२ कुरूं १३:५)

इस पद के संबंध में‚ स्पर्जन ने कहा था‚

अपने आप को जांचों अगर कोई गलती है तो इस संसार में सुधारने का मौका तुम्हारे पास है......मैं नहीं चाहूंगा कि मेरी आत्मा नर्क में दुख पाये। कैसा डरावना जोखिम है कि जिसमें से आप और मैं होकर गुजर रहे हैं‚ अगर हम अपने आप को नहीं जांचते हैं! यह अनंतकाल का जोखिम है; यह स्वर्ग या नर्क का जोखिम है या तो परमेश्वर का अनंत अनुग्रह प्राप्त होगा या अनंतकालीन नर्क का श्राप तो जैसे प्रेरित ने कहा था‚ ‘‘अपने आप को परखो" (सी एच स्पर्जन‚ ‘‘सेल्फ एक्जामिनेशन" दि न्यू पार्क स्टीट पुल्पिट‚ पिल्ग्रिम पब्लिकेशंस‚ १९८१ पुर्नमुद्रण‚ वॉल्यूम ४‚ पेज ४२९)।

डॉ जे वर्नान मैगी ने २ कुरूं १३:५ पर यह टिप्पणी दी थी‚

पौलुस कहते हैं कि हमें स्वयं का परीक्षण करना चाहिये कि हम विश्वास में हैं या नहीं। अन्यथा इसके परिणाम भोगने को हमें तैयार रहना पड़ेगा (जे वर्नान मैगी‚ थ्रू दि बाइबल‚ थॉमस नेल्सन‚ १९८३‚ वाल्यूम ५‚ पेज १४५)

असहेल नेटलेटन‚ जो दूसरी महान आत्मिक जाग्रति के समय के महान सुसमाचार प्रचारक थे‚ उन्होंने कहा था‚

(स्वयं को जांचने के कार्य में) प्रत्येक को स्वयं को न्याय के समक्ष रखकर देखना चाहिये। ईमानदारी से अपनी आत्मा को जांचों। झूठी आशा से बढ़कर कुछ नहीं। इसमें गलती कर जाने से बढ़कर कुछ नहीं। उस नींव को अच्छी तरह से जांचों जिस पर आपकी स्वर्ग की आशा टिकी हुई है। ताकि गलती पहचानने में देर न हो जाये। (असहेल नेटलेटन‚ सर्मन फ्राम दि सेकंड ग्रेट अवेकनिंग‚ इंटरनेशनल आउटरीच‚ १९९५ पुर्नमुद्रण‚ पेज ३२३‚ ३३३)

अपने जीवन पर पीछे दृष्टि डालिये‚ कब उद्धार पाया था आपने। क्या आप मसीह के पास आये थे? या आपने कोई रास्ता अपनाया था? जैसा डॉ नेटलटन ने कहा, ‘‘ठीक से जांचिये आप की स्वर्ग की आशा की नींव को।" क्या आप सचमुच मसीह के पास आये थे? क्या यीशु, स्वयं आप की आशा की नींव है? मसीह के पास आना चूक गये हैं तो इस जीवन का यह अति आवश्यक कार्य आज कर डालिये‚ आज रात की इस सभा में आप को उनके पास आ जाना चाहिये। क्योंकि यीशु कहते हैं,

‘‘जो कुछ पिता मुझे देता है वह सब मेरे पास आएगा‚ उसे मैं कभी न निकालूंगा" (यूहन्ना ६:३७)

यीशु ने यह भी कहा‚

‘‘हे सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे लोगों‚ मेरे पास आओ‚ मैं तुम्हें विश्राम दूंगा" (मत्ती ११:२८)

मेरी आशा और किसी पर नहीं केवल यीशु के लहू और उनकी धार्मिकता पर टिकी है।
किसी सुखद ढांचे पर विश्वास करने की हिम्मत नहीं केवल यीशु का नाम पर्याप्त है।
मसीह जो ठोस चटटान हैं उन पर टिका हूं बाकि सब धंसने वाले मैंदान हैं‚
बाकि सब धंसने वाले मैंदान हैं।
   (‘‘ठोस चटटान" एडवर्ड मोट‚ १७९७−१८७४)


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(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व धर्मशास्त्र पाठ का पठन डॉ क्रेटन एल चान द्वारा: यूहन्ना ५:३९−४७
संदेश के पूर्व बैंजामिन किंकेड ग्रिफिथ का एकल गान:
‘‘ठोस चटटान" (एडवर्ड मोट‚ १७९७−१८७४)


रूपरेखा

क्या आप मसीह के पास आ चुके हैं?

HAVE YOU COME TO CHRIST?

डॉ आर एल हिमर्स
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

‘‘फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते" (यूहन्ना ५:४०)

(यूहन्ना ५:३९; यशायाह ५३:३; जर्कयाह ११:८; यूहन्ना १९:१५; ६:४४)

१॰ पहिली बात‚ मसीह के पास आने के बजाय लोग करते क्या हैं‚
१ तिमोथी २:५; मत्ती ११:२८

२॰ दूसरी बात‚ दूसरे मार्ग अपनाना किंतु मसीह के पास नहीं आना‚ क्यों
आप की मदद नहीं करेगा‚ मत्ती ७:२३; यूहन्ना ६:२८−२९‚
४४−४७; प्रेरितों के कार्य ४:१२

३॰ तीसरी बात‚ कैसे जानें कि आप यीशु के पास आ चुके हैं अथवा नहीं‚
२ कुरूं १३:५; यूहन्ना ६:३७